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Friday, 19 April, 2024
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UP में भारी जीत के बाद योगी आदित्यनाथ BJP के बड़े फैसलों में भी अपनी बात मनवाने के लिए दबाव बना सकते हैं

यूपी की जीत अब सीएम योगी को जरूरी तौर पर आगे बढ़ाएगी, जिससे वे न केवल एक मुख्यमंत्री के रूप में बल्कि एक वरिष्ठ बीजेपी नेता के रूप में भी महत्त्वपूर्ण मामलों में अपनी बात रख पाएंगे.

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नई दिल्लीः चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, 262 सीटों पर बढ़त और 41.9 फीसदी वोटों के साथ बीजेपी यूपी में दूसरी बार सरकार बनाने वाली है. लेकिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की इस बार सरकार बनना बीजेपी में मौजूदा पावर डायनमिक्स के लिए भारी पड़ सकता है.

भले ही आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा को पिछली बार की तुलना में कुछ कम बहुमत मिला – साल 2017 में 312 सीटें जीतीं – हो लेकिन 1985 के बाद से यह पहली बार है कि किसी सत्तारूढ़ पार्टी को यूपी में लगातार दूसरा कार्यकाल मिला है और पहली बार यूपी में किसी मुख्यमंत्री को पांच साल का कार्यालय पूरा करने के बाद दोबारा जनादेश मिला है.

इससे योगी को भाजपा में खुद की बात मनवाने के लिए मजबूती मिलेगी.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘अब तक केंद्रीय नेतृत्व पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं.वे ही सभी महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में निर्णय लेते हैं. यूपी चुनाव में भी पीएम मोदी की हनक सभी जगह नजर आई थी. लेकिन यूपी की जीत अब सीएम योगी को जरूरी तौर पर आगे बढ़ाएगी, जिससे वे न केवल एक मुख्यमंत्री के रूप में बल्कि एक वरिष्ठ नेता के रूप में भी महत्त्वपूर्ण मामलों में अपनी बात रख पाएंगे.

माना जाता है कि योगी आदित्यनाथ मुखर हैं. 2017 में चुनाव परिणाम आने के बाद जब सीएम कैंडीडेट को चुनने के लिए भाजपा विधायक लोक भवन में बैठक कर रहे थे, तब उनके समर्थक बाहर आए और आदित्यनाथ के पक्ष में नारे लगाने लगे.

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अन्य भाजपा मुख्यमंत्रियों से उलट, शासन चलाने के लिए केंद्र की ओर देखने के बजाय उन्होंने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा किसी भी हस्तक्षेप की अनुमति दिए बिना अपने प्रशासन को अपने तरीके से चलाया.

उदाहरण के लिए, पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले एक नौकरशाह, एके शर्मा ने यूपी में भाजपा में शामिल होने के लिए समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली, और उम्मीद की जा रही थी कि वे योगी मंत्रिमंडल में शामिल होंगे. हालांकि, मुख्यमंत्री के पास अपना तरीका था और केंद्रीय नेतृत्व के साथ लंबी बातचीत के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल पर भी शर्मा को इससे बाहर रखा था.


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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) लगातार योगी का समर्थन करता रहा है. यह बात जगजाहिर है कि मनोज सिन्हा, जो अब जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल है, 2017 में यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की पसंद थे, लेकिन योगी आदित्यनाथ के पक्ष में आरएसएस ने दखल दिया—जो कि ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी पृष्ठभूमि तो संघ वाली नहीं है, लेकिन जिन्हें कट्टर हिंदुत्ववादी के तौर पर जाना जाता है.

इस चुनाव में भी आरएसएस की तरफ से योगी के लिए दूसरा कार्यकाल सुनिश्चित करने की हरसंभव कोशिशें की जा रही थी.

पार्टी के पदानुक्रम में योगी का कद बढ़ने की दिशा में पहला कदम उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड में शामिल किया जाना हो सकता है, जिसमें अभी तक बतौर सदस्य शामिल एक मात्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं.

भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा, ‘संसदीय बोर्ड सबसे शक्तिशाली इकाई है और सुषमा स्वराज व अरुण जेटली के निधन के बाद इसमें अन्य नेताओं को शामिल किया गया था. योगी आदित्यनाथ को शामिल करने या न करने के पार्टी के फैसले से एक बड़ा संदेश जाएगा.’

उसी नेता ने कहा, ‘अब तक, सीएम योगी को उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रखा गया है. हालांकि, वह एक स्टार प्रचारक रहे हैं, लेकिन उन्हें काफी हद तक पार्टी के केंद्रीय फैसलों से बाहर रखा गया है. बहरहाल, यह जीत भाजपा नेतृत्व को बड़े नीतिगत फैसले लेने में उन्हें भी शामिल करने के लिए बाध्य कर सकती है.’


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