नई दिल्ली: इस माह के शुरू में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार के बाद वरिष्ठ नेताओं के तथाकथित जी-23 समूह की तरफ से नेतृत्व छोड़ने या पार्टी में सुधार के दबाव के बीच अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अधिक सक्रिय भूमिका में नजर आने लगी है. उन्होंने संसद के अंदर और बाहर पार्टी की तरफ से मोर्चा संभाल लिया है.
पिछले दो सालों से सोनिया उतनी सक्रिय नहीं दिखाई देती रही हैं जितनी 1998 में कांग्रेस की कमान संभालने के दौरान थीं या फिर जब 2004 और 2009 में उन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को जीत में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने इस बार चुनाव प्रचार के नाम पर सिर्फ यूपी में एक वर्चुअल रैली को संबोधित किया. लेकिन अब वह अधिक मुखर भूमिका निभा रही हैं, जी-23 नेताओं के साथ बातचीत कर रही हैं और चुनावी हार पर पार्टी के पोस्टमार्टम का भी प्रभार संभाल रखा है.
वह लोकसभा में भी अधिक सक्रिय दिख रही हैं, ईंधन की बढ़ती कीमतों के खिलाफ विपक्ष के विरोध का नेतृत्व कर रही हैं और उन्होंने कोविड महामारी से प्रभावित बच्चों की पोषण संबंधी जरूरतों के मुद्दे को भी जोरदारी से उठाया है.
ये बदलाव जी-23 की आलोचनाओं के बाद आया है, जिसने ‘सामूहिक और समावेशी नेतृत्व’ की मांग उठाई थी. इस समूह के एक सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने चुनावी हार के बाद गांधी परिवार से ‘स्वेच्छा से दूर चले जाने’ का आह्वान किया था और किसी भी आधिकारिक पद पर न होने के बावजूद राहुल गांधी की तरफ से ही पार्टी का नेतृत्व संभाले जाने की आलोचना की थी.
गौरतलब है कि राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था, जिसके बाद सोनिया गांधी ने एक बार फिर अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की कमान संभाली थी.
विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद इस महीने के शुरू में बुलाई गई एक बैठक में कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी)—जो पार्टी संबंधी निर्णय लेने वाली शीर्ष इकाई है और जिसके सदस्यों को सोनिया ने नामित किया था—ने उनके तब तक अंतरिम अध्यक्ष बने रहने पर अपनी मुहर लगाई जब तक कि काफी समय से लंबित पार्टी अध्यक्ष का चुनाव सितंबर 2022 में हो नहीं जाता.
सीडब्ल्यूसी प्रस्ताव में कहा गया है, ‘सीडब्ल्यूसी सर्वसम्मति से श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में अपना भरोसा जताती है और कांग्रेस अध्यक्ष से अनुरोध करती हैं कि वे आगे आकर नेतृत्व संभालें, संगठनात्मक कमजोरियां दूर करें, राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक और व्यापक संगठनात्मक बदलाव करें.’
सीडब्ल्यूसी की बैठक के बारे में रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी और चार अन्य राज्यों में राहुल गांधी ने कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व किया था, लेकिन बैठक में वह सोनिया ही थीं जिन्होंने परिवार को लेकर बात की. उन्होंने सीडब्ल्यूसी सदस्यों से कहा कि अगर उन्हें लगता है कि चुनाव परिणामों के लिए उन्हें और उनके बच्चों को दोषी ठहराया जाएगा, तो वे पीछे हटने को तैयार हैं.
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‘2022 की सोनिया 1998 या 2004 की सोनिया जैसी नहीं’
हालांकि, 75 वर्षीय सोनिया नए जोश से पूरी सक्रियता के साथ मोर्चा संभालती नजर आ रही हैं, लेकिन पार्टी के भीतर इस बात को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं कि क्या वह अभी भी इस भूमिका के लिए फिट हैं.
नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बातचीत में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पार्टी के भीतर, हर पीढ़ी के नेताओं के बीच उनकी स्वीकार्यता है. वहीं, जब कांग्रेस अन्य विपक्षी दलों से बात करती है तब भी वही पार्टी का सबसे विश्वसनीय चेहरा होती हैं.’
नेता ने आगे कहा कि हालांकि, ‘समस्या यह है कि 2022 की सोनिया गांधी 2004 या 1998 की सोनिया गांधी जैसी नहीं हैं. लेकिन लोग उनसे यही उम्मीद करते हैं कि वे वैसी ही हों. मुझे नहीं पता कि क्या अब वह वही भूमिका निभा सकती हैं, क्या उनकी राजनीतिक क्षमता उतनी ही है जितनी पहले थी.’
दूसरे नेताओं ने कहा कि जाहिर है कि नेतृत्व के बारे में सवाल पूछे जाएंगे और परिवार के वर्चस्व पर सवाल उठेंगे, लेकिन वास्तव में यह पार्टी की निर्णय लेने की प्रक्रिया है जो समस्याओं की वजह बन रही है.
पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, ‘हम इतनी बड़ी पार्टी हैं कि छोटे से छोटा निर्णय लेने में भी कम से कम दो दिन लगा देते हैं और अब भी वैसे ही काम करते हैं जैसा कुछ दशक पहले करते थे. और हमें मुकाबला ऐसे लोगों से करना है जो अधिक सक्रिय हैं और पूर्णकालिक राजनेता हैं.’
नेता ने कहा, ‘जब तक हम खुद को नहीं बदलेंगे तब तक वास्तव में इसका चुनाव नतीजों पर कोई असर नजर नहीं आने वाला है. कभी शून्यता के लिए जगह नहीं रहती है. अगर हम नहीं बदलते हैं, तो कोई और हमारी जगह ले लेगा, जैसा आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब में किया है.’
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