पटना: पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार सरकार द्वारा किए गए बिहार जाति सर्वेक्षण को लोगों को विभाजित करने, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य की मुख्य समस्याओं से उनका ध्यान हटाने की एक चाल बताया है.
कुमार 18 साल से सत्ता में हैं, उन्होंने कहा, “वह अब जनगणना क्यों करा रहे हैं?”
बिहार सरकार द्वारा सर्वेक्षण के निष्कर्ष जारी करने के एक दिन बाद मंगलवार को किशोर ने मीडिया में यह टिप्पणी की, और उसी दिन उनकी जन सुराज पदयात्रा को एक साल पूरा हुआ था.
उन्होंने आगे कहा कि “आपके पास पहले से ही दलितों के आंकड़े हैं. आपने उनके लिए क्या किया? आपके पास पहले से ही मुसलमानों के आंकड़े हैं. आपने उनके लिए क्या किया? बिहार में दलित और मुस्लिम सबसे गरीब हैं.”
किशोर, जिन्हें उनके नाम के शुरुआती अक्षरों ‘पीके’ से भी जाना जाता है, नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व सदस्य हैं, और इसके उपाध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं.
हालांकि, बाद में दोनों के बीच अनबन हो गई और किशोर ने पूरे बिहार में जन सुराज पदयात्रा शुरू की, जिसे राजनीति में उनके उतरने के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है.
किशोर की यात्रा 2 अक्टूबर 2022 को पश्चिम चंपारण जिले के महात्मा गांधी के भितिहरवा आश्रम से शुरू हुई.
पूरी यात्रा के दौरान, उनके भाषणों का विषय विकास के मुद्दे रहे हैं, उस राज्य में पहचान की राजनीति की कोई बात नहीं जहां जाति एक निर्णायक कारक रही है.
हालांकि उन्होंने अपनी योजनाओं के बारे में नहीं बताया है, लेकिन कहा जाता है कि वह बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने लिए एक राजनीतिक क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
पदयात्रा शुरू करने से पहले उन्होंने हर जिले का दौरा किया और सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवाओं, शिक्षकों और समाज के अन्य वर्गों से मुलाकात की.
1 अक्टूबर 2023 को, पीके और उनकी टीम ने अपनी यात्रा के 10वें जिले में प्रवेश किया. बिहार में 38 जिले हैं और पीके को अभी भी 28 जिलों का सफर तय करना है.
जहां राज्य के राजनीतिक दल किशोर की पहुंच की सराहना करते हैं, वहीं उनके प्रशंसक भी हैं.
पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि, जो खुद राजनीति में आने से पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता और पीके की टीम का हिस्सा थे, ने कहा, “उनके बारे में एक बात जिसने मुझे प्रभावित किया है वह यह है कि पीके ने अब तक जाति और सांप्रदायिकता के बारे में बात करने से परहेज किया है.”
उन्होंने कहा, “वह एक किसान की तरह है जो अपने खेत को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है जो रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से नष्ट हो गया है. इसके स्थान पर वह जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं. इसका दीर्घकालिक प्रभाव होता है.”
प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा के आयोजकों का कहना है कि उन्होंने पहले नौ जिलों में लगभग 15,000 कार्यक्रम आयोजित किए.
संदीप कश्यप, किशोर की टीम के प्रमुख सदस्य ने कहा, “कार्यक्रमों में स्थानीय युवाओं से मिलना और युवा क्लबों का गठन करना, रोजगार और राजनीति में सक्रिय भागीदारी के संबंध में युवाओं के साथ अलग-अलग बैठकें करना, मुखिया और ब्लॉक स्तर के जन प्रतिनिधियों के साथ बैठक करना, कई स्थानीय स्कूलों का दौरा करना और बच्चों से बात करना शामिल है.”
कश्यप ने आगे कहा, “वह जिस सड़क पर चलते हैं, वहां रहने वाले पुरुषों और महिलाओं से बात करते हैं, प्रतिदिन लगभग 15 किमी की दूरी तय करते हैं, स्थानीय स्तर पर पेंटिंग, नृत्य और अन्य प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं, और उस स्थान पर स्थानीय निवासियों की एक बैठक आयोजित करते हैं जहां वह रात्रि विश्राम करते हैं.”
कश्यप ने कहा, टीम के पास किशोर के लिए तंबू के तीन सेट हैं. “एक वह जगह है जहां वह रुकते है और दूसरा वह जगह है जहां वह अगली रात रुकते है. तीसरा अगली रात के लिए तैयार किया जाता है.”
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जाति के प्रभाव के कम करने की कोशिश
नीतीश सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी करने के बाद, किशोर ने कहा, “जिन लोगों ने जाति जनगणना (आयोजित) कराई, उन्होंने समाज की भलाई के लिए कुछ नहीं किया.”
पीके ने कहा, ”जाति जनगणना को अंतिम उपाय के रूप में खेला गया है, ताकि समाज के लोगों को जातियों में बांटकर एक बार फिर से चुनावी नैया पार लगाई जा सके.”
किशोर की टीम के सदस्यों के मुताबिक, ऐसा नहीं है कि वह बिहार की राजनीति पर जाति और धर्म के प्रभाव को नहीं पहचानते.
