9 अप्रैल को 11वीं कोर कमांडरों के स्तर की वार्ता के बाद से सेनाओं की वापसी की प्रक्रिया में खासकर गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स और देपसांग के मैदानों से वापसी में प्रगति न होने को लेकर सूत्रों के हवाले से खबरें और टिप्पणियां आती रही हैं. पहले, पूर्वी लद्दाख में स्थिति को लेकर ‘सरकार द्वारा जानबूझकर लीक’ की गई सरकारी जानकारियां सभी मीडिया हाउस को हैंडआउट के रूप में बांटी जाती थीं और खबरें लगभग एक साथ सामने आती थीं.
इस बार इस तरह की खबरें अलग-अलग मीडिया केंद्रों से लगातार थोड़े फेरबदल के साथ आई हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर संदेह पैदा न हो. मंशा जनमत को इस तरह प्रभावित करना है कि चीनी हम पर जो ‘प्रतिकूल शांति’ थोप रहे हैं उसे वह कबूल कर ले.
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‘गैर-सरकारी ब्रीफिंग’ के विषय
‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने खबर दी कि देपसांग का मसला अप्रैल-मई 2013 में की गई घुसपैठ की देन है. इसके बाद गश्ती दलों को बॉटल नेक/वाई जंक्शन तक गश्त पॉइंट 10, 11, 12, 13 तक गश्त लगाने से रोक दिया गया. सूत्रों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अप्रैल 2020 से जो संकट शुरू हुआ उसमें देपसांग केएसएचटीआर में नया कुछ नहीं हुआ है, और उसे टकराव वाले क्षेत्रों की सूची में शामिल कर दिया गया. इस तरह, अप्रैल 2020 के मुताबिक, देपसांग में यथास्थिति कायम है. पिछले साल आमने-सामने वाली स्थिति में भी, एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सूत्र के मुताबिक, चीन देपसांग और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में लड़ने के लिए ‘संगठित नहीं’ था. लोगों में यह प्रचारित किया जा रहा था कि देपसांग में सुलझाने के लिए कुछ नहीं है और यथास्थिति कभी बदली नहीं.
तथाकथित ‘विश्वसनीय सूत्र’ यह भी प्रचारित कर रहे थे कि चीन गोगरा हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से पीछे हटने से मना कर रहा है और गश्ती पॉइंट 15 और 17ए के इलाके में उसकी एक प्लाटून या एक कंपनी जितनी बड़ी सेना एलएसी के हमारे इलाके में मौजूद है और इससे टक्कर की उम्मीद कम है. मीडिया के जरिए सूचना जारी करने का यह तरीका गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में चीनी घुसपैठ के गंभीर परिणामों को हल्के में लेता है.
‘गैरसरकारी ब्रीफ़िंग्स’ की तीसरी थीम यह है कि दोनों देशों की सेनाएं और टैंक आदि केवल पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण में इतने करीब आ गए थे कि लड़ाई की संभावना बढ़ गई थी. यहां मंशा ‘स्टैंड अलोन’ (स्वतः चलने वाले) समझौते को उचित ठहराना है, जिसमें सेनाओं की साथ-साथ वापसी और कैलाश रेंज में अपनी बेहतर मौजूदगी को गंवाना शामिल है.
चौथी थीम जो आगे बढ़ाई जा रही है वह यह है कि चीन सेना की अब आगे और वापसी से पहले युद्ध की संभावना को कम करने के लिए अतिरिक्त सेना का जमावड़ा कम किया जाए. उद्देश्य जनता में यह संदेश देना है कि हमने अपनी सेना की भारी तैनाती की उससे चीन मात खा गया इसलिए अब तनाव को कम करने के लिए इस पर राजी होने में कोई दिक्कत नहीं है. इसके अलावा, जब देपसांग में हल करने का कोई मुद्दा नहीं है और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में सेना वापसी को लेकर मामूली विवाद है, तो उसे जल्दी निपटा लिया जाएगा.
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हकीकत की जांच
पिछले एक साल में पूर्वी लद्दाख की स्थिति पर कोई औपचारिक ब्रीफिंग नहीं की गई है. चीनी फौज की तादाद, घुसपैठ का अंदाजा और चले गए ऑपरेशनों के ब्योरे सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. मीडिया को ऑपरेशन वाले क्षेत्रों में जाने नहीं दिया गया है और उसे ‘गैरसरकारी ब्रीफ़िंग्स’ में चम्मच भर जानकारी ही दी गई है. खंडन और लीपापोती सरकार की राजनीतिक/ अनाधिकृत बयानों की प्रमुख वजह रही है. सरकार को नाराज न करने के चक्कर में मीडिया खुले क्षेत्र में उपलब्ध सूचना का विश्लेषण करने और हालात का यथार्थपरक आकलन करने में विफल रही है.
