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Wednesday, 20 November, 2024
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अक्साई चीन से गुजरने वाला प्रस्तावित चीनी हाइवे समस्या बन सकता है, भारत चुप न बैठे

चीन ने सीमावर्ती इलाकों के प्रबंधन और विकास के जरिए अपनी संप्रभुता जताने की रणनीति बना रखी है. द्विपक्षीय रिश्ते बेहतर बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को इस मसले को हल्के में कतई नहीं लेना चाहिए

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1959 में जी-219 नामक हाइवे के निर्माण के 65 साल बाद चीन अब तिब्बत से शिनजियांग तक दूसरा बड़ा हाइवे बनाने की योजना बना रहा है. जी-219 पूर्वी अक्साई चीन में भारतीय क्षेत्र में घुसते हुए आगे बढ़ता है और अब नया प्रस्तावित हाइवे पैंगोंग झील के ऊपर बने नये पुल को काटते हुए पश्चिमी अक्साई चीन से गुजरेगा. भारत के लिए इसके बड़े राजनीतिक और सैन्य परिणाम निकलते हैं.

‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने 20 जुलाई को खबर दी कि चीन मौजूदा जी-219 हाइवे के अतिरिक्त नया जी-695 हाइवे बनाने की योजना बना रहा है, जो 2035 तक तैयार हो जाएगा और तिब्बत को शिनजियांग से जोड़ देगा. इस खबर में कहा गया है कि चीन के नये राष्ट्रीय कार्यक्रम में निर्माण की 345 योजनाएं शामिल हैं और जी-695 उनमें से एक है. नये राष्ट्रीय कार्यक्रम में 2035 तक 461,000 किमी हाइवे और मोटरवे बनाने का लक्ष्य है, ताकि लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था में जान आए और इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के जरिए उपभोक्ता व्यय को बढ़ावा मिले.

जी-695 का नक्शा

प्रस्तावित हाइवे के नक्शे का जिक्र मीडिया में उन जिलों के बारे में बताते हुए किया गया है जिनसे होकर यह हाइवे गुजरेगा– शिनजियांग में माज़ा (काराकोरम दर्रे से 130 किमी उत्तर-पश्चिम में)-जंडा (हिमाचल/उत्तराखंड के सामने)- बुरंग (मानसरोवर के दक्षिण और एलएसी पर लीपुलेख से 16 किमी पर)-गाइरियोंग (नेपाल के सामने)-कंबा (सिक्किम में नाकू ला से 30 किमी उत्तर)-कोना (तवांग सेक्टर में एलएसी से 30 किमी उत्तर)-ल्हुंजे (कोना से 70 किमी उत्तर-पूर्व). उम्मीद थी कि रक्षा और विदेश मंत्रालयों ने खुफिया रिपोर्टों और इलाके के आकलन के आधार पर इस हाइवे के नक्शे का विश्लेषण किया होगा, लेकिन निराशा हाथ लगी.

यह काम उपग्रह के चित्रों का विश्लेषण करने वाले एक नौसिखुआ के जिम्मे छोड़ दिया गया है, जो ट्वीटर पर ‘नेचर देसाई’ नाम से काम करता है और ओपन सोर्स इंटेलिजेंस तथा चीनी सोशल मीडिया के आधार पर इस हाइवे का नक्शा पूर्वी लद्दाख के संदर्भ से बनाने की कोशिश कर रहा है.

Annotated map courtesy @NatureDesai
एनोटेटेड नक्शा सौजन्य: नेचर देसाई

जी-695 पूरी सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से 20 से 50 किमी की औसत दूरी पर होगा. इसके विपरीत, जी-219 इससे तीन से चार गुना ज्यादा दूरी पर है. इसके साथ बनी छोटी सड़कें अब नये हाइवे में शायद शामिल कर ली जाएंगी. इसे एलएसी और जी-219 से मौजूदा या नयी सहायक सड़कों से जोड़ा जाएगा. चीन को पहाड़ियों वाले कई इलाकों से निबटना पड़ेगा. लेकिन इनसे पार पाने के लिए उसके पास संकल्प, धन, अनुभव और आधुनिक तकनीक है.

राजनीतिक नतीजे

चीन ने सीमावर्ती इलाकों के प्रबंधन/विकास के जरिए अपनी संप्रभुता जताने की स्पष्ट रणनीति बना रखी है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा का सिद्धांत खुद तय किया है—’सीमावर्ती क्षेत्रों का शासन ही देश के शासन और तिब्बत की स्थिरता की कुंजी है.’ इस प्रक्रिया को हाल में ‘लैंड बॉर्डर लॉ’ के रूप में औपचारिक स्वरूप दे दिया गया. कब्जे में लिये गए, विवादित या गैर-हाण आबादी की बगावत के चलते अस्थिर इलाकों पर चीन की पकड़/ दावों को मजबूत करने के लिए यह कानून 23 अक्तूबर 2021 को बनाया गया. इन लक्ष्यों के मद्देनजर वह तिब्बत और शिनजियांग के सीमावर्ती इलाकों में आधुनिक गांव, सड़कें/रेल लाइनें बना रहा है.

