scorecardresearch
Tuesday, 7 May, 2024
होमदेशअर्थजगतस्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी वृद्धि और टैक्स में राहत- मोदी सरकार के बजट 2021 से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं

स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी वृद्धि और टैक्स में राहत- मोदी सरकार के बजट 2021 से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं

रोजगार सृजन क्षेत्र पर मोदी सरकार की ओर से सबसे ज्यादा जोर दिए जाने की संभावना है क्योंकि वह कोविड लॉकडाउन के कारण लगे झटके से उबरने में मदद करेगा.

Text Size:

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को जब महामारी के बाद देश का पहला आम बजट पेश करने के लिए खड़ी होंगी तो उनका पूरा जोर बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाने, महामारी से प्रभावित हुए टेक्सटाइल, किफायती आवास, पर्यटन, एमएसएमई और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार सृजन के साथ-साथ स्वास्थ्य क्षेत्र और भाजपा के ‘मुख्य वोट बैंक’ मध्यम आय वर्ग और असंगठित क्षेत्र को कोरोनावायरस के कारण पहुंची क्षति से उबारने पर होगा.

भाजपा और सरकार से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट से बातचीत में आम बजट 2021-22 की संभावित सूरत पर चर्चा की और बताया कि इसे तैयार करने में किन फैक्टर का ध्यान रखा गया है.

ये आकलन भाजपा की तरफ से बजट पर चर्चाओं के लिए गठित एक आंतरिक ‘थिंक टैंक’ और वित्त मंत्री के बीच हुई कई दौर की बातचीत पर आधारित है.

भाजपा सूत्रों ने कहा कि सरकार की सबसे बड़ी चुनौती अपने मूल जनाधार को संतुष्ट करने वाला बजट पेश करना है, जिसमें कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करके सरकार के प्रति गलत अवधारणा बढ़ा रहे किसान, सीमित या फिर खत्म हो चुकी मांग के कारण अपना काम-धंधा बंद कर चुके छोटे कारोबारी— जो वैसे तो सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले होते हैं, निम्न-मध्यम आय वर्ग और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक शामिल हैं, जिन्होंने ‘कोविड-19 लॉकडाउन के कारण प्रवासी संकट और नौकरियां गंवाने के बावजूद भरोसा नहीं खोया है.’

पार्टी के आर्थिक दृष्टिकोण के बारे में मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत भाजपा प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल ने कहा, ‘यह इन वर्गों का अहसान चुकाने का वक्त है, जो कि महामारी के दौरान गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं. कोई मांग न होने के कारण उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी. उन्होंने अपनी दुकानों और प्रतिष्ठानों को बंद करना पड़ा.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उन्होंने कहा, ‘एमएसएमई क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित था. आत्मनिर्भर भारत पैकेज ने कई क्षेत्र की चिंताओं को दूर किया. जो लोग रह गए थे, उनके लिए बजट में उपाय किए जाने पर जोर रहेगा.’


यह भी पढ़ें: ‘आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत’- सशस्त्र बल क्यों इस बार रक्षा बजट में बड़ी वृद्धि चाहते हैं


‘अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना’

भाजपा के बजट थिंक टैंक ने बुनियादी ढांचा, निर्माण, आवास और पर्यटन आदि क्षेत्रों पर अधिक सरकारी खर्च की वकालत की है, क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा रोजगार सृजन होता है.

अग्रवाल ने कहा, ‘हम एक महामारी के बाद के दौर से गुजर रहे हैं. टीकाकरण शुरू हो चुका है. फोकस अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए माहौल बनाने पर होगा.’

बजट में व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल प्रबंधन पर फोकस होगा और रोजगार सृजन के उद्देश्य से अपने कर्मियों को रिस्किल करने वाले निजी क्षेत्रों को प्रोत्साहन मिल सकता है. चार राज्यों (तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम और केरल) और एक केंद्र शासित प्रदेश (पुडुचेरी) में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और बेरोजगारी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है, इसलिए सरकार का ध्यान विनिर्माण और सेवा जैसे क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने पर होगा.

नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘कई तरीके हो सकते हैं, जैसे 100 करोड़ वाली परियोजनाओं के लिए विकास वित्तीय संस्थान या डीएफआई बनाए जा सकते हैं.’

सरकारों या धर्मार्थ संस्थानों के स्वामित्व वाले डीएफआई ऐसे निकाय होते हैं जो कम पूंजी वाली परियोजनाओं के लिए धन मुहैया कराते हैं या फिर जब वाणिज्यिक कर्जदाताओं से धन उपलब्ध नहीं होता है.

भाजपा नेता ने कहा, ‘सरकार घर खरीददारों की मदद के लिए निर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों को उदार बना सकती है. कई सोवर्न फंड और पेंशन फंड बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश के इच्छुक है.’

बजट के दौरान सरकार की तरफ से कड़ा रुख बरतने की संभावना नहीं है. जैसा कि सीतारमण ने दिसंबर में रायटर्स कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा था, ‘अगर मैं अब खर्च नहीं करती हूं तो कोई भी प्रोत्साहन व्यर्थ है. यदि मैंने अब खर्च नहीं किया तो अर्थव्यवस्था का उबरना टल सकता है और हम इसे बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे.’

यह रणनीतिक अर्थशास्त्री की वापसी है.

जाने-माने अर्थशास्त्री प्रणब सेन का कहना है, ‘यह राजकोषीय घाटे के बारे में सोचने का समय नहीं है और वित्त मंत्री को केवल खर्च पर ध्यान देना चाहिए, राजस्व पर नहीं.’

उन्होंने कहा, ‘राजस्व अपने आप आ जाएगा. हालांकि, यह बड़ी परियोजनाओं पर खर्च करने का समय नहीं है. फोकस ऐसे क्षेत्रों में छोटी परियोजनाओं पर होना चाहिए जिस पर तत्काल काम शुरू हो सकता है. कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं के कारण बड़ी परियोजनाएं शुरू होने में सालों लगते हैं.’

रेटिंग और रिसर्च के काम में लगी एनालिटिकल फर्म क्रिसिल के डी.के. जोशी ने कहा कि सरकार को शहरी गरीबों पर ध्यान देना होगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘ग्रामीण क्षेत्र के लिए मनरेगा है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में भारी दबाव की स्थिति है. असंगठित क्षेत्र, पर्यटन और मनोरंजन क्षेत्र (महामारी से) बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. सरकार का जोर मांग बढ़ाने के लिए कुछ कंपनियों के प्रोत्साहन पर होगा.’

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि ‘चूंकि सरकारी राजस्व कोविड के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है, इसलिए सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश एक प्राथमिकता होगी, जिसका मतलब होगा धन जुटाना.

अधिकारी ने कहा, ‘वर्ष 2020 बेहद खराब बीता इसलिए सरकार ने अपने लक्ष्य पर ध्यान नहीं दिया लेकिन इस साल चीजें अलग होंगी.’

थिंक टैंक के एक सदस्य निवेशक और भाजपा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि बजट दोहरे अंक की वृद्धि दर हासिल करने के लक्ष्य के साथ अगले तीन-चार वर्षों के लिए रोड मैप तैयार करने का अवसर प्रदान करेगा.

चंद्रशेखर ने कहा, ‘हम एक बुरे दौर से गुजर चुके हैं और अब सरकारी राजस्व बढ़ रहा है. अगले तीन-चार वर्षों के लिए रोडमैप तैयार करने का एक मौका है. बजट केवल इस वित्तीय वर्ष ही नहीं बल्कि तीन-चार सालों तक विकास को गति देने के लिए नीतिगत बदलावों वाला होगा.’