कश्यप ने कहा, “हम समाज के सभी वर्गों से मिलते हैं – यादव लालू [राजद प्रमुख लालू प्रसाद] के लिए वकालत कर रहे हैं, या कुर्मी नीतीश का समर्थन कर रहे हैं, हिंदू भाजपा का समर्थन कर रहे हैं और मुस्लिम कह रहे हैं कि उनके पास INDIA [विपक्ष] गठबंधन का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.”
उन्होंने कहा, “लेकिन मुद्दा यह है कि, अगर कोई उनके बारे में बात करता है, तो वे जातीय सांप्रदायिकता के पक्ष में और अधिक आक्रामक हो जाते हैं. इसके बजाय, पीके पूरी आबादी के सामने आने वाली रोजमर्रा की समस्याओं, शिक्षा, बेरोजगारी, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और अन्य चीजों के बारे में बात करते है. तब लोग अधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं.”
पीके ने एक साल में क्या हासिल किया है
जब पीके ने पिछले साल अपनी यात्रा की घोषणा किया था, तो उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य सुशासन स्थापित करना और एक “सपनों का राज्य” बनाना है जो सभी के मौलिक अधिकारों का सम्मान करता है.
उन्होंने यह तो कहा कि उनका संगठन एक राजनीतिक पार्टी का रूप लेगा, लेकिन उन्होंने कोई समयसीमा नहीं बताई.
यात्रा के एक साल बाद, आयोजकों का दावा है कि पीके ने जिन नौ जिलों की यात्रा की है, उनमें 1 लाख स्वयंसेवक और एक ब्लॉक-स्तरीय नेटवर्क है.
उनके सहयोगियों का कहना है कि पीके पहले ही 1 करोड़ से अधिक लोगों से बातचीत कर चुके है.
बिहार पुलिस के सेवानिवृत्त महानिदेशक राकेश कुमार मिश्रा, जो पीके के करीबी हैं, ने कहा, “बिहार में हमारे पास लगभग 1 लाख स्वयंसेवक हैं और जब भी हम उन्हें बुलाएंगे वे इकट्ठा हो जाएंगे. ऐसा नहीं है कि मीटिंग करने के बाद किसी जगह को भुला दिया जाता है. इसका पालन किया जाता है और हमने इसके लिए प्रत्येक ब्लॉक में समितियां गठित की हैं.”
पीके में शामिल होने वाले 20 पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारियों में से एक मिश्रा ने कहा, “लेकिन फिलहाल चुनाव में भाग लेना टेबल से बाहर है.”
मिश्रा ने कहा कि जन सुराज के लिए इस समय चुनाव प्राथमिकता नहीं है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यात्रा एक सराहनीय पहल है, लेकिन अभी किशोर को चुनावी सफलता मिलेगी इसमें संदेह है.
पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर एन.के. चौधरी ने कहा कि ”जमीनी स्तर पर जाकर लोगों से बातचीत करने के लिए पीके की सराहना करनी होगी.”
“वह सामाजिक जागरूकता पैदा कर रहे हैं. सामाजिक जागरूकता भी राजनीतिक की एक प्रक्रिया है. लेकिन फिलहाल मुझे संदेह है कि तात्कालिक प्रक्रिया में उन्हें चुनावी राजनीति में सफलता मिलेगी, पीके ने महात्मा गांधी के रास्ते का अनुसरण किया है. लेकिन गांधी जी को अपने राजनीतिक उद्देश्य की ओर बढ़ने के लिए जाति और सांप्रदायिकता का सामना नहीं करना पड़ा.”
एक राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में, किशोर ने न केवल भाजपा बल्कि नीतीश के साथ भी काम किया. हालांकि, जद (यू) ने अब किशोर को खारिज कर दिया है.
जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, “पीके ने कहा कि बुनियादी ढांचे, रोजगार सहित अन्य मुद्दों पर नीतीश कुमार के 7 संकल्पों को तैयार करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. अब वह नीतीश की उन्हीं योजनाओं की आलोचना कर रहे हैं.”
“पीके अधिकाधिक अप्रासंगिक होते जा रहे हैं.”
बिहार में पारंपरिक राजनीतिक दलों के लिए पीके की राजनीति एक पहेली बनी हुई है. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, “तीसरे पक्ष की भूमिका बहुत सीमित है. यह या तो आप सत्तारूढ़ दल के साथ हैं या विपक्ष के साथ. दिवंगत किशन पटनायक जब लोकसभा चुनाव लड़ते थे तो भीड़ खींचते थे लेकिन उन्हें वोट नहीं मिलते थे. पीके की तुलना गांधी से करना गलत है क्योंकि पीके की यात्रा में बहुत खर्चा होता है.”
इस बीच, वामपंथी किशोर को भाजपा के चापलूस के रूप में देखते हैं.
बिहार सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के सचिव कुणाल ने कहा, “पीके ज्यादातर नीतीश कुमार और जेडी (यू) के खिलाफ बोलते हैं, वह शायद ही कभी बीजेपी के खिलाफ बोलते हैं और यहां तक कि उनके सामाजिक संदेशों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. विडंबना यह है कि बीजेपी नेता निजी तौर पर कहते हैं कि चूंकि पीके ब्राह्मण हैं, इसलिए वह एनडीए को नुकसान पहुंचाएंगे.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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