एक लंबे अंतराल के बाद देश भर के बाज़ारों में खूब चहल-पहल है. बच्चों, महिलाओं और बड़ों का तांता हर बाजार में है. दुकानों में सजावट और बड़ी कंपनियों में दिवाली डिस्काउंट यह सब लोगों को अपनी ओर खींच रहे हैं. आखिर तीन साल के बाद बाजारों में खरीदारों की भीड़ जमती दिख रही है. 2019 में कोरोना वायरस के कदम रखने के बाद यह पहला मौका है कि दिवाली में खुशियों के दिये जलते दिखेंगे. लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि इस बार बाजारों में ग्राहक दिख रहे हैं और वह भी भर-भर कर. इसका आगाज रक्षा बंधन से ही होता दिख रहा था और उत्तर भारत के पर्व करवा चौथ में बाजारों में जो खरीदारी हुई उसने सभी को खुश कर दिया.
अब लक्ष्मी के पर्व दीपावली की ओर निगाहें हैं लेकिन उसके पहले है धनतेरस, जिसमें कुछ न कुछ सामान खरीदने की परंपरा रही है. इसमें सोना- चांदी सबसे ऊपर है. सोने-चांदी के खरीदारों की उम्मीद में सर्राफा बाजार सजे पड़े हैं. राजधानी दिल्ली में सोने के बड़े व्यापारी और सोने के गहनों वाले शोरूम चेन चलाने वाले उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार सोना धनतेरस में दमकेगा. उनका यह विश्वास तीन सालों के सूखे पर आधारित है. वे मानकर चल रहे हैं कि कोविड की विभीषिका से देश उबर रहा है और इससे पहली बार लोगों को खुलकर खरीदारी का मौका मिला है.
राजधानी दिल्ली के पॉश इलाकों और कनॉट प्लेस में ज्वेलरी की दुकानों पर अच्छी भीड़ है. कनॉट प्लेस में एक नेशनल ज्वेलरी चेन के शो रूम में रविवार से ही ग्राहकों की काफी भीड़ है. सेल्स गर्ल्स बता रही हैं कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो धनतेरस पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी पड़ेगी.
पीपी ज्वेलर्स के चेयरमैन पवन गुप्ता कहते हैं कि सोना इस समय 50 हजार रुपए के पास है फिर भी खरीदार दिखते हैं. इसका कारण यह है कि अब लोगों की इनकम फिर से बढ़ने लगी है और उनकी परचेजिंग पॉवर भी. तीन सालों से ग्राहक उतना खर्च नहीं कर पा रहे थे लेकिन अब वे तैयार दिख रहे हैं. उनमें फिर से त्योहार मनाने की ललक दिख रही है. वह कहते हैं कि धनतेरस में खरीदारी शुभ मानी जाती है. इसलिए लोग न केवल सोना बल्कि घर के सामान भी खरीदते हैं ताकि उन पर लक्ष्मी की कृपा हो.
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सोने में निवेश
दि बुलियन ऐंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (टीबीजेए) के चेयरमैन योगेश सिंघल कहते हैं कि धनतेरस में इस बार हमें ग्राहकी की काफी उम्मीद है. कोरोना के दौरान लोगों ने घर बैठ कर खाया. व्यापारियों का बिजनेस खराब हो गया था तो नौकरीपेशा को आर्थिक चोट पहुंची थी लेकिन अब वह माहौल खत्म हो गया है. लोगों में अब उमंग है और वे खरीदारी के लिए तैयार हैं. लेकिन अभी स्थिति 2019 के पहले वाली नहीं है. फिर भी सोने के चाहने वाले बाजारों में दिख रहे हैं और जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आएगा उसमें बढ़ोतरी ही होगी.
लेकिन दुनिया भर में सोने की कीमतों पर नजर रखने वाली संस्था वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का मानना है कि इस बार खरीदारी तो होगी लेकिन उतनी नहीं जितनी सोची जा रही है.
