चंडीगढ़: खालिस्तानी उपदेशक अमृतपाल सिंह द्वारा अकाल तख्त से बैसाखी के दिन ‘सरबत खालसा’ या सिखों की एक आम सभा बुलाने की अपील करने के लगभग एक हफ्ते बाद, अकाल तख्त ने इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए रखने का फैसला किया है.
18 मार्च को अमृतपाल और उसके समर्थकों पर राज्यव्यापी कार्रवाई के बाद गिरफ्तार किए गए युवाओं के पक्ष में सिखों के सर्वोच्च अस्थायी निकाय अकाल तख्त ने एक सक्रिय रुख अपनाया था. लेकिन अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अभी तक इस मामले में एक शब्द भी नहीं बोला है. अमृतपाल की पिछले हफ्ते अकाल तख्त से वीडियो अपील के बाद से, अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अभी तक इस मामले में एक शब्द भी नहीं बोला है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि अकाल तख्त द्वारा अमृतपाल के सरबत खालसा बुलाने के आह्वान पर कोई भी कदम नहीं उठाया जाना सिख निकाय के लिए प्रतिकूल होगा. गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और प्रख्यात पॉलिटिकल साइंटिस्ट जगरूप सिंह सेखों ने दिप्रिंट से कहा, “एक संस्था के रूप में अकाल तख्त अमृतपाल सिंह की मांग पर बुलाए गए सरबत खालसा पर एक बड़ा प्रहार करेगा. वह छुपकर सरबत खालसा की मांग कर रहा है. यह स्पष्ट है कि सरबत खालसा में वह खुद को कट्टरपंथी सिखों के बेताज नेता की स्थिति में साबित करेगा जिससे अकाल तख्त अपनी वैधता खो देगा. ”
दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर, एसजीपीसी के मीडिया कार्यालय ने कहा कि यदि इस संबंध में कोई निर्णय लिया जाता है, तो मीडियाकर्मियों को सूचित किया जाएगा.
अमृतपाल पर कार्रवाई के बाद, अकाल तख्त जत्थेदार सिंह ने कट्टरपंथी उपदेशक को अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कहा था. 27 मार्च को, जत्थेदार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में कई कट्टरपंथी सिख निकायों की एक बैठक की अध्यक्षता की, जिसके बाद संयुक्त रूप से यह निर्णय लिया गया कि वे पंजाब सरकार को कार्रवाई के दौरान गिरफ्तार सिख युवकों को रिहा करने के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम देंगे.
यह भी निर्णय लिया गया कि अकाल तख्त सिखों के खिलाफ विभिन्न सरकारों द्वारा फैलाए जा रहे निगेटिव नैरेटिव्स के विरोध में गांवों में वहीर या धार्मिक मार्च आयोजित करेगा.
लेकिन अपनी वीडियो अपील में अमृतपाल ने कहा अकाल तख्त को धार्मिक मार्च या वहीर करने की जरूरत नहीं है, बल्कि केवल सरबत खालसा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
हालांकि, शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमीटी (एसजीपीसी) ने साफ कर दिया है कि वह अकाल तख्त के धार्मिक मार्च निकालने की योजना पर आगे बढ़ेगी. एसजीपीसी के महासचिव भाई गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने पिछले हफ्ते मीडियाकर्मियों को बताया कि बैसाखी के बाद अकाल तख्त द्वारा धार्मिक मार्च आयोजित किए जाएंगे.
31 मार्च को, अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी के नेतृत्व में शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमीटी (एसजीपीसी ) ने निर्दोष युवकों की गिरफ्तारी के खिलाफ अमृतसर के उपायुक्त के कार्यालय तक एक विरोध मार्च निकाला.
