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Saturday, 5 October, 2024
होमराजनीति‘किसानों का समर्थन पार्टी विरोध नहीं’- नाना की विरासत ने जाट भाजपा नेता को प्रदर्शन में शामिल होने पर मजबूर किया

‘किसानों का समर्थन पार्टी विरोध नहीं’- नाना की विरासत ने जाट भाजपा नेता को प्रदर्शन में शामिल होने पर मजबूर किया

बीरेंद्र सिंह प्रसिद्ध किसान राजनेता छोटू राम के नाती हैं जिन्होंने कृषि उपज की बिक्री और खरीद को नियमित कराने के लिए 1939 में संयुक्त पंजाब में मंडियों की स्थापना कराई थी.

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चंडीगढ़: कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए, जो एक किसान परिवार से आते हैं, किसानों के आंदोलन के लिए समर्थन ज़ाहिर करना आसान था. लेकिन हरियाणा के दो अन्य प्रमुख जाट राजनीतिक वंशों के लिए इसमें थोड़ा असमंजस था.

जन नायक जनता पार्टी (जेजेपी) के दुष्यंत चौटाला बीजेपी के सहयोगी हैं जबकि चौधरी बीरेंद्र सिंह सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य हैं.

जहां तक दुष्यंत का सवाल है तो उन्होंने एनडीए के प्रति अपनी निष्ठा और अपने परदादा देवी लाल की विरासत के बीच संतुलन बिठाने की कोशिश की है, जो एक किसान-राजनेता थे और 1970 और 1980 के दशकों में, दो बार दो-दो साल के लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे.

10 दिसंबर को इस मुद्दे पर अपनी खामोशी तोड़ते हुए उन्होंने कहा कि आंदोलन जारी रखने का कोई तुक नहीं है, जब सरकार ने एमएसपी पर एक लिखित आश्वासन की पेशकश की है- जो किसानों की एक बड़ी शिकायत थी. लेकिन, उन्होंने ये भी कहा कि वो पहले एक किसान हैं और अगर वो किसानों के लिए एमएसपी सुनिश्चित नहीं करा पाए तो सबसे पहले इस्तीफा देंगे.

इस बीच, 74 वर्षीय चौधरी बीरेंद्र सिंह, 18 दिसंबर तक खामोश थे लेकिन आखिरकार, जब वो आंदोलन में शामिल हुए तो उन्होंने साफ कर दिया कि वो अपने नाना– मशहूर किसान राजनेता छोटू राम की बहुमूल्य यादों को दलगत राजनीति से ऊपर रखते हैं.

ये तब है कि जब उनके बेटे, हिसार से बीजेपी सांसद ब्रिजेंद्र किसानों की नाराज़गी का निशाना बने हुए हैं.

बहरहाल, किसान छोटू राम की विरासत को बचाए रखने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं जो आज़ादी से पहले के ज़माने में तब के संयुक्त पंजाब की सरकार में मंत्री रहे थे.


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‘सियासी करियर के लिए नाना के आभारी’

छोटू राम जिन्हें भारत की तब की अंग्रेज़ी हुकूमत ने ‘सर’ के खिताब से नवाज़ा था, 1930 के दशक के अंत में कई कृषि सुधार लेकर आए थे जिनमें से एक था कृषि उपज की बिक्री और खरीद को नियमित कराने के लिए संयुक्त पंजाब में मंडियों की स्थापना.

संयुक्त पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की प्रांतीय सरकार में राजस्व मंत्री होने के नाते छोटू राम ने 1939 में पंजाब कृषि उत्पाद बाज़ार अधिनियम (आम भाषा में मंडी एक्ट) पास कराया.

कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की एक बड़ी शिकायत ये है कि इन सुधारों के नतीजे में मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी.

छोटू राम का नाम आज भी पूरे पंजाब और हरियाणा में याद किया जाता है और पूर्व कांग्रेसी बीरेंद्र सिंह, जो अब एक वरिष्ठ बीजेपी नेता हैं, अपने राजनीतिक करियर का श्रेय अपने नाना को देते हैं.

शुक्रवार को रोहतक में भूख हड़ताल पर बैठे, किसानों के समूह के साथ शामिल होते हुए उन्होंने मीडिया से कहा, ‘मैं सर छोटू राम का नाती हूं, इसी वजह से मैंने सियासत में इतना कुछ हासिल किया है’.

शुक्रवार के बाद से बीरेंद्र सिंह, छोटू राम विचार मंच (सीआरवीएम) के बैनर तले किसानों के समर्थन में पूरे हरियाणा का दौरा कर रहे हैं.

बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, बीरेंद्र सिंह ने कहा कि आंदोलन की उनकी हिमायत को ‘पार्टी-विरोधी गतिविधि’ नहीं कहा जा सकता. उन्होंने आगे कहा, ‘जब देश के 62 प्रतिशत मतदाता किसान हैं तो कोई पार्टी कभी ये नहीं कह सकती कि उनका समर्थन करना पार्टी-विरोधी गतिविधि है’.

उन्होंने कहा, ‘मेरा नैतिक रुख ये रहा है कि भले ही मेरा ताल्लुक ऐसी पार्टी से है जो ये कानून लाई है लेकिन किसान लोगों को ये लाभकारी नहीं लगे हैं. उनको लगता है कि इनके नतीजे में उनकी ज़मीनें उनसे ले ली जाएंगी’.

