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Wednesday, 20 August, 2025
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ज्ञानेश कुमार और राहुल गांधी के बीच की तनातनी से मोदी और BJP को क्यों चिंतित होना चाहिए

अगर मुख्य चुनाव आयुक्त और विपक्षी नेताओं के बीच रिश्ते बिगड़ते हैं, तो लोगों का चुनाव के नतीजों पर से भरोसा उठ सकता है. यह भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बुरी स्थिति होगी.

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रविवार को राहुल गांधी की बिहार में शुरू हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से अमित मालवीय थोड़े परेशान ज़रूर होंगे.

भारतीय जनता पार्टी का सोशल मीडिया विभाग, जिसकी जिम्मेदारी मालवीय के पास है, इस समय राइट-विंग सर्कल में आलोचना झेल रहा है. वजह है: बिहार में चुनाव आयोग की विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर विपक्ष के नैरेटिव का सही से जवाब न दे पाना.

ऐसा ही एक मामला देखिए. तुषार गुप्ता, जिनका बायो उन्हें “एंटी-लेफ्ट” बताता है, उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर अपनी चिंता ज़ाहिर की कि चुनावी प्रक्रिया पर “फर्ज़ी खबरें” फैलाई जा रही हैं.

उन्होंने लिखा, “बिलकुल भी प्रतिरोध नहीं. चुनाव आयोग की प्रेस रिलीज से काम नहीं चलेगा…”

उनका तर्क था कि 2029 में 18-24 साल का वोटर ग्रुप “रील देखने वाला होगा, पढ़ने वाला नहीं” और राहुल गांधी आसानी से उन्हें प्रभावित कर सकते हैं. उन्होंने कहा, “और वही तो वे अभी कर रहे हैं.”

एक्स यूज़र्स ने इस थ्रेड पर तीखी प्रतिक्रिया दी और गुस्सा मालवीय पर निकाला. कुछ ने तो यहां तक कहा कि उन्हें बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.

आरएसएस पर कई किताबें लिख चुके डॉ. रतन शारदा ने भी तुषार की बात से सहमति जताई. उन्होंने कहा कि जेन जेड (GenZ) बीजेपी से “जुड़ा हुआ नहीं” है.

उन्होंने लिखा, “कम्युनिकेशन, स्लोगन और मैसेजिंग—सब कुछ एक मिडिल-एज्ड पार्टी की इमेज बनाता है, जबकि पार्टी दरअसल सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक युवा और सफल पार्टी दिखाना चाहती है. @BJP4India को अपने सोशल मीडिया अप्रोच और कम्युनिकेशन को नया रूप देना होगा.”

मालवीय की तरफ से देखें तो 11 साल की सत्ता के बाद हेडलाइन मैनेजमेंट और नैरेटिव बिल्डिंग आसान नहीं रहती. विपक्ष के साथ निपटने में चुनाव आयोग का आक्रामक रवैया भी उनके काम को मुश्किल बना रहा है.

रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ आरोप पर कहा, “या तो शपथ लीजिए या देश से माफी मांगिए. तीसरा कोई रास्ता नहीं है.”

कई संवैधानिक विशेषज्ञ, जैसे लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने चुनाव आयोग की मांग को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि मतदाता सूची नियम 1960 के नियम 20(3)(b) का यहां लागू होना संभव नहीं है, लेकिन कुमार को इस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.


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आरोप लगाने वाले गांधी पहले नहीं

कब से मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को यह अधिकार मिल गया कि वह जनप्रतिनिधियों को माफी मांगने का आदेश दें? यहां तक कि पूर्व CEC एम.एस. गिल, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हुए और केंद्रीय मंत्री बने, उन्होंने भी अपने कार्यकाल में विपक्षी नेताओं से कभी ऐसी मांग नहीं की थी.

