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Thursday, 25 April, 2024
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इंटरनेट की दुनिया के 25 सालों में वो 5 मामले जिसने तय किया कि भारत कैसे ऑनलाइन जाए

भारत में 1.16 अरब मोबाइल सदस्यताएं हैं जिनमें 95 प्रतिशत से अधिक प्रीपेड हैं. 200 रुपए से कम के मासिक भुगतान पर देश भर के लिए असीमित वॉयस कॉल्स मिलती हैं.

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विविध लोगों का एक ग्रुप सुबह 9 बजे से पहले ही वीएसएनएल के दिल्ली ऑफिस के बार लाइन लगाए था और सबके हाथ में छह-छह हज़ार रुपए के डिमांड ड्राफ्ट्स थे जिनकी कीमत आज 32,000 रुपए के करीब होगी. ये 1995 में भारत के 48वें स्वतंत्रता दिवस से अगला दिन था और दफ्तर देर से खुलने वाले थे. लेकिन हम भारत की पहली पब्लिक इंटरनेट सर्विस को साइन करने के लिए बेताब थे.

हम सब किसी और चीज़ को लेकर उत्सुक थे: क्या इंतज़ार कर रहे किसी अजनबी ने अभी तक मोबाइल फोन खरीदा था? सिर्फ 17 दिन पहले, 31 जुलाई 1995 को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बासु को तब के संचार मंत्री सुखराम से कोलकाता में पहली मोबाइल कॉल आई थी. जैसा कि पता चला, अभी तक किसी के पास सेलफोन नहीं था. एक मोबाइल फोन की कीमत 40,000 रुपए से ज़्यादा थी, ऊपर से महंगी सेवा अलग.

वीएसएनएल की इंटरनेट सेवा काफी खराब थी. खराब फिक्स्ड फोन लाइन्स पर, एक शोर मचाते मॉडम के ज़रिए 9.6 केबीपीएस डायल-अप लिंक पर केवल टेक्स्ट का एक ‘शेल अकाउंट, जिसमें हर कुछ मिनट पर कनेक्शन टूट जाता था. लेकिन उसने हमारे लिए एक नई दुनिया खोल दी.

तेज़ी से आते हैं आज पर. वैश्विक महामारी के दौरान हम में से ज़्यादातर लोग, घर से काम कर रहे हैं. हम में से कुछ के पास 100 एमबीपीएस के फाइबर लिंक्स हैं- हर कोई न सिर्फ उन डायल-अप्स से 10,000 गुना तेज़ है बल्कि उसकी इंटरनेशनल बैंडविड्थ, उस समय इंटरनेट के लिए पूरे भारत की कुल इंटरनेशनल बैंडविड्थ से 1,500 गुना अधिक है. हमारे घरों में ऑनलाइन क्लासेज़, ज़ूम कॉल्स और नेटफ्लिक्स मूवीज़ एक साथ चल रही होती हैं. पिछले महीने दिल्ली में हेट स्पीच को बढ़ावा देने में फेसबुक के रोल पर उच्च क्वॉलिटी एचडी में भारत का पहला लाइव डिपोज़ीशन आयोजित किया गया.

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भारत में 1.16 अरब मोबाइल सदस्यताएं हैं जिनमें 95 प्रतिशत से अधिक प्रीपेड हैं. 200 रुपए से कम के मासिक भुगतान पर देश भर के लिए असीमित वॉयस कॉल्स मिलती हैं. 66 करोड़ से अधिक ब्रॉडबैंड ग्राहक हैं- जिनमें 90 प्रतिशत से ज़्यादा मोबाइल हैं. एक जीबी मोबाइल डेटा के लिए हम 5 रुपए से भी कम देते हैं जो दुनिया में सबसे कम है- दुनिया भर में ये औसत 5 डॉलर प्रति जीबी से अधिक है.

इसके मार्केट में रह रहकर उछाल देखा गया है जिसमें कभी-कभार व्यवधान आ जाते हैं. जैसे कि चार साल पुराने रिलायंस जियो ने दशकों से जमे खिलाड़ियों को हिला दिया था. या कभी कभार इनके अस्तित्व को लगने वाले झटके: जैसे हाल ही का ‘एजीआर’ (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू) केस जिसमें सुप्रीम कोर्ट हमारे दो चोटी के ऑपरेटर्स को बंद करने की कगार पर आ गया था.

इन दशकों में बहुत से मामले अदालतों में गए और उन्होंने बाज़ार तथा संचार उद्योग को एक आकार दिया. ये हैं वो पांच ऐतिहासिक मामले जिन्होंने वास्तव में बदलाव पैदा किया.


