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Thursday, 19 December, 2024
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केरल, बंगाल में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी के लिए आसान नहीं होगी पार्टी प्रमुख बनने की राह

राहुल गांधी के नेतृत्व पर पिछले साल कांग्रेस के अंदर ही कई लोगों ने सवाल उठाए थे. चुनावी हार उनके पार्टी अध्यक्ष का पद संभालने को लेकर जारी विरोध को और तेज ही करेगी.

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नई दिल्ली: 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार राहुल गांधी के लिए अच्छी नहीं रही है, खासकर ये देखते हुए कि पिछले साल कई बार आंतरिक टकराव की घटनाएं सामने आईं और बड़ी संख्या में पार्टी नेताओं ने उनके नेतृत्व पर सवाल उठाया.

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और सिमट गई है और असम में सीएए विरोधी आंदोलन को पूरी हवा देने के बावजूद वह राज्य में भाजपा को हराने में नाकाम रही है.

तमिलनाडु में पार्टी अपने प्रमुख गठबंधन सहयोगी द्रमुक की मदद से थोड़ी-बहुत सफलता हासिल कर पाई है, जबकि पुडुचेरी में कांग्रेस एआईएनआरसी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से हार गई है.

हालांकि, पार्टी के लिए सबसे बड़ी निराशा केरल में हुई हार है, जहां मतदाताओं ने चार दशक पुरानी परिपाटी ही बदल डाली जिसमें वे बारी-बारी से यूडीएफ और एलडीएफ को सरकार बनाने का मौका देते रहे हैं.

सीएनएन-न्यूज 18 के अनुसार, यूडीएफ ने 41 सीटें हासिल की हैं, जबकि एलडीएफ को 140 सदस्यों वाली विधानसभा में 99 सीटें मिली हैं. इस तरह से राज्य में कांग्रेस के लिए यह ऐतिहासिक हार है.

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने रविवार शाम एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हम मानते हैं कि चुनाव परिणाम हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहे हैं, खासकर असम और केरल में.’

बहरहाल, ये नतीजे सबसे अधिक कांग्रेस के आंतरिक ढांचे को प्रभावित करेंगे— यह राहुल गांधी को और पीछे की ओर धकेलने वाले साबित होंगे.


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केरल और राहुल गांधी

राज्य के पार्टी नेताओं का कहना है कि खासकर केरल की हार पार्टी के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी के तौर पर सामने आएगी क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव वाले अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा ताकत और संसाधन यहीं पर झोंके थे.

राहुल गांधी ने अन्य राज्यों के मुकाबले केरल में चुनाव प्रचार में सबसे अधिक समय बिताया था.

केरल कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘ऐसा इसलिए भी था क्योंकि केरल को एक ऐसे राज्य के तौर पर देखा जा रहा था जिसे हम आसानी से जीत लेंगे. इस तरह के नतीजे मिलने की संभावना बहुत कम थी. केरल के मतदाताओं का रुख आमतौर पर पहले ही पता होता था लेकिन इस बार उन्होंने हमें चौंका दिया.’

लेकिन केरल में जीत की क्षमता के फैक्टर के अलावा ये तथ्य ज्यादा मायने रखता है कि राहुल गांधी वहां से सांसद होने के बावजूद राज्य में जीत नहीं दिला पाए, जो कि पार्टी के लिए अधिक शर्मनाक है.

केरल के वायनाड से सांसद के तौर पर राहुल गांधी ने राज्य में पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया. उन्होंने पिछले कुछ महीनों में यहां कई रैलियां, रोड शो और जनसभाएं कीं. लोगों से बातचीत करते हुए उनके कई वीडियो भी वायरल हुए और काफी हद तक पसंद भी किए गए.

इस सबके बावजूद पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई.