दल खालसा के महासचिव कंवर पाल सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “एक व्यक्ति की मांग पर सरबत खालसा नहीं बुलाया जा सकता है. यह कोई छोटी घटना नहीं होती. यह सिख समुदाय के भविष्य पर दीर्घकालिक प्रभाव वाली एक ऐतिहासिक घटना होती है. अकाल तख्त द्वारा अन्य सिख निकायों से परामर्श भी लिया जाना है. और अगर यह तय हो जाता है कि सरबत खालसा बुलाना है, तो दुनिया भर के सिखों को इसके लिए अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए कहा जाएगा और यह महीनों तक चलने वाली लंबी प्रक्रिया है. ”
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अकाली दल का राजनीतिक पुनरुद्धार
सिख युवाओं के समर्थन में बोलने के अकाल तख्त के कदम, जिनमें से सैकड़ों अमृतपाल पर कार्रवाई के बाद जेल गए थे, को अकाल तख्त द्वारा कट्टरपंथियों को अपने साथ लाने के अवसर देखा गया.
इस कदम से संकटग्रस्त शिरोमणि अकाली दल (SAD) को राजनीतिक रूप से मदद मिलने की भी उम्मीद थी, जो अब लगभग छह साल से सत्ता से बाहर है और अपने मूल पंथिक वोट बैंक को वापस जीतने की पूरी कोशिश कर रहा है.
अकाल तख्त के अल्टीमेटम के बाद, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जत्थेदार पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि यह “जाहिर है” कि अकाल तख्त अकाली दल का समर्थन करता है.
अकाली-भाजपा गठबंधन के सत्ता में रहने के दौरान 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के बाद अकाली दल को अपना पंथिक वोट आधार खोते देखा गया है. सिखों द्वारा जीवित गुरु माने जाने वाले गुरु ग्रंथ साहिब को अपवित्र किया गया था और तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे और डिप्टी सीएम सुखबीर बादल के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाने की आलोचना की गई थी.
अकालियों ने घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को पकड़ने के लिए कुछ नहीं किया. इसके बाद, बेहबल कलां में न्याय की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी सिखों की भीड़ पर पुलिस की गोलीबारी, जिसके कारण दो व्यक्तियों की मौत हो गई थी ने अपमान के घाव को गहरा कर दिया.
तब से शिरोमणि अकाली दल अपने पंथिक काडर को फिर से जीतने की कोशिश कर रहा है. अकाल तख्त के अलावा, पार्टी ने भी खुले तौर पर घोषणा की कि वह गिरफ्तार किए गए सिख युवकों के साथ खड़ी है और उनके परिवारों को कानूनी सहायता की पेशकश की है.
चंडीगढ़ के खालसा कॉलेज में राजनीतिक विशेषज्ञ और इतिहास के प्रोफेसर हरजेश्वर सिंह ने कहा, “अमृतपाल पर कार्रवाई के बाद अकालियों को सिख नौजवानों का समर्थन करने से जो भी राजनीतिक लाभ मिलना था, वह उन्होंने हासिल कर लिया है. लेकिन अगर वे अमृतपाल के समर्थकों को वास्तव में सरबत खालसा कहने की हद तक शामिल करने की कोशिश करते हैं, तो यह अकाल तख्त के लिए आत्मघाती होगा.”
सिख युवाओं पर नकेल कसने के लिए अकालियों ने जहां मान सरकार पर तुरंत हमला बोला, वहीं पार्टी ने खुद अमृतपाल पर चुप्पी साध ली है. इससे पहले, वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने कई मौकों पर उन्हें “डुप्लीकेट” भिंडरावाले के रूप में संदर्भित करते हुए कट्टरपंथी उपदेशक के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया था.
अमृतपाल के वीडियो अपील के बारे में सुखबीर बादल ने मीडिया से कहा था, “हम नहीं जानते कि जो वीडियो (अमृतपाल द्वारा) जारी किया गया है वह वास्तविक है या नहीं, इसलिए मैं उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता. लेकिन अकाली दल पंजाब का असली वारिस है और हमेशा पंजाबियों के साथ खड़ा रहा है.”
लुधियाना से कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने अमृतपाल पर यू-टर्न लेने के लिए अकालियों की आलोचना की है. बिट्टू ने पिछले हफ्ते मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा, “अमृतपाल ने जत्थेदार को अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कहा है और यह स्पष्ट है कि अकाली अमृतपाल के साथ हैं. पहले वे उसके खिलाफ बोल रहे थे और अब वे नहीं हैं.”
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
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