लखनऊ: 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के मुखिया चंद्रशेखर आजाद अपनी नई पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए इन दिनों पूरे उत्तर प्रदेश में कड़ी मेहनत कर रहे हैं. आज़ाद, महंगाई और पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के मुद्दों तथा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ मौजूद गुस्से को उजागर करने की कोशिश में पुरे राज्य में साइकिल यात्रा कर रहे हैं.
1 जुलाई को अपनी साइकिल यात्रा शुरू करने के बाद से आजाद अब तक मेरठ, मुरादाबाद, अलीगढ़ और इटावा समेत करीब एक दर्जन जिलों का भ्रमण कर चुके हैं. हालांकि, वर्तमान में पार्टी की सभी 75 जिलों में स्थानीय इकाइयां हैं, फिर भी 21 जुलाई को लखनऊ में समाप्त होने वाली इस यात्रा के माध्यम से वह ब्लॉक स्तर तक भी पहुंचने की योजना बना रहे हैं.
आज़ाद ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस साइकिल यात्रा के पीछे का उद्देश्य आम जनता को मौजूदा हालात -मुद्रास्फीति, पेट्रोल-डीजल की कीमत में वृद्धि और सरकार के खिलाफ बढ़ता गुस्सा – के बारे में कुछ महत्वपूर्ण संदेश देना है.’
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, इस यात्रा के कुछ और भी कारण हैं. सबसे पहले, हम एक ऐसा महंगा लोकतंत्र’ नहीं चाहते हैं, जहां पार्टियां चुनावों में इतना ज्यादा पैसा और बाहुबल खर्च कर रही हों. हमारे पास इतना पैसा नहीं है. हम ऐसे साइकिलों से चुनाव लड़ना चाहते हैं जो आर्थिक रूप से सस्ते हों. हमारे कार्यकर्ता इसका खर्चा आसानी से उठा सकते है.’
वे आगे कहते हैं, ‘इस यात्रा के पीछे एक और कारण यह है कि हम ‘बहुजन समाज’ को एकजुट करना चाहते हैं. हम अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में वोटों के बंटवारे को रोकने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करना चाहते हैं.’
राजनीति के मैदान में अभी भी नए इस राजनेता ने अपने मिशन स्टेटमेंट का वर्णन कुछ इस प्रकार किया: ‘सभी शोषितों, वंचितों को एकजुट रखना ही हमारा लक्ष्य है ‘
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आजाद समाज पार्टी का अब तक का सफर
चंद्र शेखर आज़ाद ने अपनी सामाजिक सक्रियता की शुरुआत 2015 की थी जब उन्होंने एक दलित अधिकार संगठन, भीम आर्मी, की शुरुआत की, जो दलित समुदाय के छात्रों के साथ भेदभाव और जाति-आधारित हिंसा के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में स्थापित की गयी थी.
भीम आर्मी ने उत्पीड़ितों को ऐसी ताकत प्रदान की जिसने सहारनपुर में दलित छात्रों के खिलाफ हो रही हिंसा को रोका – और इस संगठन को अपने-आप को खड़ा करने का आधार भी दिया.
8 जून 2017 को, आजाद को हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से गिरफ्तार किया गया था और सहारनपुर में जातिगत संघर्ष के बाद उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला भी दर्ज किया गया था, इस संघर्ष में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई घायल हो गए थे. इस प्रकरण में वह 14 सितंबर 2018 तक सहारनपुर जेल में रहे.
अपनी निरंतर रूप से जारी सामजिक सक्रियता के बीच आजाद ने पिछले साल 15 मार्च को आधिकारिक तौर पर अपनी नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा की और इसका नाम आजाद समाज पार्टी रखा.
इसके बाद हुए पंचायत चुनावों में, आसपा (एएसपी) ने पश्चिमी यूपी में लड़े गए 500 से अधिक वार्डों में से 56 से भी अधिक वार्डों में जीत का दावा किया.
एएसपी की संभावनाओं के बारे में राजनैतिक विश्लेषक क्या कहते हैं?
लखनऊ के राजनीतिक विश्लेषक कविराज के मुताबिक, आजाद ने कई मौकों पर जाति आधारित हिंसा से जुड़े मुद्दों के दौरान जमीनी स्तर पर हिम्मत दिखाई है.