बीरेंद्र सिंह के मुताबिक, कृषि क़ानूनों पर बने गतिरोध का समाधान बातचीत से ही निकाला जा सकता है. उन्होंने ये भी कहा, ‘लेकिन उससे पहले भरोसे को बहाल करने की जरूरत है. भरोसा यकीनन खत्म हो गया है जिसकी वजह से किसान तीनों कानूनों को रद्द किए जाने के अलावा कुछ भी मानने को तैयार नहीं हैं’.


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एक मशहूर सुधारक

छोटू राम, जो एक प्रशिक्षित वकील थे, 1916 में कांग्रेस में शामिल हुए और 1920 तक रोहतक ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. उन्होंने एक उर्दू साप्ताहिक जाट गज़ट भी शुरू किया.

1935 में उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी (पहले ज़मींदारान पार्टी) की सह-स्थापना की जिसने संयुक्त पंजाब में 1937 के प्रांतीय चुनावों में जीत हासिल की. उसी साल अंग्रेज़ों ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी.

राजस्व मंत्री के नाते उन्होंने एक दर्जन से अधिक कानून पास कराए. मंडियों के ज़रिए कृषि उपज की खरीद-फरोख्त को नियमित करने के अलावा, उनके लाए कानूनों से अन्य चीज़ों के अलावा, महाजनों के कर्ज़ के बोझ तले दबे किसानों को भी राहत नसीब हुई.

अकसर ‘दीनबंधु’ कहे जाने वाले छोटू राम को 1945 में अपने देहांत से कुछ दिन पहले ही भाखड़ा बांध के निर्माण को मंज़ूरी देने का श्रेय भी जाता है.

अक्टूबर 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोहतक में छोटू राम के पैतृक गांव गढ़ी सांपला में उनकी एक 64 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया.

कांग्रेस से बीजेपी में

बीरेंद्र छोटू राम की बेटी बगवानी देवी के बेटे हैं.

40 वर्षों से अधिक तक वो पक्के कांग्रेसी रहे जिसके बाद 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनावों से पहले वो बीजेपी में शामिल हो गए.

वो उस समय एक राज्यसभा सांसद थे जब उन्होंने तब के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की.

बीजेपी में शामिल होने के बाद बीरेंद्र को मोदी की पहली कैबिनेट में मंत्री पद दिया गया जबकि उनकी पत्नी प्रेम लता को उंचाना से विधानसभा का टिकट मिला जहां से वो विजयी हुईं.

जुलाई 2016 में बीरेंद्र सिंह को तीन ‘लोगों के मंत्रालयों’- ग्रामीण विकास, पंचायती राज और पेयजल एवं स्वच्छता- से हटाकर इस्पात मंत्री बना दिया गया. इस साल जनवरी में जब उनके बेटे ब्रिजेंद्र सिंह सांसद बने तो उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. उनकी सदस्यता अगस्त 2022 में खत्म होनी थी.

उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि अपने बेटे के लिए टिकट की मांग करते समय उन्होंने बीजेपी से वादा किया था कि अगर उनका बेटा जीत जाता है तो वो संसद छोड़ देंगे, पार्टी के इस नियम का सम्मान करते हुए कि संसद के भीतर एक ही समय किसी भी परिवार के दो सदस्य नहीं होने चाहिए.

सांसद बेटे के इस्तीफे की मांग

आंदोलन के लिए बीरेंद्र का समर्थन ऐसे समय में आया है, जब हरियाणा के किसानों में उनके बेटे और हिसार से बीजेपी सांसद ब्रिजेंद्र के इस्तीफे की मांग बढ़ती जा रही थी, जो हरियाणा काडर के एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं.

इस मांग के बारे में पूछे जाने पर कि उनके बेटे को इस्तीफा दे देना चाहिए, बीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘क्या उसके इस्तीफा देने से समस्या हल हो जाएगी? वैसे भी इस्तीफा देना या न देना उसका फैसला है. ब्रिजेंद्र का इस्तीफा सिर्फ इसलिए मांगा जा रहा है कि वो मेरा बेटा है, जो उचित नहीं है.

‘कुछ कांग्रेसी नेता किसानों के समर्थन में इस्तीफा क्यों नहीं देते?’

1998 बैच के अधिकारी ब्रिजेंद्र ने जो अपने कार्यकाल के दौरान फरीदाबाद, पंचकुला और चंडीगढ़ में बतौर डिप्टी कमिश्नर तैनात रह चुके हैं, पिछले साल संसदीय चुनावों से पहले स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले लिया. हिसार में उन्होंने जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को शिकस्त दी.

दुष्यंत ने हिसार विधानसभा सीट जीत ली और अब वो हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री है.

जहां तक ब्रिजेंद्र सिंह का सवाल है, उन्होंने तीनों कानूनों का बचाव किया है, हालांकि उनका मानना है कि बातचीत से ही आगे बढ़ा जा सकता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये तीन कानून जो सुधार लाने जा रहे हैं, उनपर तकरीबन दो दशकों से चर्चा चल रही थी. उन्होंने कहा, ‘हर कोई इस बात से सहमत है कि कृषि क्षेत्र संकट में है और कुछ किया जाना चाहिए. खेती अब मुनाफे का सौदा नहीं रही है’.

‘मैं मानता हूं कि संसद में पास किए जाने से पहले, अगर एक दौर की चर्चा हो जाती तो शायद बेहतर रहता. वर्तमान गतिरोध का समाधान बातचीत में है. क्योंकि ‘मेरी नहीं तो कुछ नहीं’ का रुख अपनाना, समस्या सुलझाने वाला कदम नहीं है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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