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Friday, 22 November, 2024
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कांग्रेस में सोनिया और राहुल के बाद ‘सबसे अहम’ नेता अहमद पटेल की जगह भरना पार्टी के लिए मुश्किल है

कांग्रेस के इस 71 वर्षीय बुजुर्ग नेता को पर्दे के पीछे वाला चुनावी रणनीतिकार, आमसहमति बनाने में सूत्रधार और संकटमोचक के तौर पर जाना जाता था. पार्टी नेताओं का कहना है कि उनकी राजनीतिक कुशाग्रता अद्वितीय थी.

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नई दिल्ली: कांग्रेस के बुजुर्ग और अनुभवी नेता अहमद पटेल का बुधवार तड़के निधन हो गया, उन्हें एक महीने पहले कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया था.

उनके बेटे फैजल पटेल ने सुबह करीब 4:00 बजे एक ट्वीट करके यह जानकारी देते हुए बताया, ‘करीब एक माह पहले जांच में कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद कई अंगों के काम करना बंद कर देने की वजह से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया था.’

कांग्रेस के 71 वर्षीय नेता गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल के आईसीयू में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे, जहां उन्हें पिछले हफ्ते तबीयत बिगड़ने के बाद भर्ती कराया गया था.

कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने एक बयान जारी कर उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि उन्होंने ‘एक अद्वितीय कामरेड, एक वफादार सहयोगी और एक दोस्त’ खो दिया है. पटेल पूर्व में गांधी के राजनीतिक सचिव के रूप में कार्य कर चुके हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उन्हें ‘कांग्रेस पार्टी का स्तंभ’ और ‘अनमोल संपत्ति’ बताया. राहुल गांधी ने लिखा, ‘उन्होंने अपना सर्वस्व कांग्रेस को समर्पित कर दिया था और हर मुश्किल समय में पार्टी के साथ खड़े रहे.’

मुख्य रणनीतिकार, चुनावों के माहिर

गुजरात के भरूच में जन्मे पटेल ने 1976 में क्षेत्र के स्थानीय निकाय चुनाव लड़कर अपने करियर की शुरुआत की थी. तब से राजनीति की राह पर लगातार आगे बढ़ते रहे. वह गुजरात से तीन बार लोकसभा के सदस्य और पांच बार राज्यसभा सांसद रहे.

1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पटेल को पार्टी के संसदीय सचिव के रूप में एक अहम जिम्मेदारी निभाने के लिए चुना.

2017 में एक रोमांचक चुनावी मुकाबले में भाजपा की तमाम कवायदों को नाकाम करके अपनी राज्यसभा सीट बचा लेने को पटेल की राजनीतिक कुशलता, कुशाग्र बुद्धि और धैर्य के उदाहरण के तौर पर उद्धृत किया जाता है.

एक संकट मोचक होने के अलावा पटेल किसी भी बड़े चुनाव में मुख्य पार्टी रणनीतिकार होते थे.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘वह एक साथ कई भूमिकाएं निभाते थे. वह पूर्व में कई राज्यों में गठबंधन के लिए आमसहमति बनाने के सूत्रधार रहे. वह ऐसे नेता थे, जो जमीनी हकीकत से पूरी तरह वाकिफ होते थे इसलिए सीट-बंटवारे, टिकट वितरण से लेकर सबको बेहतर ढंग से कैसे समायोजित करना है, इस बारे में बहुत अच्छी तरह जानते थे.’

नाम न छापने की शर्त पर उक्त नेता ने जोड़ा. ‘इसलिए, अगर कोई पार्टी का टिकट न मिलने से नाखुश है तो उन्हें पता होता था कि उसे कहां दूसरी जगह समायोजित किया जाए. यह चुनाव पूर्व और बाद दोनों ही परिदृश्यों में समायोजन बैठाने के लिए एक बड़ा गुण है.’

कांग्रेस को 2021 में पांच राज्यों बंगाल, असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों को लेकर अहमद पटेल की कमी बहुत ज्यादा खलेगी, जहां पर पार्टी की चुनावी रणनीतियों को अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है.


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सोनिया और राहुल के बाद ‘सबसे शक्तिशाली’

अपने लगभग पांच दशकों के शानदार राजनीतिक करियर में पटेल कई मौकों पर कांग्रेस के लिए वन मैन आर्मी साबित हुए थे और उन्होंने निर्विवाद रूप से पार्टी के संकट मोचक का दर्जा हासिल किया था.

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) शासनकाल में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव के रूप में कार्य करने वाले पटेल बाद में भी उनके सबसे करीबी नेता बने रहे और उन्हें सोनिया गांधी का दाहिना हाथ माना जाता था.

हाल ही में पटेल ने राजस्थान में सचिन पायलट और 19 अन्य कांग्रेस विधायकों की बगावत से उपजा संकट हल करने में अहम भूमिका निभाई थी. इस बगावत ने राज्य में अशोक गहलोत सरकार को संकट में डाल दिया था.

माना जाता है कि पटेल ने बगावती विधायकों से मुलाकात की, और न केवल पायलट की शिकायतों को दूर किया, बल्कि उनके और गहलोत के बीच मध्यस्थ के रूप में भी काम किया.

राजस्थान कांग्रेस के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब वह किसी असंतुष्ट नेता के साथ बैठते थे, और उसे आश्वासन देते थे तो उसके लिए उन्हें ना कहना मुश्किल होता था. सोनिया जी और राहुल जी के बाद वही निस्संदेह पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली नेता थे.’

