scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमतयोगी दूसरे कार्यकाल में वही राह अपना रहे जिस पर गुजरात में 2002 के बाद मोदी चले थे, लेकिन यह आसान नहीं है

योगी दूसरे कार्यकाल में वही राह अपना रहे जिस पर गुजरात में 2002 के बाद मोदी चले थे, लेकिन यह आसान नहीं है

भाजपा के शीर्ष नेता जहां ‘योगी मॉडल’ (शासन का, विकास का नहीं) अपनाने में जुटे हैं, वहीं यूपी के मुख्यमंत्री का पूरा ध्यान गुजरात के ‘मोदी मॉडल’ पर केंद्रित है.

Text Size:

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की शुक्रवार को भोपाल में अखिल भारतीय पुलिस विज्ञान कांग्रेस की बैठक के दौरान ली गई एक तस्वीर कुछ याद दिलाती नजर आई. उन्होंने एक जॉइंट वैन्चर प्रोटेक्टिव कार्बाइन पकड़ रखी थी, और निशाना लगाने की मुद्रा में अंगुली ट्रिगर पर थी.

कुछ याद आया? यह जाना-पहचाना अंदाज है. याद है जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथपिछले साल दिसंबर में लखनऊ में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक प्रदर्शनी में राइफल लिए खड़े थे? भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की यूपी इकाई ने उस दिन ट्वीट किया था, ‘चीते की चाल, बाज की नजर, और योगी जी के ‘निशाने’ पर संदेह नहीं करते.’ सत्ताधारी पार्टी के ट्वीट में ‘निशाने’ शब्द को इन्वर्टेड कॉमा के साथ लिखा गया था. हालांकि उनकी अंगुली ट्रिगर पर नहीं थी.

इन दोनों तस्वीरों के बीच समानता निश्चित तौर पर एक संयोग मात्र हो सकती है. लेकिन ये तस्वीरें ऐसे समय में एक संदेश जरूर दे जाती हैं जब बुलडोजर- जिसका राजनीतिक तौर पर योगी ने पेटेंट करा लिया है. भाजपा का मिशन स्टेटमेंट बनता जा रहा है. यह देखते हुए कि अमित शाह दिल्ली पुलिस और नगर निकायों पर कितनी बारीकी पकड़ रखते है, जहांगीरपुरी में बुलडोजर का इस्तेमाल केंद्र द्वारा योगी शासन और उनकी राजनीतिक शैली को अपनाने जैसा है. ऐसे में, इस पर आश्चर्य करने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता कि कई राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारें, जो पहले ‘विकास के गुजरात मॉडल’ को अपनाती थीं, अब ‘योगी मॉडल’ की ओर रुख कर रही हैं. भाजपा-नीत मध्य प्रदेश और गुजरात सरकारों ने बुलडोजर का इस्तेमाल शुरू कर दिया है और कर्नाटक और उत्तराखंड भी कुछ ऐसा ही रुख अपनाने का संकल्प लिया है, और ये केवल उदाहरण मात्र हैं.

विडंबना यह है कि जब भाजपा के शीर्ष नेताओं—केंद्रीय गृह मंत्री से लेकर मुख्यमंत्रियों तक—ने ‘शासन के योगी मॉडल’ (या उनके लिए इसका जो भी अर्थ हो) को अपनाना शुरू कर दिया है, तो यूपी के मुख्यमंत्री अपना पूरा ध्यान गुजरात के ‘मोदी मॉडल’ पर केंद्रित कर रहे हैं.

दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के ठीक एक महीने बाद योगी 2.0 पूरी तरह योगी 1.0 से अलग दिख रहे हैं. उनके पहले कार्यकाल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और कट्टर हिंदुत्ववादियों का वरदहस्त हासिल एक हिंदूवादी योद्धा के तौर पर उनकी छवि मजबूत करने के निरंतर प्रयास के तौर पर चिह्नित किया गया. उसमें बताने के लिए राजमार्ग, निवेश और विकास के आंकड़े, अपराध से जुड़े आंकड़े और कोविड-19 संबंधी डेटा था. बेशक, ये डाटा और आंकड़े आधिकारिक थे. लेकिन प्रमुख नैरेटिव तय करने का आधार यही थे और इस लिहाज से कारगर भी रहे.

