नई दिल्ली: झारखंड के दिग्गज हेमंत सोरेन को बरहेट विधानसभा क्षेत्र में चुनौती देने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकप्रिय फुटबॉल प्रेमी गमलियाल हेम्ब्रम को मैदान में उतारा है. यह विधानसभा क्षेत्र सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का गढ़ है. गमलियाल हेम्ब्रम पहले शिक्षक थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे ईसाई धर्म छोड़कर आदिवासी बन गए हैं.
बरहेट में समाज सेवा और फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित करने के लिए मशहूर हेम्ब्रम को स्पष्ट रूप से उनकी जीतने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए नहीं चुना गया है. 2019 में जब उन्होंने आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) के टिकट पर सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़ा था, तो उनकी जमानत जब्त हो गई थी.
मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए भाजपा द्वारा ईसाई से आदिवासी बने व्यक्ति का चयन करना प्रतीकात्मक है, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठन लंबे समय से झारखंड में ईसाई और इस्लाम में “धर्मांतरण के कारण आदिवासियों की संख्या में कमी” के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और उनसे ‘घर वापसी’ या पुनः धर्मांतरण का आह्वान कर रहे हैं.
जबकि आदिवासी खुद को हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं मानते हैं और प्रकृति पूजा करते हैं, फिर भी संघ और अन्य लोग उन्हें उसी तरह से आत्मसात करने या साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं.
33 वर्षीय हेम्ब्रम को भाजपा की वैचारिक संस्था आरएसएस में गहरी जड़ें रखने के लिए जाना जाता है और उन्होंने 2010 से 2019 तक झारखंड में पैरा टीचर के रूप में काम किया. राजनीति से वह पहली बार 2019 में रू-ब-रू हुए, जब उन्होंने अपनी शिक्षक की नौकरी छोड़ दी और सोरेन के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे.
उस साल चुनाव के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए. पार्टी ने सोमवार को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बरहेट निर्वाचन क्षेत्र से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की.
हेम्ब्रम ने शुक्रवार को दिप्रिंट से कहा, “सामाजिक सेवा के प्रति मेरा काम तब शुरू हुआ जब मैंने देखा कि गरीब आदिवासी जाति प्रमाण पत्र पाने के लिए भी गांवों में भटक रहे हैं.” उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने आदिवासियों की समस्याओं को सुलझाने में मदद करके शुरुआत की, लेकिन बरहेट में वे फुटबॉल के कारण जाने गए.
हेम्ब्रम ने हर साल 15 नवंबर को झारखंड स्थापना दिवस पर फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित करने के कारण लोकप्रियता हासिल की, जिसमें उनका दावा है कि विदेशी खिलाड़ी भी भाग लेने आते हैं. इस साल यह टूर्नामेंट 13 से 15 नवंबर तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें 20-35 लाख रुपये की पुरस्कार राशि है.
उन्होंने कहा, “जब मैंने देखा कि छोटे गांवों में युवाओं के पास करने के लिए कुछ नहीं है, तो मैंने उन्हें सशक्त बनाने का फैसला किया और फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू किया. यह अब राज्य में सबसे अधिक मांग वाले आयोजनों में से एक बन गया है और इसमें भाग लेने के लिए विदेशों से खिलाड़ी आते हैं.”
“मैंने जय हिंद क्लब बनाया जो टूर्नामेंट का आयोजन करता है, और इसका एक यूट्यूब चैनल है, जहां गांवों में आदिवासी फुटबॉल के वीडियोज़ बनाते हैं और उन्हें इस आयोजन को लोकप्रिय बनाने और युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए यूट्यूब पर पोस्ट करते हैं. इसमें लगभग 50,000 से 60,000 लोग भाग लेते हैं.”
हेम्ब्रम के एक करीबी ने दिप्रिंट को बताया: “गमालियल अक्सर फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित करने के लिए अपनी ज़मीन बेच देते थे. हालांकि उनके क्लब ने इस आयोजन के लिए पैसे इकट्ठा करने के लिए एक ग्राम समिति बनाई है, लेकिन उसमें अक्सर फंड कम होता था.”
अपने सामाजिक कार्यों के बारे में विस्तार से बताते हुए हेम्ब्रम ने कहा कि कोविड के समय में उन्होंने रक्तदान शिविर आयोजित किए और चावल और दालें बांटकर लोगों की मदद की. उन्होंने खैरवा गांव के एक नाइट स्कूल में 150 बच्चों को पढ़ाया भी.
उन्होंने कहा, “जब मैंने देखा कि एक गांव के गरीब लोग प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मिले चावल को बेचकर सड़क बना रहे हैं, तो मेरे मन में जीवन बदलने की इच्छा जागी. मुख्यमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र होने के बावजूद बरहेट में इतना पिछड़ापन है.”
स्थानीय भाजपा नेता ने कहा कि हेम्ब्रम भाजपा की प्रतीकात्मक राजनीति में फिट बैठते हैं, क्योंकि उन्होंने ईसाई धर्म से घर वापसी की है.
