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Saturday, 20 April, 2024
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चंद्रशेखर आजाद ने लैटरल एंट्री की नीति वापस लेने की मांग की, संसद ‘घेराव’ की दी चेतावनी

भीम आर्मी के प्रमुख आज़ाद ने कहा कि सिविल सेवाओं में लैटरल एंट्री यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने वालों के साथ अन्याय है और यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला है.

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नई दिल्ली: भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि वह मोदी सरकार की नौकरशाही में लैटरल एंट्री की नीति के खिलाफ 7 मार्च को संसद का घेराव करेंगे. आज़ाद ने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया.

सरकार ने हाल ही में संयुक्त सचिवों के तीन पदों और मंत्रालयों के निदेशकों के 27 पदों के लिए निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राज्य सरकारों में काम करने वालों से आवेदन आमंत्रित किए हैं, जो कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा लैटरल एंट्री के माध्यम से भरे जाएंगे.

सोमवार को दिल्ली में एक प्रेसवार्ता में आजाद ने कहा कि संसद का घेराव लैटरल एंट्री के खिलाफ आंदोलन का पहला कदम होगा.

उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने नीति वापस नहीं ली तो भीम आर्मी आंदोलन के अगले चरणों की रणनीति तय करने के लिए ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर की पंचायतों का आयोजन करेगी.

‘यह सरकार के चाहते लोगों को पीछे के दरवाजे से नौकरशाही में प्रवेश कराने का एक तरीका है. यह न केवल भारतीय संविधान के अवसर की समानता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि उन लोगों के साथ भी अन्याय है जो पहले से ही सिविल सेवाओं का हिस्सा हैं और संयुक्त सचिव स्तर तक पहुंचने से कई साल सेवा में बिताते हैं.’ आजाद ने कहा.

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उन्होंने कहा कि लैटरल एंट्री आरक्षण को दरकिनार करने का एक तरीका बन गया है.

भीम आर्मी प्रमुख ने यह भी बताया कि 2019 में लैटरल एंट्री के ज़रिये नौकरशाही में आये लोगों में एक भी एससी, एसटी, ओबीसी या अल्पसंख्यक व्यक्ति शामिल नहीं था.

उन्होंने ये भी कहा कि लैटरल एंट्री के लिए कोई परीक्षा नहीं होने से ‘भाई-भतीजावाद’ और नौकरशाही प्रवेश के लिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा.

‘यह विभिन्न वर्ग और आर्थिक पृष्ठभूमि के युवाओं के लिए भी अन्याय है जो देश के विभिन्न कोनों में बैठे यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करते हैं. अवसर इन युवाओं को प्रदान किए जाने चाहिए, वे उनसे छिन जाएंगे,’ आजाद ने कहा.


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निजीकरण पर बोले

आजाद ने निजीकरण का मुद्दा भी उठाया जो इस वर्ष के बजट का एक प्रमुख हिस्सा था. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि चार क्षेत्रों को छोड़कर सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण किया जाएगा.

‘कुछ CPCE हैं जो वर्तमान में लाभदायक हैं. यह मेरी समझ से परे है कि सरकार इन संगठनों को बेचने की कोशिश क्यों कर रही है.’

सरकार को इस बारे में पारदर्शी होना चाहिए कि निजीकरण द्वारा जमा किये जाने वाले 1.75 लाख करोड़ कहां खर्च होंगे.

उन्होंने यह भी मांग की कि SC, ST, OBC के आरक्षण को निजी क्षेत्र में भी लागू किया जाना चाहिए क्योंकि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र को खत्म करने की कोशिश कर रही है.

आज़ाद ने मार्च 2020 में अपनी राजनीतिक पार्टी ‘आज़ाद समाज पार्टी’ लॉन्च की और दिल्ली के जामा मस्जिद में CAA-NRC के विरोध सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में विभिन्न विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया. उन्होंने उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के विरोध में भी प्रदर्शन किया.

आजाद ने हाल ही में किसान नेता राकेश टिकैत से गाजीपुर बॉर्डर पर मुलाकात की और किसानों के आंदोलन को मजबूत करने में मदद की पेशकश की.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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