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Thursday, 28 March, 2024
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पीएम मोदी का विज्ञान के आगे आस्था को तरजीह देना क्यों दुनिया में भारत की छवि खराब कर रहा है

बेकाबू कोविड पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी अगर वैज्ञानिकों की सलाहों पर ध्यान नहीं देंगे तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री का भारत दौरा रद्द किए जाने की अहमियत उन्हें समझ में नहीं आएगी.

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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत का दौरा रद्द करने का जो फैसला किया है वह न केवल कोविड संकट से निबटने में भारत की क्षमता पर एक आक्षेप है बल्कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भी एक सवालिया निशान है, जो इस घोर संकट में भी विज्ञान को आस्था पर तरजीह देने से इनकार कर रहे हैं.

इस साल दूसरी बार जॉनसन ने भारत का दौरा रद्द किया है. जनवरी में अपने देश में लॉकडाउन के कारण उन्हें भारत का दौरा रद्द करना पड़ा था, जहां उन्हें गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था. यह फैसला आखिरी वक़्त में किया गया और इसकी वजह से 55 वर्षों में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह मुख्य अतिथि के बिना संपन्न हुआ.

जॉनसन इतिहास में अपना नाम आधुनिक युग के नीरो के तौर पर दर्ज नहीं करना चाहते थे, जो वायरस से तबाह हो रहे अपने प्यारे लंदन को छोड़ तफरीह करने चला गया.

दूसरी ओर भारत में कोविड के मामलों का ग्राफ ऊपर चढ़ता गया और मोदी एक के बाद एक चुनाव रेलियां करने लगे. कोविड फैलाने वाले कुंभ मेले में लोगों की भागीदारी कम करने की अपील एक बड़े संत से तब की, जब निरंजनी अखाड़ा के प्रमुख का कोविड संक्रमण से निधन हो गया. रूस में बने स्पूत्नीक वैक्सीन जैसे विदेशी वैक्सीन को आपात स्थिति में प्रयोग करने की मंजूरी भी अभी हाल में दी गई, जबकि स्पूत्नीक और डॉ. रेड्डीज़ के वैक्सीन दिसंबर 2020 से हरी झंडी का इंतजार कर रहे थे.

यह तो साफ है ही कि मोदी सरकार ने सभी वैक्सीन के आयात पर रोक लगा दी थी, क्योंकि भारत बायोटेक का ‘आत्मनिर्भर वैक्सीन’ कोविड के लिए रामबाण साबित होने वाला था. बेशक, भारत को बायोटेक से कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि वैक्सीन बनाना कोई मामूली काम नहीं है लेकिन हैदराबाद की यह कंपनी जरूरी तादाद में वैक्सीन नहीं बना पा रही थी, जिसका अर्थ यह हुआ कि राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम संक्रमण के फैलाव की गति का मुकाबला नहीं कर पा रहा है.
केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्री हर्ष वर्द्धन अब कह रहे हैं कि भारत बायोटेक सितंबर तक वैक्सीन का दस गुना उत्पादन करने लगेगा, हालांकि तब तक महाराष्ट्र जैसे राज्यों के लिए बहुत देर हो जाएगी जहां कोविड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और एमएनएस नेता राज ठाकरे केंद्र से अपील कर चुके हैं कि राज्य को स्वतंत्र रूप से वैक्सीन खरीदने की इजाजत दी जाए मगर उनकी अपील का कोई असर नहीं हुआ.

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बांग्लादेशी पहेली

वास्तव में, झारखंड ने भी बांग्लादेश से रेमडेसिवीर सुई खरीदने की इजाजत केंद्र से मांगी है. यह एंटी-वायरल सुई कोविड के इलाज में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाती है. बांग्लादेश इसे दुनिया भर में निर्यात कर रहा है और भारत को भी बेचने के लिए तैयार है. आप सोच रहे होंगे कि इस सुई का उत्पादन करने वाली अमेरिकी बायोफार्मा कंपनी गीलीड बांग्लादेश पर कॉपीराइट के उल्लंघन का दावा क्यों नहीं कर रही, तो इसकी वजह यह है कि सबसे कम विकसित देश होने के कारण बांग्लादेश को छूट हासिल है.

