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Saturday, 16 November, 2024
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‘गठबंधन राजनीतिक हैं, इसका मतलब क्लीन चिट मिलना नहीं’; फडणवीस ने बीजेपी के ‘वॉशिंग मशीन’ टैग को नकारा

दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने महायुति की चुनावी रणनीति, मोदी बनाम राहुल मुकाबले, मराठा आरक्षण मुद्दे और कई चीजों के बारे में बात की.

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मुंबई: महाराष्ट्र में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भले ही उन पार्टियों के साथ गठबंधन किया है, जिनके नेता भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि ये गठबंधन राजनीतिक कारणों से प्रेरित हैं, और इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी को अपने आप क्लीन चिट मिल जाएगी.

फडणवीस ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया कि यह नैरेटिव गलत तरीके से गढ़ी गई है कि भाजपा “अन्य पार्टियों के दागी नेताओं के लिए वॉशिंग मशीन” है. उन्होंने कहा, एकमात्र नेता जिस पर अतीत में भ्रष्टाचार के आरोप लगे और फिर वह भाजपा में शामिल हुए, वह पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण हैं.

मुंबई में अपने आधिकारिक आवास पर दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में फडणवीस ने कहा, “केवल अशोक चव्हाण हमारी पार्टी में आए. अन्य मामलों में अन्य दल हमारे साथ आए हैं. हमने उनकी पार्टियों से किसी को भी भाजपा में नहीं लिया है,”

उन्होंने कहा, ”जहां तक चव्हाण का सवाल है, उनके खिलाफ आरोप थे. उनकी अपनी पार्टी ने जांच शुरू कर दी, आरोप पत्र दायर किया और आज स्थिति यह है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट में एक अपील लंबित है, लेकिन हाई कोर्ट की टिप्पणियों के बाद ही वह हमारी पार्टी में आए.’

भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद महायुति गठबंधन में शामिल होने वाले अन्य लोगों के लिए, फडनवीस ने कहा, जांच एजेंसियां अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हैं.

उन्होंने कहा, “हम इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि अन्य लोग हमारे साथ गठबंधन में हैं, लेकिन हमने उनके साथ कोई समझौता नहीं किया है. यह राजनीति है. राजनीतिक रूप से, जिस क्षण आपके पास कोई विकल्प नहीं  होता है, या जब लोग आपके साथ बेईमानी करते हैं, तो आपको जवाब देना होता है. इसलिए, हमने एक बड़ा गठबंधन बनाने की कोशिश की है. हां, यह संभव है कि हमारे गठबंधन सहयोगियों पर कुछ आरोप हों, लेकिन हमने क्लीन चिट देने के लिए उनके साथ कोई समझौता नहीं किया है. एजेंसियां वही देखेंगी और वही करेंगी जो उन्हें सही लगेगा.”

जून 2022 में भाजपा ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना से हाथ मिला लिया, जब शिंदे बहुमत विधायकों के साथ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार (अविभाजित शिवसेना, अविभाजित राकांपा और कांग्रेस को मिलाकर) से बाहर हो गए, जिसके पार्टी ढह गई. इसके बाद भाजपा और शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने राज्य में सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया.

जुलाई 2023 में एनसीपी में विभाजन के बाद जब भाजपा ने अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से हाथ मिलाया, तो उसे आलोचना का सामना करना पड़ा.

संयोग से, महाराष्ट्र में पूर्व कांग्रेस-राकांपा सरकार के तहत राज्य सिंचाई विभाग में कथित भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर अजित पवार के खिलाफ आरोप का नेतृत्व करने वाले विपक्ष के विधायकों में से एक फडनवीस भी थे.

फडणवीस ने कहा, “मेरे द्वारा इस मुद्दे को उठाने का असर यह हुआ कि भ्रष्टाचार पाया गया, कई लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए, आरोपपत्र दायर किए गए, लोग जेल गए और दो मामलों में दोषी भी ठहराए गए. लेकिन 2012 से 2024 तक, किसी भी जांच और आरोपपत्र में अजित पवार का नाम नहीं था,”

“मेरा आरोप गलत नहीं था. अगर ये गलत होता तो इतने लोग जेल नहीं जाते. मेरा आरोप अजित पवार के खिलाफ था, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह उस विभाग के मंत्री थे.