एक गंभीर बदलाव की ओर

योगी 2.0 में भले ही अभी कोई बड़ा सुधार न हुआ हो लेकिन पिछले चार हफ्ते प्राथमिकताएं तय करने के गंभीर प्रयासों में बीते हैं. इस बारे में काफी खबरें आती रही है कि कैसे यूपी के मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों को हरदम मुस्तैद वाली स्थिति में ला दिया.

वह बेहद सक्रियता के साथ प्राथमिकताएं और एजेंडा तय कर रहे हैं.

यहां तक कि योगी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही यूपी को ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सलाहकार नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. फिर भी, अगर कुछ लोग इसे लेकर संतुष्ट न हों तो इसका दोष योगी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड को दिया जा सकता है. आखिरकार, विकास को लेकर इसके लंबे-चौड़े दावों (मुफ्त उपहारों को छोड़कर) की उस वक्त हवा निकल गई थी जब विधानसभा चुनाव की कवरेज के लिए यूपी के गांवों में उमड़ी पत्रकारों की भीड़ ने जमीनी स्तर पर लोगों से इसकी सच्चाई जाननी चाही. सरकारी विज्ञापनों में रोजगार सृजन के बड़े-बड़े दावे किए गए थे, जबकि छात्रों और युवाओं ने इसे लेकर बेहद निराशा जताई.

यह बात काफी उत्सुकता जगाती है कि विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल के कार्यकर्ता जब मध्य प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और यहां तक कि ओडिशा में रामनवमी और हनुमान जयंती जुलूस निकाल रहे थे, यूपी में इन संगठनों के कार्यकर्ता कहीं नजर नहीं आ रहे थे. ऐसा ही कुछ 2002 के बाद गुजरात में तब देखने को मिला जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे.

दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में सांप्रदायिक झड़प के बाद योगी आदित्यनाथ ने पिछले हफ्ते पुलिस अधिकारियों के साथ एक बैठक की. उन्होंने ईद और अक्षय तृतीया एक ही दिन होने की संभावना को देखते हुए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की छुट्टी रद्द कर दी है. उन्होंने अन्य बातों के अलावा, शांति बनाए रखने के लिए उन्हें जुलूस के आयोजकों से एक हलफनामा लेने का निर्देश दिया है.

चूंकि, अजान के समय लाउडस्पीकरों पर हनुमान चालीसा बजाने की योजना बना रहे दक्षिणपंथी समूहों की वजह से तनाव बढ़ रहा था, योगी ने आवाजों को परिसर के भीतर ही सीमित रखने के निर्देश जारी किए हैं. गोरखनाथ मंदिर और मथुरा के श्री कृष्ण जन्मस्थान सहित कई मंदिरों और मस्जिदों ने लाउडस्पीकर हटा दिए हैं या वॉल्यूम घटा दिया है. लाउडस्पीकर बजाने पर नकेल कसने के लिए पुलिस भी हरकत में आ गई है. यह कोई ईनामी सवाल नहीं है कि इसका सीधा असर किस पर पड़ने वाला है.

आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अजान के जवाब में हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए अलीगढ़ में क्रॉसिंग पर 21 लाउडस्पीकर लगाने की घोषणा की थी. कुछ दिनों बाद ही एबीवीपी ने खुद को इस कदम से अलग कर लिया.


