नई दिल्ली : कांग्रेस की पिछली अध्यक्ष सोनिया गांधी के सबसे करीबी सहयोगी और सचिव होने के नाते प्रसिद्ध, अहमद पटेल पिछले साल एक विवादास्पद चुनाव में भाजपा की नाक के नीचे से जीत खींच कर पांचवीं बार राज्यसभा में लौटे.
इस बात से नाराज होकर, गुजरात विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान भाजपा ने लगातार इस वरिष्ठ नेता को अपना निशाना बनाया. लेकिन फिर भी पटेल ने सामान्य रूप से कम बयानबाजी करते हुए यदा कदा ही जबाव दिया.
अभी दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में, पटेल ने सोनिया गांधी के साथ बिताए गए राजनीतिक अनुभव, कांग्रेस में बदले हुए नेतृत्व और 2019 में एकजुट होकर विपक्ष से निपटने जैसे मुद्दों पर चर्चा की.
बातचीत के संपादित अंश –
गुजरात चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने बड़े पैमाने पर चुनाव प्रचार किया. इतना ही नहीं, पार्टी राज्य में भाजपा विरोधी दलों को लुभाकर एकजुट करने में कामयाब रही. लेकिन इसके बावजूद भी आप चुनाव हार गए. ऐसा क्यों?
इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल जी ने गुजरात में बहुत मेहनत की. लेकिन वहां पर चुनावी खेल में कई सारी चीजें थीं. एक तरफ, केन्द्र और राज्य में भी भाजपा की ही सरकार थी और विभिन्न एजेंसियों के साथ साथ उनके पास ऐसे ही कई और संसाधनों की शक्ति थी. लेकिन मुख्य श्रेय गुजरात के लोगों को जाता है जिन्होंने हमें बड़ें पैमाने पर समर्थन दिया। हमने भाजपा को 99 सीटों पर ही समेट दिया जबकि वे 150 सीटें (182 सीटों में से) जीतने की बात कर रहे थे. बेशक, हमने कुछ गलतियां भी कीं, अन्यथा हम गुजरात में सरकार बनाते.
क्या आप अपनी पार्टी द्वारा की गयी गलतियों को विस्तार से बता सकते हैं?
हम बूथ प्रबंधन में भाजपा से पीछे रह गए. इसके अलावा, भाजपा ने शहरी क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया. हांलाकि राज्य में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को हमारे प्रदर्शन से प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है और मुझे यकीन है कि ये मुद्दे समय के साथ सुलझ जाएंगे.
आप राज्यसभा चुनावों के बाद से भाजपा के निशाने पर थे; प्रधानमंत्री ने भी अपने चुनाव प्रचार के भाषणों में आप पर हमला किया.
मुझे, बेवजह बिना किसी तथ्य के आधार पर आरोप लगाकर, उनमें घसीटने के पीछे एकमात्र उद्देश्य मतदान का ध्रुवीकरण करना था. वे पाकिस्तान का मुद्दा सामने लाए, कई अन्य मुद्दे भी उठाए और उन्होंने यह भी कहा कि अहमद पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री होंगे. उन्होंने अपने हिसाब से अपनी सर्वश्रेष्ठ कोशिश की, लेकिन उन्हें इसमें कोई सफलता नहीं प्राप्त हुई. दरअसल बात यह है कि गुजरात के लोग बहुत समझदार हैं और उन्हें पता है कि कौन सही है और कौन गलत.
लेकिन भाजपा ने कांग्रेस पर राज्य में चुनावी लाभ हासिल करने के लिए जातिगत राजनीति करके लोगों को विभाजित करने का आरोप लगाया.
वे ऐसा कहते हैं क्योंकि वे सांप्रदायिकता फैलाना पसंद करते हैं. वे अपने चुनावी लाभ के लिए अल्पसंख्यकों और लोगों को अपने सांप्रदायिकता के जाल में फसाना चाहते हैं.
यहां तक कि कांग्रेस भी अब अल्पसंख्यकों के बारे में बात नहीं कर रही है. राहुल गांधी भी अपने ‘हिंदू’ एजेंडे को दिखाने के लिए मंदिरों का दौरा कर रहे हैं.
यह सही नहीं है. यदि आप हमारे घोषणा पत्र को देखें तो उसमें हमने सभी जातियों और समुदायों की बात की है. भाजपा के विपरीत, हमने कभी विभाजनकारी राजनीति नहीं की है.
तो फिर आप राहुल गाँधी की मंदिर यात्रा के बारे में क्या कहेंगे?