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अगस्त 2017- जस्टिस पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ

भारत के सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने कहा कि निजता एक मौलिक अधिकार है जिससे नरेंद्र मोदी सरकार में घबराहट फैल गई जो ये कह रही थी कि ऐसा नहीं है. फैसले में कहा गया कि ये अधिकार संविधान की धाराओं- 14, 19 और 21 के तहत सुरक्षित है. इसके साथ ही कोर्ट ने बहुत से ऐतिहासिक फैसलों में चली आ रही भ्रांतियों और असंगतियों पर भी विराम लगा दिया.

मोदी सरकार का ये रुख कि निजता एक मौलिक अधिकार नहीं है, भारतीय निवासियों के लिए बायोमेट्रिक आईडी आधार की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर बहस के दौरान सामने आया जिसे 2012 में कर्नाटक हाई कोर्ट के एक 86 वर्षीय रिटायर्ड जस्टिस केएस पुत्तास्वामी ने दायर किया था. न्याय मांगने वाले न्यायमूर्ति अब 94 साल के हैं.

इस मौलिक फैसले के नतीजे में सरकार पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 लेकर आई जिसकी फिलहाल एक संयुक्त संसदीय समिति समीक्षा कर रही है.


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मार्च 2015- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ

सुप्रीम कोर्ट ने इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के कठोर अनुच्छेद 66ए को रद्द कर दिया जिसमें ऐसी किसी भी सामग्री को अपराधिक करार दे दिया गया था जो परेशान करने वाली, असुविधाजनक या पूरी तरह से घिनौनी अथवा अपमानजनक हो- इन शब्दों को बहुत व्यापक और अस्पष्ट पाया गया. कानून प्रवर्तन एजेंसियां अकसर इस अनुच्छेद का दुरुपयोग कर फॉर्वर्ड किए गए संदेशों यहां तक कि सोशल मीडिया पोस्ट पर लाइक के आधार पर लोगों को हिरासत में ले लेती थीं.

दो जजों की पीठ ने फैसला सुनाया कि विचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी एक बुनियादी अधिकार है, अनुच्छेद 66ए वास्तव में संविधान की धारा 19(1)(ए) में सुरक्षित, बोलने की आज़ादी का उल्लंघन करता था और इस तरह के व्यापक कानून को संविधान की धारा 19(2) के अंतर्गत, ‘बोलने की आज़ादी पर उचित प्रतिबंध’ के तौर पर न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता.

फैसले में स्पष्ट किया गया कि यदि किसी ऑनलाइन स्पीच से कथित रूप से कानून का उल्लंघन हो तो ‘निजी प्लेटफॉर्म्स नहीं बल्कि सरकारी अधिकारियों को उसपर फैसला करना चाहिए’. ऐसा न होने से फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स शिकायतों के आधार पर जल्दबाज़ी में सामग्री को हटा सकते हैं.

श्रेया सिंघल कौन हैं? वकीलों के परिवार से एक युवा महिला जिसे ऑनलाइन पोस्ट के आधार पर बड़ी संख्या में हुई गिरफ्तारियों से झटका लगा था. इनमें कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी और एक फेसबुक पोस्ट के लिए मुबंई की दो लड़कियों की गिरफ्तारी भी शामिल थी. 2012 में जब उन्होंने अनुच्छेद 66ए को चुनौती दी तो सिंघल सिर्फ 21 साल की थीं, एक स्नातक छात्रा जो लॉ स्कूल जाने की उम्मीद कर रही थी.


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दिसंबर 2004- अवनीश बजाज की गिरफ्तारी

बजाज एक अमेरिकी नागरिक हैं और ऑनलाइन नीलामी प्लेटफॉर्म बाज़ी.कॉम के संस्थापक हैं (जिसे हाल ही में ई-बे ने खरीद लिया है). इस प्लेटफॉर्म पर एक विक्रेता ने बिक्री के लिए एक सीडी लिस्ट की थी जिसमें दिल्ली के दो स्कूली छात्रों के बीच हुए सेक्स की एक वीडियो क्लिप थी जिसपर काफी शोर मचा. ई-बे इंडिया ने फौरन उस लिस्टिंग को हटा दिया लेकिन बजाज को एक शुक्रवार के दिन गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें वीकएंड के बाद सोमवार को ही ज़मानत मिल पाई.

इस घटना की वजह से सूचना तकनीक अधिनियम 2000 की एक व्यापक समीक्षा शुरू हो गई जिसमें आगे चलकर 2008 में संसद ने कई मौलिक संशोधन पारित किए. इनमें मध्यस्थ दायित्व संरक्षण के लिए न सिर्फ बारीक कानूनी परीक्षण बल्कि और भी कई संशोधन थे- जिनमें विवादास्पद 66ए भी था जिसे लाने के पीछे मंशा तो अच्छी थी लेकिन उस साल हुए 29/11 मुंबई हमलों के बाद उसे बहुत व्यापक बना दिया गया था.

