श्रीनगर: पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) के दो घटक दलों नेशनल कांफ्रेंस और माकपा की पिछले हफ्ते जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा के साथ हुई बैठक के बाद तीन महीने पहले पुराने इस गठबंधन में दरार पड़ने की अटकलें गहरा गई हैं.
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल कराने के उद्देश्य से गठित पीएजीडी सात दलों का गठबंधन है, जिसके सदस्यों में नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), पीपुल्स कांफ्रेंस (पीसी) और माकपा शामिल हैं.
पिछले हफ्ते हुई बैठक 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद कश्मीरी नेताओं की प्रशासक के साथ ऐसी पहली मुलाकात थी.
गठबंधन के दो अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि बैठक ने संबंधित दलों की ओर से केंद्र सरकार को भेजे जाने वाले इस संदेश को कमजोर किया है कि वे 5 अगस्त 2019 से तत्कालीन राज्य में किए गए किसी भी बदलाव को मान्यता नहीं देंगे.
अंदरूनी सूत्रों ने यह आरोप भी लगाया कि पिछले साल के अंत में जम्मू-कश्मीर जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनावों में पीएजीडी के अन्य घटकों की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने और जीतने वाली नेशनल कांफ्रेंस दिल्ली को ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि वही ‘कश्मीर की एकमात्र प्रतिनिधि’ है.
ये मतभेद ऐसे समय सामने आए हैं जब डीडीसी चुनाव के लिए हुए सीट बंटवारे के समझौते को धता बताकर चुनाव मैदान में उतरे कुछ प्रत्याशियों को लेकर गठबंधन में पहले से ही असंतोष की स्थिति है. अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि मैदान में उतरे ऐसे प्रत्याशियों के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न किए जाने ने बात को और बिगाड़ दिया है.
बैठक को लेकर लगाए जा रहे आरोपों को निराधार करार देते हुए नेशनल कांफ्रेंस और माकपा ने कहा है कि एलजी से मुलाकात का मकसद पिछले महीने हुई श्रीनगर मुठभेड़ को लेकर अपनी चिंताओं से अवगत कराने के अलावा डीडीसी चुनावों के बाद होने वाली कथित खरीद-फरोख्त का मुद्दा उठाना था.
उन्होंने कहा कि 5 अगस्त के कदम से जुड़ी योजना को मान्यता देने का सवाल ही नहीं उठता है.
पीडीपी ने बैठक पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया, साथ ही गठबंधन में मतभेदों को यह कहते हुए दरकिनार करने की कोशिश की कि विकास के क्रम में यह सब चलता रहता है. पीडीपी प्रमुख और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को एक ट्वीट में दावा किया कि पीएजीडी एकजुट है.
Amidst all the unnecessary speculation about PAGD, Id like make a few things absolutely clear. The purpose of this grand alliance is not for petty electoral gains. It exists for a much larger cause & purpose i.e to restore J&Ks special status.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) January 11, 2021
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संदेश
घाटी के राजनीतिक दलों ने सिन्हा के साथ-साथ उनके पूर्ववर्ती गिरीश चंद्र मुर्मू के अक्टूबर 2019 में हुए शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया था.
पीडीपी ने मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने वाले अपने राज्य सभा सांसद नजीर अहमद लावे को नवंबर 2019 में निष्कासित भी कर दिया था. यही वजह है कि नेशनल कांफ्रेंस-माकपा के प्रतिनिधिमंडल की 6 जनवरी को एलजी के साथ हुई बैठक ने त्योरियां चढ़ा दी हैं.
प्रतिनिधिमंडल में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के करीबी सहयोगी देवेंद्र सिंह राणा के अलावा पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह सलाथिया, अजय कुमार सधोत्रा और मुश्ताक बुखारी, पूर्व विधायक जावेद राणा और टी.एस. वजीर और वरिष्ठ माकपा नेता एम.वाई. तारिगामी शामिल थे.
जानकारी के मुताबिक इस बैठक ने डीडीसी चुनाव में सीट बंटवारे संबंधी समझौते के उल्लंघन को लेकर असंतोष को और भी बढ़ा दिया है.
