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Thursday, 19 December, 2024
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‘आग से बपतिस्मा’ — कटक में पूर्व कॉर्पोरेट प्रमुख संतरूप मिश्रा की चुनावी शुरुआत

फरवरी में 59-वर्षीय ने बीजद उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए आदित्य बिड़ला समूह की नौकरी छोड़ दी. वे इसे अपनी जड़ों की ओर वापस ले जाने की ‘भगवान जगन्नाथ के प्रयास’ बताते हैं.

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भुवनेश्वर: आदित्य बिड़ला समूह में मानव संसाधन विभाग के समूह निदेशक 59-वर्षीय संतरूप मिश्रा ने बीजू जनता दल (बीजेडी) में शामिल होने और कटक से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए फरवरी में अपनी हाई-प्रोफाइल नौकरी छोड़ दी थी, उनके इस कदम से उनके परिवार, दोस्तों समेत कई लोगों को हैरानी हुई.

उनका मुकाबला कटक से मौजूदा सांसद और बीजद के पूर्व नेता भर्तृहरि महताब से है, जो पिछले महीने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए थे.

पद छोड़ने तक मिश्रा ने लगभग 30 साल तक आदित्य बिड़ला समूह में विभिन्न नेतृत्व संभाले हैं, जिसमें वे 28 साल की उम्र में शामिल हुए थे. वे समूह सहित कंपनी में विभिन्न नेतृत्व पदों पर पहुंचे — बिड़ला कार्बन के निदेशक और बिड़ला केमिकल्स के निदेशक. वे ओएनजीसी के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक भी रहे हैं.

कोई सोचेगा कि 59 साल की उम्र में कॉरपोरेट जगत का मोह छोड़कर राजनीति में कदम रखना उनके लिए मुश्किल फैसला है.

हालांकि, मिश्रा के अनुसार, जब उन्हें एहसास हुआ कि वो यह विकल्प चुन सकते हैं, तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी. उन्होंने राज्य की राजधानी, भुवनेश्वर में अपने घर पर दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “मेरे बच्चे सेटल हो गए थे…मैंने अपने परिवार के प्रति अपना कर्तव्य निभा दिया था. मैं अब ओडिशा वापस आकर लोगों की सेवा करना चाहता हूं.”

राजनीति में उनकी रुचि हमेशा से रही है क्योंकि उनके परिवार के कई सदस्य भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे. उन्होंने कहा, हाल तक भी उनके परिवार के कई लोग राजनीति में शामिल थे — उनके पिता पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष थे, उनके चाचा कटक नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष थे और उनके कई चचेरे भाई राजनीति में सक्रिय रहे हैं.

मिश्रा ने कहा, “बचपन से ही राजनीति मेरे खून में रही है. मैं ओडिशा के विकास में योगदान देना चाहता था और जब यह मौका आया, तो मैंने इस पर दो बार नहीं सोचा.”

मिश्रा इस साल फरवरी में बीजद में शामिल हुए और कटक से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा से पहले उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं में से एक नियुक्त किया गया.

राजनीतिक रूप से महत्वाकांक्षी होने के बावजूद, मिश्रा राज्य के सत्ता गलियारों से परिचित हैं. 2021 में बीजद सरकार ने उन्हें भुवनेश्वर में 11वीं सदी के लिंगराज मंदिर के आसपास के क्षेत्रों के सौंदर्यीकरण के लिए एकाम्र क्षेत्र विरासत परियोजना की सलाहकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया.

उनकी पत्नी अल्का मिश्रा, भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा अधिकारी, को भी 2022 में ओडिशा कौशल विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.

सरकारी गलियारों में उन्हें ओडिया पावर कपल कहा जाता है, जिन्हें मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अपनी सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था.


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‘44 डिग्री में प्रचार करना आग से बपतिस्मा के जैसा’

लेकिन वे स्वीकार करते हैं कि चिलचिलाती धूप में प्रचार करना एक मुश्किल काम है.