इसमें कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि चीन ने देपसांग और उत्तरी पैंगोंग त्सो में 1959 वाली दावा रेखा तक और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में इस दावा रेखा के पार तक के क्षेत्रों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दो-तीन मेकेनाइज्ड डिवीजन तैनात करके भारत को चौंका दिया. चीन दौलत बेग ओल्डी सेक्टर और पैंगोंग त्सो के पूरे उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी इलाके पर कब्जा करने और लद्दाख रेंज में सिंधु घाटी के लिए खतरा पैदा करने को तैयार था.
मई 2020 के शुरू में लद्दाख में तैनात हमारी छोटी-सी सेना चीनी सेना का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं थी. चीन अपने सभी उपरोक्त लक्ष्य हासिल करने की स्थिति में था. लेकिन वह केवल 1959 वाली दावा रेखा को सुरक्षित करना चाहता था और अपना दबदबा कायम करने के अलावा सीमा के अहं इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास को रोकना चाहता था. इसलिए वो तनाव बढ़ाने का दोष हमारे ऊपर डालना चाहता था.
शुरू में हैरत में पड़ने के बाद हमने चीन के खिलाफ अपनी सेना की भारी तैनाती की. डीबीओ और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स का भौगोलिक इलाका ऐसा है कि वहां सीमित युद्ध मुश्किल है. इसलिए हमारा ज़ोर पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण के इलाकों तथा सिंधु घाटी पर केंद्रित हो गया, जो सही भी था. दोनों देशों की सैन्य ताकत में अंतर के मद्देनजर हमने आक्रामक कारवाई करके इलाके से भगाने की जगह उनके आगे डट कर खड़े होने का फैसला किया. इससे डीबीओ सेक्टर और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स इलाके में कोई फर्क नहीं पड़ा और वह कमजोर नस बनी रही.
29-30 अगस्त की रात में हमने कैलाश रेंज को अपने कब्जे में रखने की जो शानदार कार्रवाई की वह चीन के लिए सैन्य और राजनीतिक शर्मिंदगी का कारण बन गई. इसके बाद कूटनीतिक पहल शुरू हुई और अधिक सार्थक सैन्य वार्ता हुई जिसके फलस्वरूप पैंगोंग त्सो के उत्तरी तथा दक्षिणी तटों से सेनाओं की वापसी 10 से 18 फरवरी के बीच हुई. समझौते के मुताबिक 10वीं कोर कमांडर स्तर की वार्ता 48 घंटे बाद शुरू हुई.
मैं फिर कह दूं कि देपसांग और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बनी हुई है और चीनी वहां से हटने का कोई इरादा नहीं रखते हैं. पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र से सेनाओं की वापसी ‘स्टैंड अलोन’ समझौता था जिसमें चीन ने दूसरे सेक्टरों से वापसी का कोई वादा नहीं किया. हाल की एक वार्ता में चीन के इस कथित विद्वेषपूर्ण टिप्पणी पर ध्यान देने की जरूरत है— ‘भारत को जो मिल गया उससे ही खुश हो जाना चाहिए’.
यानी सरकार के गैरसरकारी प्रवक्ताओं की यही कोशिश रही है कि वास्तविकता की लीपापोती की जाए और देपसांग तथा गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में ‘गैरफायदेमंद वापसी’ की जाए.
दो सवालों के जवाब जरूरी हैं. भारत ‘स्टैंड अलोन’ समझौते के लिए और कैलाश रेंज को खाली करने पर क्यों राजी हुआ? अब हमारे ऊपर शांति के लिए क्या प्रतिकूल शर्तें थोपी जाएंगी?
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‘स्टैंड अलोन’ समझौता
कैलाश रेंज पर भारत की पकड़ चीन के लिए बहुत परेशानी का कारण थी. घर में भी और बाहर भी उसकी किरकिरी हो रही थी. एलएसी कैलाश रेंज की चोटी से होकर गुजरती है, उसके बाद पूरब की ओर एक-दो किमी चौड़ा पठार है. भारत ने इस पठार और पूर्वी ढलानों को अपने लिए सुरक्षित करने के वास्ते कभी एलएसी का उल्लंघन नहीं किया.