कविराज ने कहा, ‘वह हाथरस मामले (अक्टूबर 2020) के दौरान भी बहुत सक्रिय थे, लेकिन सामाजिक सक्रियता और राजनीति बिल्कुल दो अलग-अलग चीजें हैं. आगामी विधानसभा चुनाव उनकी नवगठित पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी. हालांकि उन्होंने पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई जिलों में, जहां मायावती की मजबूत पकड़ है, अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मायावती अभी भी सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं. वह चार बार सीएम रह चुकी हैं,’
वे आगे कहते हैं, ‘यदि चंद्रशेखर की पार्टी किसी बड़े विपक्षी दल के साथ गठबंधन करती है, तो उसे अधिक वोट प्राप्त करने में मदद मिल सकती है.‘
लखनऊ के गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर शिल्प शिखा सिंह का कहना है कि ‘अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्या एएसपी मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी की चुनावी संभावनाओं को पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में नुकसान पहुंचा सकती है’
वे कहती है, ‘मायावती का पुरे उत्तर प्रदेश में मजबूत आधार है. इसलिए जब हम चुनावों की बात करते हैं तो वह अभी भी दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं. लेकिन आजाद को भी जमीनी स्तर पर उनके लगातार प्रयासों से फायदा हुआ है.’
सिंह कहती हैं, ‘यह यात्रा राज्य में उनके आधार को विस्तृत कर सकती है, लेकिन अभी यह भविष्यवाणी करना आसान नहीं है कि यह आने वाले चुनाव के लिए एक ‘गेम चेंजर’ (पासा पलटने वाला) साबित होगा या नहीं. चुनाव और संगठन के आधार का विस्तार दो काफी अलग चीजें हैं. हमें चुनावी परिदृश्य के और नजदीक आने तक इंतजार करना चाहिए.’
उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में से 20.5 प्रतिशत हिस्सा दलितों का है. बिजनौर, बुलंदशहर और सहारनपुर जैसे कुछ जिलों में तो दलित समुदाय आबादी के 25 प्रतिशत से भी अधिक है.
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पार्टी गठबंधन पर खामोश है, लेकिन बैठकों का दौर जारी है
यह पूछे जाने पर कि क्या यात्रा के लिए साइकिल का चुनाव – जो समाजवादी पार्टी (सपा) का चुनाव चिन्ह भी है – सपा के साथ किसी संभावित गठबंधन का संकेत है, आजाद ने कहा, ‘मैं कई विपक्षी नेताओं से मिलता रहता हूं. इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी से गठबंधन करने जा रहे हैं.’
वे कहते हैं, ‘मान्यवर कांशीराम ने भी कई साल पहले साइकिल यात्रा की थी. इसलिए साइकिल केवल किसी पार्टी विशेष के लिए नहीं बनाई गई है.’
आजाद का कहना है कि फिलहाल पार्टी सिर्फ अपने संगठन के विस्तार पर ध्यान दे रही है. वे कहते हैं ‘मैं उन सभी नेताओं का स्वागत करता हूं जो फ़िलहाल थमे हुए सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन को आगे बढ़ाना चाहते हैं. मैं सिर्फ उन ताकतों के साथ सहयोग करूंगा जो वास्तव में कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए काम करना चाहती हैं.’
भीम आर्मी प्रमुख पहले ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से दो बार मिल चुके हैं, जिसने एक संभावित ओबीसी-दलित-भाजपा विरोधी मोर्चे की अटकलों को हवा दी है , लेकिन अभी इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है.
आजाद ने दिप्रिंट को बताया कि एएसपी ने अभी गठबंधन के बारे में कोई फैसला नहीं किया है, हालांकि उसने 2022 के विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है.
सूत्रों ने कहा कि पार्टी सपा के आलावा राष्ट्रीय लोक दल, जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के विरोध के बाद नया जीवन मिला है, के साथ भी बात कर रही है.
संगठन का विस्तार करने के लिए है यात्रा
हालांकि, फिलहाल तो इस युवा/नवगठित पार्टी का पूरा ध्यान अपनी ‘साइकिल यात्रा’ पर है. इसके बारे में बोलते हुए, पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘चंद्रशेखर ने खुद पश्चिम यूपी के प्रमुख जिलों को कवर किया है. अब वह पूर्वांचल (पूर्वी यूपी) की ओर रुख करेंगे. भीम आर्मी के स्वयंसेवकों ने भी आजाद समाज पार्टी के बैनर तले कई ब्लॉकों और गांवों में साइकिल यात्रा शुरू की है.’
पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, ‘साइकिल यात्रा सभी 75 जिलों में शुरू हो गई है. इन यात्राओं के दौरान आजाद स्थानीय इकाई से जुड़े लोगों और स्वयंसेवकों से मिलते हैं. इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ता है, वह उनके नायक (हीरो) हैं. लोग अधिक से अधिक संख्या में एएसपी से जुड़ना चाहते हैं.‘
दूसरे नेता ने आगे कहा, ’21 जुलाई को भीम आर्मी के स्थापना दिवस के अवसर पर चंद्रशेखर लखनऊ में यात्रा का अंतिम दौर पूरा करेंगे. 22 जुलाई को वह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे. उसी दिन विभिन्न जिलों के कई पार्टी पदाधिकारी भी उनसे मिलेंगे. संगठन के विस्तार को लेकर चर्चा होगी.’
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