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Thursday, 19 December, 2024
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‘तनखैया’ घोषित किए जाने के बाद, बादल के अकाली दल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के क्या हैं मायने

2008 से दो बार अकाली दल के अध्यक्ष चुने गए सुखबीर बादल को अगस्त में अकाल तख्त ने ‘तनखैया’ घोषित कर दिया. शिरोमणि अकाली दल के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इस्तीफा एक पूर्व-निवारक उपाय है.

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चंडीगढ़: अपनी पार्टी के भीतर से महीनों तक आलोचना झेलने के बाद, सुखबीर सिंह बादल ने शनिवार को शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, ताकि अपने उत्तराधिकारी के चुनाव का रास्ता साफ हो सके.

पार्टी के महासचिव डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने एक्स पर एक पोस्ट में इसकी पुष्टि की. उन्होंने कहा कि 18 नवंबर को पार्टी की एक आपातकालीन बैठक के दौरान बादल के इस्तीफे पर विचार किया जाएगा.

अकाली दल के उच्च पदस्थ सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि बादल का इस्तीफा एक पूर्व-निवारक उपाय के रूप में आया है, ताकि जब भी अकाल तख्त की ओर से सजा की घोषणा की जाए, तो वे उसे “विनम्रतापूर्वक” स्वीकार कर सकें.

सूत्रों ने कहा, हालांकि, पार्टी के अधिकांश लोग बादल के साथ हैं, लेकिन यह महसूस किया गया कि इस समय अध्यक्ष पद से हटना बादल को हटाने की मांग करने वाले असंतोष की आवाज़ों को दबाने के लिए एक रणनीतिक कदम होगा. सूत्रों ने कहा कि एक बार जब बादल अकाल तख्त द्वारा दी गई अपनी सज़ा पूरी कर लेंगे, तो उन्हें फिर से पार्टी प्रमुख के रूप में नियुक्त किया जाएगा.

30 अगस्त को बादल को सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त द्वारा ‘तनखैया’ (धार्मिक कदाचार का दोषी, पापी) घोषित किया गया था.

पार्टी के भीतर असंतुष्टों के एक समूह की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए अकाल तख्त ने बादल को ऐसे फैसले लेने का दोषी पाया, जिससे “सिख समुदाय की छवि को भारी नुकसान पहुंचा, शिरोमणि अकाली दल की स्थिति खराब हुई और सिख हितों को नुकसान पहुंचा.”

अकाल तख्त ने कहा कि बादल ने ये फैसले पंजाब के उपमुख्यमंत्री और अकाली दल के प्रमुख के तौर पर लिए थे.

बादल 2009 से 2017 तक उपमुख्यमंत्री रहे और 2008 से पार्टी के अध्यक्ष हैं.

अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुवीर सिंह ने बादल को तनखैया घोषित करते हुए उनसे कहा था कि वे “गुरु ग्रंथ साहिब, पांच महापुरोहितों और सिख समुदाय की मौजूदगी में एक विनम्र सिख” की तरह अपने “पापों का प्रायश्चित” करें, अन्यथा वे सिख धर्म के पापी बने रहेंगे.

इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बादल ने कहा था कि उन्होंने फैसले को स्वीकार कर लिया है और वे अपना तनखा स्वीकार करने और अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए खुद को पेश करेंगे.

अब सभी की निगाहें अकाल तख्त के जत्थेदार पर टिकी हैं, जिन्हें आगे क्या होगा, इस बारे में अंतिम फैसला लेना है. ज्ञानी रघुवीर सिंह और सिखों के चार अन्य उच्च पुरोहितों (चार तख्तों या सत्ता के आसनों के प्रमुख) ने अभी तक बादल के लिए सज़ा की घोषणा नहीं की है.

सूत्रों ने बताया कि सज़ा के तौर पर जत्थेदार बादल को कुछ समय के लिए पार्टी पर नियंत्रण हासिल करने से रोक सकते हैं.

अकाली दल के अध्यक्ष, पदाधिकारियों और कार्यसमिति के लिए चुनाव 14 दिसंबर को होने हैं, जब मौजूदा नेतृत्व का पांच साल का कार्यकाल समाप्त हो रहा है.

अकाल तख्त से बादल के लिए सज़ा की घोषणा करने की उम्मीद थी, ताकि वह अपने पापों का प्रायश्चित कर सकें और तनखैया का टैग हटवा सकें. हालांकि, दो महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद अभी तक इसकी घोषणा नहीं की गई है.

बुधवार को बादल अकाल तख्त के समक्ष पेश हुए थे और सचिवालय को अपने मामले में तेजी लाने के लिए अनुरोध सौंपा था.

अकाली दल और अकाल तख्त के बीच संबंध अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं.

नवंबर में तख्त दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अकाली नेता विरसा सिंह वल्टोहा द्वारा उन्हें दी गई धमकियों के बाद अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी.

ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने आरोप लगाया था कि वल्टोहा ने उन्हें भाजपा और आरएसएस का “एजेंट” कहा था और उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी.

तख्त दमदमा के जत्थेदार का समर्थन ज्ञानी रघुवीर सिंह ने किया था, जिन्होंने कहा था कि उन्हें भी वल्टोहा ने धमकाया था.

