1990 के शुरूआती दशक में भाजपा के उभरने के बाद से, कांग्रेस के बारे में एक आम शिकायत रही है कि उनके पास कोई कहानी नहीं है। हमें पता नहीं कि कांग्रेस पार्टी क्या पेशकश कर रही है, ऐसी राजनैतिक विशेषज्ञों तथा राजनेताओं की शिकायत है ।
यह सवाल कई तरीकों से पूछा जाता है कि अगर कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे पर चल रही है, तो फिर कांग्रेस भाजपा से अलग कैसे है? राहुल गांधी क्या कर रहे हैं? कांग्रेस और भाजपा दोनों सुधारों पर सहमत हैं, लेकिन कांग्रेस उनके बारे में क्षमाप्रार्थी है, और नरसिम्हा राव एवं अन्य लोगों को खुदसे अलग रखती है।
यह अजीब है क्योंकि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच अंतर और मतभेद दिन के उजाले की तरह स्पष्ट हैं।
कांग्रेस स्पष्ट रूप से ना तो धर्मनिरपेक्षता के बारे में शोर मचाती है और ना ही चुप रहती है, या साफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे पर भी ना तो स्पष्टता से बहिष्कार करती है और ना तो उसका पालन करती है, परन्तु भाजपा के विपरीत यह मुसलमानों को टिकट देती है। यह हिंदू-मुस्लिम दंगों को न्यायसंगत बनाने की बजाय उनके बारे में असंतोष प्रकट करती है। यह मुसलमानों की आर्थिक स्थिति पर नजर रखने के लिए एक सच्चर समिति को स्थापित करता है, कुछ ऐसा जिसकी कल्पना आप भाजपा से नहीं कर सकते।
इस बात में तो कोई शक नहीं है कि भाजपा सत्ता से मुसलमानों को बाहर करने की कोशिश करती है, जबकि कांग्रेस ऐसा नहीं करती।
इसी तरह, कांग्रेस का आर्थिक झुकाव सेंटर लेफ्ट की ओर ज्यादा है। कांग्रेस ने ग्रामीण गरीबों को काम की गारंटी देने के लिए एक कानून का निर्माण किया, लेकिन मोदी सरकार इसका मजाक उड़ाया। कांग्रेस किसानों को अधिक पैसा देने के लिए न्यूनतम समर्थन कीमतों को बढ़ाती है, जबकि भाजपा खाद्य मुद्रास्फीति की वजह से चिंता करती है।
भाजपा, बाजपेई से मोदी तक कल्याणवाद (लोक हितकारी राज्यों का) न करने की कोशिश करता है और जब भी ऐसा होता है, इसके बारे में क्षमा याचना मांगती है। भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसका पहला ध्यान शहरी भारत और शहरीकरण की ओर है। कांग्रेस शहर से ज्यादा गांवों के बारे में बात करती है। कांग्रेस एक खाद्य सुरक्षा कानून लाती है, बीजेपी ‘अधिकार पर सशक्तिकरण’ का समर्थन करती है।
कांग्रेस सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर स्पष्ट रूप से केन्द्रित है। राहुल गांधी के भाषणों से एक बात बहुत स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी संसद और मीडिया के साथ साथ जहां जरूरी है वहां पार्टी के कार्यों में हस्तक्षेप करती है।
तो, इतने सारे लोग क्या कहते हैं कि कांग्रेस के पास कोई लम्बी कहानी नहीं है?