यह भी पढ़ें: POCSO मामले में बॉम्बे HC के ‘स्किन टू स्किन’ टच को यौन हिंसा न मानने के फैसले पर SC ने लगाई रोक


मध्यम आय वर्ग के लिए

अग्रवाल ने कहा कि मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत पैकेज में ग्रामीण क्षेत्र के लिए कल्याणकारी उपायों के साथ उद्योग के लिए प्रोत्साहन पर ध्यान दिया गया था.

उन्होंने कहा कि मध्यम-आय वर्ग के लिए आयकर में मानक कटौती या अन्य बचत लाभों या आवास लाभ जैसे उपायों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. अग्रवाल ने कहा, ‘अगर उनकी जेब में पैसा होगा, तो केवल खपत बढ़ेगी.’

अब तक, सरकार ने सभी देय करों पर छूट दी है लेकिन मूल कर छूट की सीमा पहले के समान ही है. भाजपा और सरकार के सूत्रों ने कहा, इस बजट में कर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये हो सकती है.

‘कोविड के मद्देनज़र स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर जोर रहेगा’

कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई को देखते हुए सरकारी सूत्रों ने कहा कि बजट में मुख्य फोकस चिकित्सा अनुसंधान और विकास (आरएंडडी), जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास और फार्मास्युटिकल आरएंडडी पर होगा.

पिछले एक दशक में भारत ने स्वास्थ्य सेवा पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1 प्रतिशत खर्च किया है, जबकि अमेरिका 17 प्रतिशत खर्च करता है. सूत्रों ने बताया कि महामारी ने हमारे स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की ‘खामियों’ को उजागर किया है.

सूत्रों ने कहा कि मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए बजट में बुनियादी ढांचे के निर्माण, मानव संसाधन बढ़ाने, कौशल विकास और डिजिटल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली जैसे दीर्घकालिक लक्ष्यों पर फोसक होगा, यहां तक कि आवंटन का एक बड़ा हिस्सा कोविड-19 टीकाकरण के लिए होगा.

भारत की ओर से अन्य देशों को कोविड-19 वैक्सीन उपलब्ध कराए जाने के साथ ‘फार्मा डिप्लोमेसी’ को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है. ऐसे में डिजिटल हेल्थकेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर और आरएंडडी पर विशेष ध्यान दिया जाएगा क्योंकि ‘महामारी के दौरान सरकार को अपनी फार्मा क्षमता का अहसास हो गया है.’

सूत्रों ने कहा कि धारा 80 डी के तहत मेडिक्लेम प्रीमियम पर दी जाने वाली कटौती में भी वृद्धि हो सकती है.

एमएसएमई पर फोकस

भाजपा का बड़ा वोट बैंक माने जाने वाले व्यापारी वर्ग और एक बड़े रोजगार सृजनकर्ता एमएसएमई क्षेत्र को बजट में खासी अहमियत मिल सकती है, इस तथ्य के बावजूद कि आत्मनिर्भर भारत पैकेज में उनके लिए राहत के उपाय किए गए थे.

सरकार महामारी के दौरान कच्चे माल की लागत बढ़ने को लेकर की जा रही शिकायत को दूर करने के उपाय भी कर सकती है.

अग्रवाल ने कहा, ‘व्यापार प्रतिबंधों और आयात शुल्क के कारण स्टील, तांबा, सीमेंट की कीमतें बढ़ी हैं. सरकार बजट में इस पर ध्यान देगी.’

अर्थशास्त्री सेन ने कहा कि इसके अलावा सरकार को बैंकों को ‘एमएसएमई को आसान ऋण देने’ के लिए प्रेरित करना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘बैंक केवल उन एमएसएमई को ऋण दे रहे हैं, जिनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है. नए उद्यमों के लिए कोई उधार नहीं मिल रहा. इसलिए, दूसरे फंड बनाने के बजाये एमएसएमई को आसान कर्ज उपलब्ध कराने के लिए बैंकों को आगे बढ़ाना बेहतर होगा.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘अधिक मूल्यांकन, महंगे विज्ञापन, विकास के झूठे अनुमान’- रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ ये हैं आरोप


 

share & View comments