दलित कैमरा से जुड़े अपने आठ वर्षों के अनुभव, और जातियों पर अपने 14 वर्षों के अनुसंधान से मैंने एक ही बात सीखी. बाबा साहेब आंबेडकर ने सही कहा था कि जातिवाद से मुकाबले का एकमात्र तरीका है हिंदू धर्म को छोड़ना.
दलित कैमरा एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो इसी नाम की एक वेबसाइट और यूट्यूब चैनल के सहारे दलितों, आदिवासियों, बहुजनों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ों को दर्ज करता है.
उनके नक्शेकदम पर चलते हुए, मैंने 30 जनवरी 2020 को केरल के त्रिशूर जिले के ऐतिहासिक शहर कोडुंगल्लूर में हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म अपनाने का फैसला किया. कोडुंगल्लूर वही जगह है जहां भारत की पहली मस्जिद बनाई गई थी. मैं अब रईस मोहम्मद हूं.
यह तारीख महत्वपूर्ण है. यह वही दिन है जब पहले हिंदुत्व आतंकवादी नाथूराम गोडसे ने मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या की थी. यह वो दिन भी है जब हिंदू धर्म में जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले हमारे प्रिय भाई रोहित वेमुला का जन्म हुआ था.
मुक्ति का धर्म
बचपन में भगवान अयप्पा के भक्त के रूप में मैं छह बार कोडुंगल्लूर गया था. यही वो जगह है जहां सीपीआई-एमएल (अविभाजित) के केरल राज्य सचिव नजमल बाबू ने 2015 में इस्लाम अपनाया था. तर्कवादी थान्थई पेरियार (पिता) ने कहा था कि अगर कोई 15 मिनट में जाति का सफाया करना चाहता है और आत्मसम्मान के साथ जीना चाहता है, तो इस्लाम एकमात्र समाधान है. पेरियार ने भी बाबा साहेब आंबेडकर को मुक्ति के धर्म के रूप में इस्लाम को चुनने का सुझाव दिया था.
अपने अनुसंधान के वर्षों में मैंने भी यही पाया कि भारत में जाति व्यवस्था को खत्म करने की क्षमता वाला एकमात्र धर्म इस्लाम है.
जाति-विरोधी आंदोलन भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाला सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन रहा है. इसकी मुख्य मांग है हिंदू समाज में ‘अछूतों’ को समान दर्जे का नागरिक मानना, और उन्हें हिंदू धर्म के बजाय संविधान के दायरे में देखना. लेकिन मैं ये जानने को उत्सुक था कि इस्लाम के सहारे जाति व्यवस्था का सफाया करने का यह आसान समाधान कभी भी दलित आंदोलन और दलित साहित्य में एक संदर्भ बिंदु क्यों नहीं रहा.
यह भी पढ़ें : पाकिस्तान का इस्लामी संगठन अब दाढ़ी वाले किरदार की फिल्म के पीछे पड़ा और इमरान ख़ान ने घुटने टेक दिए
समानता के लिए संघर्ष
मुझे फ़ासीवाद के खतरों, और प्रस्तावित नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के खिलाफ आयोजित एक सभा को संबोधित करने के लिए जनवरी में कोडुंगल्लूर आमंत्रित किया गया था.
मुसलमान आज नरेंद्र मोदी के भारत में नागरिकता के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं. लेकिन उनकी यह लड़ाई दलितों के संघर्ष से अलग है. पहली लड़ाई न्याय और नागरिकता के लिए है. जबकि दूसरी लड़ाई आत्मसम्मान के लिए, बराबर के इंसान के रूप में देखे जाने जैसी बिल्कुल बुनियादी मांग से जुड़ी है. इस लिहाज से दलितों का हाल कहीं अधिक बुरा रहा है.
यही वो अवसर था जब मैंने इस्लाम को अपनाया और रविचंद्रन बथरान की अपनी हिंदू पहचान को दफ़न कर दिया. मैं अपने हिंदू नाम का उल्लेख नहीं करना चाहता क्योंकि यदि आप गहराई से गौर करें तो सभी हिंदू नाम परोक्ष रूप से केवल जाति का ही उल्लेख करते हैं, और मैं नहीं चाहता कि रईस मोहम्मद इस पुराने बोझ को लेकर चले. वैसे असली समस्या नाम की नहीं है. आखिरकार, मेरे माता-पिता ने बहुत प्यार से मेरा नाम रखा था. लेकिन समस्या तब आती है जब हिंदू समाज उस नाम को एक जाति से और फिर उसे मेहतर के वंशानुगत काम से जोड़ देता है. मेरे पिता के साथ बुरा बर्ताव किया गया था क्योंकि हिंदू समाज का कहना था कि वह वो काम करते थे जिसे कि गंदा माना जाता है. यह हद दर्जे का पाखंड है. पहले, आप कुछ समूहों पर एक पारंपरिक पेशा थोपते हैं, उनके सदस्यों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं, और फिर जाति व्यवस्था के बजाय लोगों को दोष देते हैं.
