नई दिल्ली: झारखंड में भाजपा की हार और महाराष्ट्र में सत्ता से बेदखल होने की गूंज दिल्ली में सुनाई देने लगी है. दिल्ली में चुनाव होने हैं. भाजपा दबाव में है. भाजपा के मुखर सहयोगी मांग कर रहे हैं कि उनको विधानसभा सीटों में उचित हिस्सा मिले.
लंबे समय से भाजपा की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) छह सीटों पर नजर गड़ाए हुए है. 2015 के चुनाव में चार सीटों पर अकाली दल ने चुनाव लड़ा था. जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) जिसने पिछले साल भाजपा से गठबंधन किया था वो दिल्ली में कम से कम एक दर्जनभर विधानसभा सीटों के लिए टिकट मांग रही है.
दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जेजेपी, जिसने हरियाणा में भाजपा की सरकार बनाने में मदद की थी, पीछे हटने के मूड में नहीं है. पार्टी अपनी मांगें पूरी ना होने पर 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की धमकी दे रही है.
जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला ने कहा, ‘हमने दिल्ली का चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हम हरियाणा से सटे क्षेत्रों में उम्मीदवारों को मैदान में उतारेंगे. ‘गेंद अब भाजपा के पाले में है. अगर भाजपा हमें सम्मानजनक सीटें देती है, तो यह दोनों पार्टियों के लिए अच्छा रहेगा. अन्यथा, हम अगले दो से तीन दिनों में उम्मीदवारों को उतर देंगे.’
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जेजेपी उन सीटों पर नजर गड़ाए हुए है जहां पर जाटों की संख्या उचित तादात में है. जैसे-नजफगढ़, मुंडका, महिपालपुर, महरौली, नांगलोई, बदरपुर, देवली और छतरपुर.
पार्टी ने उम्मीदवारों की स्क्रीनिंग के लिए पहले ही पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है.
जेजेपी के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास दिल्ली में खोने के लिए कुछ नहीं है. अगर हम दो सीटें जीतते हैं तो भी यह पार्टी के लिए एक बोनस होगा लेकिन अगर हम अकेले लड़ते हैं, तो यह भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है.’
भाजपा की दिल्ली इकाई ने अभी तक जेजेपी के साथ गठबंधन पर फैसला नहीं किया है, लेकिन झारखंड में लगे झटके जहां पर पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा था, भाजपा का एक वर्ग ऐसा है जो हरियाणा के संगठन को चार से पांच सीटें देने का इच्छुक है.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हम इस बार सावधान हैं और सीटों की मांग के हिसाब से जेजेपी की ताकत को समझ रहे हैं.’ ‘लेकिन हरियाणा के कुछ नेता दुष्यंत की मांगों के विरोध में हैं. उनका मानना है कि अगर हम दिल्ली में सीटें देते हैं, तो इससे दुष्यंत को हरियाणा में और भी मजबूती मिलेगी.’
अकाली दल भी ज्यादा सीटें चाहता है
भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक अकाली दल भी अधिक सीटों पर नजर गड़ाए हुए है. दोनों दलों ने 2015 के विधानसभा चुनाव एक साथ लड़े थे, जिसमें अकालियों ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.
राजौरी गार्डन, कालकाजी, हरिनगर और शाहदरा के अलावा, अकाली दल अब मोती नगर और रोहताश नगर चाहती है.
पिछले चुनावों में अकाली उम्मीदवारों में से दो ने भाजपा के निशान पर चुनाव लड़ा था. जबकि राजौरी गार्डन से मनजिंदर सिंह सिरसा और हरिनगर में अवतार सिंह ने अकाली दल के चुनाव चिन्ह पर, वहीं कालकाजी में हरमीत सिंह और शाहदरा में जितेन्द्र पाल भाजपा के सिंबल पर लड़े थे.
हालांकि, अकालियों ने 2019 हरियाणा विधानसभा चुनाव अलग से लड़ा था और उन्होंने इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) का समर्थन किया था.
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दिल्ली के भाजपा प्रभारियों में से एक ने दिप्रिंट को बताया कि बातचीत अंतिम चरण में है, लेकिन अभी तक कुछ भी तय नहीं किया गया है. भाजपा नेता ने कहा, ‘सीटों के लिए अनुचित मांग पूरी नहीं की जाएगी. अकालियों की चुनावी ताकत पिछले कुछ वर्षों में कमजोर हुई है. सीटों के बंटवारे का फैसला करते समय हमें इसे ध्यान में रखना होगा.’
भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण में दिल्ली में बहुत ही आकर्षक स्थिति नहीं है. इस परिदृश्य में भाजपा चिंतित हो जाती है कि जब झारखंड में सीटों के बटवारें को अंतिम रूप देने की बात आती है, जहां सुदेश महतो के नेतृत्व वाले ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ पार्टी के इंकार के कारण कम से कम पांच सीटों पर खामियाजा भुगतना पड़ा.
एनडीए के अन्य सहयोगी दल जैसे राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और जेडी(यू) भी दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ रही है. एलजेपी पहले ही चुनाव के लिए 15 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है.
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