अजित पवार अब महायुति सरकार में फडणवीस के साथ उपमुख्यमंत्री हैं

‘बीजेपी ठाणे चाहती थी, लेकिन मानना पड़ा’

महायुति गठबंधन को महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों, खासकर मुंबई दक्षिण, ठाणे, नासिक और रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग जैसी सीटों के लिए सीट-बंटवारे का समझौता करने में काफी समय लगा.

आखिरकार, वे भाजपा के लिए 28 सीटों, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए 15 सीटों, अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के लिए चार सीटों और राष्ट्रीय समाज पक्ष के महादेव जानकर द्वारा एक सीट पर चुनाव लड़ने की योजना पर पहुंचे.

फडणवीस ने कहा, “हम मुंबई साउथ और ठाणे चाहते थे, लेकिन बातचीत में हमने मुंबई साउथ के बजाय रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग ले लिया. लेकिन, हम ठाणे चाहते थे और अंत तक बातचीत कर रहे थे,”.

शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट पर जोर दे रही थी, जो 2019 में अविभाजित शिव सेना ने जीती थी. मौजूदा सांसद विनायक राउत, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के साथ हैं. भाजपा ने इस तटीय संसदीय क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को मैदान में उतारा है – जो शिवसेना के सबसे पुराने विद्रोहियों में से एक हैं, जो 2005 में कांग्रेस में शामिल हुए और अंततः 2019 में भाजपा में शामिल हो गए.

मुंबई दक्षिण की सीट, जिसे पिछली बार भी अविभाजित शिव सेना ने जीता था, शिंदे के नेतृत्व वाली शिव सेना को मिली है. निवर्तमान सांसद अरविंद सावंत के शिवसेना (यूबीटी) के आधिकारिक उम्मीदवार हैं, जबकि शिंदे गुट ने इस सीट के लिए यामिनी जाधव को नोमिनेट किया है.

हालांकि, ठाणे शिंदे के दिल के बहुत करीब है, क्योंकि यह उनका गृह क्षेत्र है. यह सीट भी 2019 में अविभाजित सेना ने जीती थी और मौजूदा सांसद राजन विचारे भी ठाकरे गुट में हैं और इस बार फिर शिव सेना (यूबीटी) के उम्मीदवार हैं.

फडणवीस ने कहा, “अगर आप वहां की स्थिति पर नज़र दौड़ाएं, तो भाजपा ने यह सीट पांच बार जीती है, और फिर शिवसेना ने इसे सात बार जीता है. तो, वे कह रहे थे कि भले ही यह बीजेपी की सीट है, लेकिन आनंद दिघे साहब ने यह सीट शिवसेना के लिए जीती थी. सीएम शिंदे ने कहा कि चूंकि वह आनंद दिघे के उत्तराधिकारी हैं, इसलिए अगर उन्होंने सीट छोड़ दी तो वह अपने कैडर का सामना नहीं कर पाएंगे या उनमें उत्साह नहीं ला पाएंगे. इसलिए अंततः, हमने पालघर ले लिया और उन्हें ठाणे दे दिया.”

दिवंगत शिव सेना नेता दिघे, जिन्हें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अपना गुरु कहते हैं, को ठाणे और कल्याण, डोंबिवली, अंबरनाथ और भिवंडी सहित इसके पड़ोसी क्षेत्रों में शिवसेना को मजबूत करने का श्रेय दिया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि दिघे ने शिंदे को तैयार किया था और 2001 में उनकी मृत्यु के बाद, ठाणे में शिवसेना के विस्तार के साथ ही यह शिंदे का गढ़ बन गया.


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‘मोदी बनाम राहुल है’

मुंबई में कम से कम दो सीटों पर, महायुति ने शिव सेना के शिंदे गुट के ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिनके खिलाफ स्थानीय भाजपा नेताओं ने भ्रष्टाचार के जोरदार आरोप लगाए थे. इनमें से एक हैं मुंबई दक्षिण से यामिनी जाधव और मुंबई उत्तर पश्चिम से रवींद्र वायकर.

हालांकि, फडणवीस ने कहा कि पार्टी अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से कह रही है कि वे व्यक्तिगत उम्मीदवार पर ध्यान न दें, बल्कि अपनी नजरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत पर रखें.

