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Thursday, 9 May, 2024
होमदेशअर्थजगतचीन पर निर्भरता को घटाने के लिए फार्मा क्षेत्र को बजट में मिली 200% की बूस्टर डोज़

चीन पर निर्भरता को घटाने के लिए फार्मा क्षेत्र को बजट में मिली 200% की बूस्टर डोज़

यद्यपि पिछले वर्ष के आवंटन से तुलना करें तो यह बढ़ोतरी काफी अधिक है, इसके बावजूद यह राशि बहुत कम करीब 124 करोड़ रुपये ही है. फार्मा उद्योग ने इस वृद्धि को ‘मात्र एक औपचारिकता’ करार दिया है.

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नई दिल्ली: दवाओं के विनिर्माण में चीनी कच्चे माल पर निर्भरता घटाने के प्रयास के तहत केंद्रीय बजट में देश में दवा क्षेत्र के विकास के लिए आवंटित बजट में लगभग 200% की बढ़ोत्तरी की है.

यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब विभिन्न देशों में दवाओं के प्रमुख आपूर्तिकर्ता होने की वजह से ‘दुनिया की फार्मेसी’ कहे जाने वाले भारत को पिछले साल फरवरी में चीन में कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण आवश्यक दवाओं की कमी का सामना करना पड़ा था.

सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार, ‘फार्मास्युटिकल उद्योग विकास’ योजना को मजबूती देने के लिए रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत आने वाले फार्मास्यूटिकल्स विभाग के बजट में 200 फीसदी की वृद्धि की गई है जो कि 34.05 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमानों (वर्ष 2020-21 में) के मुकाबले 124.42 करोड़ रुपये किया गया है.

गैर-महामारी वर्ष 2019-2020 में इस योजना के तहत 3.29 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया था, हालांकि, 2020-21 के वित्तीय वर्ष में योजना को मजबूती के लिए 42.05 करोड़ रुपये दिए गए.

योजना के तहत आवंटित राशि का उपयोग विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं में निवेश के लिए किया जाएगा जिसमें महत्वपूर्ण की स्टार्टिंग मैटीरियल (केएसएम), मध्यवर्ती दवाएं और एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट (एपीआई) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं. दवा की गोलियों को तैयार करने के लिए केएसएम, एपीआई और मध्यवर्ती दवाओं जैसे कच्चे माल की जरूरत पड़ती है.

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भारतीय दवा निर्माता अपनी कुल बल्क ड्रग जरूरतों का लगभग 70 प्रतिशत चीन से आयात करते हैं. सरकार ने लोकसभा को बताया था कि वित्त वर्ष 2018-19 में देश के दवा निर्माताओं ने चीन से 2.4 अरब डॉलर मूल्य की बल्ड ड्रग और मध्यवर्ती दवाएं आयात की थीं.

इस आवंटन से स्थानीय स्तर पर चिकित्सा उपकरणों के निर्माण के लिए उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में भी निवेश किया जाएगा.

इसके अलावा, इस योजना में कई सब-स्कीम भी शामिल हैं जैसे फार्मास्युटिकल प्रमोशन डेवलपमेंट स्कीम (पीपीडीएस), क्लस्टर डेवलपमेंट और कॉमन फैसिलिटेशन सेंटर के लिए बल्क ड्रग इंडस्ट्री की सहायता और कॉमन फैसिलिटेशन सेंटर के लिए चिकित्सा उपकरण मुहैया कराना.


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चीन पर ज्यादा निर्भरता दवा सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा

पिछले साल कई विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया था कि चिकित्सकीय आयात के लिए चीन पर निर्भरता ‘देश की दवा सुरक्षा और राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा’ बन सकती है.

फार्मा एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (फॉर्मेक्सिल) के महानिदेशक उदय भास्कर ने पूर्व में दिप्रिंट से कहा था, ‘ये महामारी फार्मा उद्योग के लिए आंखें खोलने वाली है, जो कि एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट और की स्टार्टिंग मैटीरियल (केएसएम) के लिए पूरी तरह से चीन पर निर्भर है.’

फॉर्मेक्सिल वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत काम करने वाला एक निकाय है. 2004 में विदेश व्यापार नीति के प्रावधानों के तहत यह निकाय भारत से दवा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए गठित किया गया था.

हांगकांग स्थित इक्विटी रिसर्च फर्म हायटॉन्ग इंटरनेशनल सिक्योरिटीज ग्रुप ने पिछले साल एक रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई थी कि भारतीय फार्मा उद्योग के चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर होने के कारण भारत में एचआईवी, कैंसर, मिर्गी, मलेरिया और आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक और एंटी-इनफ्लेमेटरी दवाओं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है.

हालांकि, भारत सरकार ने चीनी आपूर्ति फिर से शुरू होने तक कुछ आवश्यक दवाओं के निर्यात पर अंकुश लगाने की घोषणा की थी.

फार्मा उद्योग ‘नाखुश’, आवंटित राशि का ‘कोई मतलब नहीं’ है

इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) और इंडिया ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन सहित फार्मा लॉबी से जुड़े कई अधिकारियों के मुताबिक, इस काम के लिए आवंटित राशि ‘नगण्य’ है.

उद्योग संघ के साथ काम कर रहे फार्मास्युटिकल उद्योग के एक दिग्गज ने कहा, ‘यदि सरकार चीन पर उद्योग की निर्भरता घटाने के प्रति वाकई गंभीर है, तो इसके लिए निवेश लाख करोड़ में करने की जरूरत है न कि सौ करोड़ में. यद्यपि वृद्धि से पता चलता है कि सरकार ने फार्मास्युटिकल उद्योग क्षेत्र में निवेश की जरूरत को समझा है, लेकिन इतनी कम आवंटित राशि का कोई मतलब नहीं है.’

एक अन्य अधिकारी ने भी ऐसी चिंताओं से सहमति जताई. उन्होंने कहा, ‘चीनी आयात पर निर्भरता घटाने या खत्म करने का काम काफी बड़ा है और इसके लिए उसी अनुपात में निवेश की जरूरत है. बजट में आवंटन एक औपचारिकता मात्र है.’

दोनों अधिकारियों ने नाम न छापने का अनुरोध किया और कहा कि वे बजट पर समग्र प्रतिक्रिया के लिए आधिकारिक बयान जारी करेंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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