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Monday, 4 November, 2024
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नीतीश से लेकर ममता, उद्धव और कमल हासन को प्रशांत किशोर क्यों चाहिए

असल जिंदगी में पीके फिल्म के डायलॉग में थोड़ा बदलाव करें तो वो कुछ इस तरह का होगा, 'जो डर गया वो पीके (प्रशांत किशोर) के पास गया.'

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आमिर खान ने 2014 में आई फिल्म पीके में कहा था, ‘जो डर गया वो मंदिर गया’. असल जिंदगी में इस डायलॉग में थोड़ा बदलाव करें तो वो कुछ इस तरह का होगा, ‘जो डर गया वो पीके (प्रशांत किशोर) के पास गया.’

पीके की लिस्ट देखें तो उसमें नरेंद्र मोदी उनके क्लाइंट रह चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में पीके ने नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान को संभाला था. वर्तमान में उनकी लिस्ट में शिवसेना जो कि भाजपा की महाराष्ट्र में गठबंधन सहयोगी है, बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और तमिलनाडु में कमल हासन की पार्टी मक्कल निधि मय्यम शामिल हैं.

प्रशांत किशोर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के भी सलाहकार रह चुके हैं. वह वर्तमान में जनता दल (यू) के उपाध्यक्ष हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने के लिए दो बार कहा था.

अगर सिनेमाई पीके असल जिंदगी के पीके के बारे में पढ़ेंगे तो वो यही कहेंगे, ‘हम बहुत ही कनफुसिया गया हूं.’ असल में ऐसा प्रशांत किशोर में क्या है कि भारतीय नेता उनमें इतना विश्वास जता रहे हैं. इस काम के लिए यह जरूरी नहीं है कि उनकी विचारधारा उनसे मिलती है या नहीं.

प्रशांत किशोर की यूएसपी क्या है

पिछले बुधवार को जब मैंने बंगाल भाजपा प्रमुख दिलीप घोष से पूछा कि वो राज्य में होने वाले चुनावों में प्रशांत किशोर को कितनी बड़ी चुनौती मानते हैं. उस पर उनका जवाब था कुछ भी नहीं. वो कहते हैं, ‘प्रशांत किशोर ममता बनर्जी को सुबह में जो सिखाता है वो शाम में भूल जाती हैं. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब पूरा देश चंद्रयान की सफलता के लिए प्रार्थना कर रही था तब वो इसके खिलाफ बोल रही थीं. ममता बनर्जी ने कहा था कि आर्थिक चिंताओं से ध्यान हटाने के लिए चंद्रयान-2 को लांच किया गया था.’

घोष का प्रशांत किशोर पर दिया बयान उनकी काबिलियत पर भरोसा जताने वाला है. प्रशांत ने चुनावों में रणनीति बनाने के लिए 2014 में चाय पे चर्चा, 3-डी हॉलोग्राम तकनीक का सभाओं में इस्तेमाल किया था.


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प्रशांत किसी भी नेता की ब्रैंडिंग करने में और उनकी जनता तक पहुंच बनाने में महारत रखते हैं. पंजाब चुनाव में उन्होंने कॉफी विथ कैप्टन लांच किया था, राहुल गांधी के लिए खाट पे चर्चा, बंगाल में ममता बनर्जी के लिए दीदी के बोलो और बिहार में नीतीश कुमार के लिए आगे बढ़ता रहे बिहार, फिर एक बार नीतीश कुमार शुरू किया था.

नारों, पोस्टरों और नेताओं के भाषण क्या होंगे सब प्रशांत ही तय करते हैं. प्रशांत की सलाह पर ही आंध्र प्रदेश के चुनाव में जगन मोहन रेड्डी ने गांव के लोगों को 60 हज़ार खत भिजवाए थे. इसके अलावा 14 महीने की पद यात्रा के पीछे भी प्रशांत किशोर की ही सोच थी.

प्रशांत किशोर ने इस काम के लिए पूरी टीम बना रखी है. इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी नाम से उनकी चुनावी रणनीति बनाने की कंपनी चलती है. इस कंपनी में मीडिया टीम से जुड़े 20 लोग और सोशल मीडिया टीम में 30 लोग शामिल हैं. डाटा से जुड़ी टीम में भी लगभग 6 लोग काम करते हैं. इसके अलावा फील्ड ऑपरेशन टीम भी बनाई जाती है जो चुनाव क्षेत्र में काम करती है. लोगों से फीडबैक लेकर काम करने वाली एक टीम भी इस कंपनी में काम करती है. जिसमें डॉक्टरों, किसानों, वकीलों, अध्यापकों से फीडबैक लिया जाता है.

डाटा से जुड़ी टीम चुनाव क्षेत्र में जब काम करती है तो वो उस जगह के ऐतिहासिक आंकड़ों को भी जुटाती है जिसमें यह तय किया जाता है कि कौन सा बूथ मजबूत है और कौन सा कमज़ोर. उसी हिसाब से फिर रणनीति तैयार की जाती है. फील्ड में काम करने वाली टीम जाति से जुड़े समीकरणों पर भी ध्यान देती है. इसी क्रम में टीम द्वार सर्वे कराया जाता है जिससे पता चलता है कि किस उम्मीवार की उस क्षेत्र में कैसी संभावना है. बूथ लेवल पर व्हाट्सएप ग्रुप बनाए जाते हैं जिसमें चुनाव से जुड़ी जानकारी दी जाती है. कार्टून, मीम भी ग्रुप पर भेजे जाते हैं.

