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Sunday, 22 December, 2024
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बिहार के मुख्यमंत्री को उस वक्त का इंतजार है, जब ‘ब्रांड नीतीश’ मोदी के ब्रांड से अधिक मज़बूत होगा

मोदी मंत्रिमंडल में इकलौता पद लेने से नीतीश कुमार के इनकार के बाद अब चर्चा अगले साल के बिहार विधानसभा चुनावों पर केंद्रित हो गई है, जिसमें मुख्यमंत्री ‘बड़े भाई’ की भूमिका निभाना चाहते हैं.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस समय केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव डालने की स्थिति में भले ही ना हों, पर उन्हें पता है कि करीब 17 महीने बाद बिहार में विधानसभा चुनावों के वक्त उनका महत्व होगा. और वह उस वक्त का इंतजार करेंगे.

केंद्रीय मंत्रिमंडल में ‘प्रतीकात्मक भागीदारी’ निभाने से इनकार कर मोदी के शपथ ग्रहण समारोह का मज़ा खराब करने वाले कुमार का भाजपा के लिए स्पष्ट संदेश है. मेरा सहयोग पूर्वस्वीकृत नहीं मानें और मुझ पर संख्याएं मत थोपें.

शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेकर शुक्रवार को नई दिल्ली से पटना लौटते ही बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘एनडीए को मिले वोट बिहार की जनता के थे, ना कि किसी एक व्यक्ति के नाम पर. वे (हमारे समर्थक) दूसरों की तरह मुखर नहीं हैं. पर वे बढ़चढ़ कर मतदान करते हैं.’

उल्लेखनीय है कि कुमार ने अपनी पार्टी के मोदी सरकार में शामिल नहीं होने की घोषणा करते हुए गुरुवार को कहा था कि वह सहयोगी दलों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व दिए जाने में यकीन करते हैं. प्रतीकात्मक रूप से सिर्फ एक पद दिए जाने में नहीं.

बिहार के विजयी गठबंधन के भीतर अविश्वास का भाव

नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के सूत्रों के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पार्टी के तीन सदस्यों को मंत्रिमंडल में जगह देने की मांग की थी. पर भाजपा हर सहयोगी दल को एक मंत्री पद देने के अपने सिद्धांत पर कायम रही, जिसे  नीतीश कुमार ने ठुकरा दिया.


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कुमार ने निकट भविष्य में भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार किया है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा है कि वह पूरी तरह एनडीए के साथ हैं. फिर भी उनके केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर रहने के फैसले ने बिहार के भाजपा नेताओं को चिंता में डाल दिया है.

बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘नीतीश कुमार हमारे मुख्यमंत्री हैं और इस मुद्दे पर मैं कुछ नहीं कहूंगा.’ आमतौर पर मीडिया से अच्छे संबंध रखने वाले उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी इस बारे में कुछ कहने से मना किया है.

अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर भाजपा के एक चिंतित नेता ने कहा, ‘2013 और 2015 में नीतीश जी लगातार कहते रहे थे कि वे गठबंधन में बने रहेंगे. पर उन्होंने 2013 में एनडीए को और 2017 में महागठबंधन को छोड़ दिया.’

लोकसभा चुनावों में राज्य की 40 में से 39 सीटें (भाजपा 17, जदयू 16 और लोजपा 7) जीतने और महागठबंधन को मात्र एक सीट पर सीमित कर देने पर अभी मंगलवार तक खुशियां मना रहे एनडीए के भीतर अब अविश्वास का माहौल है.

जदयू के नेता बयान दे रहे हैं कि कुमार के ‘अपमान’ को सहन नहीं किया जाएगा. लोकसभा चुनावों के बाद गायब हो गए महागठबंधन के नेता भी अब सामने आ गए हैं.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कुमार का समर्थन करते हुए भाजपा की उसके अहंकार के लिए आलोचना की है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह ने कहा है कि कुमार को भाजपा ने अपमानित किया है.

नीतीश कुमार के समक्ष विकल्प

इस समय, यदि बिहार के मुख्यमंत्री भाजपा से संबंध तोड़ भी लेते हैं. तो उनकी सरकार नहीं गिरेगी.

अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर राजद के एक उत्साहित विधायक ने कहा, ‘चुनाव में हार के बाद राजद नीतीश कुमार की हर शर्त को मानने को तैयार है और 27 विधायकों वाली कांग्रेस को भी उनका साथ देकर खुशी ही मिलेगी. इस तरह बिहार में पुराना वाला गठबंधन ही एनडीए की जगह लेगा.’

राजद नेता ने कहा, ‘भाजपा को अगला चुनाव संभवत 2015 के गठबंधन के साथ लड़ना पड़ेगा जब वो 53 सीटों पर सिमट गई थी.’

राजद के इस विधायक ने ये भी बताया कि ‘चाचा नीतीश’ की आलोचना को कोई मौका नहीं छोड़ने वाले पार्टी नेता तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए हुए हैं. राजद विधायक के अनुसार ये ‘धैर्यपूर्वक इंतजार’ करने की नीति है.

हालांकि, जदयू नेताओं को संदेह है कि कुमार इस समय एनडीए से अलग होना चाहेंगे क्योंकि उनकी मौजूदा सरकार उनकी पूर्ववर्ती महागठबंधन सरकार के मुकाबले कहीं अधिक सुचारू रूप से चल रही है.

जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘यदि वे फिर से पाला बदलते हैं तो उनकी राजनीतिक साख और कम हो जाएगी जो कि पूर्व के दो पालाबदल के कारण पहले से ही कम है.’

अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर इस नेता ने कुमार के ताजा रवैये को भाजपा के लिए एक संदेश मात्र बताया कि विधानसभा चुनावों में उसे उनकी ज़रूरत पड़ेगी. जदयू नेता ने कहा, ‘जदयू की मुख्य चिंता ये है कि यदि सीटों के बंटवारे का लोकसभा चुनावों वाला फार्मूला, जब जदयू और भाजपा को बराबर संख्या में सीटें दी गई थीं, आगे भी (विधानसभा चुनावों के लिए) लागू रहता है… और यदि भाजपा को जदयू से अधिक सीटें मिलती हैं. तो भाजपा मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर सकती है.’

जदयू के इस नेता के अनुसार उनकी पार्टी विधानसभा चुनावों में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहेगी.

जदयू के समक्ष मुद्दे

लोकसभा चुनावों के दौरान जदयू का मजाक उड़ाया गया था कि वो बिना घोषणा-पत्र के चुनाव लड़ने वाली भारत की एकमात्र पार्टी है. ऐसा राम मंदिर और तीन तलाक पर इसका रुख भाजपा से बिल्कुल अलग होने के कारण किया गया था.

लोकसभा चुनावों के दो चरणों की समाप्ति के बाद कुमार ने खुद मोदी लहर चलने की बात स्वीकार की थी और उन्होंने ‘प्रधानमंत्री के रूप में मोदी’ के लिए वोट की अपील की थी.


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जदयू नेताओं का कहना है कि बिहार विधानसभा के चुनावों में स्थिति अलग होगी जब राष्ट्रवाद या मोदी के मुद्दे नहीं होंगे और ‘ब्रांड नीतीश’ मोदी के ब्रांड से अधिक मज़बूत होगा.

जदयू के एक नेता ने कहा कि उन्हें (भाजपा को) इस हकीकत का एहसास दिलाने और ये बताने का समय आ गया है कि कुमार को एक हद से अधिक धकिया नहीं जा सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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