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Wednesday, 1 May, 2024
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पुलिस अधिकारी से BJP नेता बने राजेश्वर सिंह का मुख्य चुनावी मुद्दा- राजनीति हो अपराधियों से मुक्त

ईडी के पूर्व संयुक्त निदेशक ‘सिस्टम की सफाई’ करना चाहते हैं और सपा को राजनीति के अपराधीकरण का जिम्मेदार मानते हैं. सपा ने चुनाव आयोग में याचिका दायर की है कि सिंह की पत्नी, जो लखनऊ में आईजी पद पर तैनात हैं- का तबादला किया जाए.  

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लखनऊ: साल 2011 में आई फिल्म ‘क्या यही सच है’ में एक पुलिस अफसर का किरदार निभाने के बाद प्रवर्तन निदेशालय के संयुक्त महानिदेशक रह चुके राजेश्वर सिंह असल जिंदगी में नए किरदार को भी बखूबी निभा रहे हैं. ‘एनकाउंटर कॉप’ और कई हाई प्रोफाइल घोटालों की जांच में शामिल रहे राजेश्वर सिंह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लखनऊ के सरोजनी नगर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

चुनाव में उनका मुख्य चुनावी मुद्दा है ऐसा कानून बनाना जिससे राजनीति में अपराधियों की आमद पर प्रतिबंध लग जाए.

राजेश्वर सिंह की पत्नी लक्ष्मी सिंह, लखनऊ रेंज की इंस्पेक्टर जनरल हैं. जिनके खिलाफ समाजवादी पार्टी ने मोर्चा खोल दिया है. पार्टी लगातार लक्ष्मी सिंह के तबादले की मांग कर रही है. समाजवादी पार्टी का आरोप है कि वो अपने पति के पक्ष में वोट देने के लिए लोगों पर दबाव बना रही हैं.

पुलिस और ईडी में काम करने को आधार बनाकर सपा उन्हें लखनऊ में ‘बाहरी’ बता रही है.

पूर्व संयुक्त महानिदेशक अपने हर भाषण में लखनऊ से अपने रिश्ते का जिक्र करते हैं और राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने की बात करते हैं. अपने भाषणों में वह ‘पाकिस्तान’, ‘आतंकवाद’ और ‘तुष्टीकरण’ का भी हवाला देते हैं.

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उन्होंने कहा, ‘मैंने लखनऊ में जन्म लिया, कोल्विन (तालुकदार) कॉलेज से पढ़ाई की, फिर आईआईटी धनबाद में पढ़ा और पुलिस बल में शामिल होने के बाद इसी शहर में कई पदों, मसलन ट्रैफिक, क्राइम और गोमती नगर में बतौर सीओ काम किया.’

वह सरोजनी नगर के विष्णु लोक कॉलोनी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं.

राजेश्वर सिंह कहते हैं, ‘मैंने कई इनकाउंटर का नेतृत्व किया, राष्ट्रपति पुरस्कार पाया और प्रवर्तन निदेशालय में बतौर संयुक्त निदेशक 13 साल अपनी सेवाएं दीं, जिस दौरान मैंने 2जी घोटाले, रिवर फ्रंट घोटाले सहित कई मामलों की जांच की. मैं काफी संतुष्ट हूं. लेकिन, तभी मुझे लगता है कि राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ रोकने के लिए कानून बनाने में मुझे सहयोग देना चाहिए.’


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साध रहे चुनाव का भाजपाई तरीका

समाजवादी पार्टी पर अपराधीकरण और तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए राजेश्वर सिंह भाजपा के मुद्दों से अपने मुख्य चुनावी मुद्दे को जोड़ देते हैं.

वह पुलिस के अपने अनुभवों का हवाला देते हुए राजनीति को अपराध मुक्त करने की बात करते हैं. सरोजनी नगर के हिंद नगर में सोमवार को उन्होंने कहा कि कानून और इसे लागू करने के मेरे अनुभव से मुझे बेहतर कानून बनाने में मदद मिलेगी.

वह कहते हैं, ‘मैंने देखा कि समाजवादी पार्टी की मानसिकता अपराधियों और माफिया को राजनीति में लाने की रही है, चाहे वो अतीक़ अहमद हों, मुख्तार अंसारी हों या आज़म खान, इनके रिश्तेदारों को टिकट दिये जा रहे हैं. यह राज्य और नौजवानों के हित में नहीं है.’

तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप लगाते हुए वे कहते हैं, ‘समाजवादी पार्टी के लोग पाकिस्तान को दुश्मन नहीं मानते.’

उनका इशारा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के उस बयान की तरफ था जिसमें उन्होंने कहा था, ‘चीन हमारा मुख्य दुश्मन है जबकि पाकिस्तान हमारा सियासी दुश्मन.’

वह कहते हैं, ‘पाकिस्तान ने हम पर चार बार हमला किया और हजारों जवानों ने हमारे लिए शहादत दी, फिर भी ये मानसिकता पाकिस्तान को दुश्मन नहीं मानतीं. यह विचारधारा देश के लिए ठीक नहीं है. ये विचारधारा तुष्टीकरण की विचारधारा है.’

वह आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘यह विचारधारा आतंकियों के खिलाफ मुकदमे वापस लेती है. अगर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ना होते तो वाराणसी के संकटमोचन मंदिर ब्लास्ट (2006) और लखनऊ के कचहरी (2007) के गुनहगार आज खुले में घूम रहे होते.’

