लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने कानपुर के गौतम बुद्ध पार्क परिसर में ‘शिवालय पार्क’ बनाने के प्रस्ताव को वापस ले लिया है. यह फैसला बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) सांसद चंद्रशेखर आज़ाद के विरोध और उनके समर्थकों के बड़े पैमाने पर हुए प्रदर्शनों के बाद लिया गया.
मायावती और आज़ाद लगातार योगी आदित्यनाथ सरकार से यह प्रस्ताव रद्द करने की मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि यह कदम धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ होगा और गौतम बुद्ध व बी.आर. अंबेडकर की विरासत का अपमान होगा. प्रस्ताव के तहत गौतम बुद्ध पार्क परिसर में 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां लगाने की योजना थी.
कानपुर की मेयर प्रमिला पांडे ने बुधवार को इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया, जब विरोध शहर से पूरे प्रदेश में फैल गया. उन्होंने अधिकारियों को अब ‘शिवालय पार्क’ के लिए कोई वैकल्पिक जगह तलाशने का निर्देश दिया है.
‘शिवालय पार्क’ प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए मायावती ने पहले ही कड़ा विरोध जताया था. उन्होंने कहा था कि गौतम बुद्ध पार्क परिसर में किसी और धर्म का स्थल बनाना “बेहद अनुचित” है और इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है. एक्स पर जारी बयान में मायावती ने कहा कि यह पार्क बौद्धों और अंबेडकरवादियों के लिए भावनात्मक और आध्यात्मिक महत्व रखता है और इसमें बदलाव करना उसकी पवित्रता को ठेस पहुंचाएगा.
मायावती ने लिखा था, “सरकार को यह प्रस्ताव तुरंत वापस लेना चाहिए, वरना इससे जनता में अशांति और नफरत फैल सकती है.” इसके बाद बसपा कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को कल्याणपुर स्थित गौतम बुद्ध पार्क के पास विरोध प्रदर्शन भी किया.
आज़ाद ने इस योजना का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था. उन्होंने गौतम बुद्ध पार्क को करुणा, समानता और भाईचारे का प्रतीक बताया, जो बुद्ध और अंबेडकर की सोच से जुड़ा है. उन्होंने चेतावनी दी कि इसे धार्मिक स्थल में बदलने से बहुजन समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी. धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति सम्मान जताते हुए चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा कि इस तरह की परियोजनाएं अलग जगह पर विकसित की जानी चाहिए ताकि टकराव की स्थिति न बने.
‘शिवालय पार्क’ का प्रस्ताव सबसे पहले कानपुर नगर निगम ने गौतम बुद्ध पार्क परिसर में रखा था, जिसे बाद में कानपुर विकास प्राधिकरण (केडीए) ने मंजूरी दे दी थी. कमिश्नर सुधीर कुमार ने इसका साइट निरीक्षण भी किया था. अधिकारियों ने तब दिप्रिंट को बताया था कि इस परियोजना को शुरू में जिले के रूमा इलाके के शताब्दी पार्क में बनाने का प्रस्ताव था, लेकिन बाद में इसे गौतम बुद्ध पार्क में स्थानांतरित कर दिया गया.
हालांकि, इस रिपोर्ट लिखे जाने तक यह साफ नहीं था कि सरकार, जिसने राजनीतिक और जनविरोध के चलते अपना प्रस्ताव वापस ले लिया है, अब ‘शिवालय पार्क’ परियोजना को कहां स्थानांतरित करेगी.
मायावती दौर का बुद्ध पार्क
मायावती ने 1997 में अपने दूसरे मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान गौतम बुद्ध पार्क का विकास कराया था. यह उनकी पार्टी के बहुजन पहचान को मजबूत करने और सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया कदम था.
कुछ हफ्ते पहले खबरें आईं कि मशहूर गौतम बुद्ध पार्क का नाम बदलकर ‘शिवालय पार्क’ किया जाएगा. इसको लेकर विवाद खड़ा हो गया.
एटा की ‘बौद्ध सेना’ संस्था ने इस कदम का विरोध किया. संगठन के प्रदेश अध्यक्ष कनहैया लाल शाक्य के नेतृत्व में सदस्यों ने उप-जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा.
हालांकि, नगर निगम ने बाद में इस बात से इनकार कर दिया कि पार्क का नाम बदलने का कोई प्रस्ताव है.
शिवालय पार्क के प्रस्तावित स्थल को लेकर शुरू हुए इस विवाद के बीच, यूपी भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा लगातार बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहा है.
दिप्रिंट से बातचीत में मोर्चा के प्रमुख राम चंद्र कानौजिया ने कहा, “इस मसले का कोई बीच का हल होना चाहिए. भगवान बुद्ध पूजनीय हैं. हम भगवान शिव को भी उतनी ही श्रद्धा से मानते हैं. हम किसी तरह का टकराव नहीं चाहते. अधिकारियों को अंतिम फैसला लेने से पहले हमारे समाज के नेताओं से बातचीत करनी चाहिए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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