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Saturday, 21 December, 2024
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मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय को क्यों बचाया जाना चाहिए?

आजम खान से राजनीतिक लड़ाई राजनीतिक तरीके से लड़ी जानी चाहिए. लेकिन किसी विश्वविद्यालय को सिर्फ इसलिए निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए कि उसे आजम खान ने स्थापित किया है.

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विश्वविद्यालयों पर भाजपा सरकार के हमले रुक नहीं रहे हैं. ताज़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश में रामपुर का मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय है. 2006 में स्थापित एवं 2012 में विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त शैक्षणिक संस्थान मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय तमाम समुदायों और खासकर मुस्लिमों को आधुनिक शिक्षा से जोड़नेवाली बेहतरीन यूनिवर्सिटी की तरह उभर रही है, जिसपर सरकार ने जमीन-विवाद के नाम पर हमले तेज कर दिए हैं. पिछले दिनों इस यूनिवर्सिटी पर छापे मारे गए और ये यूनिवर्सिटी अब सिर्फ गलत वजहों से चर्चा में है. इस यूनिवर्सिटी के चांसलर सपा सांसद आजम खान हैं. आजम खान पर होने वाले हमलों की धार अब इस यूनिवर्सिटी की ओर मुड़ गई है.

उत्तर प्रदेश जैसे शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े राज्य में किसी भी मुस्लिम जनप्रतिनिधि द्वारा आधुनिक शिक्षा का केंद्र स्थापित करना एक स्वागतयोग्य कदम है. रामपुर और आसपास के गरीब मुसलमानों को यहां अगर आधुनिक शिक्षा हासिल करने का मौका मिलता है, तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है?

जमीन के विवाद पर मैं किसी तरह की टिप्पणी करने में सक्षम नहीं हूं. लेकिन मेरा मानना है कि अगर कोई विवाद है भी तो आज़म खान उसे उचित मुआवजा देकर सुलझाएं और सरकार इस विवाद को हल करने में सहभागी बने. कोई भी पक्ष ऐसा कुछ न करे, जिससे विश्वविद्यालय और वहां पढ़ रहे स्टूडेंट्स पर कोई बुरा असर पड़े.

सनद रहे कि मोदी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने देश के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अम्बानी के जियो इंस्टिट्यूट को बनने से पहले ही ‘इंस्टिट्यूट ऑफ़ एमिनेन्स’ का दर्जा दिया था, जबकि मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय न सिर्फ विगत कई वर्षों से सुचारु रूप से चल रहा है, बल्कि इस विश्वविद्यालय के बारे में कोई भी कहीं से भी ऑनलाइन जानकारी प्राप्त कर सकता है.

बीजेपी द्वारा विश्वविद्यालयों पर हमला

दरअसल मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी का मामला अलग-थलग नहीं है. भाजपा की सरकारों पर, चाहे केंद्र में हो या राज्य में, शिक्षा के भगवाकरण को लेकर बुद्धिजीवियों के बीच खासा विरोध होता रहा है. शिक्षा को लेकर यह विरोध वैचारिक है. भाजपा जब विपक्ष में थी तब वह कांग्रेस, वामपंथी एवं अन्य पार्टी की राज्य सरकारों के शासनकाल में बढ़ावा दिए जाने वाले शिक्षा के स्वरूप को ‘राष्ट्रविरोधी’ बताती रही है. वहीं दूसरी तरफ, भाजपा के शासनकाल में शैक्षणिक पाठ्यक्रम के स्वरूप में बदलाव को विपक्षी पार्टियां शिक्षा के भगवाकरण की कोशिश बताती है.


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शिक्षा के भगवाकरण का अर्थ क्या है?

शिक्षा के भगवाकरण का वर्तमान समय में व्यावहारिक अर्थ है, शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी प्रकार की असहमति या विरोधी विचार को सहन न करना और उस पर हमला करना. लेकिन, इसका सबसे उग्र स्वरूप मुस्लिमों के विरोध के संदर्भ में देखने को मिलता है. शिक्षा का भगवाकरण सिर्फ भाजपा के शासनकाल में देखने को नहीं मिलता, बल्कि देश में अमूमन हर शासन में देखने को मिलता रहा है. अन्य पार्टियां कहने को तो शिक्षा के भगवाकरण का विरोध करती हैं. लेकिन मुस्लिमों को शिक्षा और शैक्षणिक माहौल दे पाने में असफल साबित हुई हैं. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने इस बात को निर्णायक रूप से साबित कर दिया है. हालांकि सेकुलर कहे जाने वाले दलों की कार्यशैली इस क्षेत्र में बीजेपी की तरह उग्र नहीं है. भारत में शिक्षा के भगवाकरण का स्वरूप इतना व्यापक है कि हम चाहकर भी पाठ्यक्रमों में तार्किकता और वैचारिक लोकतंत्र की स्थापना नहीं कर पाते. हमारी सहमति एवं असहमति का निर्धारण अक्सर तार्किकता की जगह जाति, धर्म, लिंग, राज्य, भाषा इत्यादि से ही होता है. पहचान के अन्य बिन्दुओं पर धर्म हावी साबित होता है. यानी समस्या बीजेपी के आने से पहले भी थी. फर्क सिर्फ इतना है कि बीजेपी के प्रचंड बहुमत में आने के बाद यह प्रक्रिया बेलगाम हो गई है.

मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय का खास संदर्भ

गौरतलब है कि आरएसएस-भाजपा मानती हैं कि मदरसों में मुस्लिमों को कट्टरपंथी बनाया जाता है. लिहाजा वे मुस्लिमों को मदरसे से बाहर निकालकर आधुनिक शिक्षा से जोड़ने की बात करते हैं. ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुस्लिम बच्चों के हाथ में कुरआन के साथ-साथ कंप्यूटर देने की भी बात कही है. लेकिन बीजेपी जो बोल रही है, वह कर नहीं रही है. जिन विश्वविद्यालयों में मुस्लिमों को आधुनिक शिक्षा दी जाती है, वे मोदी-योगी सरकार के निशाने पर रहे हैं.


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भारत में मुस्लिमों को सबसे पहले आधुनिक शिक्षा से जोड़ने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मोदी सरकार के बनने के बाद से ही जंग का मैदान बना हुआ है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा छिनने की बात निरंतर हो रही है. संभव है, इस सरकार के रहते यह कर भी दिया जाए. ये मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है. दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया का अल्पसंख्यक दर्जा भी केंद्र सरकार के निशाने पर है और ये मामला भी कोर्ट में है, जहां केंद्र सरकार ने इस यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का विरोध किया है. खासकर वंचितों के बीच शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर तो बीजेपी के हमले रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. 9 फरवरी, 2016 की घटना के बाद से ही ये विश्वविद्यालय लगातार अपनी स्वायत्तता गंवा रहा है.

ऐसी ही पृष्ठभूमि में मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी का मामला सामने आया है. आज़म खान किसी विशेष राजनीतिक पार्टी से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन उनके द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय आगे चलकर बीएचयू, एएमयू, जामिया, जेएनयू सरीखे अन्य विश्वविद्यालयों की तरह भारत की शैक्षणिक समृद्धि में योगदान देने की क्षमता रखता है. मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय पर योगी सरकार के हमले को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए.

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं.यह लेखक का निजी विचार है.)

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