पटना: पूर्व सांसद आनंद मोहन को जेल से रिहा करने के फैसले ने विपक्षी भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और सीपीआई-एमएल ने बिहार की नीतीश सरकार पर सवाल खड़े करने का मौका दे दिया है. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार इस वक्त असमंजस में है. सीपीआई-एमएल और भाजपा दोनों पार्टियों ने एक सूची तैयार की है जिसमें उन्होंने कुछ लोगों की रिहाई की मांग की है.
आनंद मोहन 1994 में आईएएस अधिकारी जी कृष्णय्या की हत्या में शामिल होने के दोषी पाए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे. बिहार के गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) कृष्णय्या को राज्य के मुजफ्फरपुर जिले के पास ‘गैंगस्टर’ छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के दौरान भीड़ ने मार डाला था. उन्हें भीड़ को कृष्णय्या की लिंचिंग के लिए ‘उकसाने’ के लिए दोषी ठहराया गया था.
जबकि उन्हें अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत द्वारा मौत की सजा दी गई थी, बाद में 2008 में पटना उच्च न्यायालय द्वारा सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने बाद में पटना एचसी की सजा को बरकरार रखा.
लेकिन बिहार सरकार ने सोमवार को बिहार जेल मैनुअल 2012 के नियम 481 (1) (ए) को हटाने के लिए महीने की शुरुआत में एक अधिसूचना जारी करने के बाद आनंद मोहन और 26 अन्य कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया, जिसमें ‘ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी की हत्या’ के मामले में दोषी की जल्द रिहाई पर रोक लगाई गई थी.
आनंद मोहन की रिहाई की मांग तब से चल रही थी जब से सीएम नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा (एनडीए) के साथ अपनी पार्टी (जनता दल-यूनाइटेड) का गठबंधन समाप्त कर दिया और राजद तथा कांग्रेस से हाथ मिला लिया.
आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद राजद के विधायक हैं, जबकि उनकी पत्नी पूर्व सांसद लवली आनंद भी राजद नेता हैं.
विधि विभाग के सचिव रमेश चंद मालवीय द्वारा जारी सोमवार के रिहाई आदेश में स्पष्ट किया गया है कि जिन कैदियों के नामों की जांच समिति ने सिफारिश की है और जो 20 साल या उससे अधिक जेल में बिता चुके हैं या जिनकी उम्रकैद की अवधि भी 14 साल पूरी हो चुकी है, उन्हें ही रिहा किया जा रहा है. सीपीआई (एमएल) ने इसे ‘चयनात्मक रिलीज’ करार दिया है, जिसमें पारदर्शिता की कमी है.
विधानसभा में 12 विधायकों के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे बड़े वामपंथी समूह, भाकपा (माले) ने बुधवार को घोषणा की कि उसके विधायक अपने छह समर्थकों की रिहाई की मांग को लेकर धरना देंगे, जो आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. पार्टी ने दावा किया कि आतंकवादी और विघटनकारी (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत वो पिछले 22 वर्षों से सलाखों के पीछे हैं.
भाकपा (माले), भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी की वर्तमान में राज्य के कड़े शराबबंदी कानून के तहत जेल में बंद ‘करीब 25,000 कैदियों’ की रिहाई की मांग का भी समर्थन कर रही है.
इस बीच बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी ने आनंद मोहन की रिहाई का स्वागत करते हुए हत्या के एक मामले में दोषी करार दिए गए एक और पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को रिहा करने की मांग की है. रूडी ने पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव और सीएम नीतीश कुमार पर मोहन और प्रभुनाथ दोनों को फंसाने का आरोप लगाया है.
बुधवार को दिप्रिंट से बात करते हुए सीपीआई (एमएल) के राज्य सचिव कुणाल (जो केवल अपने पहले नाम से जाने जाते हैं) ने कहा, ‘सरकार से हमारा सवाल है कि अगर 14 या 15 साल से जेल में बंद कैदी रिहा हो सकते हैं तो 22 साल से ज्यादा जेल में बंद कैदी क्यों नहीं?’
आनंद मोहन और 26 अन्य की रिहाई को कई लोग नीतीश कुमार सरकार द्वारा ‘मुस्लिम-यादव’ और ‘राजपूत’ समुदायों तक पहुंचने के लिए वोट बैंक की राजनीति करने के प्रयास के रूप में भी देख रहे हैं.
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि लंबी सजा काट रहे कैदियों की जल्द रिहाई में ‘एकरूपता’ लाने के लिए जेल मैनुअल में बदलाव किया गया है. उन्होंने कहा, ‘अगर अन्य मामले हैं जो रिहाई के लायक हैं, तो राज्य का जेल विभाग इसे देखेगा.’
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रिहाई की मांग
1988 में अरवल जिले के एक गांव में पार्टी समर्थकों और पुलिस के बीच हुई झड़प के बाद भाकपा(माले) जिन छह समर्थकों को रिहा कराना चाहती है, उन्हें ‘टाडा’ दोषी करार दिया गया था.
2003 में उन सभी को ‘टाडा’ के तहत आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, हालांकि ‘टाडा’ को 1995 में वापस ले लिया गया था.
