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शुक्रवार, 30 मई, 2025
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बांग्लादेश में यूनुस की ‘पहले सुधार, फिर चुनाव’ योजना को नहीं मिला समर्थन — अब फैसला ज़रूरी

अवामी लीग पर प्रतिबंध बांग्लादेश में गहरी राजनीतिक अस्थिरता के संकेत देते हैं. हाल में जो घटनाएं घटी हैं उनके कारण बड़ी चिंता यह उभरी है कि अंतरिम सरकार बच पाएगी या नहीं.

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सन 2024 में तथाकथित ‘दूसरे गणतंत्र’ के उदय के ठीक बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया. उनका एजेंडा स्पष्ट था: शेख हसीना की ‘तानाशाह सरकार’ से पीड़ित लोगों को इंसाफ दिलाना; नागरिक प्रशासन को दुरुस्त करना, भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को मजबूत करना; और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव करवाना.

यूनुस के जबकि सुधार लागू किए जा रहे हैं, उन्होंने अवामी लीग पर जो प्रतिबंध लगाया वह बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी जैसे विपक्षी दलों के लिए एक बड़ी तथा अहम जीत थी. हसीना के राज में उनकी आवाजों को दबा दिया गया था. कई लोगों को लगता है कि प्रतिबंधों ने शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में आजादी की जंग लड़ने वाली और बांग्लादेश की स्थापना करने वाली अवामी लीग को अंधे मोड़ पर पहुंचा दिया है. लेकिन क्या 2013 में बीएनपी के लिए भी यही नहीं कहा जा रहा था?

सच कहें तो अवामी लीग पर प्रतिबंध बांग्लादेश में गहरी राजनीतिक अस्थिरता के संकेत देते हैं. हाल में जो घटनाएं घटी हैं उनके कारण बड़ी चिंता यह उभरी है कि अंतरिम सरकार बच पाएगी या नहीं.

मौके का फायदा कौन उठाएगा?

बीएनपी आम चुनावों का रास्ता साफ करने वाले सुधारों को तुरंत लागू करने की मांग के साथ देशभर में प्रदर्शन कर रही है. अवामी लीग पर पूर्ण प्रतिबंध लगने के कारण बीएनपी को लंबे समय बाद चुनाव जीतने का मौका मिल सकता है इसलिए वह अधीर हो रही है.

बीएनपी अंतरिम सलाहकार काउंसिल के इन प्रमुख सदस्यों को बरखास्त करने की मांग की है—राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलिलुर रहमान, लोकल गवर्मेंट एडवाइजर आसिफ महमूद साजिब भुइयान, और सूचना सलाहकार महफूज आलम. इन लोगों को आपत्तिजनक बयानों और दलीय झुकावों के कारण हटाए जाने की मांग की जा रही है. रहमान ने यह कहकर विवाद भड़का दिया कि अगर अमेरिका के उनके लंबे प्रवास के कारण उन्हें ’विदेशी नागरिक’ माना जाता है तो ब्रिटेन में रह रहे बीएनपी के देश-निष्कासित नेता तारिक रहमान को भी यही माना जाना चाहिए. इस तुलना ने बीएनपी को भड़का दिया और उसने खलिलुर के इस बयान को “जम्हूरियत की स्थायी सुरक्षा के लिए खतरनाक” बताया और उन्हें तुरंत बरखास्त किए जाने की मांग की.

इसके अलावा, जुलाई 2024 में छात्रों के विरोध प्रदर्शनों में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भुइयान और आलम पर नई पार्टी नेशनल सिटिजंस पार्टी (एनसीपी) के साथ मेलजोल बढ़ाने और अंतरिम सरकार में तटस्थ भूमिका निभाने की जगह दलीय एजेंटों वाली भूमिका निभाने के आरोप लगाए गए हैं. इन सबके कारण मौजूदा प्रशासन के खिलाफ तेज विरोध उभरा है और यह सब मुहम्मद यूनुस के लिए शायद सबसे असुविधाजनक स्थिति पैदा कर रहा है, जबकि माना जा रहा था कि न्याय और सुधारों को बहाल करने के उनके प्रयासों को राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है.

