scorecardresearch
Saturday, 2 November, 2024
होमराजनीतिकेरल का कन्नूर - राजनीतिक हत्याओं का गढ़: संघ और सीपीएम आमने सामने

केरल का कन्नूर – राजनीतिक हत्याओं का गढ़: संघ और सीपीएम आमने सामने

Text Size:

कन्नूर जिले में वर्ष 2000 से 2016 के बीच 69 राजनीतिक हत्याएं हुईं, जिनमें से 31 लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस)/भाजपा के थे और 30 लोग सीपीआई (एम) के थे.

कन्नूरः मई 2017 में एक सुहावनी रात के अंधेरे में टोयोटा इनोवा गाड़ी के. बीजू की मोटरसाइकिल का एक घंटे तक पीछा करती रही. के. बीजू एक 33 वर्षीय हाउस पेंटर तथा आरएसएस कार्यकर्ता थे. वे अपने एक दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर सवार होकर जा रहे थे तथा अपने साथ होने वाले हादसे से अनजान थे.

वे उत्तरी केरल के कन्नूर जिले के कक्कमपराई गांव में स्थित अपने घर पहुँचने में महज चंद मिनटों की दूरी पर थे कि कार अचानक तेज हो गई और मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी. बीजू नीचे गिर गए. अचानक इनोवा कार का दरवाजा खुला. उसमें से कुछ आदमी निकले और तलवार लेकर उनकी ओर लपके. उन्होंने पहले उनकी पिटाई की और गला रेतकर उनकी हत्या कर दी.

सड़क के किनारे ही बीजू की मौत हो गई.

61 वर्षीय पुरूषोत्तम कुंजनपू, बीजू के पिता, ने अपनी याद्दाश्त पर जोर देते हुए बताया, “जब मुझे बीजू के दोस्त ने उनकी हत्या के बारे में फोन करके बताया तो मैं गांव के मंदिर में दीपक जला रहा था”.

वे तुरंत समझ गए कि लगभग एक साल पहले हुई एक स्थानीय सीपीआई (एम) नेता धनराज की हत्या के मामले में ही बदला लेने के उद्देश्य से उनके बेटे की हत्या की गई है. पुलिस फाइलों में बीजू का नाम, धनराज की हत्या के मामले में ‘आरोपी संख्या 12’ के रूप में सूचीबद्ध था.

जहाँ पर बीजू की हत्या हुई थी, वहाँ से कुछ ही दूरी पर बस अड्डों, ताड़ के पेड़ों, बिजली के खंभों और दीवारों पर अनगिनत पोस्टर लगे हुए थे, उनमें से कुछ पोस्टर अब भी लगे हुए हैं. लाल पोस्टर में छोटे कद वाले और बड़ी-बड़ी मूछों वाले धनराज का चित्र दिखाया गया था, जिसमें वे अपना हाथ हवा में लहरा रहे थे. पोस्टर पर लिखा हुआ था, “मैं उन लोगों को नहीं छोड़ूँगा, जिन्होंने मेरी हत्या की है. मैं पार्टी के लिए मर गया। मेरी मौत पार्टी को शक्ति प्रदान करेगी”.

सीपीआई(मा) लीडर धनराज के पोस्टर

‘तुमने हम में से एक को मारते हो, मैं तुम में से एक को मार दूँगा’

केरल के कन्नूर वाले स्थान पर, जहाँ पर यह हत्या की गई थी, आरएसएस और सीपीआई (एम) दोनों संगठनों के सदस्यों ने ‘जैसे को तैसा’ कहावत को चरितार्थ करते हुए एक के बाद एक हत्याओं की एक श्रंखला बना दी. यहाँ पर 1969 के बाद से 216 पुरुष मारे गए हैं, जिसमें से वर्ष 2000 से 2016 के बीच 69 लोग मारे गए हैं.

कन्नूर में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल लगातार चल रहा है. कन्नूर भी 1984, मुजफ्फरनगर, शाह बानो और मालदा वाली पुरानी सूची में शामिल हो चुका है.