हो सकता है गांधी के शब्द चयन से सभी सहमत न हों — चाहे वह ‘चौकीदार चोर है’ हो या ‘वोट चोरी’. राजनीति में भूकंप लाने की कोशिश में वह अक्सर बहक जाते हैं, लेकिन यह किसी संवैधानिक संस्था के लिए विपक्ष के नेता को सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने का कारण नहीं हो सकता और यह भी पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग पर सत्ताधारी दल को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा हो. सच तो यह है कि CEC पहले भी और अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद के व्यक्ति ही रहे हैं — यानी उस पद पर सत्तारूढ़ दल की पसंद बैठी है.

1971 में कांग्रेस से दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट हारने के बाद जनसंघ नेता बलराज मधोक अदालत पहुंचे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस और चुनाव आयोग की मदद से धांधली कराई गई. आरोप था कि बैलेट पेपर कैमिकली तैयार किए गए और मशीन से कांग्रेस उम्मीदवार शशि भूषण के पक्ष में मुहर लगाई गई. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी. 2002 में भी तब के गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को CEC जे.एम. लिंगदोह पर हमला करने के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से फटकार मिली थी.

ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जब नेताओं ने चुनाव आयोग की आलोचना की, लेकिन किसी भी CEC ने इसे व्यक्तिगत मुद्दा नहीं बनाया. चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराए, किसी पार्टी या नेता से दुर्भावना रखे बिना. अगर CEC और विपक्षी नेताओं के बीच व्यक्तिगत वैर और सार्वजनिक झगड़ा हो, तो यह लोगों के चुनाव परिणामों पर विश्वास को हिला देगा और यही भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बुरी स्थिति होगी.

गांधी पर हमला करने के बजाय चुनाव आयोग को चाहिए था कि वह बेंगलुरु की महादेवपुरा सीट पर फर्ज़ी वोटरों की उनकी शिकायत की जांच कराता, या फिर महाराष्ट्र में मतदाताओं की बढ़ी हुई संख्या की जांच करता. बिहार की तरह वहां भी स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) कराकर आरोपों को खारिज किया जा सकता था. इससे आयोग की विश्वसनीयता भी मजबूत होती.

बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर ने भी विपक्षी नेताओं जैसे गांधी और अखिलेश यादव की सीटों पर फर्जी वोटरों का आरोप लगाया है. ठाकुर ने भी ‘वोट चोरी’ की बात कही थी. यानी गांधी और ठाकुर दोनों ही एक ही मुद्दा उठा रहे थे कि मतदाता सूची में गड़बड़ियां हैं, लेकिन CEC कुमार ने ठाकुर के आरोपों पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

फर्ज़ी वोटरों की लिस्ट कोई नई बात नहीं है. CEC इस मुद्दे को उठाने के लिए कांग्रेस और बीजेपी नेताओं का शुक्रिया अदा कर सकते थे और इसे देशभर में SIR कराने का आधार बना सकते थे. विधानसभा और लोकसभा चुनावों में धांधली के आरोप तो छोड़िए, हाल ही में दिल्ली संविधान क्लब चुनाव (जहां मौजूदा और पूर्व सांसद वोटर होते हैं) में कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद बृजेन्द्र सिंह ने पाया कि उनका वोट पहले ही डाला जा चुका था. यही स्थिति बसपा के एक पूर्व सांसद के साथ भी हुई.

संभव है कि कुमार जो अमित शाह के सहकारिता मंत्रालय में सचिव रह चुके हैं गांधी के बयानों से बेहद नाराज़ हों, लेकिन इससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह था कि वह गांधी को बुलाकर कश्मीरी कहवा पिलाते, जैसा वह पत्रकारों के साथ किया करते थे और बातचीत से मामला सुलझाते. मगर कुमार ने विपक्ष से सार्वजनिक टकराव का रास्ता चुना.

चुनाव आयोग पर गिरता हुआ भरोसा

बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि विपक्ष का चुनाव आयोग पर हमला ज़मीनी स्तर पर असर करता दिख रहा है. लोकनीति-CSDS सर्वे (जो दि हिंदू में रविवार को प्रकाशित हुआ) के मुताबिक, 45% लोगों का मानना है कि SIR के तहत असली वोटरों के नाम भी लिस्ट से हट सकते हैं. इसके मुकाबले सिर्फ 25% ने कहा कि ऐसा नहीं होगा. वहीं केवल 60% लोग ही EC की सबको शामिल करने की क्षमता पर भरोसा रखते हैं.

