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Friday, 29 March, 2024
होमदेश‘अधिक मूल्यांकन, महंगे विज्ञापन, विकास के झूठे अनुमान’- रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ ये हैं आरोप

‘अधिक मूल्यांकन, महंगे विज्ञापन, विकास के झूठे अनुमान’- रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ ये हैं आरोप

टीआरपी हेराफेरी मामले में मुम्बई पुलिस जांच की अंतरिम फॉरेंसिंक ऑडिट रिपोर्ट में, रिपब्लिक टीवी की मालिक कंपनी एआरजी आउटलायर पर, वित्तीय अनिमितताओं के आरोप लगाए गए हैं.

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मुम्बई/नई दिल्ली: आय में वृद्धि का अनुमान, जो बाज़ार की विकास दर के दोगुने से भी अधिक हो, विज्ञापन की दरें जो सबसे नज़दीकी समकक्ष से 126 प्रतिशत अधिक हों, शेयर्स के मूल्यांकन की दरों को तेज़ी से बढ़ाना, शेयर मूल्य को कृत्रिम तरीक़े से बढ़ाना- ये कुछ कथित कारण हैं जिनकी वजह से, रिपब्लिक टीवी की मालिक एआरजी आउटलायर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड, मुम्बई पुलिस की जांच के घेरे में है.

मुम्बई पुलिस टेलीवीज़न रेटिंग प्वॉइंट्स (टीआरपीज़) में, कथित हेराफेरी की अपनी जांच के सिलसिले में, संदिग्ध वित्तीय अनियमितताओं के लिए, एआरजी आउटलायर की जांच कर रही है.

जांच की एक अंतरिम फॉरेंसिंक ऑडिट रिपोर्ट में, जो 11 जनवरी को दायर केस में, मुम्बई पुलिस की पूरक चार्जशीट का हिस्सा है, विस्तार से बताया गया है कि एआरजी आउटलायर ने किस तरह, अपने चैनल के शुरू होने से पहले ही, आने वाले सालों में महत्वाकांक्षी विज्ञापन आमदनी दिखाकर, किस तरह कथित रूप से अपने शेयरों का, ऊंची दरों पर मूल्यांकन किया.

रिपोर्ट में, जिसकी एक कॉपी दिप्रिंट के पास है, ये भी कहा गया कि किस तरह अपने लॉन्च के पहले महीने से ही, रिपब्लिक टीवी के दर्शकों की संख्या सबसे अधिक थी, और ये भी, कि ‘रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क द्वारा इतनी ऊंची विज्ञापन दरें वसूले जाने, और अन्य चैनलों के मुक़ाबले इसके दर्शकों की संख्या में अंतर से, संदेह पैदा होता है कि ये टीआरपीज़ की हेराफेरी करने में शामिल है’.

अंतरिम फॉरेंसिक रिपोर्ट में कहा गया, ‘एआरजी द्वारा टीआरपीज़ में की गई कथित हेराफेरी के नतीजे में, विज्ञापन से आय बढ़ गई थी, जिससे शेयरों का मूल्यांकन बढ़ा, और निवेशक आकर्षित हुए’.

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ऑडिटिंग फर्म शरत एंड एसोसिएट्स द्वारा तैयार की गई 56 पन्नों की रिपोर्ट में, ये भी कहा गया कि विस्तृत वित्तीय विश्लेषण अभी चल रहा है, और अगर ऐसी ही और वित्तीय अनियमितताएं सामने आईं, तो उनकी आगे जांच करनी होगी.

दिप्रिंट ने कॉल्स और लिखित संदेशों के ज़रिए, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) मिलिंद भरांबे, और सहायक पुलिस आयुक्त (क्राइम ब्रांच) शशांक संदभोर से, जो टीआरपी केस की जांच कर रहे हैं, टिप्पणी के लिए संपर्क किया, लेकिन इस ख़बर के छपने तक कोई जवाब नहीं मिला था.

रिपब्लिक टीवी संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ़, अर्णब गोस्वामी ने भी दिप्रिंट के कॉल्स, और टेक्स्ट का जवाब नहीं दिया.