राष्ट्रीय राजधानी में गोमांस और धर्म-विरोधी विवाह के नाम पर शोर मचाने वाले पत्रकार, कन्नूर, जहां सीपीआई (एम) द्वारा आरएसएस के लोगों की हत्यायें हुई हैं, को नजरअंदाज करते हैं और इस पर सवाल पूछने से कतराते हैं. यह अलग बात है कि पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि दोनों समूहों में मृत लोगों की संख्या लगभग बराबर ही है.

लेकिन शायद कन्नूर ही है, जहाँ आरएसएस सबसे अच्छी तरीके से समझ सकता है कि अल्पसंख्यक होना क्या होता है और अपनी ही आस्थाओं के लिए मार दिए जाने का क्या मतलब होता है.

आरएसएस वास्तव में इसका कारण नहीं बता पा रहा है. यहाँ पर जो राजनीतिक युद्ध हुआ वह महज एक असंरचित झगडा नहीं था. 1920 में शिकागो में दो गुटों के बीच हुए रक्तपात में ‘तुमने हम में से एक को मारा है, मैं तुम में से एक को मार दूँगा’ की तरह इसे संरचित, लयबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था.

बीजू, संघ का एक कार्यकर्ता, घर में दीवार पर लटकी तस्वीर

एक हत्या ने प्रतिशोध के एक पूरे चक्र को उत्पन्न किया

आरएसएस के कार्यकर्ता बताते हैं कि धनराज ने अपने क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को अपने नियंत्रण में रखा था. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी संविदा संबंधित कार्य के लिए या बैंक में नौकरी लगवाने के लिए पहले उनकी पार्टी के सदस्यों को चुना जाए. इसके साथ ही आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने आरएसएस से सहानुभूति रखने वालों की भी पहुंच अवरुद्ध किया.

जुलाई 2016 में मोटरसाइकिल सवार लोग धनराज के गांव कुन्नार्यू में सामने के मैदान में घुस गए. वह कुँए के पीछे छिपने के लिए भागा. रात के संन्नाटे में उसकी मदद की गुहार सुनकर उसकी पत्नी और मां ने उसका पीछा किया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पीछा कर रहे लोगों ने उसे पकड़ लिया और उसका गला काट डाला, उसकी छाती चीर डाली और कलाईयों के सहारे उठाकर लटका दिया.

वह अस्पताल ले जाते समय रास्ते में अपनी पत्नी सजनी (35 वर्षीय) का नाम लेते हुए गुजर गए. “यह सीपीआई (एम) का एक गांव है. हमलावर आरएसएस के आदमी थे. उन्होंने हत्याकाँण्ड वाली रात से तीन हफ्ते पहले ही हमारे घर में पत्थरबाजी करके हमारी खिड़कियों को तोड़ दिया था. लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे इस हद तक गिर जाएंगे और इस सब का अंत इस तरह किसी का खून करके होगा”.

बदला लेने के लिए प्रेरित करने वाला उनका पोस्टर उनकी पत्नी को आराम पहुंचाता है और कहती हैं कि यह एक प्रतीक की तरह है कि वे कितने लाकप्रिय थे. उनके बेटे उन्हें इस सब से उबरने की प्रेरणा प्रदान करते हैं.

लेकिन धनराज की हत्या ने प्रतिशोध के एक सिलसिले को प्रारंभ कर दिया। वास्तव में सीपीआई (एम) ने भी उसी रात एक झटका मारा.

सजिनी, धनराज की पत्नी अपने बच्चे के साथ

लोगों के एक समूह ने 54 वर्षीय ऑटो रिक्शा चालक और आरएसएस के ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सी. के. रामचंद्रन को, उनके घर, जो अय्युर गांव के नजदीक था, में एक लोहे की सरिया के माध्यम से मार दिया. उसकी पत्नी रजनी ने विनती की, लेकिन उन लोगों ने उसका मंगलसूत्र छीन लिया और कहा कि अब तुम्हे इसकी जरूरत नहीं है. फिर उसके बाद उसने उन लोगों को तलवारों से अपने पति को मारते हुए देखा. वह मदद के लिए चिल्लाई क्योंकि उसका पति उसकी गोद में लहूलुहान पड़ा हुआ था लेकिन उसकी मदद करने कोई नहीं आया.

