इन आठ दिनों में क्या फर्क पड़ा है.
पिछली चार तस्वीरें आपको बताती हैं कि कैसे सरकार ने पिछले दो हफ्तों में रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों के विरोध को ‘गलत’ तरीके से हैंडल किया है.
28 मई: साक्षी मलिक जैसे पहलवानों को दिल्ली पुलिस सब्जी की बोरी की तरह उठा ले जाती है जबकि प्रधानमंत्री गंभीर रूप से नए संसद भवन में सेंगोल ले जाते हैं.
5 जून: नई दिल्ली में अपने उत्तर रेलवे कार्यालय में ओलंपिक पदक विजेता, मुस्कुराते हुए, शांति से तस्वीरें खिंचवाती हैं, टीवी समाचार स्क्रीन और अगली सुबह के समाचार पत्रों में छपी थीं.
तेज गति से प्रसारण होने लगा जिसमें कहा जा रहा था कि साक्षी मलिक प्रदर्शन से हट रही हैं (इंडिया टुडे) : ‘साक्षी प्रदर्शन से हटीं’ (सीएनएन न्यूज 18), रिपब्लिक टीवी ने लिखा ‘बजरंग ने वापस हुए, विनेश फोगाट प्रदर्शन से हटीं’, ‘#WrestlersProtestOver’.
ओह, लेकिन एक मिनट रुकिए, यहां एनडीटीवी 24×7 हमें बता रहा है कि मलिक ने ट्वीट कर कहा कि ये ‘पूरी तरह से गलत’ है कि विरोध अभी चल रहा है. इंडिया टीवी ने अपनी संतुष्टि के लिए मामले को थोड़ा अलग लिखा: इसने कहा, ‘विरोध खत्म हो गया है लेकिन सत्याग्रह जारी रहेगा’,
‘बड़े पैमाने पर भ्रम’, रिपब्लिक टीवी ने स्वीकार किया.
ऐसा इसलिए है क्योंकि 3 जून की रात की एक तीसरी तस्वीर सामने आई जो – इन दो अलग-अलग दृश्यों के बीच से गायब है. विरोध करने वाले भारतीय पहलवानों के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की शनिवार की रात ‘मीटिंग’ प्रेस के लिए नहीं थी.
दरअसल, जहां तक सरकार की बात है, ऐसा कभी नहीं हुआ. किसी भी स्तर पर केंद्र ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार नहीं किया कि शाह ने साक्षी वगैरह से मुलाकात की. द टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, द इंडियन एक्सप्रेस या द हिंदू जैसे फ्रंट लाइन अंग्रेजी अखबारों में बैठक का लेखा-जोखा ‘सूत्रों’, ‘पहलवानों के करीबी सूत्रों’ के आधार पर ही पब्लिश किया गया. हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी सोर्सिंग के लिए अजीबोगरीब मुहावरा दिया: ‘ विरोध पर बैठे पहलवानों के करीबीयों के अनुसार…’, इसमें लिखा गया है कि गृह मंत्रालय ने इसकी पुष्टि नहीं की है.
गृह मंत्री की पहल पर स्पष्ट रूप से हुई एक बैठक के लिए सार्वजनिक श्रेय लेने के बारे में सरकार के मीडिया प्रबंधक क्यों हिचकिचा रहे थे?
खैर, बुधवार तक, उन्होंने केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ पहलवानों को आधिकारिक तौर पर अपने आधिकारिक आवास पर आमंत्रित करने के साथ अपनी शर्म को दूर किया.
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इसका दूसरा पहलू
और दिन का अंत होते होते, हम केवल यह जानना चाहते थे कि पहलवान काम पर वापस क्यों चले गए?
अगर पहलवान बजरंग पुनिया की मानें तो उन्होंने ऐसा नहीं किया: उन्होंने NDTV 24×7 को बताया कि उन्होंने बस साइन इन किया और बाहर आ गए क्योंकि उनकी छुट्टी खत्म हो गई थी. मंगलवार को, टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि उन्हें अपने नियोक्ता, उत्तर रेलवे से 27 मई को ‘कारण बताओ नोटिस’ मिला था और इसलिए वापस रिपोर्ट किया. हिंदुस्तान टाइम्स ने एक और परिदृश्य प्रस्तुत किया: अखबार को ‘चीजों की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी’ से पता चला था कि खाप अब विरोध का भविष्य ‘डिजाइन’ कर रही थीं और इसलिए, पहलवानों ने काम फिर से शुरू कर दिया था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह भी कहा कि सरकार के साथ पहलवानों के ‘बैक चैनल’ संपर्क से खाप निराश हैं.