यह सर्वे दिल्ली, असम, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में किया गया.

लोकनीति-CSDS के 2019 और 2024 के बाद-चुनाव सर्वे से तुलना करने पर साफ होता है कि चुनाव आयोग पर भरोसा लगातार गिरा है. असम: 2019 में 6% लोगों ने कहा कि उन्हें EC पर कोई भरोसा नहीं है. यह आंकड़ा 2024 में 10% और 2025 में 17% हो गया. केरल: 2019 और 2024 में 10%, जबकि 2025 में बढ़कर 24%. मध्य प्रदेश: 2019 में 6%, 2024 और 2025 में 22%. उत्तर प्रदेश: 2019 में 11%, 2024 में 16%, और 2025 में 31%. दिल्ली: 2019 में 11%, 2024 में 21%, और 2025 में 30%. पश्चिम बंगाल: भरोसा गिरने के बजाय बढ़ा — 2019 में 11%, 2024 में 9%, और 2025 में 8%.

रिपोर्ट के मुताबिक, यह गिरता भरोसा भारत के लोकतंत्र के लिए हर हितधारक यहां तक कि बीजेपी के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए.

चुनाव आयोग को लेकर कई विवाद रहे हैं. दिल्ली चुनाव में अनुराग ठाकुर के “गोली मारो…” नारे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

2019 में जब अशोक लवासा ने मोदी और शाह को आचार संहिता उल्लंघन पर मिली क्लीन चिट का विरोध किया, तो उनके परिवार की आयकर और ED जांच शुरू हो गई और बाद में उन्हें एशियन डेवलपमेंट बैंक में भेज दिया गया.

2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बीच पीएम मोदी ने रैली से ही 80 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त राशन योजना को 5 साल और बढ़ाने की घोषणा की, EC ने चुप्पी साध ली. यह आरोप केवल मोदी सरकार के दौरान नहीं लगे. कांग्रेस सरकारों के समय भी ऐसे आरोप लगे थे. दरअसल, हर दौर में विपक्ष को शक रहा कि सरकारें ही सीईसी और अन्य आयुक्त चुनती हैं, इसलिए आयोग पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है.

2023 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सीईसी और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए समिति में सीजेआई और विपक्ष के नेता भी हों, लेकिन मोदी सरकार ने नया कानून बनाकर सीजेआई को बाहर कर दिया और पैनल सिर्फ PM, एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता तक सीमित कर दिया. यानी प्रधानमंत्री को फिर से सीधा अधिकार मिल गया कि वे अपने मनपसंद लोगों को नियुक्त करें.

सर्वे ने यह नहीं बताया कि लोग भरोसा क्यों खो रहे हैं, लेकिन ऊपर बताए मामले सिर्फ शुरुआत भर हो सकते हैं. न तो यह समस्या ज्ञानेश कुमार से शुरू हुई और न ही मोदी सरकार से. फिर भी, यह सच है कि कई मुख्य चुनाव आयुक्त, जैसे टी.एन. शेषन, ने नियुक्ति के बाद भी सख्ती दिखाई और आयोग की छवि मजबूत की. हमेशा ऐसा नहीं होता, लेकिन जब आज 20-30% लोग पांच राज्यों में EC पर भरोसा नहीं कर रहे, तो हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बहुसंख्यक लोग अब भी इस संस्था पर विश्वास करते हैं.

ज्ञानेश कुमार और राहुल गांधी दोनों को इसे ध्यान में रखना चाहिए. बीजेपी और पीएम मोदी को भी यह याद रखना चाहिए कि अगर जनता चुनाव आयोग पर भरोसा खोने लगी, तो इसका राजनीतिक नुकसान सत्ताधारी दल को ही उठाना पड़ सकता है.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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