कुणाल ने कहा, ‘इस तथ्य के बावजूद कि टाडा को निरस्त कर दिया गया था, राज्य सरकार ने कठोर प्रावधानों के साथ उन्हें जेल में रखा. आज उसमें से छह दोषियों की जेल में मौत हो चुकी है, एक दोषी फरार है. एक को पटना हाई कोर्ट के आदेश के बाद जेल से रिहा कर दिया गया था. शेष छह बूढ़े, बीमार और कमजोर हैं. पार्टी के विधायकों ने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.’
इस बीच, रूडी ने आनंद मोहन की रिहाई का स्वागत किया है. उन्होंने लालू और नीतीश पर आनंद मोहन और प्रभुनाथ सिंह को फंसाने का आरोप लगाया और प्रभुनाथ सिंह की रिहाई की मांग भी की है. रूडी ने बुधवार को मीडिया से बात करते हुए आरोप लगाया, ‘उन्हें भी लालू और नीतीश ने फंसाया था.’
प्रभुनाथ सिंह को 1995 में पटना में तत्कालीन विधायक अशोक सिंह की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था. उन्हें 2017 में हजारीबाग की एक अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. विधायक की मृत्यु और सजा मिलने के बीच 22 वर्षों में, प्रभुनाथ सिंह महराजगंज सीट से तीन बार लोकसभा सांसद चुने गए थे.
जद (यू) के एक पूर्व सदस्य, उन्होंने बाद में लालू प्रसाद के राजद में शामिल होने के लिए पाला बदल लिया. प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह और भाई केदार सिंह अभी भी सारण क्षेत्र में राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं जो संसद में रूडी द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली सीट है.
रूडी की मांग के बारे में बात करते हुए, एक भाजपा विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि सांसद ‘2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर प्रभुनाथ सिंह के समर्थकों को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं’.
आनंद मोहन और 26 अन्य लोगों की रिहाई से भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी को राज्य के शराबबंदी कानून के तहत जेल में बंद लोगों को रिहा करने की उनकी मांग का समर्थन मिला है.
मोदी के अनुसार 2016 में राज्य में शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के लागू होने के बाद से बिहार में 5.17 लाख लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है. वर्तमान में लगभग 25,000 लोग जेल में हैं.
मोदी ने कहा, ‘वे कट्टर अपराधी नहीं हैं और उनमें से 90 प्रतिशत समाज के कमजोर वर्गों के हैं.’
आनंद मोहन की रिहाई के बाद भाकपा(माले) मोदी की मांग के समर्थन में उतर आई है.
मद्यनिषेध कानून के तहत जेल में बंद लोगों के बारे में बात करते हुए कुणाल ने दिप्रिंट से कहा, ‘उनके साथ कट्टर अपराधियों जैसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है? शराब विरोधी कानूनों का उल्लंघन करने वाले ज्यादातर नशेड़ी होते हैं और इसके लिए इलाज किया जाना चाहिए और जेल नहीं भेजा जाना चाहिए ‘.
जिस आधार पर 27 कैदियों को रिहाई के लिए चुना गया था, उस पर राजनीतिक क्षेत्र से बाहर के लोग भी सवाल उठा रहे हैं.
पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एन.के. चौधरी से पूछा, ‘यह न्याय और कानून के शासन के अंत के बराबर है. नीतीश कुमार किस आधार पर दूसरे हार्डकोर दोषियों की रिहाई की मांग को अनसुना कर सकते हैं? यह मामला गुजरात में हुए उस मामले से कैसे अलग है, जब बलात्कार के आरोपियों को रिहा कर दिया गया था [बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई का संदर्भ]?’
उन्होंने कहा, ‘शराब कानून के उल्लंघन के लिए जेल में बंद लोगों को रिहा किया जाना चाहिए. उन्होंने छोटे-छोटे अपराध किए हैं. सरकार उन लोगों को रिहा कर रही है जिन्होंने जघन्य अपराध किए हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और पीड़ितों की आवाज बनना चाहिए.’
जातीय एंगल
रिहा किए गए 27 लोगों के चयन में नीतीश कुमार सरकार पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप भी लगाया जा रहा है.
सुशील मोदी ने कहा, ‘रिहा किए गए 27 में से 13 राजद के मुस्लिम यादव समर्थन समूह के हैं. आनंद मोहन को रिहा करने के नाम पर मतदाताओं को डराने के लिए कट्टर अपराधियों को रिहा किया गया है.’
उन्होंने यह भी दावा किया कि इस फैसले से बिहार सरकार का दलित विरोधी चेहरा बेनकाब हो गया है.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा नेता) मायावती सहित राज्य के बाहर के दलित नेताओं ने पहले आनंद मोहन की रिहाई का विरोध किया था और नीतीश कुमार सरकार को ‘दलित विरोधी’ बताया था. कृष्णैया दलित समुदाय से थे.
बिहार के राजनीतिक हलकों में यह माना जाता है कि सिंह को रिहा करने का कदम नीतीश कुमार सरकार द्वारा राजपूत मतदाताओं को लुभाने का एक प्रयास है, जो कथित तौर पर राज्य में लगभग चार प्रतिशत हैं. सिंह राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.
(संपादन: ऋषभ राज)
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