यह भी पढ़ें: ‘कश्मीर फाइल्स’ का एक मूल संदेश तो सही है लेकिन भावनाएं तभी शांत होती हैं जब इंसाफ मिलता है


 

सीएए, यूसीसी पर तेज हुई चर्चा

यूपी में विहिप और बजरंग दल कार्यकर्ताओं पर लगाम कसना, कुछ उसी तरह का कदम है जैसा मोदी ने गुजरात में किया था, यह इसका भी एक अहम संकेत है कि योगी अपने दूसरे कार्यकाल में कैसे एक अलग राह अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही, क्या आपने गौर किया कि पिछले छह हफ्तों में उनका अंदाज एकदम साधारण रहा है, जो कि पूर्व में उनकी हर दिन किसी न किसी नए विवाद वाली छवि से एकदम जुटा है? ऐसा लगता है कि वह यूपी में बड़ा निवेश हासिल करने और राज्य को ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने के लिए बेहद गंभीर हैं. और वह किसी भी कीमत पर सांप्रदायिक दंगे या कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं चाहते.

लेकिन आगे उनके लिए अग्निपरीक्षा का समय है. आखिरकार, एक लंबे अंतराल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देशों में उत्पीड़न झेल रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने को लेकर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 की सराहना की है.

अमित शाह ने भी शुक्रवार को भोपाल में सीएए का जिक्र किया. नागरिकता कानून को संसद की मंजूरी मिले दो साल से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन गृह मंत्रालय ने अभी तक नियमों को अधिसूचित नहीं किया है. यदि सीएए के बारे में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की हालिया टिप्पणी को केंद्र की तरफ से इसे लागू करने की निर्णायक तैयारी का संकेत माना जाए तो योगी सरकार, जिसने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर काफी सख्त रुख अपना था, को भी अपनी राह थोड़ी बदलनी पड़ेगी. समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर भी राजनीतिक विमर्श एक बार फिर तेज हो गया है. शाह ने भोपाल में पार्टी नेताओं के साथ बातचीत में इसका भी जिक्र किया. इसके बाद यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने दावा किया कि उनकी सरकार विवादास्पद समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार कर रही है.

यद्यपि योगी समान नागरिक संहिता के प्रबल समर्थक रहे हैं, लेकिन इसे लागू करने के समय को लेकर वह कोई प्रतिबद्ध नहीं जताते हैं. पिछले माह द इकोनॉमिक टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘हम पर्सनल लॉ लागू नहीं कर सकते. समान नागरिक संहिता के मुद्दे को सही समय पर उठाया जाएगा.’

मुख्यमंत्री उस इंटरव्यू में समान नागरिक संहिता के रोलआउट को लेकर सांकेतिक टिप्पणी करते ही नजर आए, जो यूपी चुनाव के नतीजे घोषित होने के कुछ दिन पहले किया गया था. कोई नहीं जानता कि मौर्य—जिनका योगी के साथ बहुत ज्यादा तालमेल नहीं बैठता है—ने समान नागरिक संहिता पर जो कुछ भी कहा, क्या उसके लिए उन्हें योगी की मंजूरी हासिल थी या नहीं. लेकिन शाह की टिप्पणी केंद्र की ओर से भाजपा शासित राज्यों को संकेत है कि समान नागरिक संहिता पर उत्तराखंड की पहल का अनुसरण करें. हालांकि, बताया जाता है कि आरएसएस को भी समान नागरिक संहिता तत्काल लागू करने पर आपत्ति है, और संघ परिवार कोई अंतिम निर्णय लेने से पहले समान नागरिक संहिता पर उत्तराखंड समिति की रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है.

अगर संघ ने समान नागरिक संहिता को हरी झंडी दिखा दी तो उत्तर प्रदेश और भाजपा शासित अन्य राज्यों को जल्द ही इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा. योगी आदित्यनाथ पिछले एक महीने से छवि बदलने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि वह जिन्न को कब तक बोतल में रख पाएंगे.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मनसे प्रमुख राज ठाकरे महाराष्ट्र सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं होंगे


share & View comments