नागरिक संशोधन कानून लागू हो चुका है. इस कानून के अनुसार धर्म के आधार पर प्रताड़ना के चलते पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी. इन धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों में छह गैर-मुस्लिम समुदाय- हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी धर्म शामिल हैं. इस कानून के संसद में पेश होने से लेकर लागू होने और उसके बाद से लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है.
नागरिकता संशोधन कानून की सियासत
बीजेपी की मंशा तो यह रही होगी कि इस कानून पर हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो जायेगा और इसका लाभ सत्ताधारी पार्टी को होगा. लेकिन हिन्दू-मुस्लिम होने के बजाय लगता है कि यह मामला सरकार बनाम जनता हो गया है. इस नए कानून के विरोध में देश के विभिन्न समुदाय खड़े हो गए है.
इस कानून का मुखर विरोध दलित समुदाय की ओर से भी आया. ये बीजेपी के लिए चिंता की बात है. सीएसडीएस-लोकनीति के एक्ज़िट पोल के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव 34 प्रतिशत दलितों ने भाजपा गठबंधन को वोट दिया.
दलित वोट बैंक खिसक जाने के संभावित खतरे के कारण प्रधानमंत्री सहित भाजपा सरकार के कई मंत्रियों को लगातार कहना पड़ रहा है कि यह नया कानून दलितों के लिए हितकारी है और इसका सबसे से ज्यादा फायदा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले दलितों को होगा. इस विचार को फैलाने के लिए संघ और भाजपा सहित तमाम सरकारी मशीनरी लगी हुई है.
1947 का विभाजन और दलित
संयुक्त पाकिस्तान से दलितों का पलायन विभाजन के समय भी हुआ. विभाजन की त्रासदी की सबसे ज़्यादा मार उस क्षेत्र में रहने वाले अछूतों पर पड़ी. डॉ. आंबेडकर के हवाले से यह लेख इस बात की पड़ताल है कि विभाजन के समय दलितों के साथ भारत में कैसा बर्ताव हुआ और इस नए क़ानून के साथ क्या उस बर्ताव में किसी बदलाव की संभावना है?
पाकिस्तान से आए दलित शरणार्थियों ने डॉ. आंबेडकर को अनेक पत्र लिखे, जिसमें उन्होंने बताया कि वहां उनका दमन हिन्दू और मुसलमान दोनों करते हैं. इस सम्बन्ध में डॉ. आंबेडकर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को 18 दिसंबर, 1947 को पांच पन्नों का एक पत्र लिखा. इसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:
1. अनुसूचित जाति के जो शरणार्थी पूर्वी पंजाब आए हैं, वे भारत सरकार द्वारा स्थापित रिफ्यूजी कैंप में नहीं रह रहे हैं. इसका कारण यह है कि इन रिफ्यूजी कैंप के अधिकारी (अपर) कास्ट हिन्दू रिफ्यूजी और अनुसूचित जाति के शरणार्थी के बीच भेदभाव करते है.
2. शरणार्थियों से संबंधित कानून की वजह से ऐसा व्यवस्था है कि जो शरणार्थी राहत शिविर में रहते हैं, वही राशन, कपड़े इत्यादि प्राप्त कर सकते हैं. चूंकि उपरोक्त कारणों की वजह से अनुसूचित जातियों के लोग राहत शिविर में नहीं रह पा रहे हैं, इसीलिए उन शरणार्थियों को कोई राहत नहीं मिल पा रही है. चूंकि इस भेदभाव को ख़त्म नहीं किया जा सकता, इसलिए कानून में संशोधन की आवश्यकता है, जिससे कि अनुसूचित जाति के लोग उसी तरह राहत सामग्री पा सकें, जैसे शिविर में रहने वाले शरणार्थी प्राप्त कर रहे हैं.