जनवरी 1998 – वीएसएनएल ने इंटरनेट टेलीफोनी बंद की

विदेश संचार निगम लिमिटेड, उस समय देश की एकमात्र आईएसपी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ने अपने ग्राहकों को निर्देश दिया कि उसकी इंटरनेट सेवा का इस्तेमाल टेलीफोनी या फैक्स एप्लीकेशंस के लिए न करें. वीएसएनएल द्वारा ब्लॉक की गई कुछ वेबसाइट्स की एक्सेस को तब बहाल किया गया जब दिल्ली हाई कोर्ट में इस आशय की एक याचिका दायर की गई कि ऐसी ब्लॉकिंग याचिकाकर्ता के बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन थी और केवल एक्सेस मिलने का मतलब वास्तव में इंटरनेट टेलीफोनी सेवाओं का इस्तेमाल करना नहीं था.

याचिकाकर्ता थे आईआईटी दिल्ली के ग्रेजुएट अरुण मेहता जो एक सॉफ्टवेयर डेवलपर और विकलांगता कार्यकर्ता थे. वीएसएनएल का 2002 में निजीकरण कर दिया गया और वो टाटा कम्यूनिकेशंस लिमिटेड बन गई. विडंबना ये है कि इंटरनेट ट्रैफिक की दुनिया की सबसे बड़ी कैरियर होने के नाते ये इंटरनेट टेलीफोनी का भारी इस्तेमाल करती है.


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फरवरी 1998 – ट्राई का निजी आईएसपीज़ को इनकार

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने जो एक अर्ध-न्यायिक निकाय थी, निजी आईएसपीज़ की लाइसेंसिंग के दिशानिर्देशों पर रोक लगा दी, जो जनवरी 1998 में प्रकाशित हुए थे क्योंकि सरकार ने ट्राई की सिफारिशें नहीं मांगीं थीं, जो कानूनन आवश्यक थीं. संयोग से, प्रस्तावित लाइसेंस में इंटरनेट सेवाओं की केवल एक छोटी सी ‘व्हाइटलिस्ट’ की अनुमति थी जिसमें आर्ची, विरेनिका और गोफर शामिल थीं, जो उन दिनों के कुछ सर्च इंजिंस थे.

शुक्र है कि 1998 में जारी संशोधित गाइडलाइंस में, ‘सभी तरह की इंटरनेट एक्सेस और कंटेट सेवाओं’ की अनुमति दे दी गई, सिवाय इंटरनेट टेलीफोनी के (जिसकी बाद अप्रैल 2002 से अनुमति दे दी गई, भले ही कुछ प्रतिबंधित तरीके से हो).

1998 में अगर समय रहते वो दखलअंदाज़ी न होती तो हम नई सेवाएं और एप्स इस्तेमाल न कर पाते जब तक सरकार तय न कर लेती कि ऐसा करना विधिसम्मत है. इस केस के बाद पांच हफ्तों से भी कम में तेज़ी से बदलाव आया. ये केस ईमेल लाइसेंसधारियों के एक समूह ने दायर किया था (हां, उन दिनों भारत में ई-मेल के लिए एक टेलीकॉम लाइसेंस हुआ करता था) और हम में से एक ने गवाह के तौर पर उस पिटीशन पर साइन किए थे.

सीख

संविधान में निहित मौलिक अधिकारों, सार्वजनिक नीति दस्तावेज़ों के बुलंद उद्देश्यों और कानून व नियमों में प्रक्रिया से संबंधित सुरक्षा से आगे, संस्थानों की भूमिका और प्रबुद्ध और सक्रिय नागरिकों के साथ-साथ हमेशा सतर्क रहने वाली सिविल सोसाइटी की ज़रूरत पर एक फलते- फूलते और सहभागी लोकतंत्र में जितना बल दिया जाए उतना कम है.

अगली एक चौथाई सदी में सम्मिलित, समान और सतत विकास के लिए भारत को न केवल इंटरनेट को गले लगाने की ज़रूरत है बल्कि इंटरनेट के समतावादी शासन में उसे एक रोल मॉडल और ग्लोबल लीडर बनना है. ऐसे में ये और भी सच हो जाता है, जब वैश्विक महामारी के बीच व्यापार युद्ध और निजता की लड़ाई के तनाव और खिंचाव से ग्लोबल इंटरनेट में टूट-फूट हो रही है, एप्स बैन हो रहे हैं और दीवारों से घिरे गार्डंस बनाए जा रहे हैं.

(दीपक महेश्वरी एक पब्लिक पॉलिसी कंसल्टेंट और आईसीआरआईईआर में सीनियर विज़िटिंग फैकल्टी हैं और प्रसांतो के रॉय एक पब्लिक पॉलिसी कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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