प्रशांत किशोर लगभग सभी जगह इन तरीकों को इस्तेमाल चुनावी रणनीति तैयार करने में करते हैं. वह भले ही अपने क्लाइंट की स्थिति मज़बूत करते आए हैं लेकिन उनकी कामयाबी कभी कभी अपने क्लाइंट को एक्सपोज़ भी करती है.


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राजनेताओं का कमजोर बिंदु

पीके जितना अधिक सफल होते हैं, भारतीय राजनीतिक वर्ग उतना ही दयनीय दिखता है. आखिर, एक पूर्व सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मेज पर ऐसा क्या लाता है जो भारतीय पेशेवर राजनेताओं के पास पहले से ही नहीं है? चाय, कॉफी या खाट (कॉट) पर कुछ चर्चा रातोंरात एक राजनेता की छवि कैसे बदल देती है? भाजपा, कांग्रेस, जद (यू), टीएमसी या एमएनएम के एक बूथ-या ब्लॉक स्तर के सदस्य को यह नहीं पता कि किशोर का डेटा एनालिटिक्स या फील्ड ऑपरेशनों की टीम स्विंग बूथों या जलने के मुद्दों या प्रभावितों के बारे में क्या इकट्ठा करती है? और बूथ-वार डेटा सार्वजनिक डोमेन में किसी को भी और सभी के लिए समझने के लिए उपलब्ध हैं.

निश्चित रूप से, प्रत्येक पार्टी को पता है, या जानकारी रखती है, वह सब कुछ जो चुनावी रणनीतिकार जैसे प्रशांत किशोर एक मोटी फीस के लिए मेज पर लाते हैं. मोदी को यह पता था लेकिन निराश मदद चाहने वालों पर कौन ध्यान देगा?  एक निगरानी निकाय के रूप में या यूपीए के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की तर्ज पर – मोदी ने दूसरे तरीके को अपनाया और जांचे-परखे संस्थानों पर भरोसा करने का विकल्प चुना. चुनावी रणनीतिकार, विपक्षी खेमे में जाने के बाद भी आशा से चिपके रहे और मोदी से मिलते रहे. लेकिन मोदी और अमित शाह को किसी और चुनाव के लिए उब उनकी जरूरत नहीं थी. हालांकि वे अपनी सेवाओं को नहीं भूले, जैसा कि बाद के चुनावों के परिणामों से साफ था.

यहां तक कि कांग्रेस में, किशोर और उनके लोगों ने अक्सर एक आम आशंका का सामना किया है, जैसा कि उत्तराखंड के एक राजनेता ने उन्हें कहा था: ‘हम 40 साल से राजनीति कर रहे हैं. तू मझे सिखायेगा राजनीति कैसे करते हैं!’ कांग्रेस के लोग अति चर्चित चुनावी रणनीतिकार को बता रहे थे कि दशकों तक राजनीति में रहने के बाद, उन्हें उनसे इसके तरीके सीखने की जरूरत नहीं थी. यही एक कारण था कि किशोर कांग्रेसियों के साथ कभी नहीं रह पाए और आखिर में पार्टी के साथ अपना नाता तोड़ लिया. 10, जनपथ या 12, तुगलक लेन (सोनिया और राहुल गांधी के नई दिल्ली आवास) में किसी ने भी नहीं सुना, हालांकि कांग्रेस को अस्तित्ववादी संकट का सामना करना पड़ा.


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कांग्रेसियों का अक्खड़पन गलत हो सकता है, लेकिन किशोर के पास खुद का बचाव करने के लिए कुछ भी नहीं था, खासकर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश चुनाव 2017 में पार्टी के रणनीतिकार के रूप में अपनी निराशाजनक विफलता के बाद. 2014 में मोदी, 2015 में नीतीश कुमार-लालू, 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह और 2019 में जगनमोहन रेड्डी की किस्मत पलटने का जो लेवल उनके साथ लगा हुआ था वह नहीं दिखा पा रहे थे. इस मायने में, अति जाने-पहचाने रणनीतिकार को खुद के कमाल को साबित करने का एक वास्तविक मौका पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में 2021 के विधानसभा चुनावों में मिला है, जबकि उनके प्रशंसक पहले से ही मान चुके हैं कि इस साल महाराष्ट्र और अगले साल बिहार में चुनाव जीतना एनडीए के लिए आसान है.

चुनावी परिणामों के परे प्रशांत किशोर की सफलता बहुत बड़ी है. प्रशांत की रणनीति ने भारतीय नेताओं के बीच असुरक्षा को बढ़ाया है. नेता आजकल उनकी मदद ले रहे हैं ताकि चुनाव में जीत हासिल कर सकें.

पोस्ट स्क्रिप्ट: 2002 की सर्दियों में मेरी प्रशांत किशोर के साथ मुलाकात हुई थी. भाजपा के पूर्व महासचिव केएन गोविंदाचार्य के साथ वो एक मीटिंग में शामिल हुए थे. उसी समय मेरी उनसे मुलाकात हुई थी. उस समय उन्होंने वैश्वीकरण के प्रभाव पर अपनी बात रखी थी. उन्होंने मुझसे मेरे घर के बारे में भी पूछा था. मैंने उन्हें बताया कि बिहार मेरा जन्मस्थान है. फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं किस जिले से आता हूं. किसी से भी जुड़ने का यह सबसे बेहतरीन तरीका होता है. मैं बिल्कुल चकित था यह सब देखकर.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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