उन्होंने बताया, “पार्टी आदिवासियों की संख्या में कमी का एक नैरेटिव गढ़ रही है, क्योंकि वे ईसाई और इस्लाम धर्म अपना रहे हैं. हेम्ब्रम युवा हैं और युवाओं के बीच उनका प्रभाव है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार साइमन माल्टो को सोरेन के खिलाफ 47,985 वोट मिले थे. इस बार पार्टी को हेम्ब्रम के फुटबॉल कनेक्शन के कारण अधिक वोट मिलने की उम्मीद है.” झारखंड में चुनाव दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को होंगे. नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे.
‘आदिवासियों का धर्मांतरण रोकने में हेम्ब्रम की अहम भूमिका’
जबकि हेम्ब्रम के करीबी लोगों का कहना है कि उनके पूर्वज ईसाई हैं, भाजपा नेताओं का दावा है कि “उन्होंने 2017 में संथाल परगना संभाग के साहिबगंज जिले में सनातन धर्म में घर वापसी की थी.”
भाजपा के साहिबगंज प्रमुख उज्ज्वल मंडल ने दिप्रिंट को बताया, “भाजपा और आरएसएस से जुड़े संगठन घर वापसी का अभियान चला रहे हैं, इसलिए जब हेम्ब्रम ने आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में काम करना शुरू किया, तो उन्होंने घर वापसी की और तब से इस क्षेत्र में आदिवासियों के धर्मांतरण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कई शिविरों का आयोजन किया है और यहां तक कि बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व भी किया है, जो संथाल परगना संभाग में एक बड़ा मुद्दा है.”
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी को बरहेट में सोरेन के खिलाफ खड़े होने के लिए उम्मीदवार चुनना मुश्किल हो रहा था, और हेम्ब्रम को “अंतिम समय में” चुना गया.
नेता ने दिप्रिंट को बताया, “भाजपा की पहली पसंद लुइस मरांडी थीं जिन्होंने दुमका में (2014 में) सोरेन को हराया था, लेकिन उन्हें बरहेट से चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने (पिछले महीने) पार्टी छोड़ दी और जेएमएम में शामिल हो गईं. इसलिए पार्टी को यहां उम्मीदवार मिलना मुश्किल हो रहा था. आखिरी समय में हेम्ब्रम को मैदान में उतारा गया.”
स्थानीय भाजपा नेता जिसका पहले जिक्र किया गया है उन्होंने कहा कि “पार्टी के लाख जोर लगाने के बावजूद, बरहेट की संरचना को देखते हुए, भाजपा की जीत चुनौतीपूर्ण है”. उन्होंने कहा कि निर्वाचन क्षेत्र में आदिवासियों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है और मुस्लिम 15 प्रतिशत हैं.
उन्होंने कहा, “पिछले चुनाव में हमने पहाड़िया (पहाड़ों में रहने वाले संथाल आदिवासी) से वोट पाने की उम्मीद में एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा था, क्योंकि वे भाजपा का समर्थन करते हैं, लेकिन हम जीत नहीं पाए. इस बार, हमें 2019 की तुलना में अधिक वोट मिलने की उम्मीद है, लेकिन जीत के बारे में कुछ नहीं कह सकते.”
बरहेट में सोरेन को हराना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि 1990 से झामुमो ने इस सीट पर कब्जा किया हुआ है, जबकि सोरेन खुद दो बार 2014 और 2019 में जीत चुके हैं.
हेमलाल मुर्मू ने 1990, 1995, 2000 और 2009 में जेएमएम के लिए सीट जीती थी, लेकिन बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए. जब पार्टी ने उन्हें 2014 में सोरेन के खिलाफ मैदान में उतारा, तो मुर्मू को सोरेन के 62,515 के मुकाबले केवल 38,428 वोट मिले.
आरोप-प्रत्यारोप
इस सप्ताह की शुरुआत में जेएमएम ने आरोप लगाया था कि भाजपा सोरेन को शर्मिंदा करने के लिए उनके प्रस्तावक मंडल मुर्मू को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है, जिसके बाद हेम्ब्रम ने अब आरोप लगाया है कि सोरेन के चुनावी हलफनामे में उनकी उम्र और आय के बारे में विसंगति है.
बुधवार को हेम्ब्रम ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई कि सोरेन ने 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए अपने हलफनामे में अपनी उम्र 42 साल बताई थी, लेकिन अब हलफनामे में उन्होंने अपनी उम्र 49 साल बताई है. हेम्ब्रम ने शिकायत में दावा किया है, “पांच साल में किसी व्यक्ति की उम्र सात साल कैसे बढ़ सकती है.” उन्होंने सीएम का नामांकन रद्द करने की मांग की है.
झारखंड भाजपा प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री पर हमला करते हुए कहा: “हेमंत सोरेन पहली बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. आखिर वह इतनी गलत जानकारी क्यों दे रहे हैं, या उनके लोग हलफनामे में दी गई जानकारी की जांच क्यों नहीं कर रहे हैं?”
झामुमो प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने जवाब देते हुए कहा कि भाजपा “चुनाव में गड़बड़ी पैदा करने के लिए चुनाव आयोग का इस्तेमाल करने का बहाना बना रही है, और जनता इसका जवाब देगी”.
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