3. पूर्वी पंजाब सरकार द्वारा भूमि के वितरण में भी अनुसूचित जाति के हितों को नज़रअंदाज़ किया गया है. प्रशासन पूर्ण रूप से सवर्ण हिंदुओं के नियंत्रण में है, इसीलिए वहां न तो कोई ऐसा वकती है जो अनुसूचित जाति शरणार्थी के पुनर्वास और हितों की रक्षा में व्यक्तिगत रूचि ले और न ही भारत सरकार द्वारा ऐसी किसी एजेंसी को नियुक्त किया गया है जो विशेष रूप से इन मुद्दों पर पूर्वी पंजाब सरकार का ध्यान आकर्षित कर सके कि अनुसूचित जाति के हितों की अनदेखी हो रही है.
4. पूर्वी पंजाब के अनुसूचित जाति के निवासियों से जबरन उनके मकान को खाली कराया जा रहा है, ताकि उनके मकान और ज़मीन पर कब्ज़ा किया जा सके. पुलिस और प्रशासन में अनुसूचित जाति के लोग नगण्य हैं, इसलिए इस उत्पीड़न और दमन से मुक्ति में अनुसूचित जाति के लोग असमर्थ हैं. अतः पूर्वी पंजाब सरकार को विवश किया जाना चाहिए कि वे सिविल पुलिस में अनुसूचित जाति के कम-से-कम 300 लोगों की नियुक्ति करें. हाल ही में एक समाचार पत्र ने खबर दी है कि पूर्वी पंजाब सरकार ने पुलिस बल में अनुसूचित जाति के 300 लोगों को नियुक्त किया है. लेकिन मुझे पता चला कि वे सभी सिविल पुलिस की बजाय सीमा पर तैनात किए गए हैं. सिविल पुलिस में अनुसूचित जाति से एक भी व्यक्ति नहीं है.
5. पूर्वी पंजाब की भू-राजस्व व्यवस्था के अनुसार गांव के निवासी दो भागों में विभाजित हैं – जमींदार और कमीन. गांव की सीमा के अन्दर पूरी भूमि पर ज़मींदारों का पूर्ण अधिकार है. गांव में रहने के बावजूद कमीन का भूमि पर कोई अधिकार नहीं है. इसलिए जमींदार बलात उनसे उनका घर भी खाली करा सकता है. इस व्यवस्था के तहत कमीन ज़मींदारों की दया पर रहने के लिए अभिशप्त हैं, इसलिए वे अत्यधिक बुरी स्थिति में हैं. इसलिए पंजाब की इस भू-राजस्व व्यवस्था को ख़त्म करके रैयतवारी व्यवस्था लागू करनी चाहिए.
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6. पूर्वी पंजाब में लैंड एलिएनेशन एक्ट लागू है, जिसका उद्देश्य कृषकों को साहूकारों से बचाना था. परन्तु इसमें कोई शक नहीं कि कृषक की परिभाषा व्यावसायिक नहीं, सामुदायिक है. इस कानून के अनुसार वही व्यक्ति कृषक है, जिस समुदाय की घोषणा सरकार ने कृषक समुदाय के रूप में की है. पंजाब की पुरानी सरकार ने इस बात का पूरा ख्याल रखा था कि अनुसूचित जाति को कृषक समुदाय न घोषित किया जाय, हालांकि अनुसूचित जाति का प्रत्येक व्यक्ति या तो खेत जोतने वाला है या भूमिहीन मज़दूर. फलस्वरूप पूर्वी पंजाब में अनुसूचित जाति भूमि खरीदने से प्रतिबंधित है और जीविका के लिए भूमिहीन मज़दूर बनकर रहने को विवश हैं. यह एक निर्दयी कानून है और इसे ख़त्म किया जाना चाहिए.
दलित शरणार्थियों की दशा सुधारने के लिए आंबेडकर के सुझाव
अनुसूचित जाति की दयनीय हालत और उनके बचाव के उपायों का उल्लेख करते हुए डॉ. आंबेडकर ने जवाहरलाल नेहरू को लिखा कि यदि उनके सुझावों पर अमल किया गया तो इस समस्या का हल मुमकिन है. उन्होंने लिखा कि इन समस्याओं में कुछ का निदान भारत सरकार के हाथ में है और बाकी पूर्वी पंजाब सरकार के हाथ में. यदि भारत सरकार में राजनीतिक इच्छा शक्ति है तो इन उपायों को अमल में कोई परेशानी नहीं है. जो समाधान पंजाब सरकार के हाथों में है, उसमें भी भारत सरकार को असहाय नहीं महसूस करना चाहिए. चूंकि पुनर्वास के खर्चे भारत सरकार दे रही है, इसलिए यह उनका नैतिक अधिकार है कि इन वर्गों के समान व्यवहार के लिए पंजाब सरकार को निर्देश दे.