“ऐसा लग रहा था कि उस रात सब लोग बहरे हो गए थे”, उसने याद करते हुए बताया.

यह पागलपन यहीं पर ही नहीं समाप्त हुआ.

अगले दिन, आरएसएस कार्यालय जो घटनास्थल के पास ही था और जहां गणवेश संग्रहित किये गए थे, वहां खिड़की तोड़कर एक देशी बम फेंका गया.

दस महीने बाद, बीजू वाली घटना हुई

रजनी, रामचंद्रन की पत्नी, और रजनी के पिता जिन्होंने अपनी आंखों के सामने कत्ल देखा था

दशकों से चली आ रही समान और विपरीत प्रतिक्रियाएं

कन्नूर में हुई राजनीतिक हिंसात्मक हत्या की घटना नई नहीं है और ऐसी कोई घटना नहीं है जिसमें भाजपा और आरएसएस का नाम ना आया हो. यह घटना चक्र लगभग पांच दशक पुराना है और 1980 में यहाँ की तस्वीर में आरएसएस के आने से पहले भी कांग्रेस और सीपीआई (एम) के बीच एक खूनी संघर्ष चल रहा था. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसी अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता भी कभी कभी मार दिए जाते थे.

101reporters.com द्वारा डाली गई एक आरटीआई के तहत पुलिस से यह जानकारी मिली जिसने यह दर्शाया कि सन् 2000 से 2016 के बीच 69 लोगों की हत्या हुई. जिसमें 30 सीपीआई (एम) के सदस्य थे और 31 बीजेपी/आरएसएस के सदस्य थे। कन्नूर में पिछले दस सालों में 23 भाजपा/आरएसएस सदस्य और 19 सीपीआई (एम) के सदस्यों की हत्या की गई. इतना ही नहीं पिछले 3 सालों में छह भाजपा/आरएसएस सदस्य और पांच सीपीआई (एम) के सदस्यों की हत्या की गई. इसके साथ ही वर्ष 2017 भी दो बीजेपी/आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या का गवाह रहा.

2014 से 2017 के बीच राजनीतिक हत्यायें

विश्लेषकों का कहना है कि कन्नूर – अपने सम्राज्यविरोधी संघर्षों के साथ, विवादों, खासकर नुक्कड़ के झगड़ों को गैर-लोकतांत्रिक ढंग से सुलझाने की एक प्रमुख प्रवत्ति अपनाता रहा है.

श्रीनारायण कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख और ‘कन्नूर के कट्टरपंथी राजनीति’ नामक पुस्तक के लेखक, टी. ससिधरन कहते हैं, कि “कन्नूर में अलग अलग राजनीतिक प्रभाव के कई विशिष्ट क्षेत्र हैं, जिन्हें पार्टी विलेज (दल विशेष का गाँव) कहा जाता है”.

पार्टी विलेज एक अनोखी ही चीज है. यहां पर विवाह और रोजगार को प्राप्त करने के लिए राजनीतिक निष्ठा एक महत्वपूर्ण साधन है.

ससिधरन कहते हैं, कि कलारिपयात्तु की परंपरा ने लोगों की मानसिकता में ‘बदले की भावना’ की संस्कृति को स्थापित किया है.

‘हत्याओं की बराबरी को बनाए रखना है’

राजनीतिक हत्याएं, विचार- पद्धति या ‘भारत के विचार’ के साथ ज्यादा मेल नहीं खाती है. इनका मूल कारण है दूसरों से बिल्कुल सहमति न बना पाना.