परस्पर विरोधाभास
बृज भूषण के खिलाफ पहलवानों के आंदोलन पर शनिवार से रिपोर्टिंग भ्रमित करने वाली और कुश्ती के मुकाबले में एक उलझन के रूप में सामने आ रही है. प्रिंट और टीवी समाचार के बीच, आप किसी भी खबर को लेकर श्योर नहीं हो सकते हैं कि इसमें क्या सच है क्या नहीं.
भूषण के खिलाफ एक नाबालिग की शिकायत पर अगर बात करें तो मीडिया ने 10 मई को उनके द्वारा दिए गए पहले बयान और कड़े POCSO अधिनियम के तहत आरोपों वाली एफआईआर की सूचना दी थी. 5 जून को, टाइम्स नाउ ने कहा कि नाबालिग ने अपनी शिकायत ‘वापस’ ले ली है – ठीक उसी तरह जैसे उसने कहा कि मलिक विरोध से हट गई है. अगली सुबह, द इंडियन एक्सप्रेस ने पुष्टि की कि ‘सात महिला पहलवानों में से एकमात्र नाबालिग ने अपने आरोप वापस ले लिए हैं … सूत्रों ने कहा कि 17 वर्षीय ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत एक मजिस्ट्रेट के सामने एक नया बयान दर्ज किया है.’
क्या स्पष्ट, है ना? गलत.
लेकिन इसी खबर पर भी विरोधाभास दिखा. इसखबर पर द हिंदू असहमत था: उसी दिन, इसने बताया कि नाबालिग के पिता ने ‘इस तरह के दावों का खंडन’ किया था. अखबार में उनके हवाले से लिखा कि “यह पूरी तरह से गलत है …”. मैट पर की जा रही कुश्ती की तरह, कहानी इस तरह से आगे बढ़ी: बुधवार को टाइम्स नाउ ने कहा कि नाबालिग ने नई दिल्ली में एक मजिस्ट्रेट के सामने एक नया बयान दर्ज किया था. और इंडिया टुडे ने कहा कि बृज भूषण के खिलाफ POCSO के आरोप वापस लिए जा सकते हैं. लेकिन द हिंदू ने कहा कि उसके पिता ने इससे इनकार किया है.
तो वह यह है कि: नाबालिग ने आरोप वापस ले लिए थे.
रुको भाई. पहलवान बजरंग पुनिया ने NDTV 24×7 को यह कहकर मामले को उलझा दिया है कि यह ‘फर्जी खबर’ है. वह जानना चाहते थे कि क्या हम “सूत्रों” पर भरोसा करते हैं जिन्होंने आरोप वापस लेने का दावा किया था या नाबालिग के पिता पर?
नाबालिग के पिता पर, बिल्कुल.
लेकिन यह अभी भी अंतिम शब्द नहीं है: ‘दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी’ के अनुसार, हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि नाबालिग ने दिल्ली में ‘एक मजिस्ट्रेट’ के सामने अपने आरोपों को वापस ले लिया था. लेकिन उसकी ओर से उसके पिता द्वारा दायर की गई शिकायत, ‘वापस नहीं ली गई है’ इसलिए बृज भूषण पर पोस्को अभी भी लागू है.
समझे ? और यदि आपने ठीक नहीं किया है, तो आपको कौन दोषी ठहरा सकता है?
पूर्व है भी या नहीं
अंत में, छोटा मामला डेसीगेशन का है: बुधवार 7 जून को अपने दिल्ली एडीशन में, टाइम्स ऑफ इंडिया जहां बृज भूषण को ‘पूर्व डब्ल्यूएफआई प्रमुख’ और ‘पूर्व कुश्ती महासंघ प्रमुख’ के रूप में संदर्भित करता है वहीं दूसरे समाचार पत्र और टीवी समाचार इससे असहमत नजर आते हैं: द हिंदू बुधवार को ही नहीं बल्कि हर दूसरे दिन, ‘कुश्ती महासंघ प्रमुख’ लिखता है. सामान्य तौर पर, समाचार पत्र या टीवी चैनल यहां तक कि दिप्रिंट भी इसे ‘डब्ल्यूएफआई प्रमुख’ – तक छोटा कर देता है. हालांकि, CNN News 18 ने हमें बताया कि भूषण को सरकार ने नए WFI चुनाव लंबित होने तक ‘अलग’ रखा है.
तो यह कौन है – पूर्व या वर्तमान WFI प्रमुख?
(शैलजा बाजपेयी दिप्रिंट की रीडर्स एडिटर हैं. कृपया अपने विचारों, शिकायतों के साथ रीडर्स.editor@theprint.in पर लिखें)
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)
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