उन्होंने कहा, “अगर आप दो दिन पहले मेरे प्रचार अभियान में आतीं, तो आपको यहां 44 डिग्री सेल्सियस तापमान मिलता, स्थानीय जीप में चार घंटे, चमकता हुआ सूरज…मैं आग से बपतिस्मा ले रहा हूं.”

उनका मुकाबला करने का मंत्र — हाइड्रेटेड रहें और मुस्कुराते रहें. “मैं अपनी बेटी, जो लंदन में डॉक्टर है, द्वारा बताई गई बुनियादी बातों का पालन करता हूं और खुद को हाइड्रेटेड रखता हूं. मैं अपने कैमरामैन दोस्त की बात सुनता हूं जो अक्सर मुझे मुस्कुराते रहने के लिए कहते रहते हैं.”

वे तेज़ी से अपना सबक सीख रहे हैं और अपने आलोचकों को गलत साबित कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “लोग स्पष्ट रूप से देखते हैं कि मैं पार्टी की बैठकों में फर्श पर दो घंटे तक बैठ सकता हूं. मैं ऑपन जीप में 44 डिग्री के तापमान पर चार घंटे और लगातार दो दिनों तक जा सकता हूं और फिर भी मुस्कुरा रहा हूं.”

मिश्रा का कहना है कि उन्होंने बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के बजाय बीजेडी को चुना क्योंकि “बीजेडी प्रमुख और सीएम नवीन पटनायक के व्यक्तित्व और राजनीति के ब्रांड के कारण, वह एक बहुत ही सभ्य, बहुत परिपक्व नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो संतुलित है, जो भीड़-भड़काऊ नहीं है, जो अनावश्यक रूप से आलोचनात्मक, नकारात्मक नहीं है”.

मिश्रा ने कहा, “राजनीति का वह ब्रांड, वह मूल्य प्रणाली मेरे लिए जबरदस्त आकर्षण थी.”

वे नवीन पटनायक सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों से भी प्रेरित थे.

उन्होंने कहा, “पालने से लेकर कब्र तक, उन्होंने आबादी के हर वर्ग की पहचान की और उन्हें एक या अन्य सरकारी योजनाओं के माध्यम से लक्षित किया. एक आदर्श डोरस्टेप डिलीवरी है, कार्यक्रम की निरंतर निगरानी, फीडबैक, वरिष्ठ नेताओं से जनता के बीच जाने, शिकायतों का निवारण करने की उम्मीद की जाती है, यह उत्तरदायी सरकार, दूरदर्शी और भविष्य की ओर देखने वाला शासन प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत रहा है.”

कटक लोकसभा सीट से छह बार के सांसद महताब उनके मजबूत प्रतिद्वंद्वी है, लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. उन्होंने कहा, “मेरी ताज़गी, मेरा नयापन और मेरी असामान्य पृष्ठभूमि…यह तथ्य कि मैं राजनीति का एक विशिष्ट व्यक्ति नहीं हूं, सोने पर सुहागा होगा और योना हमेशा नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली ओडिशा सरकार और उसका कार्यक्रम रहेगा.”

नई शुरुआत

अगस्त 1965 में पुरी में जन्मे मिश्रा ने अपनी ज़िंदगी के पहले कुछ साल ओडिशा के दूरदराज के इलाकों और छोटे शहरों में बिताए जहां उनके पिता, एक प्रोफेसर थे.

उन्होंने बताया, “हमारी ज़िंदगी के पहले पांच साल तक मैं और मेरी बहन स्कूल नहीं गए. यह बहुत दूर था और कोई सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं था. हमारे पास एक टीचर थे और हमारी पढ़ाई घर पर ही होती थी.”

जब उनका परिवार पांच साल बाद कटक लौटा तो उन्हें और उनकी बहन को सरकारी स्कूल में भेजा गया. इसी शहर में उन्होंने अपनी स्कूली और उच्च शिक्षा पूरी की.

कटक के रेवेनशॉ कॉलेज से स्वर्ण पदक विजेता, मिश्रा ने भुवनेश्वर के उत्कल विश्वविद्यालय में मास्टर डिग्री लेने से पहले अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन की. उनके पास TISS से राजनीति विज्ञान और कार्मिक प्रबंधन और औद्योगिक संबंध में डबल मास्टर डिग्री है.