ससिधरन कहते हैं, “ये हमले विचारधारा के बारे में नहीं हैं. वे शारीरिक वर्चस्व, नियंत्रण और प्रभुत्व स्थापित करने और गावों में प्रभुत्व बनाने के बारे में है. “शेष भारत चुनाव सम्बन्धी रक्तपात का साक्षी है, लेकिन यहॉ पर उद्देश्य होता है गावों पर विजय प्राप्त करना.”

कन्नूर में एक वरिष्ठ अधिकारी, जिनका नाम उजागर नहीं किया गया है क्योंकि उन्हें राजनीतिक मामलों पर टिप्पणी करने की अनुमति नहीं है, कहते हैं, कि “किसी भी स्थिति में हत्याओं की बराबरी को बनाए रखना होगा. आमतौर पर, आप बराबर की श्रेणी या स्थिति के किसी व्यक्ति को ही निशाना बनाते हैं”.

और दलबदलुओं को शायद ही कभी क्षमा किया जाता है.

सीपीआई(मा) के झंडे

सीपीआई (एम) से एक सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक और पूर्व नगर निगम के अध्यक्ष के. टी. चंदन मास्टर कहते हैं, “जैसे को तैसा हत्याओं के तरीके संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं. उनके बेटे सुधीर, एक होमोपैथिक चिकित्सक, कोझीकोड के एक अस्पताल में उनके बगल के ही एक बिस्तर पर कई फ्रैक्चर होने के कारण लेटे हुए थे.

पिछले महीने क्रिसमस की रात को, सुधीर अपने मरीजों को उनके घरों में देखने के लिए बाहर निकले थे, जब कुछ लोगों ने उन पर अयलुर गांव में बस स्टॉप के पास लोहे की राड, तलवारों और कुल्हाड़ियों से प्रहार किया.

क्षेत्र में सभी लोग तुरंत समझ गए, कि यह एक सप्ताह पुराने उस हमले का बदला लिया गया था, जब आरएसएस कार्यकर्ताओं को एक गांव में पीटा गया था.

चन्दन मास्टर कहते हैं, “हर हमला किसी दूसरे हमले की प्रतिक्रिया होता है”.

हाल ही के महीनों में चल रही प्रतिक्रियाओं की वजह से ही सुधीर के साथ ये हादसा हुआ था.

कन्नूर में थालास्‍सेरी के सीपीआई (एम) विधायक ए एन शमसीर का कहना है कि ये हमले जान से मार देने के उद्देश्य से नहीं हुए हैं. ऐसी बहुत सी घटनाएँ हैं जब हाथ पैर काटकर लोगों को पूरे जीवन भर के लिए अपाहिज बनाकर छोड़ दिया गया है.

एक पुलिस अधिकारी ने भी इस बात की पुष्टि की है कि आजकल किए जा रहे हमलों में जान से मारने का इरादा नहीं होता है, वे शरीर के निचले हिस्सों पर हमला करते हैं.

45 मिनट या उससे भी कम समय में बदला लेना

बदला लेने के लिए हमलों को एक निश्चित समय के अन्दर अंजाम दिया जाता है. एक आरएसएस नेता का कहना है कि हमें पलटवार के लिए 10 मिनट का समय उचित लगता है.

“जब वे हम पर हमला करते हैं, तब हमें भी शीघ्रता से अपनी प्रतिक्रिया देनी होती है. मुझे 10 मिनट के अन्दर जवाबी कार्यवाही करना ज्यादा पसंद है. यदि आप देरी करते हैं तो अपने दुश्मनों के बीच डर को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है.”

लेकिन जवाबी हमला करने के लिए दस मिनट हमेशा संभव नहीं होते। सीपीआई (एम) के सदस्य ने दावा किया है कि हमला करने में 30 से 45 मिनट तक का समय लगता है.

दोनों पक्षों के ज्यादातर सदस्य व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पेज का इस्तेमाल करते हैं. इन मंचों पर उकसावे वाले संदेशों के माध्यम से हमलों को अंजाम दिया जाता है. इन मामलों से क्रोधित लोग अक्सर इन लोगों को जवाब देने के लिए भड़काउ भाषा का प्रयोग करते हुए अपने संदेश पोस्ट करते हैं. इस तरह की धमकियों और तर्कों के कारण इन लड़ाईयों को और भी अधिक बढावा मिलता है. इसलिए, अब पुलिस ने इन चैट ग्रुप्स पर अपनी घुसपैठ करनी शुरू कर दी है.

एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि “कभी कभी, हमें हमारे मुखबिरों और इन ग्रुप्स के माध्यम से, यह जानने को मिलता है कि अगला निशाना कौन है और हम उसे सचेत करने का प्रयास करते हैं. हम उसे कुछ तरीकों से बचाने और रात में अकेले बाहर न जाने की सलाह देते हैं. हम उन्हें बताते हैं कि हमलावर समूह सक्रिय है”.

कई बार, हमले के बाद, सिर्फ पुलिस का ध्यान भटकाने के लिए आस-पास के इलाकों में विस्फोट किए जाते हैं. यह हमलावरों द्वारा की जाने वाली आम प्रकिया है.

लेकिन पुलिस के लिए सबसे बड़ी समस्या ध्रुवीकरण और राजनीति के सामने “निष्पक्षता” साबित करना है. यह अनिवार्य है कि पुलिस को दोनों समूहों पर समान रूप से कार्यवाही करते हुए देखा जाय.

कभी-कभी लोग पुलिस के पास आते हैं और जांच में देरी करने के लिए जानबूझकर गलती कबूल करते हैं. अदालत में किसी भी मामले को समाप्त होने में नियमित रूप से आठ से दस साल लगते हैं. और कन्नूर में एक पुलिस अधीक्षक का औसत कार्यकाल 8 महीने है.

कन्नूर से आगे बढ़ते हुए

जब तक हिंसा से संबंधित सुर्खियां स्थानीय कागजातों में दफन रहीं, तब तक स्थानीय अधिकारियों के लिए कन्नूर की छवि कोई बड़ी समस्या नहीं थी. लेकिन अब, राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की बढ़ती ताकत के साथ-साथ सोशल मीडिया, दिल्ली-आधारित मीडिया और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय समाचार संगठनों ने भी इस क्षेत्र से जुड़े मामलों को कवर करना शुरू कर दिया है. इसलिए अब कन्नूर राजनीतिक हत्याओं के लिए घृणा का पात्र बन गया है.

कन्नूर में एक पुलिस अधीक्षक शिव विक्रम की शिकायत है कि “कन्नूर जिले में जो हो रहा है वह उससे कहीं बेहतर का हकदार है”. “ इन हत्याओं के अलावा यहाँ और भी बहुत कुछ है जो इस सब से कहीं अलग और बेहतर है.”

जी. शिवा विक्रम, एस पी कन्नूर

फिर उन्होंने कन्नूर की विरासत से संबंधित एक अन्य सूची के बारे में बताया: जिससे यह जानकारी मिली कि, कन्नूर, कई श्रेष्ठ मंदिरों और तेय्यम जैसे त्योहारों का स्थान है, इस जिले में पहली बेकरी 1880 में खोली गई थी, इस क्षेत्र में कॉनर वैयल स्टेडियम है जहाँ अक्सर रणजी ट्रॉफी क्रिकेट मैचों का आयोजन किया जाता है, यह एशिया का सबसे लंबा ड्राइव-थ्रू समुद्र तट है, यहाँ भारतीय नौसेना अकादमी भी स्थित है, इसके अलावा यहाँ अगले छह महीनों में दक्षिणी भारत का सबसे बड़ा हवाई अड्डा बनने जा रहा है, यहाँ का राज्य पर्यटन विभाग कयाकिंग और राफ्टिंग टूर्नामेंट शुरू करने पर काम कर रहा है और इसे भारत का सबसे बड़ा ‘रीडिंग रूम’ (पुस्कालय) कहा जाता है, जिसका घनत्व सबसे अधिक है.