एमआइटी में जाने-माने चीनी स्कॉलर प्रोफेसर एम. टेलर फ़्रावेल के मुताबिक आधुनिक गांवों और बुनियादी सुविधाओं का निर्माण ग्रामीण विकास की चीनी योजना का हिस्सा है, जिसे 4.6 अरब डॉलर के बजट से 2017 में शुरू किया गया था. कुल 624 मॉडल ‘श्याओकांग’ (समृद्ध) गांव तिब्बत में सीमा पर या उसके पास बनाए गए हैं. चीन का लक्ष्य साफ है— आर्थिक विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ सीमा पर नियंत्रण, मजबूती.

‘रॉ’ के पूर्व अतिरिक्त सचिव जयदेव रानाडे के मुताबिक सीमावर्ती गांवों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार लोगों को बसाया जाएगा और वे बफर क्षेत्र के रूप में काम करने के साथ ही उन इलाकों में सैन्य कार्रवाई के लिए अड्डे के रूप में भी काम करेंगे जिन इलाकों में तिब्बत आबादी उग्र हो सकती है.

जी-695 हाइवे इस योजना में फिट बैठती है. चीन ने हमारे जिन क्षेत्रों पर अवैध कब्जा कर रखा है उन पर से होकर हाइवे बनाने की उसकी कोशिशों का भारत को कड़ा विरोध करना चाहिए. 1950 के दशक में जी-219 हाइवे के मामले में हमने जो गलती की थी उसे न दोहराएं.

पूर्वी अक्साई चीन से होकर जी-219 हाइवे 1951-57 के बीच जब बनाया गया था तब भारत सरकार को अचानक इसका पता चला था. 18 अक्तूबर 1958 को एक कमजोर विरोध दर्ज किया गया, जब विदेश सचिव ने चीनी राजदूत को यह ‘अनौपचारिक’ नोट सौंपा था कि ‘भारत सरकार हाल में पता चला है कि चीनी गणतंत्र की सरकार ने भारत के एक हिस्से जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख में पूर्वी हिस्से से मोटर वाली एक सड़क बनाई है.’ जी-219 हाइवे के निर्माण के बाद दोनों देशों ने ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ अपना ली और अग्रिम इलाकों पर अपने दावे किए, जो 1962 की लड़ाई का एक बड़ा कारण बना.

आश्चर्य की बात है कि भारत ने प्रस्तावित हाइवे का कोई औपचारिक विरोध नहीं दर्ज किया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 21 जुलाई को मीडिया के सवालों को खारिज करते हुए कहा कि आप लोग नये हाइवे के बारे में पूछ रहे थे, ‘एससीएमपी’ की एक रिपोर्ट आई है.’ डोकलम के बारे में एक सवाल के साथ जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि ‘देखिए, मैं मीडिया रिपोर्टों पर कुछ कहना नहीं चाहता. मैं सही क्या है, यह सब भी नहीं जानता. लेकिन डोकलम के बारे में एक व्यापक बात कहूँगा. आश्वस्त रहिए कि सरकार भारत की सुरक्षा को प्रभावित करने वाली सभी घटनाओं पर निरंतर नज़र रखती है और उसके लिए सभी जरूरी उपाय करती है. यह मैं सामान्य टिप्पणी के रूप में कहूंगा.’

द्विपक्षीय रिश्ते बेहतर बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को इस मसले को हल्के में कतई नहीं लेना चाहिए. उसने एलएसी से चीनी क्षेत्र में पैंगोंग झील पर नये पुल के निर्माण पर आपत्ति की थी क्योंकि वह उस क्षेत्र में बनाया जा रहा था जिस पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा था. अब जब वह हमारे विशाल क्षेत्र से होकर हाइवे बनाए जाने की योजना बना रहा है तब मोदी सरकार क्यों अनदेखी करे? इसके अलावा, यह कोई ‘मीडिया रिपोर्ट’ नहीं है बल्कि आधिकारिक ‘नेशनल हाइवे नेटवर्क प्लान’ है जिसे चीन की केंद्र सरकार ने अधिकृत किया है. इसलिए इसकी प्रामाणिकता संदिग्ध नहीं मानी जा सकती.