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शेयर वैल्यू का बहुत अधिक मूल्यांकन

अंतरिम फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक़, एआरजी आउटलायर ने मई 2017 में अपना चैनल रिपब्लिक टीवी लॉन्च करने से पहले ही, आने वाले वर्षों के लिए ऊंची आय के अनुमान दिखाकर, अपने अनिवार्य परिवर्तनीय गैर-संचयी सहभागी अधिमान शेयर्स (सीसीपीपीएस) का ‘बहुत ऊंची दरों पर’ मूल्यांकन किया.

सीसीपीपीएस वो होते हैं, जिन्हें पहले से निर्धारित किसी तारीख़ के बाद, सामान्य शेयरों में तब्दील करना होता है.

ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि एआरजी ने, साल दर साल आधार पर, आय में 29 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया था, जबकि मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक़, उद्योग की विकास दर का अनुमान सिर्फ 13.1 प्रतिशत था.

सीसीपीपीएस का पहला मूल्यांकन नवंबर 2016 में, और फिर नवंबर 2018 में किया गया- एआरजी आउटलायर के हिंदी चैनल के लॉन्च से पहले- दो साल पहले के मुक़ाबले ये वैल्यू 150 प्रतिशत ज़्यादा थी.

एआरजी आउटलायर ने इन सीसीपीपीएस को, चार निजी निवेशकों को जारी किया, और 27.5 करोड़ रुपए वसूल किए. ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, इन मूल्यांकनों के आधार पर, मौजूदा निवेशक अपने निवेशों के 300 प्रतिशत बढ़ने पर, अगस्त 2019 में बाहर हो गए, हालांकि मूल्यांकन रिपोर्ट ने दिखाया, कि निवेशों का अपेक्षित मार्केट रिटर्न 15.6 प्रतिशत था.

फॉरेंसिक ऑडिट में कहा गया, ‘एआरजी आउटलायर ने अपने शेयरों का मूल्यांकन, साल दर साल आय और मुनाफे के ऊंचे अनुमानों के आधार पर किया था. लेकिन, ऑडिट की हुई बैलेंस शीट्स के अनुसार, 2018-19 तक कंपनी नक़द घाटे में थी. टीआरपी में हेराफेरी से एआरजी आउटलायर को, विज्ञापन एजेंसियों से बढ़ी हुई विज्ञापन दरें वसूलने में सहायता मिली, और चैनल लॉन्च के तीन वर्षों की छोटी सी अवधि में, उसकी आय बढ़ गई.

ऑडिट में इंडिया टीवी, ज़ी टीवी, सीएनएन-आईबीएन, और रिपब्लिक टीवी की, साल 2017 और 2018 की विज्ञापन दरों का विश्लेषण किया गया, जिससे पता चला कि अपने लॉन्च के समय से ही, रिपब्लिक की दरें इंडस्ट्री में सबसे ऊंची थीं.

इसी तरह, अक्तूबर 2019 में रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क पर, एक निजी फर्म के प्रस्ताव में कहा गया, कि प्राइम टाइम रात 9 बजे से 11 बजे के बीच, चैनल के लिए चार्ज किया जाने वाला नेट रेट 27,200 रुपए था. इसका सबसे क़रीबी प्रतिस्पर्धी इंडिया टुडे 12,000 रुपए पर था. रिपोर्ट ने ये स्पष्ट नहीं किया, कि क्या इन दरों का हिसाब 10 सेकंड्स के आधार पर लगाया गया था, जैसा कि आमतौर पर होता है.


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‘फंड्स को घुमाना’

ऑडिट में कहा गया कि एआरजी आउटलायर ने कथित रूप से, फंड्स को घुमाकर अपने ही शेयर्स, ऊंचे दामों पर फिर से ख़रीद लिए, और इस तरह शेयर वैल्यू बढ़ा दी. नवंबर 2016 में, एआरजी आउटलायर ने अपनी नियंत्रक कंपनी, सार्ज मीडिया होल्डिंग प्रा. लि. और एशियानेट न्यूज़ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट प्रा. लि. को सीसीपीपीएस आवंटित कर दिए.

नवंबर 2019 और जनवरी 2010 में, सार्ज मीडिया ने एशियानेट न्यूज़ से अपनी ही सब्सीडियरी की ओर से जारी, 5,658 सीसीपीपीएस ख़रीद लिए, और इसके लिए 300 प्रतिशत अधिक दाम अदा किए.