सिंह कहते हैं, ‘समाजवादी पार्टी ने पत्र लिखा कि सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) पर से प्रतिबंध हटा लेना चाहिए, जबकि सिमी को राष्ट्रवाद और लोकतंत्र में यकीन ही नहीं है. ऐसी पार्टियां हमारे देश और आने वाली पीढ़ियों के लिए ठीक नहीं हैं. मैंने शपथ लिया है और आपको भी शपथ लेनी चाहिए कि ऐसे दल, जो अपराधियों को राजनीति में लाते हैं और मज़हबी राजनीति करते हैं उन्हें 23 फरवरी को उत्तर प्रदेश से उखाड़ फेंकें.’

सरोजनी नगर में इसी तारीख को वोट डाले जाएंगे.

राजेश्वर सिंह के आरोपों का जवाब देते हुए सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने दिप्रिंट से कहा कि भाजपा गैर-जरूरी मुद्दों को उछाल रही है. उन्होंने कहा, ‘यह उत्तर प्रदेश के भविष्य का फैसला हो रहा है और भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है. वह लोगों को धोखा दे रही है.’


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अपराध के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

राजनीति का अपराधीकरण वो मसला है जिसका ज़िक्र सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में किया है. कोर्ट में दायर कई याचिकाओं में भी इसका ज़िक्र भी है.

कुछ याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अदालत ने 2018 में दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक को नहीं माना. हालांकि, इस बात का जिक्र किया कि संसद को अब ऐसे कानून पारित करना चाहिए जिससे आपराधिक मामलों में शामिल लोग राजनीति में न आ सकें.

फरवरी 2020 में पेशे से वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई. याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार और ईसी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के छह महीने बाद भी राजनीति के अपराधीकरण रोकने को लेकर कोई गंभीर प्रयास नहीं किया.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी वेबसाइट पर लोकसभा और विधानसभा के सभी उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को प्रकाशित करने का आदेश दिया था. इसके साथ ही, कोर्ट ने ‘स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति’ की जगह किसी अपराध के आरोपी को उम्मीदवार बनाये जाने की वजहों को भी सार्वजनिक करने का आदेश दिया था.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘पिछले चार लोकसभा चुनाव में राजनीति का अपराधीकरण जिस तेजी से बढ़ा है वह चिंता का विषय है. 2004 में 24 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे. साल 2009 में यह बढ़कर 30 फीसदी हो गया. ऐसे सांसदों की संख्या साल 2014 में 34 फीसदी और 2019 में बढ़कर 43 फीसदी हो गई.’

जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायिका अपराधियों के चुनाव लड़ने से रोकने के लिए ‘कुछ करना नहीं चाहती’. पिछले साल अगस्त में कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को उम्मीदवार चुनने के 48 घंटे के भीतर उनके आपराधिक रिकॉर्ड को अपनी-अपनी वेबसाइटों पर सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था.

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक (एडीआर) के मुताबिक उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के पहले तीन चरणों में शामिल 1822 उम्मीदवारों में से 438 के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं. इनमें 337 के खिलाफ हत्या, बलात्कार और बलात्कार की कोशिश करने जैसे गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.


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राजेश्वर सिंह की पत्नी के मामले में सपा ने पिछले 2 हफ्तों में 4 बार ईसी का दरवाजा खटखटाया

राजेश्वर सिंह सपा पर हमलावर हैं. वहीं, सपा उनकी पत्नी का तबादला लखनऊ से बाहर करने की मांग कर रही है. इसको लेकर पार्टी पिछले दो सप्ताह में चार बार चुनाव आयोग के अधिकारियों से मिल चुकी है.

सपा का तर्क है कि ‘स्वतंत्र, साफ-सुथरा, और निष्पक्ष चुनाव’ के लिए लक्ष्मी सिंह को आईजी पोस्ट से हटाया जाना चाहिए, क्योंकि वह ‘पुलिस अधिकारियों और वोटर को अपने पति राजेश्वर सिंह के पक्ष में वोट करने के लिए दबाव डाल रही हैं.’

इस मामले में एक सवाल का जवाब देते हुए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग के अधिकारियों पर सवाल उठाया. वह अपनी पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र जारी कर रहे थे. सपा की ओर से सोमवार को जारी बयान में चुनाव आयोग के पास शिकायत दर्ज करने और तीन बार रिमाइंडर भेजने के बावजूद कोई कार्रवाई न होने पर, चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए हैं.

पार्टी प्रमुख नरेश उत्तम पटेल की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘पश्चिम बंगाल चुनाव में हावड़ा (ग्रामीण) के एसपी आईपीएस अधिकारी सौम्य राय का तबादला कर दिया गया जब उनकी पत्नी को मार्च 2021 में टिकट मिला.’

उस समय चुनाव आयोग ने यह तर्क दिया था कि राजनीति में सक्रिय लोगों के निकट संबंधियों को चुनाव के दौरान ऐसी ड्यूटी नहीं दी जाएगी, ताकि किसी पक्षपात होने की संभावना न जान पड़े.

सपा के प्रवक्ता चौधरी ने कहा, ‘हम सिर्फ शिकायत कर सकते हैं. वे हमारी शिकायतों के बावजूद भी अधिकारी को हटा नहीं रहे.’

राजेश्वर सिंह सपा के आरोपों के जवाब में कहते हैं कि सपा एक महिला से डरी हुई है, यह ‘शर्मनाक’ है.

चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सपा की शिकायत चुनाव आयोग के दिल्ली ऑफिस में भेज दी गई है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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