लेकिन अब यहाँ हिंसा के प्रसार की शुरूआत हो गई है. हाल ही के महीनों में यह हिंसा कन्नूर के साथ-साथ तिरुवनंतपुरम और त्रिशूर जैसे क्षेत्रों में भी फैलने लगी है.

बिजली के खंभों के लिए लड़ाई

यहाँ लड़ाई के कई अन्य मुद्दे भी हैं. कई प्रतिद्वंद्वी पार्टी गिरोहों के द्वारा यहाँ की सड़कों पर लगे किसी अन्य पार्टी के झंडों को नियमित रूप से उखाड़ कर फेंक दिया जाता है और विभिन्न तरीकों के माध्यम से तोड़-फोड़ भी की जाती है.

यहाँ एक और मुद्दा भी है जो कि बिजली के खंभों (इलेक्ट्रिक पोल्स) से संबंधित है, जो किसी अन्य राजनीतिक पार्टी के रंग से बिजली के खंभों को पेंट करने और उन पर उस पार्टी के बारे में विवरण लिखने के कारण कई विवादों के घेरे में है. अंतत: अब, पुलिस ने इन खंभों से संबंधित समस्या का कोई नियमित हल निकालने का फैसला किया है. पुलिस ने उन खंभों को काले रंग से रंगने और उन पर “पुलिस” शब्द लिखने का निर्णय लिया है – जनवरी में अभी तक 2,000 खंभों को ठीक करने का दावा किया जा चुका है. लेकिन यह बहुत लम्बे समय तक नहीं चलेगा. क्योंकि विभिन्न पार्टियों ने उन खंभों को फिर से अपने रंग में रंग दिया है. और अब यह मामला बहुत बुरी तरह से आपस में उलझ गया है.

बिजली के खंभे पर आर एस एस का पेंट

अब पुलिस उन लोगों को धारा 153 के तहत पकड़ रही है जो इन खंभों को ‘हिंसा भड़काने’ के उद्देश्य से अपनी पार्टी के रंग में रंगते हैं.

पिछले हफ्ते, आरएसएस के कुछ सदस्यों द्वारा सीपीआई (एम) के पड़ोस में खंभे पर आरएसएस लिखने के बाद तिरुवंतपुरम में दो समूहों के बीच विवाद शुरू हो गया.

“मैं रात में मेहमानों के लिए केक लेने के लिए बाहर गया था. मैंने अपने हाथ में पेंट के डिब्बों को लिए कुछ लोगों को देखा, इसके बाद मैंने उनसे पूछा कि आप हमारे क्षेत्र में क्या कर रहे हो? इतना पूछते ही उन लोगों ने हमें मारना शुरू कर दिया”. यह बयान 25 वर्षीय छात्र और सीपीआई (एम) के सदस्य सुजीत सुरेश ने दिया है, जिसे काफी चोटें आईं हैं इसलिए अब वह अस्पताल में भर्ती है.

आरएसएस का उदय

देश में अगर आरएसएस की बात की जाए तो केरल में इसकी सबसे ज्यादा शाखाएं हैं, लगभग 4,000 से अधिक। इसकी पहुँच सीमित है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की वजह से इसकी संख्या बढ़ती जा रही है.

सीपीआई (एम) का एक छात्र नेता जेरीन जॉय कहता है कि, “आरएसएस हाल के वर्षों में और अधिक साहसी हो गया है, क्योंकि केरल में पहली बार भाजपा के विधायक हैं और केंद्र में उनकी सरकार है”.

आरएसएस के पास दरार डालने के लिए यह राज्य एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक गढ़ है.

अन्नूर के मंड़ल प्रभारी नंदा कुमार रहते हैं कि, कम्युनिस्ट प्रभाव के लगभग आठ दशकों के बाद, हमारा काम यहाँ के लोगों को अपनी हिंदू पहचान के बारे में याद दिलाना है. “यहाँ पर हिंदू अक्सर मंदिरों में नहीं जाते हैं. इससे अलग मुसलमान और ईसाई, मस्जिदों और चर्चों में जाते हैं.”