“उम्मीदवारों का निर्णय शिव सेना के शिंदे जी को लेना था. हमारे लिए उम्मीदवार का कोई महत्व नहीं है. जो कोई भी शिव सेना से जीतेगा वह मोदी जी के लिए जीतेगा; विपक्षी दलों में से जो भी जीतेगा वह राहुल गांधी के लिए जीतेगा. इसलिए, हमने अपने लोगों से कहा है कि उम्मीदवार को देखने की जरूरत नहीं है, आपको मोदी जी को देखना है. और लोगों ने काम करना शुरू कर दिया है. आप देखेंगे कि इन दोनों सीटों पर भाजपा पूरी ताकत से प्रचार कर रही है.”

डिप्टी सीएम ने कहा कि उनकी पार्टी को विशेष रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र के जिलों में पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के साथ हाथ मिलाने के बाद मतदाताओं और कैडर को समझाया है.

“लेकिन हमने अपने लोगों को समझाया कि जिस तरह से इन लोगों (शिवसेना-यूबीटी, कांग्रेस और एनसीपी के शरद पवार गुट) ने अघाड़ी शासन के दौरान प्रधानमंत्री को अलग-थलग करने की कोशिश की थी, उसके कारण हमें ऐसा करना पड़ा. राजनीति में हमें ऐसे गठबंधन बनाने पड़ते हैं.”

उन्होंने कहा, ”मैंने ऑन रिकॉर्ड कहा है कि शिव सेना के साथ हमारा गठबंधन भावनात्मक है. एनसीपी के साथ हमारा गठबंधन राजनीतिक है. हो सकता है दस साल बाद उनके साथ भी भावनात्मक संबंध हो जाएं, लेकिन आज ऐसा नहीं है. हमारा वोटर समझदार है. वह समझ सकते हैं कि अगर मोदी जी को दोबारा प्रधानमंत्री बनना है तो हमें उन्हें अलग-थलग करने वालों को दिखाना होगा कि वे ऐसा नहीं कर सकते.’

‘उद्धव ठाकरे के साथ सुलह की संभावना नहीं’

फडणवीस ने कहा कि निजी तौर पर उद्धव ठाकरे से कोई दुश्मनी नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक तौर पर बीजेपी उनके साथ नहीं रह सकती.

उन्होंने कहा, “जब उद्धव ठाकरे जी अस्वस्थ थे (जब वह सीएम थे तब उनकी रीढ़ की हड्डी की सर्जरी हुई थी), मोदी जी – हालांकि वे उस समय राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे – उनके स्वास्थ्य के बारे में या उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत तो नहीं है इसके बारे में पूछने के लिए लगभग हर दिन या हर दूसरे दिन उन्हें फोन करते थे. लेकिन चूंकि उन्होंने बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को पीछे छोड़ दिया, इसलिए हम राजनीतिक रूप से उनके साथ नहीं रह सकते,”

हालांकि, वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि ठाकरे के साथ सुलह की कोई संभावना है.

“राजनीति में, किसी को भविष्य के बारे में कुछ भी भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए, लेकिन मैं इसे अभी जिस तरह से देख रहा हूं, मुझे नहीं लगता कि यह कभी हो सकता है. क्योंकि राजनीतिक मतभेद किसी भी समय खत्म हो सकते हैं, लेकिन उन लोगों ने मोदी जी पर जिस तरह के व्यक्तिगत हमले किए हैं, जिस तरह की सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसके बाद हमारे कार्यकर्ता उनके साथ कभी भी काम नहीं करना चाहेंगे.’

उन्होंने यह भी कहा कि न तो उनका और न ही उनकी पार्टी का शिवसेना और राकांपा के भीतर विद्रोह से कोई लेना-देना है, और दोनों क्षेत्रीय दल क्रमशः ठाकरे और शरद पवार के अहंकार के कारण अलग हो गए. फडणवीस के अनुसार, ठाकरे अविभाजित शिव सेना के भीतर एकनाथ शिंदे के बढ़ते कद और लोकप्रियता को लेकर चिंतित थे क्योंकि वह अपने बेटे आदित्य को बाला साहेब ठाकरे की विरासत संभालने के लिए आगे बढ़ाना चाहते थे.