रिपब्लिक टीवी एडिटर-इन-चीफ़ अर्णब गोस्वामी और उनकी पत्नी सम्यब्रता गोस्वामी, सार्ज मीडिया में सह-संस्थापक और प्रमोटर्स हैं, और इसके 93 प्रतिशत शेयरों के मालिक हैं.

ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया, ‘इन लेन-देनों से सीसीपीपीएस की ऐसी वैल्यू की वास्तविकता पर शक पैदा होता है. एआरजी आउटलायर के विकास के बहुत ऊंचे स्तरों पर आधारित इसके मूल्यांकन की, आगे और जांच किए जाने की ज़रूरत है’.

ऑडिट में शेयर्स की संभावित राउंड ट्रिपिंग का भी उल्लेख किया गया, जिसमें इसमें शामिल कंपनी की आय बढ़ाने के लिए, दो कंपनियों के बीच सिलसिलेवार लेनदेन किया जाता है, लेकिन उससे किसी भी कंपनी को कोई वास्तविक आर्थिक फायदा नहीं होता.

रिपोर्ट में कहा गया कि सितंबर 2019 में, एशियानेट न्यूज़ ने 2.28 करोड़ रुपए गोस्वामी को भेजे, जिन्होंने 2.18 करोड़ रुपए सार्ज होल्डिंग को ट्रांसफर कर दिए. अक्तूबर 2019 में सार्ज होल्डिंग ने, गोस्वामी से प्राप्त हुए 2.19 करोड़ रुपए एशियानेट को भेज दिए.

रिपब्लिक बनाम टाइम्स नाउ

उपभोक्ता जानकारी देने वाली फर्म हंसा रिसर्च ग्रुप प्रा. लि. की एक शिकायत के अनुसार, 10 पैनल घरों से मिले गोपनीय आंकड़े, जहां व्यूअरशिप रिकॉर्ड करने के लिए बार-ओ-मीटर लगाए जाते हैं, उनके रिलेशनशिप मैनेजरों द्वारा लीक किए गए.

मुम्बई पुलिस की अभी तक की जांच में आरोप लगाया गया है, कि रिपब्लिक टीवी, बॉक्स सिनेमा, फक्त मराठी, वाओ चैनल, न्यूज़ नेशन और महा मूवीज़ जैसे चैनलों ने, एजेंट्स के ज़रिए पैनल होम्स को रिश्वत दी.

ऑडिट रिपोर्ट में दावा किया गया, कि दस में से तीन पैनल घरों ने मुम्बई पुलिस के सामने, रिपब्लिक टीवी देखने के लिए पैसा लेने का इक़रार किया है. इसमें कहा गया कि सिर्फ दो पैनल्स को रिश्वत देने से भी, विज्ञापन से होने वाली आमदनी में काफी इज़ाफा हो सकता है.

लेकिन, रिपोर्ट में आगे कहा गया कि ऑडिट करने वाली फर्म, टीआरपी में हेराफेरी करने के लिए नक़द पैसे के इस्तेमाल की पुष्टि नहीं कर सकी, और इस दिशा में मुम्बई पुलिस को और जांच करने की ज़रूरत है.

फर्म ने 2017-2020 के बीच, प्रमुख चैनलों के दर्शकों के आंकड़ों, और विज्ञापन दरों का विश्लेषण किया, और पाया कि रिपब्लिक टीवी, और टाइम्स नाउ के दर्शकों की संख्या, दूसरे चैनलों से तीन गुना ज़्यादा थी.

ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया, ‘सभी चैनलों के दर्शकों की संख्या दश्मलव के बीच थी, जबकि रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ के दर्शकों की संख्या 1 से 4.50 के बीच थी. दर्शकों की संख्या में इतना उतार-चढ़ाव, टीआरपी में हेराफेरी की मौजूदगी का संदेह पैदा करता है…’

जांच के सिलसिले में, मुम्बई पुलिस ने 21 दिसंबर 2020 को एक पत्र लिखकर, ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) से, 2016 से 2018 के बीच, टाइम्स नाउ और रिपब्लिक टीवी का डेटा मुहैया कराने का अनुरोध किया. पत्र में कहा गया, ‘इस विश्वास के पीछे कारण हैं, कि ख़ासकर टेलीवीज़न चैनल्स टाइम्स नाउ और रिपब्लिक के मामले में, प्रकाशित किया गया डेटा, प्राप्ट किए गए डेटा से अलग था’.

