गुरुग्राम: हरियाणा विधानसभा का 15वां मानसून सत्र शुक्रवार से शुरू होगा और इसके साथ ही राज्य विधानसभा के इतिहास में एक अलग तरह की स्थिति दर्ज होगी लगातार तीसरा सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) के.
यह अभूतपूर्व स्थिति कांग्रेस पार्टी में जारी संगठनात्मक उथल-पुथल को दिखाती है, जो अक्टूबर 2024 के चुनावों में अप्रत्याशित हार के बाद से बनी हुई है. यह वही चुनाव थे जिनमें प्री-पोल आकलनों के मुताबिक, कांग्रेस को आराम से जीत मिलनी थी, लेकिन नतीजे इसके उलट आए.
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जिन्हें राज्य में पार्टी का सबसे बड़ा जनाधार वाला नेता और नेता प्रतिपक्ष पद का दावेदार माना जाता है, को पार्टी के भीतर रंदीप सुरजेवाला और कुमारी शैलजा जैसे नेताओं का विरोध झेलना पड़ रहा है. दोनों नेताओं की हाईकमान से नज़दीकियां भी जानी जाती हैं.
एलओपी की नियुक्ति न होने से 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में संस्थागत खालीपन बना हुआ है. यहां कांग्रेस के पास 37 सीटें हैं, जबकि सत्ताधारी भाजपा ने 48 सीटें जीतीं. दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर का फर्क भी बेहद कम रहा, भाजपा को 39.94% और कांग्रेस को 39.09% वोट मिले.
तकनीकी रूप से कांग्रेस के पास एलओपी पद का दावा करने के लिए पर्याप्त संख्या है.
चुनाव के बाद बनी 15वीं विधानसभा का पहला सत्र (शीतकालीन सत्र) 19 से 25 नवंबर 2024 तक चला. इसके बाद 7 से 28 मार्च 2025 तक बजट सत्र हुआ और अब, 22 से 26 अगस्त तक मानसून सत्र होने जा रहा है.
चुनाव के बाद की दुविधा
मोहाली स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर ज्योति मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा कि अक्टूबर 2024 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस दुविधा में फंस गई है. ये नतीजे सभी एग्ज़िट पोल के आकलनों के बिल्कुल उलट आए.
उन्होंने बताया कि प्रमुख सर्वे एजेंसियों ने कांग्रेस की आसान जीत की भविष्यवाणी की थी. कुछ ने तो यह भी कहा था कि पार्टी न सिर्फ अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा पार करेगी, बल्कि 90 सदस्यीय विधानसभा में 55 से 60 सीटें तक ला सकती है, लेकिन नतीजे कांग्रेस के लिए करारी हार साबित हुए और राज्य इकाई बिखर सी गई.
दिप्रिंट से नाम न छापने की शर्त पर बात करते हुए हरियाणा कांग्रेस के एक विधायक ने इशारा किया कि नेता प्रतिपक्ष को लेकर जारी नेतृत्व संकट को गुटबाज़ी और केंद्रीय नेतृत्व की उदासीनता ने और गंभीर बना दिया है.
विधायक ने कहा, “पार्टी राज्य में संगठन खड़ा करने के लिए काफी मेहनत कर रही है, लेकिन इस मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्व वही तत्परता नहीं दिखा रहा.”
यह स्थिति हरियाणा कांग्रेस के लिए तो शर्मनाक है ही, लेकिन खासकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए और भी असहज है. हुड्डा 2019 से 2024 तक नेता प्रतिपक्ष रहे.
पिछले साल दिसंबर में हरियाणा सरकार ने हुड्डा को नोटिस जारी किया था कि वह चंडीगढ़ सेक्टर 7 स्थित अपना सरकारी बंगला खाली करें, लेकिन अब तक उन्होंने और समय मांगते हुए बंगला खाली नहीं किया है.
इंतज़ार का खेल
हरियाणा के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद ने देरी को स्वीकार किया, लेकिन जल्द समाधान की उम्मीद जताई. उन्होंने दिप्रिंट से गुरुवार को कहा, “नेता प्रतिपक्ष के चुनाव की प्रक्रिया जारी है और यह बहुत जल्द पूरी हो जाएगी.”
