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Monday, 16 December, 2024
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योग दिवस: अवसाद और उदासीनता दूर करने के लिए ‘योग’ जरूरी, कोविड के समय में इसे अपनाने की जरूरत

हम सब अपनी वर्षों पुरानी परंपरा योग को अपनी दिनचर्या के हर भाग में सम्मलित करें और विश्व को 'आनंद से जियो और आनंद से सबको जीने दो' की जीवंत जीवन जीने की पद्धति से परिचित करवाएं.

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कोरोना महामारी के प्रकोप को कम करने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारों ने कई बार लॉकडाउन या कर्फ्यू का प्रयोग किया है. जिसके कारण सभी को अपने घर के अंदर ही रहने को मजबूर होना पड़ा है.

स्कूलों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को बंद हुए तो एक वर्ष से भी ज्यादा समय हो गया है. शायद यह पहला मौका है जब लोगों को इतना समय घर के अंदर या ऐसा कहा जाए की अपने और अपनों के साथ बिताने को मिला हो. लेकिन चारदीवारी में बंद होने के कारण कुछ समय में ही अवसाद, उदासीनता और मानसिक रोगों ने लोगों को जकड़ लिया.

जुलाई 2020 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार 43% भारतीय अवसाद में हैं. इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं लेकिन यहां महत्वपूर्ण यह है कि विश्व भर में अपनी धरोहर ‘योग‘ का लोहा मनवाने वाले देश भारत के अपने लोग इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.


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योग- जीवन जीने की पद्धति

हमें यह जानना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि योग में निहित आसन और प्राणायाम हमें दैनिक जीवन में रोग से मुक्त तो रखते ही हैं लेकिन योग एक मात्र आसन, प्राणायाम और मुद्राये ही नहीं बल्कि जीवन जीने की पद्धति है. वह पद्धति जो मनुष्य को अपने हर जीवन के पहलू को जोड़ना सिखाती है.

योग दर्शन भारतीय षड् दर्शनों में से एक है जो मनुष्य जाति को योगमय जीवन जीने की पद्धति से परिचय करवाती है. 140 से 150 (लगभग) ईसा पूर्व में जन्मे महर्षि पतंजलि ने ‘अष्टाङ्ग योग’ से प्रसिद्ध आठ अंगों वाले योग मार्ग को जन साधारण से परिचित करवाया.

अष्टांग योग में प्रथम पांच अंग है- यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार. यह पांच ‘बहिरंग’ और इसके बाद आने वाले तीन अंग- धारणा, ध्यान, समाधि को ‘अंतरंग’ से भी जाना जाता हैं.

अगर हम पांच यम जिसके अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आते हैं और पांच नियम जिसके अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान का भी पालन करने का प्रयास करें जो कि हमारा समाज के प्रति और अपने व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन और नैतिकता का परिचय करवाते हैं तो हम योग के मार्ग पर चल पड़े हैं, यह हम अनुभव करेंगे.

महात्मा गांधी ने स्वयं यम और नियम  को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की थी.


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स्वामी विवेकानंद और योग

इस भारतीय योग धरोहर को अगर किसी ने प्रमुखता से विश्व भर से परिचित करवाया तो वह है युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंद जिनके ‘भक्ति योग’, ‘कर्म योग’ और ‘ज्ञान योग’ पर व्याख्यान सुनने के लिए विदेशी धरती पर भी हज़ारों लोग उमड़ पड़ते थे. व्याख्यानों के अतरिक्त स्वामीजी कक्षाएं भी लेते थे और योग मुद्राये भी सिखाते थे.

अमेरिका और इंग्लैंड में तो स्वामीजी को सुनने के लिए लोगों का ताता लग जाता था. अपने ‘राजयोग ‘ विषय पर दिए गए व्याख्यानों में स्वामीजी अत्यंत सूक्षम बिंदुओं को भी विश्वभर के सामने बहुत ही सरलता के साथ प्रस्तुत करते थे.

राजयोग के अंतर्गत स्वामीजी प्राण, प्राण का आध्यात्मिक रूप, प्रत्याहार और धारणा, ध्यान और समाधि और अन्य विषयों पर प्रकाश डालते हैं. यह सारी जानकरी उनके द्वारा रचित पुस्तक ‘राजयोग’ में भी निहित है. इसके अतिरिक्त स्वामीजी पतंजलि योगसूत्र के अंतर्गत जन साधारण के लिए जटिल माने जाने वाले विषय जैसे समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और अन्य का भी पश्चिम जगत से परिचय करवाते हैं.

आज कोरोना महामारी से पीड़ित संपूर्ण विश्व योग और आयुर्वेद का सहारा अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ मानसिक तनाव से बचने के लिए भी कर रहा है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत ने योग के प्रति अपना रुझान और लगाव तो वर्ष 2014 में ही आधिकारिक रूप में दर्ज करवा दिया था. जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ का प्रस्ताव दिया था जिसे मात्र 3 महीनों के अंदर 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने की मंजूरी दे दी थी.

अब समय आ गया है जब हम स्वामी विवेकानंद के आह्वान को चरितार्थ करें जो उन्होंने 1897 को मद्रास में ‘हमारा प्रस्तुत कार्य ‘ विषय पर बौद्धिक देते हुये किया था. उन्होंने कहा था, ‘चारों ओर शुभ लक्षण दिख रहे हैं और भारतीय आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों की फिर से सारे संसार पर विजय होगी.’

उन्होंने कहा था, ‘उठो भारत, तुम अपनी आध्यात्मिकता द्वारा जगत पर विजय प्राप्त करो.’

हमें विश्व पर विजय प्राप्त करनी हैं लेकिन किसी की जमीन हड़प कर या फिर गोला बारूद का सहारा लेकर युद्ध करके नहीं बल्कि अध्यात्म से.

अब बारी हम भारतवासियों की है कि परिश्रम हमें करना है क्योंकि संपूर्ण विश्व की उम्मीद हम से है. इसलिए हम सब अपनी वर्षों पुरानी परंपरा योग  को अपनी दिनचर्या के हर भाग में सम्मलित करें और विश्व को ‘आनंद से जियो और आनंद से सबको जीने दो’ की जीवंत जीवन जीने की पद्धति से परिचित करवाएं.

(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रांत के युवा प्रमुख हैं, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधकर्ता है और इंडियन योग एसोसिएशन दिल्ली शाखा के मनोनीत सदस्य हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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