उसका कहना है कि भारत में अक्टूबर से दिसंबर तक सोने के गहनों, सिक्कों और बिस्कुटों की बिक्री हमेशा बढ़ती है और इस साल के इन तीन महीनों में भी बढ़ेगी. पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था और कुल 344 टन सोने की बिक्री हुई थी. काउंसिल का मानना है कि इतना सोना इस साल भी बिकेगा. उनका कहना है कि इस साल भारत कुल 722 टन सोना खरीदेगा जबकि पिछले साल कोरोना के बावजूद कुल 800 टन की खरीदारी हुई थी. भारत में सोने के दाम तो बढ़ रहे हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में नहीं क्योंकि इस समय डॉलर की वैल्यू बढ़ रही है.
दुनिया भर में सोने के दाम पिछले सालों में गिरे हैं और यह अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में ढाई वर्षों के अपने न्यूनतम पर है. लेकिन भारत में इस पर 5 फीसदी कस्टम ड्यूटी बढ़ने से यह लगभग 2500 रुपए महंगा हो गया है. इसके दाम अभी बढ़ ही रहे हैं क्योंकि डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर होता जा रहा है लेकिन सोने के दीवानों को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि सोना निवेश का एक बढ़िया माध्यम है और बुरे समय का साथी भी है. इसने हमेशा अच्छा रिटर्न दिया है और देता रहेगा. पवन गुप्ता कहते हैं कि सोने का भविष्य उज्जवल है. यह बात आप इसके इतिहास से जान सकते हैं.
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सोना बनाम चांदी
लेकिन सोना या इसकी ज्वेलरी खरीदने में पूरी सावधानी बरतें. योगेश सिंघल कहते हैं कि सोने की खरीदारी के पहले यह देखें कि गहने में हॉलमार्क है या नहीं. फिर उसकी पक्की रसीद जरूर लें. पवन गुप्ता तो यह भी कहते हैं कि रसीद के साथ तीन फीसदी जीएसटी भी दे दें. इससे कुल कीमत जरूर बढ़ जाती है लेकिन इससे फुल गारंटी हो जाएगी.
एक ओर सोना दमक रहा है तो दूसरी ओर चांदी उदास है. उसकी कीमतें तो स्थिर हैं लेकिन खरीदार न तो चांदी खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं और न ही उसके गहने. हर साल धनतेरस में चांदी की सबसे ज्यादा खरीदारी होती है और ग्राहक तो उस दिन टूट पड़ते हैं. दिल्ली का कूचा महाजनी जहां चांदी की होलसेल मार्केट है वहां व्यापारी ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं. कोरोना काल में तो उनकी बिक्री नहीं के बराबर रही और अब जबकि कोरोना की विभीषिका कम हो चुकी है तो भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं. कूचा महाजनी सर्राफा एसोसिएशन के सचिव सुशील जैन बताते हैं कि इस समय बाजार में चांदी के ग्राहक बहुत कम हैं. वह कहते हैं कि बाजार में भीड़ तो बहुत है लेकिन असली ग्राहक अभी नहीं हैं. धनतेरस के दिन शायद खरीदार जमा हों लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी.
पिछले साल तो इससे अच्छी स्थिति थी. इस बार यह उत्साहवर्धक नहीं है. दिलचस्प बात यह है कि पहले धनतेरस में लोग चांदी के गहने या इसके सिक्के ही खरीदते थे लेकिन समृद्धि बढ़ने के कारण उनका रुझान सोने की तरफ हो गया. दक्षिण भारत में सोने की खपत सबसे ज्यादा होती है. तमिलनाडु और केरल में सोने की सबसे ज्यादा बिक्री होती है. इस बार सोशल मीडिया में जो खबरें आ रही हैं उनके मुताबिक वहां भी अभी ग्राहक सर्राफा बाजारों में टूटे पड़े हैं.
बहरहाल, धनतेरस आ गया है और अब देखना है कि सोने-चांदी की बिक्री कैसी होती है?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. विचार निजी हैं.
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