पिछले साल, राज्यसभा सांसद पटेल ने ही महाराष्ट्र में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और शिवसेना के बीच गठबंधन की राह प्रशस्त की थी. यह गठबंधन भाजपा को सत्ता से बाहर रखने में सफल रहा जबकि वह चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी.

पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, ‘इसने उनकी दृढ़ता और कोई भी फैसला लेने की क्षमता को उजागर किया था. गठबंधन में हमारी पार्टी की भूमिका सीमित होने के बावजूद यह भाजपा को रोकने के लिए जरूरी था और इसी बात को उन्होंने (पटेल) अहमियत दी.’

पिछले एक पखवाड़े से सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक न होने और फिर पटेल के अस्पताल में भर्ती होने से पार्टी की निर्णय क्षमता में कुछ गतिरोध दिखाई दे रहा है.

कांग्रेस के एक तीसरे नेता ने कहा कि उदाहरण के तौर पर सक्रिय नेतृत्व की मांग को लेकर पार्टी के 23 नेताओं की तरफ से पत्र लिखे जाने के बाद सितंबर में सोनिया गांधी द्वारा गठित छह सदस्यीय ‘विशेष समिति’ ने बिहार चुनाव के नतीजों पर चर्चा के लिए इस महीने एक बैठक की लेकिन यह किसी भी ठोस निष्कर्ष या निर्णय पर नहीं पहुंच सकी.

पटेल इस समिति के एक प्रमुख सदस्य थे, जिसे फैसले लेने में सोनिया की सहायता के लिए गठित किया गया था.

पटेल अस्पताल में भर्ती थे जबकि सोनिया गांधी दिल्ली के प्रदूषण से बचने के लिए अपने पुत्र राहुल गांधी के साथ कुछ समय के लिए गोवा चली गईं. उनकी अनुपस्थिति में मध्यस्थ या निर्णायक की भूमिका निभाने के लिए यहां कोई नहीं था.

अब पटेल के निधन से यह रिक्तता और ज्यादा बढ़ जाएगी.

‘ऐसा कोई मसला नहीं जो उनके घर पर हल न हो पाए’

पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि जब कभी सर्वसम्मति कायम की बात आती थी तो पटेल निर्णायक भूमिका निभाते थे, इस समय कांग्रेस के लिए उनकी ऐसी ही भूमिका की बेहद जरूरत थी क्योंकि पार्टी बिहार विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन को लेकर अंदरूनी असंतोष से जूझ रही है.

ऊपर उद्धृत एआईसीसी नेता ने कहा, ‘वह अपने आप में शिकायत निपटारे वाला फोरम और आकांक्षाएं पूरी करने वाला मंच थे. ब्लॉक अध्यक्ष से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक सभी अच्छी तरह वाकिफ थे कि अगर कोई व्यक्ति उनकी शिकायतें या समस्याएं दूर कर सकता है तो वह केवल पटेल हैं.’

उक्त नेता ने कहा कि पटेल ने ‘विभिन्न गुटों की एकजुटता’ में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने कहा, ‘ऐसा कोई झगड़ा नहीं था जिसे उनके घर पर हल न किया जा सकता हो.’


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कोषाध्यक्ष के रूप में भूमिका

1996 से 2000 तक कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे पटेल ने 2018 में फिर यह भूमिका संभाल ली थी जब पार्टी का बही-खाता थोड़ा डांवाडोल होने लगा था.

उन्हें पार्टी कोष में धन जोड़ने में मदद करने के अलावा पार्टी की कैडर क्षमता बढ़ाने के लिए व्यवस्थित तरीके से राष्ट्रव्यापी सदस्यता अभियान चलाने का श्रेय भी दिया जाता है.

पार्टी सूत्रों ने कहा कि सदस्यता अभियान चलाने और पार्टी कोष मजबूत करने की कोशिश के अलावा पटेल पार्टी सदस्यों और शीर्ष नेतृत्व के बीच बैठकों जैसे रोजमर्रा के कामों में भी अहम भूमिका निभाते थे.

नाम न देने की शर्त पर एक चौथे नेता ने कहा, ‘सोनिया जी और राहुल जी बहुत आसानी से सुलभ नहीं हैं. ऐसे में एक वही (पटेल) थे जिनके जरिये किसी आपात स्थिति में उनसे मिल पाने की कुछ संभावना रहती थी.’

नेता ने आगे कहा कि पटेल ही वह व्यक्ति थे जो तय करते थे कि पार्टी की विभिन्न बैठकों में किस-किसको आमंत्रित किया जाना है और उनकी क्या भूमिका होगी. उन्होंने कहा, ‘पार्टी के अंदर और बाहर उनका नेटवर्क बहुत ही शानदार था, इसलिए कोई भी इस कमी को पूरा नहीं कर पाएगा.’

केंद्र में यूपीए सरकार के किसी भी कार्यकाल में मंत्री पद नहीं रहने के बावजूद पार्टी में पटेल की ताकत असीमित थी. उन्होंने अपनी छवि मीडिया की निगाहों से बचकर—जहां तक संभव हो तमाम सवाल-जवाब टालकर एकदम लो-प्रोफाइल रखने की ही कोशिश की.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान गुजरात स्थित स्टर्लिंग ग्रुप से जुड़े कथित धन शोधन और बैंक धोखाधड़ी के मामलों को लेकर जरूर प्रवर्तन निदेशालय कई बार पटेल से पूछताछ की थी.

हालांकि, पटेल ने इन सभी आरोपों को ‘राजनीतिक बदले से प्रेरित’ बताकर खारिज कर दिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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