पत्र के अंत में डॉ. आंबेडकर ने अनुसूचित जाति कि इन समस्यायों पर व्यक्तिगत रूचि लेने की अपील की. इस पत्र का उत्तर देते हुए नेहरू ने 25 दिसंबर, 1947 को लिखा, ‘पाकिस्तान से भारत आए हुए अनुसूचित जाति के शरणार्थियों के सम्बन्ध में लिखा आपका पत्र प्राप्त हुआ. पाकिस्तान, विशेष रूप से सिंध प्रान्त, जहां से अनुसूचित जाति के शरणार्थियों को भारत आने से रोका जा रहा है, उन्हें लाने का हम लोग भरपूर प्रयास कर रहे हैं. हमारे उच्चायुक्त लगातार इस समस्या पर नज़र रहे हुए हैं. जहां तक पूर्वी पंजाब सरकार का सवाल है, हम निश्चित रूप से उन्हें सलाह देंगे कि इस अनुसूचित जातियों के शरणार्थी को हर संभव सहायता मिले…मैं निश्चित रूप से इस समस्या पर व्यक्तिगत ध्यान दूंगा और सम्बंधित मंत्री को निर्देश दूंगा कि इस समस्या पर विशेष ध्यान दें.’
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बहरहाल, आंबेडकर-नेहरू पत्राचार के सन्दर्भ में भाजपा सरकार से यह सवाल बनता है कि नागरिक संशोधन कानून दलितों के हित में कैसे है. दूसरे, प्रधानमंत्री और सरकार को यह बताना चाहिए कि विभाजन के समय जो दलित और सवर्ण पाकिस्तान से भारत आए, उनकी आज क्या हालत है? पाकिस्तान से आए संभावित दलित शरणार्थी की चिंता है तो यह भी आंकड़ा देना चाहिए कि आज देश में रहने वाले दलितों की क्या हालत है. उनका कितना आरक्षण पूरा हुआ? भेदभाव और हिंसा क्या बंद हुई? क्या निजी और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व पूरा हुआ? यदि नहीं तो इसका जबाव कौन देगा?
वस्तुतः धर्म तो बहुमंज़िला इमारत की तरह है, जिसके विभिन्न खांचे हैं, जिनमें हज़ारों जातियां रहती हैं. इस इमारत में एक मंज़िल से दूसरी मंजिल में जाने के लिए सीढ़ियां नहीं हैं. दक्षिण एशिया के संदर्भ में, माइग्रेशन धर्म के मतावलंबियों का ही नहीं, जातियों का भी होता है. भारत में जाति के हिसाब से ही शरणार्थियों को सुविधाएं मिलती हैं. यह अकारण नहीं है कि पाकिस्तान से आए सवर्णों को दिल्ली के मॉडल टाउन और लाजपत नगर जैसी पॉश इलाकों में और दलितों को रैगरपुरा और देवनगर जैसी कच्ची बस्तियों में बसाया गया. प्रधानमंत्री को यह बताना पड़ेगा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए दलितों को वे किस खाने में रखेंगे?
(लेखक दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में इतिहास विभाग के असोसिएट प्रोफेसर हैं.)
मेरा सवाल है जब कोई दूसरे देश से या अपने ही देश से शरणार्थी को नागरिकता मिलती है तो उसको भारत देश के कानून में क्या-क्या हक मिलते हैं वह वोटिंग कर सकता है वह इलेक्शन लड़ सकता है इसके अलावा भी बहुत से सवाल जो भारत में रहने वाले आम नागरिकों मिलते हैं उनको भी क्या यह से हक मिलेंगे या नहीं???