मेरे माता-पिता ने मेरे लिए संस्कृत नाम चुना. मेरे रिश्तेदारों को ये एक असामान्य बात लगी थी, जिन्होंने हमेशा उन नामों को चुना है जो आसानी से चक्किलियारों या अछूतों से जुड़े होते हैं. लेकिन मेरे माता-पिता की तरह, मुझे भी गैर-बराबरी के व्यवहार का सामना करना पड़ा.
मेरी शिक्षा और आय मेरी पहचान को नहीं बदल पाई, और कभी बदल भी नहीं सकेगी. लेकिन खुद दलित आंदोलनों द्वारा ही इस झूठ को फैलाया जाता है.
मेरे पिता सफाईकर्मी का काम करते थे और मेरी मां एक स्थानीय स्कूल में स्वीपर थीं. पिछले 15 वर्षों से मैंने अपने माता-पिता और उनके जैसे लाखों अन्य लोगों के साथ उनके काम – सफाईकर्मी/स्वीपर/मेहतर – की वजह से होने वाले भेदभाव और छुआछूत की समस्या से निपटने को लेकर काम किया है.
हम तमिलनाडु की चक्किलियार/अरुंथथियार जाति के हैं, जिन्हें विशेष रूप से साथ के अछूतों द्वारा प्रवासी या बाहरी बताया जाता है. इसका कारण ये है कि अरुंथथियार की पहली भाषा तेलुगु के करीब है. अविभाजित आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु, असम, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और कर्नाटक में अपने शोध के दौरान मैंने पाया कि इन सभी राज्यों में सफाईकर्मियों को बाहरी लोगों के रूप में देखा जाता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे दूसरे राज्यों से गए थे या नहीं. ये दिलचस्प है कि अविभाजित आंध्रप्रदेश के अलावा सभी दक्षिण भारतीय राज्यों में सफाईकर्मी तेलुगु बोलते हैं. आंध्रप्रदेश में वे हिंदी, और ओडिया से मिलती-जुलती एक बोली का प्रयोग करते हैं.
यह भी पढ़ें : दुनिया का नरेंद्र मोदी को संदेश— ब्रांड इंडिया को बुरी तरह नुकसान पहुंच रहा है
मेहतरों और स्वीपरों को ऊंची जाति के हिंदुओं के घरों में प्रवेश की अनुमति नहीं है. इस कारण से शौचालय भी घर से बाहर बनाए जाते हैं. भारतीय समाजशास्त्रियों और मानवविज्ञानियों ने जातियों और भारतीय घरों के अंतर्संबंधों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है, जहां दलितों के लिए अलग प्रवेश की व्यवस्था होती है (जैसा कि अधिकांश भवनों में देखा जा सकता है). वैसे ग्रामीण इलाकों में हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं.
इसके विपरीत, मस्जिदों में परिसर के भीतर ही शौचालय की व्यवस्था होती है. शौचालय को अपवित्र नहीं माना जाता है. इसी कारण से मुझे मस्जिदें पसंद आती हैं. मुझे एक भी वजह नहीं दिखती कि दलित हिंदूवाद का बोझ क्यों उठाते रहें.
कौन हैं दलित?
कई लोग मुझसे दलित कैमरा से ‘दलित’ शब्द को हटाने का अनुरोध करते हैं. दलित कोई अछूतों के भौतिक अस्तित्व को दर्शाने वाला शब्द नहीं है, यह एक क्रांतिकारी अवधारणा है जिसकी दलित पैंथर्स ने कल्पना की थी. अब मेरी कोई जाति नहीं है. लेकिन दलित कैमरा का हिस्सा होना दलित पैंथर्स, और अपने प्यारे मुस्लिम भाइयों और बहनों के प्रति मेरी एकजुटता का प्रतीक है.
हमारे लिए, बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर ही अपने आप में काफी है. ये उनकी विचारधारा और न्याय की अवधारणा को व्यक्त करती है.
इसलिए दलितों और मुसलमानों को एक लड़ाई लड़नी है. मुसलमानों की लड़ाई संवैधानिक है, लेकिन दलितों की लड़ाई सामाजिक है, जो कहीं अधिक कठिन है. बहुत से दलित अभी भी नहीं जानते हैं कि हिंदू धर्म के कारण ही उनके साथ गैर-बराबरी का व्यवहार किया जा रहा है. इसी कारण से दलितों को ये भान नहीं है कि वे भी एक दिन खुद को बिना नागरिकता के पा सकते हैं.
