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Friday, 22 November, 2024
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बिहार चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के नेता सिर्फ एक मुद्दे पर एकमत- सभी अपने बेटों के लिए टिकट चाहते हैं

बिहार के करीब 40 नेता अपने रिश्तेदारों के लिए आगामी चुनावों में टिकट चाहते हैं. ज्यादातर नेता अपने बेटे के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र टिकट वितरण अभी शुरू नहीं हुआ है लेकिन इस बीच जो एक ट्रेंड देखने को मिल रहा है वो है- जो टिकट चाहते हैं वो ज्यादातर टिकट बांटने वालों से संबंधित हैं.

आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप ही केवल किसी परिवार से संबंधित नहीं बल्कि राजद, भाजपा, जेडीयू और कांग्रेस से ऐसे करीब 40 नेता हैं जो अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट पाना चाहते हैं. इनमें से ज्यादातर अपने बेटों के लिए टिकट पाने की कोशिश कर रहे हैं.

जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह और राजद के उनके समकक्ष जगदानंद सिंह और कांग्रेस के बिहार प्रमुख मदन मोहन झा अपने बेटों के लिए टिकट पाने की कोशिश कर रहे हैं.

वशिष्ठ नारायण सिंह आरा विधानसभा से अपने बेटे सोनू सिंह के लिए टिकट चाहते हैं.

राजद के प्रदेश प्रमुख जगदानंद सिंह रामगढ़ विधानसभा से अपने बेटे सुधाकर सिंह के लिए टिकट चाहते हैं जबकि झा अपने बेटे माधव झा के लिए दरभंगा के बेनीपुर विधानसभा का टिकट चाहते हैं.

अपने बेटों के लिए विधानसभा का टिकट पाने की चाह सिर्फ राज्य के तीनों पार्टियों के प्रमुख ही नहीं रखते बल्कि सांसद, विधायक से मंत्री तक कई नेता अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट पाने की कोशिश कर रहे हैं.


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भाजपा के संभावित वंशवादी

केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे अपने बेटे अरजीत शास्वत के लिए टिकट मांग रहे हैं जो भागलपुर से 2015 का विधानसभा चुनाव हार गए थे.

सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद के बेटे संजीव चौरसिया जो दीघा विधानसभा क्षेत्र से मौजूदा विधायक हैं, वे यहां से टिकट बरकरार रखना चाहते हैं.

पूर्व मंत्री और पाटलिपुत्र से सांसद राम कृपाल यादव अपने बेटे अभिमन्यु के लिए टिकट मांग रहे हैं जबकि राज्य सभा सांसद गोपाल नारायण सिंह और भाजपा के पूर्व मंत्री अवधेश नारायण सिंह भी चाहते हैं कि उनके बेटे इस बार चुनाव लड़ें.

सिवान से भाजपा के विधायक व्यास देव प्रसाद भी अपने बेटे के लिए टिकट चाहते हैं.

हालांकि, संजीव चौरसिया ने दिप्रिंट को बताया कि एक वंशवादी होने का मतलब चुनाव जीतना नहीं है.

चौरसिया ने कहा, ‘जो लोग राजनीति में सक्रिय हैं उन्हें ही टिकट मिलेगा. यदि आपको टिकट मिलता है तो यह आवश्यक नहीं है कि आप जीत जाएंगे. कई नेताओं के बेटे आए और गायब हो गए, यह सब आपके काम, समर्पण पर निर्भर करता है. यह 24 घंटे का काम है. इन दिनों लोगों की आकांक्षाएं अधिक हैं और वे ऐसा नेता चाहते हैं जो उनके निर्वाचन क्षेत्र में लगातार मौजूद हो.’


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राजद में भी वही स्थिति है

राजद में तेजस्वी और तेज प्रताप के अलावा कई नेता अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट चाहते हैं.

वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी शाहपुर से टिकट चाहते हैं, जहां से वे अभी विधायक हैं. महाराजगंज से चार बार के सांसद रहे प्रभुनाथ सिंह, बाढ़ विधानसभा सीट से अपनी बेटी मधु सिंह के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं.

पूर्व मंत्री कांति सिंह भी अपने बेटे प्रिंस कुमार के लिए टिकट चाहते हैं.

राजद के विधायक और शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी ने दिप्रिंट से कहा कि राजनीति में वंशवाद के संबंध में अंतर किया जाना चाहिए.

‘दो तरह के नेताओं के परिजन हैं- वे जो लंबे समय से अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं और राजनीति कर रहे हैं. अगर वे टिकट चाहते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है. कभी-कभी पिता बेटों या बेटियों को विरासत सौंपते हैं इसकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए. समस्या यह है कि जब बेटा पूरी तरह से राजनीति में नहीं है और उसे टिकट मिलता है तो लोगों को उस फैसले पर सवाल उठाना चाहिए.’


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जदयू और कांग्रेस भी पीछे नहीं

जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण के अलावा पूर्व सांसद मीना सिंह और राधा चरण साह जो हाल ही में राजद से आए हैं, अपने बेटों के लिए टिकट चाहते हैं.

पूर्व सांसद और गैंगस्टर सूरजभान सिंह अपने छोटे भाई कन्हैया के लिए टिकट मांग रहे हैं. सूरज की पत्नी वीणा सिंह लोजपा के टिकट पर मुंगेर की पूर्व सांसद रह चुकी हैं.

हरिनारायण सिंह, नालंदा में हरनौत निर्वाचन क्षेत्र से जदयू विधायक हैं. अब वह चाहते हैं कि उनकी सीट उनके बेटे को मिल जाए क्योंकि वो अब बूढ़े हो चले हैं.

अन्य वंशों में निखिल मंडल शामिल हैं, जो मधेपुरा निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. वह बी.पी. मंडल के पोते हैं. मंडल, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे जिन्होंने मंडल कमीशन रिपोर्ट लिखी थी.

हाल ही में एनडीए में शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपने दामाद देवेंद्र मांझी के लिए टिकट चाह रहे हैं. उनके बेटे संतोष सुमन पहले से ही एमएलसी हैं.

सुमन ने कहा कि ‘अगर नेताओं के बेटे राजनीति में प्रवेश करते हैं तो इससे कोई नुकसान नहीं है’. उन्होंने कहा, ‘अगर उनका परिवार राजनीतिक हैं और उनकी पीढ़ी राजनीति से जुड़ी रही है तो वे क्या करेंगे? ऐसी स्थिति सिर्फ बिहार की ही नहीं है. भारत के हर हिस्से में, अगर ऐसे युवा राजनीति में रुचि रखते हैं तो उन्हें प्रवेश करना चाहिए, इसमें कोई बुराई नहीं है.’

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा के अलावा वरिष्ठ नेता अशोक कुमार भी अपने बेटे के लिए एक सीट पर नज़र बनाए हुए हैं.

पूर्व विधायक रामदेव राय की मृत्यु के बाद उनके पुत्र शिव प्रकाश टिकट के दावेदार हैं. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सदानंद सिंह कहलगांव से अपने बेटे के लिए टिकट चाहते हैं.

मदन मोहन झा ने दिप्रिंट को बताया, ‘चुनाव समिति द्वारा उम्मीदवारों की जीत को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाएगा. अगर कोई राजनीति में प्रवेश करना चाहता है तो इसमें क्या बुराई है?’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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