हमेशा एक बेहतरीन छात्र रहे, मिश्रा को लगातार तीन साल तक कॉलेज में सर्वश्रेष्ठ डिबेटर जाना जाता था. उन्होंने कुछ समय के लिए दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भी पढ़ाई की, लेकिन उनकी मां की तबीयत खराब होने के कारण उन्हें ओडिशा लौटना पड़ा.

अपनी मास्टर डिग्री के बाद वे मानव संसाधन प्रबंधन का अध्ययन करने के लिए मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) गए, जिसे उस समय कार्मिक प्रबंधन जाना जाता था.

21 साल की उम्र में मिश्रा दिल्ली स्थित जे.के. संगठन में शामिल हो गए, जिसने उन्हें आंध्र प्रदेश-ओडिशा सीमा पर रायगढ़ के पास एक दूरदराज के आदिवासी इलाके में एक फैक्ट्री में भेज दिया.

मिश्रा ने कहा, “फैक्ट्री सुदूर जगह थी, जहां आदिवासी रहते थे…यह ग्रामीण भारत, वास्तविक भारत में एक अभूतपूर्व अनुभव था.”

उनके परिवार की ओर से उन पर सिविल सेवाओं में शामिल होने का दबाव था, लेकिन पूर्व कॉर्पोरेट प्रमुख की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मेरी ज़िंदगी हमेशा जोखिम लेने से भरी रही है — असामान्य दांव, पूरी तरह से रणनीति बदलना…कोई बड़ी योजना या तैयारी नहीं. जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता हूं, सीखता हूं और आगे बढ़ता हूं.”

यह “भाग्य की विचित्रता” है कि वे अपना करियर उसी स्थान पर समाप्त कर रहे हैं जहां से उन्होंने शुरू किया था — ओडिशा. उन्होंने कहा, “मैं इसे मुझे अपनी जड़ों में लौटने के लिए भगवान जगन्नाथ के प्रयास कहूंगा.”

कुछ समय तक जम्मू-कश्मीर समूह के साथ काम करने के बाद, यूनाइटेड किंगडम में पीएचडी के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त करने से पहले मिश्रा TISS में पढ़ाने के लिए वापस चले गए.

भारत लौटने के बाद, मिश्रा 28 साल की उम्र में आदित्य बिड़ला समूह में जाने से पहले हिंदुस्तान लीवर में शामिल हुए.

राजनीति के उतार-चढ़ाव के अनुरूप ढलना

पूर्व प्रमुख के अनुसार, राजनीति के बारे में सबसे अच्छी बात “वो प्यार और स्नेह है जो आपको लोगों से मिलता है. वे आप पर अपना भरोसा जताते हैं.”

वे इस बात से भी प्रभावित हैं कि बीजद पार्टी के कार्यकर्ता कितने सुरक्षात्मक और सहयोगी हैं. उन्होंने कहा, “वरिष्ठ नेता आप पर नज़र रख रहे हैं क्योंकि आप नए हैं…यह सब अभूतपूर्व है.”

लेकिन वह — एक-एक दिन — राजनीति की अराजकता को अपना रहे हैं.

उन्होंने कहा, “अपनी कॉर्पोरेट लाइफ में, मैं बहुत ही व्यवस्थित शेड्यूल और समय का आदी था. मुझे लगता है कि यहां आपका समय आपके नियंत्रण में नहीं है. मुझे इसकी आदत हो रही है और मुझे लगता है कि मैं काफी अच्छा कर रहा हूं.”

वे खुद को प्रमोट करने के लिए सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहने के भी आदी हो रहे हैं.

उन्होंने कहा, “मैं सोशल मीडिया का व्यक्ति नहीं हूं…मेरा मानना है कि मेरा काम ही मेरा ब्रांड होना चाहिए. मेरे कॉर्पोरेट करियर में हर कोई मुझे मेरे काम के लिए जानता था. मैं आत्म-प्रचार में विश्वास नहीं करता…मैंने ऐसा कभी नहीं किया. सोशल मीडिया कुछ हद तक आत्म-प्रचार के बारे में है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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