अपना नाम न बताने की शर्त पर एक कांग्रेस नेता ने कहा, ‘निश्चित तौर पर हमने पिनराई विजयन की लोकप्रियता को नजरअंदाज किया. यद्यपि कांग्रेस पहले भी कभी चुनावों से पहले मुख्यमंत्री का कोई चेहरा घोषित नहीं करती रही है, लेकिन इस बार शायद सीएम चेहरे की घोषणा करना मददगार हो सकता था. हमें पहले कभी ऐसा नहीं करना पड़ा और हम आराम से जीत हासिल करते थे लेकिन इस बार स्थितियां एकदम अलग थीं. अब हर कोई संतुष्ट होने के लिए चेहरा देखना चाहता है.’

केरल कांग्रेस के कई धड़ों में बंटे होने की बात किसी से छिपी नहीं है. इसमें से दो खेमे ओमान चांडी कैंप और रमेश चेन्नीथला कैंप दोनों एक-दूसरे को पछाड़ने में लगे थे.

चेन्नीथला और चांडी दोनों ने रविवार शाम को पार्टी की हार को स्वीकार किया और आत्ममंथन की जरूरत पर बल दिया.

चांडी ने कहा, ‘मैं यह नहीं कह रहा कि हम सब कुछ बेहतर ढंग से कर रहे थे. यूडीएफ और कांग्रेस अपनी गलतियों पर मंथन करेंगे और उन्हें सुधारने की कोशिश करेंगे.’


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अन्य राज्यों में भी लगा झटका

अन्य राज्यों में भी पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन संभवत: सीधे तौर पर राहुल गांधी को प्रभावित करेगा और उनके नेतृत्व कौशल पर और अधिक सवाल उठेंगे.

असम में राहुल गांधी और कांग्रेस ने चुनाव से पहले पूरी जोरदारी से सीएए-विरोधी अभियान चलाया था लेकिन पार्टी को इसका कोई फायदा होता नज़र नहीं आया.

बंगाल में राहुल गांधी ने बहुत सक्रियता नहीं दिखाई और काफी बाद में जाकर अप्रैल में एक रैली आयोजित की और बाद में कोविड में तेजी के कारण सभी रैलियों को स्थगित कर दिया.

तमिलनाडु में पार्टी ने अपेक्षित जीत हासिल की लेकिन वह भी सिर्फ द्रमुक गठबंधन के जूनियर सहयोगी के तौर पर.


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पार्टी अध्यक्ष पद के लिए अस्वीकार्यता

पार्टी ने जनवरी में हुई सीडब्ल्यूसी बैठक में अध्यक्ष पद के चुनाव की तिथि जून तक टाल दी थी और इसके लिए विधानसभा चुनावों की तैयारियों को एक कारण बताया था.

हालांकि, पार्टी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इसका सीधा-सा कारण यह था कि चुनावों में मिली जीत राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने की राह को आसान बनाना सुनिश्चित कर देती. लेकिन अब पार्टी की हार के बाद राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के खिलाफ ‘जी-23’ के नेताओं की तरफ से प्रतिरोध बढ़ने की संभावना है.

अपना नाम न देने की शर्त पर इस गुट के एक नेता ने कहा, ‘यह नुकसान तो केवल यही दर्शाता है जिसे हम शुरू से ही रेखांकित करते आए हैं. हमारे पास चुनाव लड़ने की कोई रणनीति नहीं है, हम एकदम आखिरी में काम शुरू करते हैं और जमीनी स्तर पर कोई स्थानीय नेतृत्व भी नहीं होता है.’

कांग्रेस के 23 नेताओं के एक समूह को जी-23 का नाम दिया गया है, जिसने पिछले साल अगस्त में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को पत्र लिखकर एक ‘पूर्णकालिक और प्रभावी नेतृत्व’ देने की मांग की थी— यानि एक ऐसा अध्यक्ष जो जमीनी स्तर पर ‘दिखने वाला’ और ‘सक्रिय’ हो.

जी-23 के एक अन्य नेता ने कहा, ‘यह निश्चित तौर पर राहुल गांधी के लिए एक टेस्ट था जिसमें वह फेल हो गए हैं. यह आगे पार्टी अध्यक्ष पद की उनकी मुहिम को प्रभावित करेगा.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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