यह भाजपा द्वारा राहुल गाँधी के खिलाफ चलाया जाने वाला एक व्यवस्थित अभियान है, जिसमें उनके द्वारा किए जाने वाले लगभग सभी कार्यों की निन्दा की जाती है. और हर कोई यह जानता है कि वे किस तरह सोशल मीडिया के माध्यम से आधारहीन कहानियों का रोपण कर रहे हैं.
राहुल गाँधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में पदाधिकारियों का एक नया क्रम आकार ले रहा है. ऐसी स्थिति में आप इन चीजों की नई योजना में अपने आप को कहाँ देखते हैं ?
मैंने कांग्रेस पार्टी के लिए लगभग 40 सालों तक काम किया है. जब मैं मात्र 27 वर्ष का था तब मैं सांसद बन गया था। मैं 15 सालों से अधिक समय तक कांग्रेस अध्यक्ष का राजनीतिक सचिव रहा. मैंने इंदिरा जी, राजीव जी और सोनिया जी के साथ बहुत ही करीब रहकर काम किया है. मैं राहुल जी का बहुत आभारी हूँ, जो मुझे इतना अधिक सम्मान देते हैं. जब भी कोई बैठक होती है, तो वे मुझे फोन करते हैं. और जब भी आवश्यकता होती है, तब वे मुझसे सलाह लेते हैं.
अब मुझे पार्टी में किसी विशेष भूमिका की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. मुझे पार्टी द्वारा जो भी भूमिका दी जाएगी, मुझे उसे निभाने में बेहद खुशी होगी. कांग्रेस पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया है और अब इस उम्र में, मैं जो काम कर सकता हूँ, मैं अपनी तरफ से करने की पूरी कोशिश करूँगा. लेकिन अब वह समय आ गया है कि जब कांग्रेस को अपनी पार्टी में युवा चेहरों को मौका देना चाहिए, ताकि वे पार्टी के भविष्य के साथ ही साथ देश का भी प्रतिनिधित्व करें.
आपने जिन गांधी परिवार के सदस्यों के साथ काम किया उनमें आपको क्या अंतर देखने को मिला?
कोई अंतर नहीं है, बस तथ्य यह है कि उनकी पीढीयां अलग अलग हैं. वे सभी हमेशा पार्टी और देश के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं और उन्होंने हमेशा ही राष्ट्र हित को किसी भी अन्य चीज से ऊपर रखा है.
आप सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी एकता के प्रयास की अगुवाई कर रहे थे. अब हम सपा और बसपा जैसी पार्टियां देख रहे हैं जो यह घोषणा कर रहे हैं कि वे 2019 का चुनाव अपने आप लड़ेंगे. क्या आपको लगता है कि इस स्थिति के बाद भी विपक्ष आपके साथ आ रहा है.
मैं एक आशावादी व्यक्ति हूँ. आप देखें कि यह देश के सामने एक चुनौती है कि अगर आपके देश के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश कहते हैं कि लोकतंत्र खतरे में है, तो अब कहने को बचता ही क्या है? मुझे पूरा यकीन है कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएगा वैसे वैसे ही समान विचार धारा वाली पार्टियां राष्ट्र हित के लिए एक साथ आ जाएंगी. यहां पर किसी के भी पास कोई और विकल्प बचता ही नहीं है और मैं भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने की पूरी कोशिश करूँगा.
सत्ता में लगभग चार साल पूरे करने के बाद, आप एनडीए सरकार के प्रदर्शन को कैसे देखते हैं?
यह सरकार विफल रही है. पूरे देश में अशांति फैली हुई है. सिर्फ एक या दो राज्यों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में युवा, किसान, व्यापारी – हर कोई परेशान है. प्रचार और इवेंट मैनेजमेंट देश का विकास नहीं कर सकते. उन्हें व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए नीतियों और नियोजन की आवश्यकता होती है, जो भाजपा के पास बिल्कुल नहीं हैं.
हमने यूपीए के दौरान जो भी किया, उन्होंने उसको लेकर हमें हमेशा घेरा लेकिन अब जब वो खुद वही योजनाएं लागू कर रहे हैं अतः यह उनके विचारों के दिवालियापन को दर्शाता है.
लेकिन वे हर चुनाव जीत रहे हैं …..
इस पर दो विभिन्न राय हैं. बात यह नहीं है कि वे चुनावों में कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन वे इस तरह से चुनावों की तैयारियां करते हैं जो उनके पक्ष में परिणाम लाती हैं.
मुझे नहीं पता है कि वे चुनाव जीतने के इतने जरिये कहां से लाते हैं. मैंने गुजरात में देखा है कि वे किस तरह से पैसा खर्च करते हैं. मुझे लगता है कि विपक्षी दलों को एक साथ आना चाहिए और उनकी चालों पर से पर्दा उठाना चाहिए.