(रईस मोहम्मद, जिन्हें पहले रविचंद्रन बथरान के नाम से जाना जाता था, दलित कैमरा @dalitcamera के संस्थापक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
पेरियार ने अम्बेडकर को इस्लाम अपनाने को कहा, ये आपको पता है।
पर अम्बेडकर ने इस्लाम अपनाया ही नहीं, ये आपको नहीं पता।
आप अम्बेडकर की फोटो लियर उनका नाम लिए जो नफरत फैला रहे हो, आपको ये नही पता कि उन अंबेडकर जी ने इस्लाम को समझने के बाद भी कहा कि हिन्दू धर्म चाहे आज बुरा है तो कल अच्छा भी होगा, अपनी कमियों को समझ कर दूर भी करता रहेगा, मगर उसके बाद भी आपको हिन्दू धर्म छोड़ना है तो और कोई भी धर्म अपना लेना परंतु इस्लाम नहीं।
ये सब आपको पता नहीं होगा।
आपने बाबा साहब अंबेडकर का नाम लिया है मैं आपको बता देना चाहता हूं कि बाबा साहब अंबेडकर ने इस्लाम धर्म किसी भी कीमत पर अपनाने से इंकार कर दिया था इस्लाम में जितनी जाति हिंसा नफरत है वह हिंदू धर्म में नहीं हिंदू धर्म को तुम जैसे लोग को रात बदनाम करते हैं यह सनातन वैदिक धर्म प्राचीन काल में परिवर्तनशील वर्ण व्यवस्था पर आधारित था जिसके बर्ड परिवर्तन के उदाहरण आप शास्त्र में ढूंढ सकते ह जबक इस्लाम एक फिर किसी दूसरे फिरते को नफरत की दृष्टि से देखने वाला धर्म है सनातन धर्म में वैष्णव सेवर 7 में जो शाम नेता है वह शायद ही किसी धर्म के संप्रदायों के बीच होगी
पूरी दुनिया में मुसलमान ही मुसलमान को काफिर बताकर गाजर मूली की तरह काट रहा है एक दूसरे की मस्जिदों पर बम्ब फेंक रहे हैं अहमदीया,पश्तून,कुर्द,बलोच,मुहाज़िर,शिया और सुन्नी यह सब एक दूसरे को काफिर कहतें हैं और तू हिन्दू धर्म की बात कर रहा है
पूरी दुनिया में मुसलमान ही मुसलमान को काफिर बताकर गाजर मूली की तरह काट रहा है एक दूसरे की मस्जिदों पर बम्ब फेंक रहे हैं अहमदीया,पश्तून,कुर्द,बलोच,मुहाज़िर,शिया और सुन्नी यह सब एक दूसरे को काफिर कहतें हैं और तू हिन्दू धर्म की बात कर रहा है
आप मुस्लिम छोरकर बौध धर्म अपना सकते है । या फिर सिख जिस्मे की जातिया नही होती । जातियं तो हिन्दू धर्म मे भी नही थी, पर बाद के ब्राह्मणो ने अपने स्वार्थ के लिये इसे जातियों मे बाँट दि या, ताकी उन्का समाज मे बर्चस्व बना रहे । नही तो वल्मिकी जिन्होने रामायण लिखी वो भी दलित थे, पर अपने कर्म से वो ब्रह्मंण बने । राम जो कि क्षत्रिय थे पर उन्का विवाह सीता से हुआ था जो कि एक ब्रह्मंण की पुत्री थी ।बाद के स्वार्थी ब्रह्मनो ने अपने स्वार्थ के लिये सबको अलग अलग बाँट दिया ।
आप बस पैसे लेकर इस्लाम प्रसार के लिए अल – तकिया कल रहे है….. बाबा साहेब डॉ आंबेडकर जी से ही कुछ सीख लिया होता तो आज इस्लाम न अपनाते….. उन्होंने एक भारतीय धर्म को ही अपनाए रखा!! बाक़ी अगर आपने वो किताब पढ़ ली है जिसमें काफिरों को मारना जायज़ है तो अब आप इंसानियत के लिए खतरा है
ईसलाम बोहत अच्छा धर्म है उसमे कोई नफरत नही है वो नफरत करना नही शिखाता है ईसलाम मे कोई भेदभाव नही है हा कूछ मूसलिम ऐसे हो गए है इसका ये मतलब नही के इस्लाम आतंकवाद है आतंकवाद का कोई धर्म नही सोच अच्छी रखे तो अच्छा नजर आयेगा
To yeh bato k Muhammad ko kis ne mara tha ali ko kis ne mara unke bacho ko kis ne mara tha wahan to r.s.s yah koi hindu nhi tha.ap mhulo ne mara bolte santi ka dharm hai.batao yahan yeh islam hai kon sa desh sant hai india,amrica france aur pura arab hi ashant hai .dunya ko pata lag rha hai islam is not peace of religion its piece of religion.aur cast ki baat karte ho.hindu dharm me 4 cast system hai. Islam me to 72 firke hai.
Abey Jahil Kalpanik Ki Aulad Muhammad SAW khud se qudrati Umra K Khatam Hone se unnki wafat hui thii samjha.
Jaake Qur’an, Hadees Padh Tab Samajh me aayega WhatsApp University k syllabus me har knowledge Nahi aata hai
To yeh bato k Muhammad ko kis ne mara tha ali ko kis ne mara unke bacho ko kis ne mara tha wahan to r.s.s yah koi hindu nhi tha.ap mhulo ne mara bolte santi ka dharm hai.batao yahan yeh islam hai kon sa desh sant hai india,amrica france aur pura arab hi ashant hai .dunya ko pata lag rha hai islam is not peace of religion its piece of religion.aur cast ki baat karte ho.hindu dharm me 4 cast system hai. Islam me to 72 firke hai.