उन्होंने देरी की जो वजहें गिनाईं, उनसे कांग्रेस के भीतर निर्णय लेने की जटिलताओं पर रोशनी पड़ी.
हरिप्रसाद ने कहा, “राहुलजी (लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी) इस समय बिहार में अपनी यात्रा में व्यस्त हैं. यहां तक कि वेणुगोपालजी (एआईसीसी के संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल) भी उतने ही व्यस्त हैं. मैंने कल (बुधवार) उनसे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वह बहुत व्यस्त होने के कारण संभव नहीं हो पाया. आज फिर प्रयास करूंगा। जैसे ही उन्हें समय मिलेगा, हरियाणा में LoP का मुद्दा तुरंत सुलझा लिया जाएगा.”
दिलचस्प बात यह है कि जब कांग्रेस ने इस साल की शुरुआत में राज्य में संगठन खड़ा करने की प्रक्रिया शुरू की थी, तब यह माना गया था कि LoP का मुद्दा भी उसी समय सुलझ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
कांग्रेस ने लंबे समय से टलते आ रहे संगठनात्मक फेरबदल की शुरुआत की है. राहुल गांधी ने 4 जून को चंडीगढ़ की एक दिवसीय यात्रा के दौरान इस प्रक्रिया का आगाज़ किया.
‘संगठन सृजन अभियान’ के तहत वरिष्ठ नेताओं के साथ हुई बैठकों में गांधी ने गुटबाज़ी पर जीरो टॉलरेंस, मेरिट-आधारित नियुक्तियों और “फलां-फलां से जुड़ा हुआ कार्यकर्ता” बनाने की बजाय विचारधारा-आधारित कार्यकर्ता तैयार करने पर ज़ोर दिया.
हरियाणा कांग्रेस में पिछले 11 साल का सबसे बड़ा फेरबदल हाल ही में उस समय पूरा हुआ जब 32 ज़िला अध्यक्षों की घोषणा की गई. इस कदम को पार्टी के ऐतिहासिक रूप से जाट-आधारित ढांचे से हटकर व्यापक जातीय प्रतिनिधित्व ओबीसी और दलित समुदाय को शामिल करने की कोशिश माना जा रहा है, ताकि भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग का मुकाबला किया जा सके.
फिर भी, नेता प्रतिपक्ष का अहम सवाल अब तक अनसुलझा है.
नेता प्रतिपक्ष का महत्व
विपक्ष के नेता की भूमिका बेहद अहम होती है. विधानसभा की बिज़नेस एडवाइजरी कमेटी की बैठकों में हिस्सा लेने से लेकर सदन में विपक्ष के कामकाज की अगुवाई करना, अन्य विपक्षी दलों से तालमेल बिठाना और सबसे ज़रूरी सत्ता पक्ष के फैसलों और नीतियों की ठीक से जांच करना – इन सबकी जिम्मेदारी विपक्ष के नेता पर होती है.
पहले ज़िक्र किए गए कांग्रेस विधायक ने दिप्रिंट से कहा, “विपक्ष का नेता सिर्फ एक औपचारिक पद नहीं है, बल्कि हमारे संसदीय सिस्टम का अहम हिस्सा है. अगर यह पद खाली रहता है तो विपक्ष की आवाज़ कमजोर हो जाती है और सरकार पर निगरानी कमज़ोर पड़ जाती है.”
विपक्ष के नेता से कुछ नियुक्तियों, जैसे वैधानिक संस्थाओं और आयोगों में होने वाली नियुक्तियों पर भी सलाह ली जाती है. हरियाणा के मामले में, करीब 10 महीने से इस पद के खाली रहने के कारण शासन में विपक्ष की संस्थागत भूमिका को कमज़ोर किया गया है.
मई में जब राज्य सरकार को मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करनी थी, तब सरकार ने कांग्रेस से कहा था कि पार्टी किसी प्रतिनिधि का नाम सुझाए क्योंकि उसके पास LoP नहीं है. उस समय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उदय भान ने इस भूमिका के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम आगे बढ़ाया था.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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