नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया कि भाजपा उम्मीदवार एवं पूर्व आईपीएस अधिकारी भारती घोष के खिलाफ 2019 लोकसभा चुनाव हिंसा मामले में जारी गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव होने तक स्थगित किया जाए.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि इस मामले में घोष के खिलाफ आगे कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए. शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई को दो महीने के लिए स्थगित कर दिया.
भाजपा ने घोष को पश्चिम मेदिनीपुर जिले की डेबरा सीट पर तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी हुमायूं कबीर के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है. कबीर भी भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी रह चुके हैं.
घोष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायालय पूर्व आईपीएस अधिकारी को सुरक्षा देता रहा है, लेकिन पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ टीएमसी से त्यागपत्र देने के बाद उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए हैं.
उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने राज्य की ताकत से 2019 में उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हुए कहा था कि उनसे लोकसभा चुनाव होने के बाद पूछताछ की जाएगी.
कौल ने कहा कि एक अन्य मामले में उनके और उनकी सुरक्षा कर रहे सीआईएसएफ अधिकारियों के खिलाफ एक कथित उत्पीड़न मामले में पूर्व अनुमति लिए बिना कार्यवाही शुरू की गई.
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को उनके खिलाफ दर्ज विभिन्न प्राथमिकियों के संबंध में 2019 से कई बार पूछताछ के लिए बुलाया गया और एक मामले में उनके पति को भी आरोपी बनाया गया, जिसमें शीर्ष अदालत ने उन्हें राहत दी थी.
कौल ने अनुरोध किया कि प्राथमिकी रद्द करने संबंधी उनकी याचिका की सुनवाई पूरी की जाए. उन्होंने कहा कि उन्हें इस बीच किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से छूट और अपना नामांकन दायर एवं राज्य विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
इसके बाद पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से पूछा कि जब शीर्ष अदालत ने कुछ मामलों में याचिकाकर्ता को सुरक्षा प्रदान की है, तो राज्य उन्हें गिरफ्तार क्यों करना चाहता है.
लूथरा ने कहा कि घोष ने एक मामले में निचली अदालत के समक्ष पेश नहीं होने का फैसला किया और उन्हें वारंट रद्द करने का अनुरोध करने के लिए उस अदालत में जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि घोष को जांच के दौरान कभी गिरफ्तार नहीं किया गया और उनके खिलाफ दंडात्मक प्रक्रिया अदालत ने शुरू की है, पुलिस ने नहीं.
पीठ ने कहा कि घोष को पिछले लोकसभा चुनाव में कथित हिंसा को लेकर दर्ज प्राथमिकी के संबंध में चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने घोष को गिरफ्तारी से सुरक्षा देने की याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम आने तक उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट स्थगित किया जाना चाहिए.
घोष ने अपने खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगाने और 2019 लोकसभा चुनाव में हिंसा के संबंध में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द कराने के लिए सोमवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया था.
घोष ने अपनी याचिका में कहा था कि 19 फरवरी 2019 को उनके (घोष के) खिलाफ दर्ज सिलसिलेवार झूठे मामलों में शीर्ष न्यायालय ने उन्हें किसी तरह की कठोर कार्रवाई से राहत प्रदान की थी, इसके बावजूद भी उन्हें नये मामलों में फंसाया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘इस तरह की प्राथमिकी को यथासंभव लंबे समय तक गुप्त रखा जाता है और याचिकाकर्ता को प्रताड़ित करने के लिए अचानक ही उसे सामने ला दिया जाता है ताकि वह हर समय अदालती कार्यवाहियों में फंसी रहे और उन्हें अपना राजनीतिक करियर बनाने से रोका जा सके.’
घोष ने कहा कि वह पिछले लोकसभा चुनाव में घाटल संसदीय सीट से भाजपा की उम्मीदवार थी. उन्होंने आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने उन पर हर मतदान केंद्र पर हमला किया और पुलिस मूकदर्शक बनी रही.
कभी राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की करीबी माने जाने वाली घोष ने दावा किया कि पुलिस ने उनके खिलाफ एक दर्जन से अधिक प्राथमिकी दर्ज की है.
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