उदाहरणस्वरूप वागुरा में पीडीपी की सफीना बेग उम्मीदवार के रूप में उतरीं और पीएजीडी उम्मीदवार, एक नेशनल कांफ्रेंस सदस्य, को हरा दिया. इसी तरह माकपा के एक उम्मीदवार ने नेशनल कांफ्रेंस नेता को हरा दिया, जो बेहबाग निर्वाचन क्षेत्र से पीएजीडी उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे. पीडीपी ने कुलगाम की दो सीटों पर जीत हासिल करने के क्रम में पीएजीडी प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के दो सदस्यों को हराया, वहीं किमोह में पीडीपी कोटे के दावेदार के खिलाफ नेशनल कांफ्रेंस ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
पिछले हफ्ते तीन दलों— नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस और पीडीपी के चार वरिष्ठ नेताओं ने समझौते का उल्लंघन कर चुनाव लड़ने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई न किए जाने को लेकर गठबंधन के नेतृत्व पर सवाल उठाया था. यही नहीं डीडीसी चुनाव में जीते पीएजीडी के घटक दलों के कुछ सदस्यों द्वारा दल बदलने को लेकर भी नाराजगी बढ़ी है और इसकी वजह से ही कथित खरीद-फरोख्त के आरोप लगे हैं.
This explains why our leaders in Shopian district are being put under “preventive arrest” by the police. J&K police & the administration are facilitating horse trading & defections. The woman shown here joining the BJP’s B-team contested & won elections on a NC mandate. pic.twitter.com/JRTKNCEiCc
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) December 25, 2020
गठबंधन के एक अंदरूनी सूत्र के अनुसार, जब भी पीएजीडी की अगली बैठक, जो अभी तय नहीं है, का आयोजन होगा गठबंधन को ‘बचेगा या टूटेगा’ वाली स्थिति का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पिछले दो महीनों में सीट बंटवारे संबंधी मुद्दे को लेकर इसके दूसरे और तीसरे स्तर के नेताओं के बीच मतभेद गहरा गए हैं.
सूत्र ने कहा, ‘यह किसी से छिपा नहीं है कि सीट-बंटवारे के समझौते के दौरान क्षेत्रीय दलों के बीच मतभेद थे. कुछ असहज स्थिति में सहमति तो बन गई थी लेकिन हमने देखा कि कैसे कई जगहों पर गठबंधन घटकों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा.’
एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, ‘कोई भी यही उम्मीद करेगा कि समझौता तोड़ने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो या फिर सुलह के लिए कम से कम कोई बातचीत ही की जाए. लेकिन दोनों में से कुछ नहीं हुआ.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके बजाये गठबंधन के कुछ नेता और आगे जाकर एलजी के साथ मुलाकात कर आए. यह कदम गठबंधन के अन्य घटकों के साथ परामर्श के बिना उठाया गया. कई लोगों का मानना है कि बैठक 5 अगस्त के कदम को स्वीकार्य बनाने की कुछ नेताओं की इच्छा का संकेत है.’
सूत्र ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस ‘अन्य क्षेत्रीय दलों को कमजोर साबित करने और दिल्ली को यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि वही कश्मीर की एकमात्र प्रतिनिधि है.’
गठबंधन के एक अन्य अंदरूनी सूत्र ने कहा कि ‘नेशनल कांफ्रेंस की पैंतरेबाजी’ के कारण गठबंधन डीडीसी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद अपने एकमात्र लक्ष्य— जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली— को हासिल करने की राह पर आगे बढ़ने में नाकाम रहा है.
सूत्र ने कहा, ‘जोर-आजमाइश ने कोई भी संयुक्त रणनीति बन पाने की संभावनाओं को धूमिल कर दिया है.’
साथ ही जोड़ा, ‘हम अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए एक साथ आए हैं लेकिन इसके रोड मैप पर कोई चर्चा नहीं हुई है. सिर्फ अनुच्छेद 370 की मांग करना पर्याप्त नहीं है. इस लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाए, इस पर एक श्वेतपत्र भी होना चाहिए.’
