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Friday, 22 November, 2024
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‘BJP की मदद करने वालों से दूर रहें’, अखिलेश ने दलितों को लुभाने के लिए कांशीराम, मुलायम की याद दिलाई

रायबरेली में एक कार्यक्रम में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दलित आइकन और पिता मुलायम के बीच पूर्व में हो चुके गठबंधन को याद किया. उन्होंने वर्तमान बसपा पर भाजपा के साथ सांठगांठ का आरोप भी लगाया.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के रायबरेली में सोमवार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह और दलित आइकन के बीच पुराने गठबंधन का आह्वान किया.

महामाया नगर में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘कांशीराम जी छत्तीसगढ़, इलाहाबाद आदि जगहों से कई बार चुनाव लड़े, लेकिन जीत के करीब पहुंचकर भी जीत नहीं सके. हालांकि, वह समाजवादी पार्टी की मदद से पहली बार इटावा से जीते और यूपी की राजनीति में एक नई शुरुआत हुई, जब उन्हें यहां से सांसद के रूप में चुना गया.’

सपा प्रमुख 1991 के आम चुनाव का जिक्र कर रहे थे, जब समाजवादी नेता मुलायम के साथ गठबंधन ने कांशीराम को इटावा से जीत दिलाने में मदद की थी. जब देश में राममंदिर की राजनीति चरम पर थी, उस जीत ने दलित नेता और बसपा संस्थापक को उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में उतारने में मदद की थी.

इस कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने भाजपा के साथ निकटता रखने के लिए बसपा (1984 में स्थापित) पर भी निशाना साधा और लोगों से ‘भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से मदद करने वालों से सावधान रहने’ के लिए कहा.

सपा प्रमुख ने कार्यक्रम में कहा, ‘लोकसभा चुनाव से पहले जनता भाजपा के झूठ से अवगत हो रही है. 2024 (आम चुनाव) और 2027 (यूपी विधानसभा चुनाव) में एक बड़ा बदलाव आएगा.’

2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले होने वाला यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण था क्योंकि सपा व्यापक रूप से दलित आउटरीच कार्यक्रम चला रही है.

दलित राज्य की कुल आबादी का लगभग 20 प्रतिशत है. इसमें से लगभग आधे जाटव हैं, वह समूह जिससे वर्तमान बसपा प्रमुख मायावती ताल्लुक रखती हैं, और जो उनकी पार्टी का मुख्य वोट बैंक भी है. यह कई जाति समूहों से बना है जैसे कि पासी, कोइरी, वाल्मीकि और खटिक आदि.

एसपी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने दिप्रिंट को बताया कि 2022 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी वोट शेयर घटकर 12.8 प्रतिशत पर आ गया था जो 1993 के बाद से सबसे कम था. यह गैर-जाटव वर्ग है जिसे यादव निशाना बना रहे हैं. उन्होंने कहा कि सोमवार के कार्यक्रम का आयोजन बसपा के उन पूर्व नेताओं ने किया था जो सपा में शामिल हो गए थे.

उनमें से सबसे प्रमुख स्वामी प्रसाद मौर्य हैं, जो बसपा के पूर्व नेता हैं, जिन्होंने 2016 में भाजपा में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी थी, लेकिन 2022 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सपा में शामिल हो गए थे. सपा प्रमुख ने क्षेत्र में शिक्षा में योगदान के लिए स्वामी प्रसाद के पिता, बदलू मौर्य की प्रतिमा का भी अनावरण किया.

पिछले गठबंधनों की याद दिलाते हैं

सोमवार को कार्यक्रम में बोलते हुए, अखिलेश ने कहा कि बसपा का आरोप है कि सपा बहुजनों को तोड़ने की कोशिश कर रही है. यह बिल्कुल गलत है. सामाजिक न्याय के लिए हमारी लड़ाई पुरानी है.

उन्होंने कहा कि 1991 में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव के बीच गठबंधन हुआ था, जब कांशीराम यूपी की राजनीति में दखल देने लगे थे.

राम जन्मभूमि आंदोलन पर सवार भाजपा ने उस साल राज्य की 425 सीटों में से 221 सीटें जीती थीं. लेकिन यह सपा और बसपा नेताओं का गठबंधन ही था जिसके कारण कांशी राम को अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के लाल सिंह वर्मा को हराने में मदद की थी. उस वक्त यह लोकप्रिय नारा भी चला था: ‘मिले मुलायम-कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्री राम (मुलायम और कांशी राम एक साथ आओ, बीजेपी को हराओ)’.

2017 के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए, जब सपा और बसपा ने एक औपचारिक गठबंधन किया था, अखिलेश ने कहा कि सपा ने पिछड़ी जातियों की भागीदारी सुनिश्चित करने की कोशिश की थी, इसलिए उन्होंने पहले कांग्रेस के साथ भागीदारी की और फिर बसपा के साथ.

उन्होंने कहा, ‘हमने कई प्रयोग किए. हमने कांग्रेस से हाथ मिलाया और फिर बसपा से भी. नतीजा यह हुआ कि वे लोग (बसपा) 0 से 10 तक (लोकसभा सीटों में) पहुंच गए. लेकिन अब बसपा के नंबर 1 नेता हमारे साथ आ गए हैं. जब 10 में 1 को निकाल देंगे, तो वो (बीएसपी) हवा में उड़ जाएंगे’.

दलितों तक सपा की पहुंच

पिछले कुछ वर्षों में सपा ने राज्य के दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए कई प्रयास किए हैं. दिसंबर में खतौली और रामपुर में उपचुनाव से पहले, दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी) ने सपा-राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन को अपना समर्थन दिया था.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 15 फरवरी, 2022 को रायबरेली में एक रैली को संबोधित करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था, ‘अन्य दलों के जाल में मत फंसो. ऐसी पार्टियां हैं जो अपना खाता भी नहीं खोल पाएंगी. बसपा अंबेडकरवादियों के दिखाए रास्ते से भटक गई है. वे सरकार नहीं बना पाएंगे. कांग्रेस भी सरकार नहीं बना पाएगी. इसलिए कोई गलती न करें और साइकिल (सपा सिंबल) की मदद करें.’

उन्होंने पिछले साल सितंबर में आयोजित पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में सपा की रणनीति का संकेत भी दिया था, जब उन्होंने कहा था, ‘डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया’ को सेना में शामिल होना चाहिए और ‘बहुजन समाज (दलित) बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे हैं’. हिंदुस्तान टाइम्स के एक रिपोर्ट के मुताबिक.

दिप्रिंट से बात करते हुए सपा प्रवक्ता चौधरी ने स्वीकार किया कि पार्टी गैर-जाटव दलितों को लुभा रही है.

चौधरी ने कहा, ‘मायावती सरकार में मंत्री रहे बसपा के कई लोग सपा में शामिल हो गए हैं. दलित समुदाय में भी, कई गुट हैं. आधा वोट मायावती के पास है, जिस समुदाय से वह आती हैं. लेकिन दूसरे आधे में पासी जैसे समूह हैं. हमारे पास बहुत सारे पासी नेता हैं.’

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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