जब आपके पास एक दुश्मन न हो
ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस पार्टी हमें नहीं बता रही कि उसका दुश्मन कौन है, उनसे कौन लड़ रहा है, तो यह तो नहीं ही मालूम पड़ेगा कि वह दुश्मन दिखता कैसा है।
एक सफल राजनीतिक कथा के लिए प्रत्यक्ष शत्रु की जरूरत होती है। स्पष्ट होना चाहिए कि आप किसके खिलाफ लड़ रहे हैं जिससे कि आप और आपके अनुयायियों के लिए लड़ने का एक परिभाषित कारण मिल जाता है, आपको बुराइयों के खिलाफ लड़ने वाले एक विश्वासी उम्मीदवार के रूप में दर्शाता है आपको विकास के बारे में पिछड़े कामों के बजाय एक कर्ता की तरह दिखाता है। अपने दुश्मन के बारे में खुलकर बोलने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आप क्या योजना लेकर आ रहे हैं और आप किस लिए खड़े हैं।
भाजपा और आरएसएस अपने दुश्मनों को स्पष्ट रूप से पहचानते हैं: मुस्लिम, कांग्रेस, धर्मनिरपेक्षतावाद और उदारवाद।
अन्ना हजारे का लोकपाल बिल पर आंदोलन सफल रहा क्योंकि इसमें इन्होंने अपने दुश्मन को स्पष्ट कर दिया था: भ्रष्टाचार।
महात्मा गांधी को पता था कि उनके शत्रु कौन थे: ब्रिटिश, छुआ-छूत और यहाँ तक कि आधुनिक विज्ञान भी।
बी.आर. अम्बेडकर दलितों के खिलाफ जाति आधारित भेदभाव की लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन वह दुश्मन की पहचान करने में बहुत आगे निकल गए। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जाति हिंदू धर्म का अभिन्न अंग था और इस तरह हिंदू धर्म उनका दुश्मन था। वह बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए।
विशेष रूप से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी, दुश्मन को पहचानने और परिभाषित करने में बेहतर है। पार्टी का आदर्श वाक्य कांग्रेस-मुक्त भारत, दुश्मन की पहचान करने के बारे में है।
दुश्मन ना होने के कारण, वास्तव में यह एक समस्या है कि पिछले कुछ महीनों में भाजपा ने राहुल गांधी की महानता को नीचा दिखाने के लिए कई साजिशें रची हैं! हरियाणा चुनाव में जाटों में फूट डालना, इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में यादवों और मुसलमानों के खिलाफ फूट डालना, इनका फार्मूला रहा है।
कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के लिए खड़ी है, लेकिन हिंदुत्व पर हमला नहीं करना चाहती क्योंकि इसे विश्वास है कि वह हिंदुत्व को मजबूत करेगी। कांग्रेस विकास के मुद्दे पर लेफ्ट कि सोच क साथ खड़ी है, लेकिन वे पूंजीवाद पर हमला नहीं करना चाहते हैं क्योंकि यह सुधारों के लिए भी प्रतिबद्ध है।
कांग्रेस पार्टी का भाजपा के खिलाफ शोर मुश्किल से सुनने में आता है। यह नरेंद्र मोदी को एक दुश्मन के रुप में (“व्यक्तिगत हमले को छोड़कर”) में नहीं चाहता है , क्योंकि यह सोचता है कि वह केवल उसे मदद करेंगे।
लेकिन कांग्रेस पार्टी को एक शत्रु की आवश्यकता है।
लेकिन यह कौन हो सकता है?
यहाँ एक अशांतिकारक विचार है। शशि थरूर की अपनी आधिकारिक स्थिति के रूप में पुनर्निर्माण के लिए मांग को अपनाने को लेकर कांग्रेस अपनी महामहिम की सरकार को अपना दुश्मन बना सकती है। कांग्रेस आधिकारिक तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक लूट और बाद में राज को भारत की क्षतिपूर्ति करने की मांग कर सकती है। राहुल गांधी अपने महामहिम को एक पत्र लिख सकते हैं जिसमें वह उनसे अपने ताज से कोहिनूर हीरे को हटाने और इसे दिल्ली राष्ट्रीय संग्रहालय में भेजने की मांग कर सकते हॆं। यह जलियाँवाला बाग में क्रूरतापूर्वक मारे गए लोगों के उत्तराधिकारियों के लिए बिना शर्त, माफी के साथ मुआवजे की मांग कर सकते हैं। मुआवजे की राशि के लिए लाल किले के कुछ हिस्सों का विनाश, बंगाल में अकाल के कारण हुई मौतें, 1857 के विद्रोह के बाद लोगों को दी गई फांसी आदि मामलों को भी शामिल करना चाहिए।
इसमें कई लाभ होंगे
पहला, इससे मुसलमान बीजेपी के विचार को दुश्मन के रूप में नुकसान पहुंचाएगें, जो पाकिस्तान के निर्माण के लिए मुस्लिम आक्रमण के साथ शुरू होता है।
दूसरा, ब्रिटिश उपनिवेशवाद के निर्माण से दुश्मन कांग्रेस को एक बार फिर राष्ट्रवाद की कथा को लेकर सामना करने में मदद कर सकता है।
तीसरा, यह कांग्रेस को लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में पार्टी का योगदान याद रखने में मदद कर सकता है और इस तरह नेहरू को कीचड़ में फंसे हुए हिंदुत्व से बचाव के लिए उसे अधीनस्थ किया है।
चौथा, जब ब्रिटिश लोग भारत छोड़कर गए थे तब देश में बहुत लोग गरीबी का सामना कर रहे थे कांग्रेस उन लोगों को भी याद कर सकती है कि भारत में तब की अपेक्षा कितना बदलाव आया है और इस तरह कांग्रेस भाजपा की कार्यशैली का विरोध कर सकती है कि कांग्रेस ने 60 साल तक सत्ताधारी होने के बावजूद कुछ नहीं किया।
पांचवा, अंततः कांग्रेस ब्रिटिश में एक नया दुश्मन बनाकर एजेंडा सेट करने के लिए कुछ कर सकती है।