सूत्र के मुताबिक, डीडीसी चुनावों की घोषणा के बाद से गठबंधन ने न केवल सिर्फ एक ‘अनिर्णीत’ बैठक आयोजित की बल्कि डीडीसी प्रमुखों के चुनाव के निरीक्षण के लिए एक समिति बनाने की योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई है.
डीडीसी के 278 निर्वाचित सदस्यों (दो सीटों के लिए नतीजे लंबित हैं) को जम्मू-कश्मीर के 20 जिलों में से प्रत्येक में एक अध्यक्ष का चुनाव करना है. कुल सदस्यों में 110 पीएजीडी के हैं.
सूत्र ने आगे कहा, ‘डीडीसी चुनाव परिणामों के बाद केवल एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें भविष्य की रणनीति पर कोई चर्चा नहीं की गई. बैठक बेनतीजा थी. फिर डीडीसी चेयरपर्सन के चुनाव के लिए समितियों के गठन पर बात होनी थी. लेकिन इस पर भी कुछ नहीं हुआ, इसके बावजूद कि कुल 280 में से 50 सीटों पर जीते निर्दलीयों को साधने की कोशिशें चल रही हैं.
‘नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के चुनाव चिह्न पर जीतने वाले प्रत्याशियों को अन्य राजनीतिक समूहों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है. पीएजीडी कुछ नहीं कर रहा है.’
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‘छोटे-मोटे मुद्दे उभरते रहेंगे’
नेशनल कांफ्रेंस और माकपा ने एलजी के साथ अपनी बैठक को लेकर लगाए जा रहे आरोपों को खारिज कर दिया है. साथ ही यह भी कहा है कि यह गठबंधन के भीतर मतभेदों की कोई वजह नहीं है.
तारिगामी ने कहा, ‘मैं श्रीनगर मुठभेड़ का मुद्दा उठाने के लिए एलजी से मिला था, जिसमें मृतक के परिजनों ने सुरक्षा बलों पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया है. इसी तरह, नेशनल कांफ्रेंस नेताओं की तरफ से तोड़फोड़ और खरीद-फरोख्त का मुद्दा उठाया गया था.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि यह वो मुद्दा है जो पीएजीडी के भीतर विवाद उत्पन्न कर रहा है. महबूबा मुफ्ती जी ने भी एलजी और हसनैन मसूदी (नेशनल कांफ्रेंस) को संबोधित एक पत्र लिखकर पूर्व में मनोज सिन्हा से संपर्क साधा था. मेरा मानना है कि सीट-बंटवारे की व्यवस्था का उल्लंघन एक मुद्दा है. जिस तरह की एकता की हमें उम्मीद थी, वो जमीन पर नहीं दिखती है लेकिन हमें इससे सबक सीखने और आगे बढ़ने की जरूरत है.’
नेशनल कांग्रेस के नेता और अनंतनाग के सांसद जस्टिस हसनैन मसूदी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि डीडीसी चुनावों के बाद खरीद-फरोख्त का मुद्दा उठाने के लिए पार्टी प्रतिनिधिमंडल ने एलजी से मुलाकात की थी.
उन्होंने कहा, ‘कुछ राजनीतिक समूह सभी लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखने में तुले हैं और एलजी सिन्हा के साथ हम इसी पर चर्चा करना चाहते थे. यह किसी भी तरह से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कदम को वैध बनाने का संकेत नहीं है.’
मसूदी ने कहा कि एलजी को मान्यता देने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि क्षेत्रीय दल लगातार इस रुख पर कायम है कि 5 अगस्त 2019 के कदम और उसके बाद के बदलाव अवैध और असंवैधानिक हैं.
हालांकि, उन्होंने कहा कि चूंकि एलजी सिन्हा का कार्यालय ही कानून-व्यवस्था और चुनाव संबंधी मामलों को देख रहा है, ऐसे में वही ‘उपयुक्त व्यक्ति’ थे जिन्हें आम लोगों और राजनीतिक दलों को आशंकाओं से अवगत कराया जा सकता था.
उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि हम एलजी कार्यालय से जुड़ने लगे हैं. सदस्यों की खरीद-फरोख्त और श्रीनगर मुठभेड़ के मुद्दों पर चर्चा की गई थी.
टिप्पणी के लिए संपर्क करने पर पीडीपी और पीपुल्स कांफ्रेंस के नेताओं ने बैठक के मुद्दे पर कुछ कहने से इंकार कर दिया.
वहीं, पीडीपी के वरिष्ठ नेता निजामुद्दीन भट ने दिप्रिंट से कहा कि ‘गठबंधन अपनी शुरुआती अवस्था में है और छोटे-मोटे मुद्दे, जिसमें कुछ सही होंगे और कुछ गैरजरूरी भी होंगे. समय-समय पर उठते रहेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन जो कोई भी इसके उद्देश्य में विश्वास करता है और प्रतिबद्ध है, वह निजी हितों को इसमें आड़े नहीं आने देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि गठबंधन कायम रहे.’
पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता इमरान अंसारी ने पिछले हफ्ते पार्टी प्रमुख सज्जाद लोन को लिखे एक पत्र में इस बैठक पर सवाल उठाए थे, जिसमें उन्होंने पूछा था कि उन्हें एलजी से क्यों नहीं मिलवाया गया जबकि नेशनल कांफ्रेंस का प्रतिनिधिमंडल सिन्हा से मिला था.
अंसारी सहित गठबंधन के विभिन्न नेताओं द्वारा दिए गए बयानों से नई पार्टी बनने की अटकलों को बल मिला है.
हालांकि, अंसारी ने कहा, ‘मैं पीपुल्स कांफ्रेंस के साथ रहा हूं और पीपुल्स कांफ्रेंस के साथ ही रहूंगा. जहां तक सज्जाद लोन को भेजे मेरे पत्र की बात है तो मेरा मानना है कि मेरी पार्टी के प्रमुख इस पर जवाब देने के लिए बेहतर व्यक्ति हैं. मुझे जो कुछ कहना था मैंने अपने पत्र में लिख दिया है.’
लोन ने दिप्रिंट की तरफ से किए गए कॉल और मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.
डीडीसी चुनावों को लेकर पीएजीडी के भीतर मतभेद की अटकलों को दरकिनार करते हुए मसूदी ने कहा कि ‘गठबंधन किसी चुनाव के लिए नहीं बनाया गया था.’
उन्होंने आगे कहा, ‘डीडीसी चुनाव के साथ सब खत्म नहीं हो गया है. डीडीसी चुनाव हम पर थोपा गया था और भाजपा ने यह कहते हुए इसे अनुच्छेद 370 रद्द करने के मुद्दे पर जनमत संग्रह बना दिया कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे का मामला अब खत्म हो गया है.’
मसूदी ने कहा, ‘लोगों ने उन्हें बेबाकी से जवाब दिया. लेकिन यह पूरी रणनीति हम पर चुनाव थोपने और फिर नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज करने, उम्मीदवारों को हिरासत में लेने, उन्हें चुनाव प्रचार से रोकने और अराजकता वाली स्थिति पैदा करने की थी. स्वाभाविक है कि इससे कुछ मुद्दे तो उठेंगे ही. हालांकि, ये बड़े मुद्दे नहीं हैं. नेशनल कांफ्रेंस के साथ पीएजीडी भी मूल उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध है.’
कश्मीर में रहने वाले राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर नूर अहमद बाबा का कहना है कि गठबंधन टूटने के अभी आसार नहीं हैं क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में कोई भी घटक अपने बलबूते पर खड़ा रहने की स्थिति में नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘क्षेत्रीय दलों को अगस्त 2019 के बाद एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना करना पड़ा है और उस स्थिति में अभी कोई बदलाव नहीं हुआ है. गठबंधन में हर किसी के अपने व्यक्तिगत हित या मजबूरियां हैं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर वे अपने ऊपर हमले झेलने में सक्षम नहीं हैं. कुछ अपवाद हो सकते हैं जो इसे छोड़ देंगे लेकिन मुझे लगता है कि कुल मिलाकर गठबंधन फिलहाल तो एकजुट ही रहेगा.’
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