चीनी सेना पीएलए ने हमारे सामने पठार पर उतनी ही संख्या में सेना तैनात कर दी थी और ब्लैक टॉप से हमारे लिए खतरा बना हुआ था. हमने ब्लैक टॉप को भी अपने कब्जे में नहीं लिया था. मोलदो कोई फौजी गैरिसन नहीं है बल्कि पीएलए बोर्डर गार्डों की एक चौकी है. पीएलए का मुख्य अड्डा दूर है. इसलिए हम फौजी रूप से कोई बड़ा खतरा नहीं पेश कर रहे थे. वास्तव में हम सिंधु घाटी में ज्यादा गंभीर खतरा थे, जहां हमारी रिजर्व टुकड़ियां तैनात थीं.
दरअसल, शर्मिंदगी ने चीन को जिद छोड़कर वार्ता के लिए आगे आने को मजबूर किया. भारत पैंगोंग के उत्तरी और दक्षिणी इलाकों, देपसांग, गोगरा हॉट स्प्रिंग्स औए डेमचोक को समेटते हुए बड़े पैकेज पर ज़ोर दे रहा था. मेरा आकलन है कि चीन ने डीबीओ और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स सेक्टर में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष हमला करने की धमकी दे दी थी. इन इलाकों में हमारी कमजोर स्थिति के कारण हम ‘स्टैंड अलोन’ समझौते के लिए राजी हुए.
‘प्रतिकूल शांति’
डीबीओ सेक्टर ऐसा है कि युद्ध में उसकी रक्षा कर पाना मुश्किल है. चीन देपसांग को लेकर कोई छूट नहीं देने वाला है और हमने इसे नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है. इसलिए कहा जा रहा है कि यह विरासत में मिला मसला है जहां अप्रैल 2020 वाली यथास्थिति नहीं बदली है और यह पूरे संकट के दौरान गौण सेक्टर बना रहा.
ऐसा लगता है कि हमने डेमचोक के दक्षिण में चार्डिंग-निंगलुंग नाला क्षेत्र में घुसपैठ को भी कबूल कर लिया है, जो अतीत की देन इस अतिक्रमण से हमारी स्थिति कमजोर नहीं होते और 1959 वाली दावा रेखा 30 किमी दूर पश्चिम में है और हमारे पूरे कब्जे में है.
हॉट स्प्रिंग्स गोगरा में 1959 वाली रेखा और एलएसी मिल जाती है. भारत कुगरंग नदी और चुंगलुंग नाला क्षेत्र में सड़कें तेजी से बनवा रहा है, जहां से उत्तर में गलवान नदी के ऊपरी क्षेत्र तक पहुंचा जा सकता है. इस खतरे को रोकने के लिए चीन चुंगलुंग नाला से घुसपैठ करके कुगरंग नदी के ऊपरी इलाकों पर पकड़ के जरिए हमें गोगरा के आगे 30-35 किमी लंबी और 4 किमी चौड़ी कुगरंग नदी घाटी तक पहुंचने से हमें रोक रहा है.
हमारे पास इस क्षेत्र को ल्यूकुंग से जोड़ने वाली 100 किलोमीटर लंबी सड़क के कारण किसी भी जवाबी कार्रवाई के जरिए किसी तरह के लाभ उठाने की कोई गुंजाइश नहीं है. गतिरोध की किसी भी स्थिति में, पूरी चांग चेनमो घाटी रक्षात्मक रूप से अस्थिर हो जाती है क्योंकि इससे आगे सोग्सालु / मार्सिमिक ला / फोब्रंग में सड़क से संपर्क टूट सकता है. हम जो सबसे बेहतर उम्मीद कर सकते हैं, वह पूरी कुगरंग नदी घाटी में एक बफर जोन है, जो पूरी तरह से एलएसी के हमारी तरफ के क्षेत्र में होगा और जो मई 2020 से पहले हमारे नियंत्रण में था.
हमने चीनियों को स्टेलमेट किया और उन्हें पूरी तरह से जीतने के लिए वंचित किया. लेकिन देपसांग प्लेन्स और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स हमारी कमजोरियां बनी हुई हैं और हमारे पास कोई जवाबी सैन्य लाभ नहीं है. इन गंभीर क्षेत्रों में बफर जोन पर बातचीत करके संकट को डिफ्यूज करना विवेकपूर्ण हो सकता है, भले ही ये पूरी तरह से एलएसी के हमारी तरफ हों. एक झूठे कथानक पर भरोसा करने के बजाय, जनता को स्थिति के बारे में बताना बेहतर है. यह ‘प्रतिकूल शांति’ लग सकती है लेकिन हमारी कमजोरियों को देखते हुए, यह सबसे ठीक होगा जिसकी हम आशा कर सकते हैं.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड रहे हैं. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. व्यक्त विचार निजी हैं)
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