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सैन्य नतीजे

मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में टकराव के बाद से चीन सीमा पर अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास कर रहा है. 2020 में वह सीमा पर 20,000 सैनिकों को टिका सकता था लेकिन अब यह क्षमता बढ़ाकर 1.2 लाख सैनिकों टिकाने की व्यवस्था कर ली गई है. एलएसी के इर्दगिर्द सेना की खातिर सौर ऊर्जा और लघु पनबिजली परियोजनाएं लगा दी गई हैं जिसके कारण जाड़े के मौसम में ज्यादा दिनों तक टिका जा सकता है. चीन ने शिनजियांग मिलिटरी डिस्ट्रिक्ट से छह कंबाइंड आर्म्स ब्रिगेड को तैनात किया है जिन्हें एक साल में बदल दिया जाता है. चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) बॉर्डर इलाके में लंबी तैयारी कर चुकी है.

वैसे, उत्तर-दक्षिण के बीच खराब सड़कों के अभाव के कारण पीएलए के लिए देप्सांग प्लेन्स, गलवान घाटी, चांग चेनमो, पैंगोंग के उत्तर और दक्षिण और सिंधु घाटी सेक्टरों के बीच मूवमेंट बहुत मुश्किल है. सेक्टरों के बीच मूवमेंट के लिए जी-219 के पूरब में 100-200 किमी तक मूवमेंट चाहिए तभी उत्तर-दक्षिण के बीच मूवमेंट की जा सकती है और तब एलएसी के पश्चिम में उतनी ही दूरी तक जाना पड़ेगा. जी-695 हाइवे पीएलए के लिए सेक्टरों के बीच सेना और लॉजिस्टिक्स के मूवमेंट को भी आसान बनाएगा. यह सीमा क्षेत्र के समग्र विकास के अलावा रिजर्व और लॉजिस्टिक्स के केंद्रीकरण में भी मदद करेगा.

भारत के लिए सबक

भारत के लिए सबक यह है कि भौगोलिक अखंडता की बेहतर सुरक्षा सीमा पर इन्फ्रास्ट्राक्स्चर और बस्तियों के विकास से की जा सकती है. यह तर्क से परे है कि भारत के लोगों को उत्तरी सीमाओं के पास पर्यटन स्थलों की सैर करने के लिए अभी भी इनर लाइन परमिट लेनी पड़ती है. सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे लोगों की सुरक्षा और बेहतरी के लिए 1986-87 से ही सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम लागू है. लेकिन 2020-21 अपर्याप्त बजट के कारण इस विकास में अडचण आई. सरकार ने सीमावर्ती गांवों और शहरों के विकास के लिए 783.71 करोड़ रुपये दिए थे जिसमें से 190 करोड़ रु. भारत-चीन सीमा क्षेत्र के लिए थे. इसकी तुलना में चीन ने तिब्बत के 624 गांवों के लिए तीन साल के लिए 4.6 अरब डॉलर, प्रति वर्ष 1.53 अरब डॉलर दिए. लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में पनबिजली परियोजनाओं के लिए भी यही बात सच है.

सरकार ने सीमावर्ती सड़कों के विकास को काफी बढ़ावा दिया है लेकिन पर्याप्त बजट, आधुनिक तकनीक के अभाव और सुस्त क्रियान्वयन के कारण इसमें प्रगति बहुत धीमी है. चीन ने 2000 किमी लंबे जी-695 के विकास के लिए 13 साल का समय निश्चित किया है. रोहतांग दर्रे से बचने के लिए अटल सुरंग बनाने में हमें 20 साल लग गए. अभी चार और सुरंग बनाने की जरूरत है जिन पर काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है जो कि मनाली-लेह सड़क को सभी मौसम के लायक बनाने के लिए जरूरी है.

सीमाओं को पर्यटन के लिए उपलब्ध कराये. दक्षिण कोरिया की यात्रा उत्तरी कोरिया सीमा 38-पैर्लल की सैर के बिना अधूरी मानी जाती है. वहां का इन्फ्रास्ट्रक्चर और सैन्य प्रबंध हैरान कर देता है और घरेलू आबादी के लिए आत्मविश्वास का स्रोत है. इनर लाइन परमिट वाली उपनिवेशवादी प्रथा को खत्म कीजिए, इन्फ्रास्ट्रक्चर के वास्ते फंड जुटाने के लिए यात्रियों से भारी प्रवेश शुल्क लीजिए.

मेरी सिफ़ारिश यह है कि प्रस्तावित जी-695 के खिलाफ कड़े शब्दों में विरोध दर्ज कराया जाए और भारत भी अपनी सीमा के साथ ऐसा ही हाइवे तेजी से बनाने की तुरंत घोषणा करे और उस पर ज़ोरशोर से काम शुरू कर दे.

(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटा.) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड थे. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्युनल के सदस्य थे. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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