नोटिस में ये भी कहा गया कि इस बात को मानने के भी कारण हैं, कि डेटा और आंतरिक प्रक्रिया में हेराफेरी के, प्रत्यक्ष या परोक्ष वित्तीय परिणाम भी सामने आए होंगे.

आउटलायर के कच्चे आंकड़ों से पता चलता है, कि इम्प्रेशंस के मामले में टाइम्स नाउ ऊपर था, लेकिन ‘डेटा सफाई’ के बाद रिपब्लिक टीवी के इम्प्रेशंस ज़्यादा थे.

टाइम्स नाउ ने रिपब्लिक को फायदा पहुंचाने के लिए हेरफेर का आरोप लगाया

22 जनवरी को एक बयान में, टाइम्स नाउ को चलाने वाले टाइम्स नेटवर्क ने कहा, कि 2017 में रिपब्लिक टीवी के लॉन्च के बाद, उसे बड़े पैमाने पर हेराफेरी का शक हुआ था, और उसे उस चैनल की बाजार-वार रेटिंग में कुछ ‘महत्वपूर्ण असामान्यताएं’ नज़र आईं थीं, जिनसे संकेत मिलता था कि ‘या तो ज़मीनी स्तर पर छेड़छाड़ होती थी, या फिर उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए, कच्चे डेटा में जानबूझकर दंख़लअंदाज़ी की जाती थी’.

कंपनी ने कहा कि उसने दो साल तक, बार बार बार्क से इसकी शिकायत की, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला.

कंपनी ने अपने बयान में कहा, ‘बार्क के जुलाई 2020 के फॉरेंसिक ऑडिट, और उस अवधि के बहुत सारे ईमेल्स और व्हाट्सएप चैट्स के अनुसार, जिन तक मुम्बई पुलिस पहुंच गई, अब ये स्पष्ट है कि पार्थो दासगुप्ता और रोमिल रामगढ़िया की अगुवाई में, बार्क अधिकारी टाइम्स नाउ की टीआरपी को, छपने से पहले अपने हाथ से कम करते थे, जिससे अंग्रेज़ी समाचार श्रेणी में रिपब्लिक टीवी को, नाजायज़ बढ़त दिखाई जाती थी, और फिर धोखाधड़ी से रिपब्लिक टीवी को नंबर वन घोषित कर दिया जाता था, जबकि टाइम्स नाउ लगातार एक बड़े अंतर से आगे था, और अपनी श्रेणी में निर्विवाद लीडर था’.

उसमें ये भी कहा गया, कि बार्क के ‘अस्वीकार्य और अक्षम्य कार्य’ की वजह से, टाइम्स नेटवर्क को नुक़सान उठाना पड़ा है, वो संगठन के खिलाफ सभी संभावित क़ानूनी कार्रवाइयों पर विचार कर रहा है.

दिप्रिंट ने बार्क प्रवक्ता से संपर्क करके जानना चाहा, कि डेटा की सफाई क्या होती है, और अतीत में डेटा पब्लिश करने से पहले, क्या बार्क ‘डेटा सफाई’ के काम में शामिल रहा है.

बार्क के प्रवक्ता ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और रहा: ‘चूंकि ये मामला एक जांच का विषय है, जो कई क़ानून प्रवर्त्तन एजेंसियों की ओर से अभी की जा रही है, इसलिए हम आपके सवालों का जवाब देने में विवश हैं’.

एक इंडस्ट्री सूत्र ने कहा, ‘बाहरी कारकों को निकालने की प्रक्रिया निश्चित रूप से होती है, लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ के इस मामले में, इसे हाथ से किया गया या स्वचालित तरीक़े से’.

बार्क इंडिया की आउटलायर पॉलिसी का मक़सद, किसी भी चैनल के दर्शकों की संख्या में अनुचित उछाल को रोकना था, जो कुछ वितरकों के ‘लैंडिंग पेजेज़’ में दिखाया जाना था.

एक न्यूज़ चैनल के एक दूसरे इंडस्ट्री सूत्र ने कहा, ‘(आउटलायर्स की सफाई) से संकेत मिलता है कि कुछ हेराफेरी हुई है, भले ही वो हाथ से हुई हो’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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