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Monday, 6 October, 2025
होममत-विमतWintrack Vs चेन्नई कस्टम्स: मिडल क्लास में गुस्सा भड़क रहा है, BJP के लिए यह चेतावनी की घंटी है

Wintrack Vs चेन्नई कस्टम्स: मिडल क्लास में गुस्सा भड़क रहा है, BJP के लिए यह चेतावनी की घंटी है

रिश्वत दिए बिना घर बनाना, व्यवसाय चलाना या कुछ भी करना मुश्किल है. फिर भी, इस खुले, अनियंत्रित भ्रष्टाचार के खिलाफ नागरिकों का गुस्सा अन्ना हज़ारे जैसी रैलियों में नहीं फूटेगा.

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क्या आपको याद है जब 2011 के बाद मनमोहन सिंह सरकार की साख भ्रष्टाचार के कारण गिर गई थी?

अब कुछ वैसा ही फिर से हो रहा है. यह उतना बड़ा आंदोलन नहीं है जितना उस समय हुआ था, जिसने मनमोहन सिंह सरकार की प्रतिष्ठा को खत्म कर दिया था. लेकिन अगर आप ज़रा भी ध्यान दें, तो चारों ओर असंतोष और बेचैनी की आवाज़ें साफ़ सुनाई दे रही हैं.

हर दिन कोई नया मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा भड़काता है. इस बार यह एक कंपनी विनट्रैक (Wintrack) की पोस्ट से शुरू हुआ, जिसमें कहा गया कि चेन्नई कस्टम्स द्वारा की जा रही प्रताड़ना के कारण कंपनी अपने सभी आयात-निर्यात काम बंद कर रही है.

कस्टम्स विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लिया, लेकिन फिर विनट्रैक को झूठी शिकायतें करने वाली कंपनी बताने की कोशिश की.

लेकिन दो बातों ने इस मामले को बड़ा बना दिया. पहली यह कि विनट्रैक ने नाम और ठोस आरोप लगाए थे. दूसरी यह कि कस्टम्स विभाग के खिलाफ गुस्से की बाढ़ आ गई, सैकड़ों लोगों ने अपने अनुभव साझा किए कि कैसे उन्हें रिश्वत देने पर मजबूर किया गया और उनसे वसूली की गई.

मामला इतना बढ़ गया कि केंद्र के वित्त मंत्रालय को दखल देना पड़ा और यह वादा करना पड़ा कि आरोपों की पूरी जांच की जाएगी. कस्टम्स की तरफ से पहले जो लापरवाह प्रतिक्रिया दी गई थी, उसे वापस लेना पड़ा.

रिश्वत के लिए रेट कार्ड

जब मैं यह कॉलम लिख रहा हूं, तब भी गुस्सा जारी है। ऐसा लगता है कि हर किसी के पास कस्टम्स विभाग से जुड़ी कोई डरावनी कहानी है. हो सकता है कि इनमें से कई बातें झूठी या बढ़ा-चढ़ाकर कही गई हों. लेकिन हर व्यक्ति जो इन्हें पोस्ट कर रहा है, झूठा नहीं हो सकता. इनमें से कुछ बातें जरूर सच होंगी. और अगर वित्त मंत्रालय की जांच के बाद किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई, तो गुस्से का निशाना खुद निर्मला सीतारमण पर भी जा सकता है.

सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि अब नए आरोप केवल कस्टम्स तक सीमित नहीं हैं. ये टैक्स अधिकारियों तक पहुंच गए हैं. आयकर और जीएसटी विभाग पर भी सवाल उठ रहे हैं. आरोप यह है कि वित्त मंत्रालय में हर जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है. सिर्फ टैक्स विभागों में ही नहीं, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय और अन्य शक्तिशाली संगठनों में भी.

यह गुस्सा उस समय सामने आया है जब अखबारों में लगातार खबरें छप रही हैं कि सरकारी अधिकारी और कर्मचारी करोड़ों रुपये की अवैध नकदी, बड़ी-बड़ी संपत्तियां और सोने के भंडार के साथ पकड़े जा रहे हैं.

हर कोई जानता है कि जिसे सरकार के अपने समर्थक भी इंस्पेक्टर राज कहते हैं, वह अब पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर हो गया है. अगर आप अपनी जमीन पर कुछ बनाना चाहते हैं तो पहले स्थानीय अधिकारियों को पैसा देना होगा. अगर आप एक छोटी फैक्ट्री चलाते हैं तो आपको इंस्पेक्टरों को रिश्वत देनी होगी, नहीं तो वे फैक्ट्री बंद कर देंगे. किसी भी सरकारी दफ्तर में कोई भी फाइल या कागज तब तक साइन नहीं होता जब तक रिश्वत नहीं दी जाती. भारत में हालात इतने खराब हो चुके हैं.