फडनवीस ने कहा, “उन्हें (उद्धव ठाकरे) डर लगने लगा था कि पार्टी में एक बार फिर नारायण राणे जैसा शक्तिशाली नेता को तैयार किया जा रहा है, जैसा कि तब हुआ था, जब वह खुद राजनीतिक रूप से लॉन्च हुए थे… इसलिए उन्होंने शिंदे के पंख कतरने का काम शुरू कर दिया.” राणे ने उद्धव ठाकरे के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए शिवसेना से किनारा कर लिया था.

फडणवीस ने कहा, ”शिवसेना ‘परिवार पहले’ की विचारधारा के कारण विभाजित हुई, जबकि एनसीपी ‘पहला परिवार पहले’ की विचारधारा के कारण विभाजित हुई,” उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि कैसे शरद पवार ने भतीजे अजित पवार के बजाय बारामती सांसद और अपनी बेटी सुप्रिया सुले को अपनी विरासत सौंपने को प्राथमिकता दी.

‘चार निर्वाचन क्षेत्रों में जाति आधारित विभाजन’

जैसे-जैसे महाराष्ट्र पांचवें और अंतिम चरण के चुनाव के करीब पहुंच रहा है, फडणवीस को महायुति के लिए मुंबई की सभी छह सीटें जीतने का भरोसा है. हालांकि, वह इस चुनावी मौसम की चुनौतियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं.

उदाहरण के लिए, मराठवाड़ा में, उन्होंने कहा, कम से कम चार निर्वाचन क्षेत्रों में दो जाति समूहों (मराठा और अन्य पिछड़ा वर्ग) के बीच विभाजन देखा जा रहा है और साथ ही भाजपा के खिलाफ अल्पसंख्यक वोटों का एकीकरण भी संभव है.

उन्होंने कहा, ”हमने ईमानदारी से मराठों को आरक्षण दिया है. अब, मुझे नहीं पता कि उनके नेता, मनोज जारांगे पाटिल, इसके अलावा किस बात से खुश होंगे. हम इसका पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. यदि यह फ्रेमवर्क के अंदर संभव होगा तो हम इसे करने की कोशिश करेंगे. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बार, कम से कम चार निर्वाचन क्षेत्रों में, हमने मराठवाड़ा में दो समुदायों के बीच पूरी तरह से सीधा सीधा विभाजन देखा है. महाराष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने के लिए जातिगत विभाजन बहुत बुरा है. जिस तरह से यह हुआ है, इसके निशान काफी लंबे समय तक रहेंगे.”

जालना स्थित जारांगे पाटिल मराठों को ओबीसी कोटा में कुनबी के रूप में शामिल करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, जो पहले से ही इस श्रेणी के तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं.

नेता ने यह भी कहा कि विपक्ष “अल्पसंख्यकों के बीच भय पैदा करने में सफल रहा है”, और शिवसेना (यूबीटी) विभाजन के कारण उनके वोटों में आई कमी को पाटने की कोशिश में अल्पसंख्यकों को लुभाने की कोशिश कर रही है.

“उद्धव की शिव सेना को लगता है कि यह एकमात्र वोट बैंक है जो उन्हें बचा सकता है, और यही कारण है कि उन्होंने अल्पसंख्यकों के बीच भय की भावना पैदा की है. हमने इन समुदायों को यह बताने की कोशिश की है कि हमारा बुनियादी दृष्टिकोण उनसे अलग है. उनका कहना है कि संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है. हम कहते हैं कि संसाधनों पर पहला हक गरीबों का है. जब हम गरीबों की बात करते हैं तो इसमें अल्पसंख्यक भी शामिल होते हैं.”

फडणवीस ने कहा कि वह केंद्र में नहीं जाएंगे और महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में “कम से कम कुछ समय के लिए” रहने के लिए यहां आए हैं.

उन्होंने कहा, “मेरी पार्टी में, मैं निर्णय नहीं लेता. मेरी पार्टी फैसला करती है. लेकिन जितना मैं अपनी पार्टी को जानता हूं और महाराष्ट्र की स्थिति को देखते हुए, मुझे लगता है कि कुछ और समय के लिए – पता नहीं कितने समय के लिए – मैं यहां रहूंगा.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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