नई दिल्ली: 2021 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने, एक नए सेस का ऐलान किया- कृषि अवसंरचना और विकास सेस, जिसकी ओडिशा, पश्चिम बंगाल, और छत्तीसगढ़ राज्यों ने तीखी आलोचना की है.
लेकिन सरकार ने स्पष्ट किया कि इससे, वस्तुओं के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी.
सीतारमण ने कहा कि चीज़ों के दाम या तो वही रहेंगे, या उनमें कमी आएगी. ऐसा इसलिए है कि सरकार ने कुछ चीज़ों पर सेस लगाई है, लेकिन साथ ही उन चीज़ों पर, उत्पाद और सीमा शुल्क में कमी कर दी है, ताकि ये सुनिश्चित रहे कि उनकी अंतिम क़ीमतों में कोई बदलाव न हो.
सीतारमण ने कहा कि सेस से होने वाली प्राप्तियों का इस्तेमाल, कृषि इनफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में किया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि इस राशि को, भारत की संचित निधि में शामिल नहीं किया जाएगा.
अनुमान के मुताबिक़ सेस से हर वर्ष, 30,000 करोड़ रुपए अर्जित होने की संभावना है, और इसे वित्त वर्ष 2021-22 से आगे भी बढ़ाया जा सकता है.
लेकिन जिस चीज़ ने तीन राज्यों में चिंता पैदा की है, वो ये है कि जहां करों से उगाही गई राशि, भारत के संचित कोष में भेज दी जाती है, और उसे राज्यों के साथ साझा किया जाता है, जिसके अनुपात की सिफारिश 15वें वित्त आयोग ने की है, लेकिन सेस से मिलने वाली रक़म राज्यों के साथ साझा नहीं की जाती.
सरकार ने सेस से राजस्व जुटाने का, कोई नया रास्ता भी नहीं निकाला है, बल्कि सीमा और उत्पाद शुल्क जैसे कर घटा दिए हैं, जो राज्यों के साथ साझा किए जाते थे.
15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, केंद्रीय करों का 41 प्रतिशत राज्यों के साथ साझा किया जाना है.
एम गोविंद राव, जो 14वें वित्त आयोग के सदस्य रहे हैं, ने कहा ‘रुझान ये रहा है कि उपकर केंद्र द्वारा, अपने राजस्व को सुरक्षित रखने कि लिए लगाया जाता है, और केंद्र के इस राजस्व को राज्यों के साथ साझा न करना, एक तरह से वित्त आयोग की सिफारिशों को बेअसर करना है’.
लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि संविधान इसकी इजाज़त देता है.
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‘संघवाद पर लूट’
ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने केंद्र के इस क़दम की कड़ी आलोचना की है.
ओडिशा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने, एक रिकॉर्ड किए हुए संदेश में कहा, कि सेस लगाकर राजस्व का केंद्रीयकरण करने से, ‘केंद्र और राज्यों का वित्तीय संतुलन कमज़ोर पड़ेगा’.
This is the first budget in post #COVID19 scenario and there are lot of new challenges which this budget is expected to address. The positive points in #Budget2021 include: Focus on capital investment to push growth, reintroduction of developmental financial institution. pic.twitter.com/VOxrTaupsX
— Naveen Patnaik (@Naveen_Odisha) February 1, 2021
उन्होंने इसपर भी ध्यान आकर्षित किया, कि केंद्र से राज्यों को भेजी जा रही राशि, किस तरह तरह कम होती जा रही है, और इसका राज्यों के अपने पूंजिगत ख़र्चों को पूरा करने पर, किस तरह विपरीत असर पड़ता है.
पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने, सेस लगाए जाने का विरोध करते हुए, सीतारमण को पत्र लिखा है.
एक प्रेस ब्रीफिंग में उन्होंने कहा, ‘सेस से अर्जित राशि को आपको राज्यों को नहीं देना पड़ता. 2014 में, जब मौजूदा सरकार सत्ता में आई, तो सेस और सरचार्ज कुल राजस्व का 2.5 प्रतिशत थे. अब ये बढ़कर 16 प्रतिशत हो गए हैं’.
उन्होंने कहा, ‘इसके पीछे एक मंशा है. सेस और सरचार्ज लगाते जाईए, जिससे संघीय ढांचा…कमज़ोर हो जाए’.
मित्रा के सहयोगी और तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद, डेरेक ओब्रायन ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए, और इस क़दम को ‘संघवाद पर लूट’ क़रार देते हुए कहा, कि राज्यों से उनका राजस्व छीन लिया गया है.
What Bengal did yesterday, Centre only talks today:
Budget'21 promise – 625km roads in WB
WB govt. (2018) – New roads of 5111 km, #1 in India. Plus 1165 km (2019). (3/3)— Derek O'Brien | ডেরেক ও'ব্রায়েন (@derekobrienmp) February 1, 2021
इस मामले में दिप्रिंट से बात करते हुए, छत्तीसगढ़ के वाणिज्यिक कर एवं स्वास्थ्य मंत्री, टीएस सिंह देव ने कहा, ‘राज्य स्पष्ट रूप से घाटे में हैं, चूंकि कर राजस्व के केंद्रीय पूल से, राज्यों को मिलने वाली राशि में काफी कमी आएगी, जिससे वो राजस्व के अपने जायज़ हिस्से वंचित हो जाएंगे’.
‘ये एक और उपाय है जिसके ज़रिए, राज्यों से लिया अधिक जाता है, और उन्हें दिया कम जाता है. ये सरकार राज्यों के साथ हमेशा ऐसी तरकीबें चलाती रही है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘ये ऐसा ही है जैसे राज्यों के सालाना बजट के साइज़ को घटा देना. पहले उन्होंने राज्यों के हिस्से को, 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने का दावा किया था, लेकिन वो कभी वास्तविकता में परिवर्तित नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने केंद्र से वित्त-पोषित होने वाली, बहुत सी स्कीमें बंद कर दीं’.
मंत्री ने कहा, ‘अब उन्होंने सिस्टम के साथ फिर वही खेल खेला है, जिसमें हस्तांतरण प्रतिशत को कागज़ पर, 41 प्रतिशत ही रखा गया है, लेकिन उत्पाद शुल्क को घटाकर, और नया कृषि-इनफ्रा सेस लगाकर, केंद्रीय पूल का आकार कम कर दिया है. ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है’.
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उपकर
कृषि अवसंरचना एवं विकास उपकर कपास, सोने और चांदी के डोर बार्स, सेब, शराब, कच्चा खाद्य तेल, कोयला, विशेष फर्टिलाइज़र, मटर, काबुली चना, बंगाल चना, दालों, पेट्रोल और डीज़ल जैसी चीज़ों पर लगाया गया है.
साथ ही, पेट्रोल तथा डीज़ल पर उत्पाद शुल्क, और शराब तथा खाद्य पदार्थों जैसी अन्य वस्तुओं पर सीमा शुल्क में, कटौती कर दी गई है.
ये सेस 1.5 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक, उन वस्तुओं पर लगाया जाएगा, जिनपर सीमा शुल्क लगता है. पेट्रोल और डीज़ल पर लगाया गया सेस क्रमश: 2.5 रुपए प्रति लीटर, और 4 रुपए प्रति लीटर है.
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