बिगड़ते हालात का एक उदाहरण टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में आया. इसमें कहा गया कि मुंबई के बिल्डर चिंतित हैं क्योंकि अधिकारियों द्वारा मांगी जा रही रिश्वत इतनी ज्यादा हो गई है कि अब रिश्वत देने वाले खुद रिश्वत लेने वालों से मुलाकात कर दरें घटाने की मांग कर रहे हैं. टाइम्स ने यहां तक किया कि उसने एक चार्ट छापा जिसमें फायर क्लीयरेंस, कमेंसमेंट सर्टिफिकेट, टाइटल क्लीयरेंस और अन्य अनुमतियों के लिए मौजूदा रिश्वत दरें दी गई थीं.

मुंबई में हालात इतने खराब हो गए हैं कि शहर का सबसे बड़ा अखबार रिश्वत की रेट लिस्ट छापने पर मजबूर हो गया.

आप कह सकते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार हमेशा से जीवन का हिस्सा रहा है. कि नगरपालिका अधिकारी हमेशा बेईमान रहे हैं. और कुछ कस्टम्स अधिकारी हमेशा से रिश्वत लेकर अपनी आय बढ़ाते रहे हैं. खासकर मुंबई एयरपोर्ट पर, हालांकि दिल्ली अब भी काफी साफ-सुथरी मानी जाती है. और आप गलत नहीं होंगे.

लेकिन इस बार फर्क यह है कि केंद्र सरकार ने हमें भ्रष्टाचार मुक्त भारत का वादा किया था. हकीकत में रिश्वतखोरी की रफ्तार सेंसेक्स और महंगाई दर दोनों से ज्यादा तेजी से बढ़ी है. पीड़ित लोग इसे सरकार द्वारा टैक्स अधिकारियों को दी गई ताकत और प्रवर्तन एजेंसियों को दी गई असीमित शक्तियों का नतीजा मानते हैं. सिस्टम को साफ करने और विकास के मौके देने के बजाय सरकार ने इसे अवैध सोने के खेतों से भर दिया है और अधिकारियों को भ्रष्टाचार के बड़े मौके मुहैया करा दिए हैं.

मध्यम वर्ग के लिए क्या मायने रखता है?

अब तक तो कम से कम ऐसा कोई मौका नहीं दिख रहा है कि मनमोहन सिंह के समय जैसी कोई भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम शुरू हो सके. यूपीए के दौर में कई कारण एक साथ आए थे, जिन्होंने सत्ता परिवर्तन का माहौल बना दिया था.

  • एक प्रचार के भूखे सीएजी दफ्तर ने काल्पनिक और अस्थिर ‘संभावित नुकसान’ जैसे बेतुके विचार पेश किए थे.
  • सरकार के खिलाफ एक तेज़ और संगठित सोशल मीडिया अभियान चला, उस समय जब कांग्रेस को ‘ट्विटर’ लिखना भी नहीं आता था.
  • टीवी चैनलों की खुली दुश्मनी थी.
  • यह धारणा बनाई गई कि मनमोहन सिंह के जाने के बाद नरेंद्र मोदी भारत को साफ कर देंगे.
  • मनमोहन सिंह की खुद की चुप्पी ने भी स्थिति को और बिगाड़ा.
  • और वह झूठा ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन, जिसे या तो मोदी का रास्ता साफ करने के लिए या फिर अरविंद केजरीवाल की अपनी महत्वाकांक्षा बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था (आप जो चाहें मान लें)। इस आंदोलन को आरएसएस का समर्थन था और अन्ना हज़ारे इसका चेहरा थे.

बहुत कम संभावना है कि भारत में फिर से इतना बड़ा आंदोलन कभी हो पाएगा. और अगर हो भी गया, तो मोदी इतने समझदार हैं कि उसे खत्म करना जानते हैं.

लेकिन इस बार सरकार जिस समस्या का सामना कर रही है, वह बिल्कुल अलग है. कांग्रेस अब भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हमला कर रही है, लेकिन बड़े पैमाने पर. जैसे अदानी और अंबानी पर ध्यान केंद्रित करके.

लेकिन भारतीय मिडल क्लास के लिए यह मायने नहीं रखता कि गौतम अडानी ने अरबों कमाए या कि राष्ट्रीयकृत बैंकों ने अनिल अंबानी को इतनी बड़ी रकम उधार दी जो उन्होंने अब तक नहीं चुकाई.

जो बात लोगों को परेशान करती है, वह है रोज़मर्रा का भ्रष्टाचार.

घर बनाना मुश्किल है. व्यापार चलाना मुश्किल है. या कोई भी ऐसा काम करना जो हमारा हक है, बिना अधिकारियों और इंस्पेक्टरों की जेब गर्म किए असंभव है.

नागरिक जिस खुले और बेकाबू भ्रष्टाचार पर गुस्सा महसूस कर रहे हैं, वह अन्ना हज़ारे जैसे आंदोलनों में नहीं बदलेगा. वैसे भी, टीवी चैनलों को इस मुद्दे को कम दिखाने के निर्देश दिए गए हैं.

लेकिन यह गुस्सा खत्म भी नहीं होगा. यह नागरिकों के दिलों में बढ़ता जाएगा. अगर सरकार ने जल्दी कुछ नहीं किया, तो यही गुस्सा बीजेपी को अगले चुनाव में भारी पड़ सकता है.

वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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