इस बीच पब्लिक सर्विस (संशोधन) ऑर्डिनेंस 2025 लागू किए जाने से यूनुस के सामने तीसरी चुनौती खड़ी हो गई है. इस ऑर्डिनेंस के तहत यह छूट दी गई है कि प्रशासन में खलल डालने का दोषी पाए जाने वाले सरकारी कर्मचारी को 14 दिनों के अंदर और संबद्ध विभाग द्वारा आंतरिक कार्रवाई किए बिना बरखास्त किया जा सकता है. सरकारी कर्मचारी इस का विरोध कर रहे हैं और धमकी दे रहे हैं कि इसे रद्द न किया गया तो आंदोलन और तेज किया कई प्रशासनिक विभागों के कर्मचारी हड़ताल पर जाकर शासन को ठप कर दे सकते हैं.

चुनाव को लेकर नाटक, विवादास्पद सलाहकारों, और नए ऑर्डिनेंस के बाद बांग्लादेशी सेना के रूप में एक चौथी चुनौती भी यूनुस के आगे खड़ी हो गई है. सेना अध्यक्ष जनरल वाकर-उज-ज़मां ने मुख्य सलाहकार यूनुस से कहा है कि वे दिसंबर 2025 तक आम चुनाव करवा दें. सेना तख्तापलट करके इतिहास को दोहराने में दिलचस्पी लेती नहीं दिख रही है, लेकिन ज़मां के दबाव के कारण यूनुस की सियासी महत्वाकांक्षाओं (अगर कोई हो) को चोट पहुंचेगी.

बीएनपी जबकि उनके ऊपर दबाव बढ़ा रही है और सेना चुनाव की तारीख तय करने पर ज़ोर डाल रही है तब, बताया जाता है कि यूनुस ने इस्तीफा देने की धमकी दी है. उनके दफ्तर ने कोई सरकारी विज्ञप्ति तो नहीं जाहिर की है लेकिन विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों के साथ हुईं कई बैठकें यही संकेत कर रही हैं कि आंतरिक विभाजन हो चुका है.

सलाहकार काउंसिल ने 24 मई को एक औचक बैठक भी की जिसमें उसने इस बात पर विचार किया कि “अनुचित मांगों, जानबूझकर दिए गए उकसाऊ तथा हद से बाहर जाकर दिए गए बयानों, और गड़बड़ी पैदा करने वाले कार्यक्रमों ने कामकाज के माहौल में लगातार खलल ही पैदा किया है और जनता के मन में उलझन और संदेह पैदा करता रहा है.”

इसने यह चेतावनी भी दी कि “अगर सरकार की स्वायत्तता, सुधार के उसके प्रयासों, न्याय प्रक्रिया, निष्पक्ष चुनाव कराने की उसकी योजना और सामान्य कार्रवाइयों को इस हद तक बाधित किया जाएगा कि उनका फर्ज निभाना मुश्किल हो जाता है, तो जनता को जरूरी कदम उठाने का अधिकार है”.

विकल्प क्या हैं

मुहम्मद यूनुस ने अपनी भूमिका को काफी गंभीरता से लिया होगा लेकिन पहले-सुधार-फिर-चुनाव वाला उनका लक्ष्य उन पार्टियों की महत्वाकांक्षाओं से मेल नहीं खाता है जो 2018 और 2024 के आम चुनावों में भाग लेने में असमर्थ थीं. इस सरकार से उनकी एकमात्र अपेक्षा यह है कि वह अवामी लीग को प्रतिबंधित कर दे, जो किया जा चुका है.

जुलाई वाले आंदोलन के छात्र नेताओं के नेतृत्व वाली नवगठित एनसीपी भी इस राजनीतिक नक्शे में अपनी जगह बनाने को प्रयासरत है, हालांकि वह चुनाव आयोग के पुनर्गठन को जरूरी मानती है.

बढ़ती चुनौतियों के कारण यूनुस के पास केवल यही उपाय बच जाता है कि वे सुधार प्रक्रिया और उसके दायरे को उचित सीमा में रखें. अगर यह दबाव नहीं घटता है तो उन्हें अपनी आकांक्षाओं और राजनीतिक मांगों के बीच एक समझौता करना पड़ेगा.

अगर व्यापक सुधारों पर पार्टियों की सहमति बनती है और इसके फलस्वरूप चुनाव होता है तो यह आगे बढ़ने के मजबूत राजनीतिक दबाव को प्रतिबिंबित करेगा, ऐसे समुचित सुधारों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करेगा जिससे देश में बेहतर परिवर्तन आए.

ऋषि गुप्ता विश्व मामलों के जानकार हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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