अकाल तख्त के जत्थेदार ने अकाली दल को वल्टोहा को तुरंत पार्टी से हटाने का आदेश दिया था, जिसका पार्टी ने वल्टोहा की पार्टी की सदस्यता 10 साल के लिए रद्द करके पालन किया.

हालांकि, वल्टोहा ने कहा कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह लगातार भाजपा नेताओं के साथ मेलजोल बढ़ा रहे थे, जो सिखों के धार्मिक मामलों और संस्थाओं में हस्तक्षेप कर रहे थे.


यह भी पढ़ें: सिख हितों को नुकसान पहुंचाने के आरोप में अकाल तख्त ने सुखबीर बादल को घोषित किया ‘तनखैया’, मांगनी होगी माफी


‘पार्टी को शून्य से फिर ज़िंदा करने की ज़रूरत’

तन्खैया घोषित होने की पूर्व संध्या पर, बादल ने वरिष्ठ नेता बलविंदर सिंह भुंडर को पार्टी अध्यक्ष का कार्यभार सौंप दिया था.

अकाल तख्त ने पिछले महीने बादल को उनके तन्खैया होने के कारण पंजाब में चार विधानसभा क्षेत्रों के लिए होने वाले आगामी उपचुनावों में लड़ने से रोक दिया था. हालांकि इसने स्पष्ट किया कि पार्टी पर चुनावों में भाग लेने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन भुंडर के नेतृत्व में पार्टी ने उपचुनावों में उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया.

बादल का इस्तीफा शिरोमणि अकाली दल नेतृत्व के भीतर गहराते संकट के मद्देनज़र आया है, जिसमें पार्टी के एक विद्रोही समूह ने मांग की है कि बादल अध्यक्ष पद से हट जाएं और 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद से शिरोमणि अकाली दल के खराब होते चुनावी प्रदर्शन की पूरी जिम्मेदारी लें.

जुलाई में गुरप्रताप सिंह वडाला के नेतृत्व वाले समूह ने अकाली दल में सुधार के लिए “शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर” की शुरुआत की थी. इससे पहले, वडाला ने वरिष्ठ अकाली नेताओं बीबी जागीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा और सुखदेव सिंह ढींडसा के साथ मिलकर बादल के खिलाफ अकाल तख्त को लिखित शिकायत दी थी.

बादल के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए वडाला ने शनिवार को कहा कि अगर बादल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद इस्तीफा दे देते तो पार्टी को उस बदनामी से बचाया जा सकता था जो उसे तब से झेलनी पड़ रही है.

प्रेस को जारी बयान में वडाला ने कहा, “भले ही फैसला देरी से लिया गया हो, लेकिन कम से कम फैसला तो लिया गया है. हम अकाल तख्त के जत्थेदार से समुदाय का नेतृत्व करने और आगे का रास्ता दिखाने की अपील करते हैं.”

उन्होंने कहा, “पार्टी को शून्य से फिर ज़िंदा करने की ज़रूरत है जो यह बन गई है. हम अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुवीर सिंह से अनुरोध करते हैं कि वे यह सुनिश्चित करें कि पार्टी का नेतृत्व ऐसे लोगों द्वारा किया जाए जिनके पास पंथिक ज्ञान और राजनीतिक ज्ञान दोनों हैं ताकि पार्टी को मौजूदा संकट से बाहर निकाला जा सके.”

वडाला ने यह भी कहा कि पार्टी में बड़े राजनीतिक बदलाव चल रहे हैं और ‘शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर’ भविष्य की रणनीति पर चर्चा के लिए जल्द ही एक बैठक बुलाएगी.

सुखबीर का सत्ता में आना

बादल ने 2008 में अकाली दल की बागडोर संभाली थी, जब उनके पिता प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री थे. बड़े बादल ने पार्टी की अध्यक्षता सुखबीर को सौंप दी और खुद मुख्य संरक्षक का पद ले लिया.

सुखबीर बादल तब से दो बार सर्वसम्मति से पार्टी अध्यक्ष चुने जा चुके हैं.

2008 में उनका पार्टी अध्यक्ष चुना जाना पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के लिए हैरानी की बात थी क्योंकि आमतौर पर यह माना जाता था कि सुखबीर जो दो बार सांसद रह चुके हैं, राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जबकि प्रकाश सिंह बादल की जगह उनके भतीजे मनप्रीत सिंह बादल संभालेंगे, जिन्हें राज्य की राजनीति के लिए तैयार किया जा रहा है.

हालांकि, मनप्रीत बादल को 2010 में पार्टी से निकाल दिया गया और उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने से पहले अपना खुद का संगठन (पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब) बनाया और वर्तमान में भाजपा में हैं.

सुखबीर के नेतृत्व के खिलाफ पार्टी के भीतर से विरोध की अन्य आवाज़ें, कम से कम अस्थायी रूप से, तब दब गईं, जब उन्होंने 2012 में पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता में लाने के लिए शानदार जीत दिलाई.

लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद पार्टी बिखर गई और वरिष्ठ नेताओं ने इसका दोष सुखबीर पर मढ़ा. हालांकि, पार्टी 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए एकजुट हुई, लेकिन एक और अपमानजनक चुनावी हार के बाद एकता का प्रदर्शन अल्पकालिक था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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