बांग्लादेश से संबंधित यह मामला कोविड के मामले में दूसरे देशों के साथ भारत के कार्य-व्यवहार की एक मिसाल पेश करता है. मार्च 2020 में दिल्ली में तबलीगी जमात के मरकज को कोविड फैलाने वाला सबसे बड़ा कारण बताकर उस पर जब रोक लगाई गई थी तब बांग्लादेश समेत कई देशों के नागरिक इस चपेट में आ गए थे.

इन लोगों को कई महीने हिरासत में रखने के बाद रिहा करके अपने घर तब जाने दिया गया जब उन्होंने महामारी कानून और वीसा संबंधी दूसरे नियमों के उल्लंघन का अपराध कबूल किया. लेकिन अब जो सामने आया है वह यही बताता है कि एक निश्चित स्थान पर बिना मास्क पहने जमावड़ा लगाना शायद ही किसी कानून का उल्लंघन है, वरना कुंभ मेले में जमा हुए हजारों साधु जेल में होते.

दूसरे, बांग्लादेश दुनिया के उन 80 देशों में शामिल है जिन्हें भारत की पहल से शुरू की गई ‘वैक्सीन मैत्री’ के तहत वैक्सीन दी गई है. इस ‘मैत्री’ के तहत वैक्सीन की 644 लाख खुराक सप्लाइ की गई है, जिनमें से करीब आधी यानी 357 लाख खुराक व्यापारिक रूप से बेची गई है.

बांग्लादेश ने अपनी वयस्क आबादी का टीकाकरण शुरू करने के लिए 2020 के पतझड़ में पुणे के सेरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआइआइ) को 3 करोड़ खुराक के लिए 6 करोड़ डॉलर का भुगतान किया. लेकिन उसे अब तक सिर्फ 1.3 करोड़ खुराक ही मिली है, जिनमें से 33 लाख खुराक भारत की तरफ से भेंट है (20 लाख खुराक पहले मिली, फिर मोदी जब बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष की 50वीं वर्षगांठ पर सम्मानित आतिथि के रूप में गए थे तब 12 लाख खुराक साथ ले गए थे; पिछले सप्ताह सेनाध्यक्ष एम. एम. नरवणे 1 लाख खुराक अपने साथ ले गए.


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वैक्सीन की कमी और मैत्री मैत्री का खेल

बांग्लादेश ने अपने 60 लाख लोगों को टीके की एक खुराक लगवा दी है, अब वह चाहता है कि सेरम इंस्टीट्यूट अपना वादा पूरा करे, जिसके लिए उसने भुगतान भी ले लिया है ताकि उन लोगों को दूसरी खुराक दी जा सके. लेकिन ‘वैक्सीन मैत्री’ फिस्स हो गई है और केंद्र सरकार ने घरेलू संकट के कारण वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगा दी है.
तो अब बांग्लादेश का क्या होगा, जिसके साथ प्रधानमंत्री मोदी ने अटूट दोस्ती का वादा किया है?

फिलहाल तो बांग्लादेश आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति में फंसा है, हालांकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत अपना वादा पूरा करेगा. सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश उलझन में है कि अब क्या करे; रूस और चीन जैसे देशों से वैक्सीन आयात करे या नहीं, जिनके पास पर्याप्त भंडार है. अब सवाल यह है कि क्या लोग एक खुराक आस्ट्राज़ेनेका की लें और दूसरी सीनोफार्मा की या स्पूत्नीक की?

बांग्लादेश तो सांसें रोके इंतजार कर रहा है मगर दूसरे देशों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है. यूरोपीय संघ ने सीरम इंस्टीट्यूट से 1 करोड़ खुराक खरीदने की भारत से मंजूरी मांगी है, जबकि ब्रिटेन दबाव डाल रहा है कि उसने 1 करोड़ खुराक का जो ऑर्डर दिया था उसका बाकी आधा हिस्सा भारत उसे निर्यात करे.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत जैसे भाजपा के नेताओं ने जिस तरह बयान दिया है कि “मां गंगा कोरोना को फैलने नहीं देंगी”, उसने भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को पहले ही भारी चोट पहुंचाई है. बेकाबू कोविड पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी अगर वैज्ञानिकों की सलाहों पर ध्यान नहीं देंगे तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री का भारत दौरा रद्द किए जाने की अहमियत उन्हें समझ में नहीं आएगी.

(लेखिका कंसल्टिंग एडिटर हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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