लेकिन आरएसएस कार्यकर्ता यहाँ पर छुप छुप कर ही रहते हैं. सीपीआई (एम) के वर्चस्व वाले क्षेत्रों के बीच से ड्राइविंग के दौरान अक्सर कारों में छिपकर या सीपीआई (एम) सदस्यों की तेज निगाह से बचकर निकलना पड़ता है, क्योंकि सीपीआई (एम) के सदस्यों का सड़कों पर राज्य है. अंधेरा होने के बाद, आरएसएस के सदस्य अक्सर घबराहट महसूस करने लगते हैं, फुसफुसा कर बात करते हैं और समूह के साथ बाहर निकलते हैं.

थालास्‍सेरी के एक स्थानीय नेता विनोद पी.एम. कहते हैं कि यहाँ कुछ ऐसे लोग हैं, जो हर समय हमारी निगरानी करते हैं। हम केरल में अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं.”

वह कहते हैं कि आरएसएस एक मेलभाव और भाईचारा रखने वाला संगठन है. अगर किसी सदस्य पर तिरुवंतपुरम में हमला होता है तो मेरा दिल थालास्सेरी में दुखता है, यह सिद्धांतवाद से परे है.

विश्लेषकों का मानना है कि कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक समूह – जैसे आरएसएस और सीपीआई (एम) – अक्सर हमेशा इस पर ‘सभी के लिए एक, एक के लिए सभी’ की विचारधारा पर विश्वास करते हैं. संगठन राजनीतिक हिंसा के पीड़ितों के परिवारों की देखभाल भी करते हैं.

तीन महीने पहले, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कन्नूर में हजारों समर्थकों के साथ एक अभियान चलाया था, जिसमें उन्होंने कम्युनिस्टों को ‘लाल आतंकवाद’ के नाम से वर्णित किया था. एक पार्टी समारोह में, उन्होंने मारे गए ऑटो रिक्शा चालक रामचंद्रन की किशोर बेटी को माला पहनाई. उस बेटी ने मंच पर ‘वंदे मातरम्’ गाया और शाह ने उसकी प्रशंसा वीर सिपाही के रूप में की.

भाजपा ने अपनी सत्ता का फायदा उठाते हुए राज्यपाल के पास कन्नूर के हमलों की शिकायतों का मुद्दा गंभीर कर दिया है और केरल उच्च न्यायालय से मामलों की सीबीआई जाँच कराने की माँग की है.

भाजपा के राज्य अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन कहते हैं कि “सीपीआई (एम) केरल में हमारे हालिया विकास को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है, वे हमें समाप्त करना चाहते हैं”. “यदि यह एक वैचारिक युद्ध था, तो हम इसे स्वीकार करेंगे. लेकिन यह अलग है. हम बदला नहीं बल्कि शांति चाहते हैं. लेकिन हत्याओं का रिएक्शन तो होगा. यह कोई रणनीति नहीं है.”

आप इसको पर्दे पर भी देख सकते हैं

लोकप्रिय संस्कृति ने कन्नूर राजनीतिक हिंसा को भी अवशोषित कर लिया है.

हाल ही में, एक मलयालम फिल्म के माध्यम से कन्नूर की हत्याओं को प्रदर्शित किया गया था. बॉलीबुड की मशहूर फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ की तरह – इस फिल्म में दो जानी-दुश्मन राजनीतिक गुटों, केजीपी और केपीएम से जुड़े एक युगल दंपति का चित्रण है. दोनों पक्ष बदले की भावना से हत्याओं में शामिल दिखाए जाते हैं.

फिल्म एक पक्ष के हमले से शुरू और दूसरे पक्ष के हमले के साथ समाप्त होती है. आखिरी दृश्य को छोड़कर कुछ भी नहीं बदला, खून से लथपथ शक्तिहीन एक प्रेमी युगल एक दूसरे का हाथ पकड़कर कर्फ्यू लगी सड़कों पर अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा है.

फिल्म का नाम है ईडा। इसका अर्थ है “यहाँ”.

share & View comments