पिछले कुछ वर्षों से हर गांधी जयंती पर मैं अपने आप से वही सवाल पूछता रहा हूं. आज भी, गांधीजी की हत्या के सात दशक बाद, उनकी विश्व में प्रतिष्ठा कम नहीं हुई है. उन्हें अब भी अहिंसक प्रतिरोध के वैश्विक प्रतीक के रूप में देखा जाता है. ऐसे व्यक्ति के रूप में, जिसने यह साबित किया कि युद्ध और खूनी क्रांतियां दुनिया की समस्याओं का हल नहीं हैं.
लेकिन भारत में, गांधीजी की विरासत पर लगातार सुनियोजित हमला किया जा रहा है. और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे की महिमा गाने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं. तो मेरा सवाल यह है: भारत में इतना क्या बदल गया है कि ‘राष्ट्रपिता’ पर खुलेआम हमला किया जा रहा है?
हममें से अधिकतर के पास इस सवाल का एक व्यापक जवाब है—हिंदुत्व का असर बढ़ा है. और इसके कुछ समर्थकों के लिए गांधीजी की याद पर हमला करना फैशन बन गया है.
यह जवाब गलत नहीं है. सचमुच, बहुत से लोग जो गांधीजी पर हमला करते हैं, उनकी झुकाव हिंदुत्व की ओर होता है. लेकिन एक व्याख्या के रूप में यह काफी नहीं है. और यह अपने साथ कई और सवाल खड़े कर देता है, जिनके तार्किक उत्तर मौजूद नहीं हैं.
पीएम का गांधीजी के प्रति प्रेम
सबसे पहले, गांधीजी को बदनाम करने की कोशिशें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी स्थिति के विपरीत हैं. मोदी ने न सिर्फ गांधीजी की कई बार प्रशंसा की है, बल्कि उन्हें गुजरात का महान पुत्र बताया है—एक ऐसी स्थिति जिसे ज़्यादातर गुजराती स्वीकार करेंगे. गांधी जयंती पर उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर ‘प्रिय बापू’ को नमन किया और लिखा, “हम विकसित भारत बनाने की अपनी कोशिश में उनके रास्ते पर चलते रहेंगे.”
तो फिर प्रधानमंत्री का गांधीजी के लिए इतना सम्मान उनके कई समर्थकों पर कोई असर क्यों नहीं डालता?
मोदी ने उन लोगों को आलोचना करने की इच्छा भी दिखाई है जो गोडसे की तारीफ करते हैं. उदाहरण के लिए, जब प्रज्ञा ठाकुर ने उसे ‘देशभक्त’ कहा, तो उन्होंने (और राजनाथ सिंह ने भी) उसकी सार्वजनिक आलोचना की. और 2024 में, उसे भोपाल से लोकसभा टिकट भी नहीं मिला. इसके बावजूद, इतने सारे हिंदुत्व समर्थक नहीं रुके. यह असामान्य है और शायद पहले कभी नहीं हुआ.
दूसरे, काफी हद तक गांधीजी पर हमले खराब शिक्षा का नतीजा हैं. जो लोग उन्हें गालियाँ देते हैं, वे उन्हें विभाजन के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं. सच तो यह है कि जिसने भी उस दौर का इतिहास पढ़ा है, वह जानता है कि विभाजन तक पहुँचने वाली घटनाएँ जटिल थीं. और पाकिस्तान का बनना गांधीजी का विचार बिल्कुल नहीं था.
लेकिन अगर यह दावा सही भी हो कि विभाजन के लिए वे ज़िम्मेदार थे, तो हिंदुत्व वाले क्यों सोचते हैं कि एक मुस्लिम मातृभूमि का बनना इतनी बुरी बात थी?
गांधीजी को गाली देने वालों की स्थिति यह है कि मुसलमान भरोसे लायक नहीं होते और हमेशा हिंदुओं को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं. क्या उन्हें एहसास नहीं है कि अगर विभाजन नहीं हुआ होता, तो भारत में पाकिस्तान (लगभग 255 मिलियन) और बांग्लादेश (लगभग 180 मिलियन) की आबादी भी शामिल होती?
हिंदुत्व समर्थक आज भी इस बात को स्वीकार करने में मुश्किल महसूस करते हैं कि लगभग 230 मिलियन भारतीय मुसलमान हमारे देश के पूरे नागरिक हैं. वे एक ऐसे भारत से कैसे निपटते, जिसमें 680 मिलियन मुसलमान होते? हिंदू तब भी बहुसंख्यक रहते, लेकिन मुसलमान इतनी बड़ी संख्या में मतदाता होते कि बीजेपी कभी सत्ता में नहीं आ पाती और हिंदू राष्ट्र की सारी बातें उस देश में कोई मायने नहीं रखतीं, जिसमें इतनी बड़ी मुस्लिम आबादी होती.
तो क्या विभाजन असल में हिंदुत्ववादियों के ही पक्ष में नहीं गया?
वैसे भी, दो-राष्ट्र सिद्धांत गांधीजी ने नहीं दिया था. इसे वीडी सावरकर ने पेश किया था, जो हिंदुत्व के मूल प्रवक्ता थे.
गोडसे, भारत का पहला आतंकवादी
तीसरे, अगर गांधीजी पर हमले सेक्युलर राजनीति पर हमला करने के लिए हैं, तो हिंदुत्व समर्थक गलत दिशा में जा रहे हैं. मैं समझ सकता हूं कि जवाहरलाल नेहरू उनके लिए हर उस चीज़ का प्रतीक क्यों हैं जिससे वे डरते और नफरत करते हैं. लेकिन गांधीजी अपने हिंदू धर्म पर गर्व करते थे, रामराज्य बनाने की बात करते थे और अपने भाषणों में अक्सर हिंदू संदर्भों का इस्तेमाल करते थे. आज भी बीजेपी आत्मनिर्भरता के प्रतीक के तौर पर गांधीजी के स्वराज के विचार का सहारा लेती है.
तो फिर उनकी विरासत से इतना डर क्यों? सिर्फ इसलिए कि वे उन लोगों की तरह कट्टरपंथी और पक्षपाती नहीं थे जो उन्हें गालियां देते हैं?
चौथे, अगर आप गांधीजी के शासन संबंधी कई विचारों से असहमत भी हों (जैसा कि मैं हूं), तो भी आप गोडसे जैसे हत्यारे को कैसे पूज सकते हैं? उस समय जब पूरा भारत आतंकवाद से लड़ रहा है (जिसे राजनीतिक मकसद से नागरिकों के खिलाफ हिंसा के रूप में परिभाषित किया गया है), तो संघ परिवार का एक हिस्सा उस व्यक्ति को कैसे महिमामंडित कर सकता है जो भारत का पहला आतंकवादी था?
इनमें से किसी भी सवाल का जवाब आसान नहीं है. मैं जानता हूं क्योंकि हर गांधी जयंती पर जब गालियां देने वाले फिर से शुरू होते हैं, तो मैं इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करता हूं.
शायद यह सब आरएसएस की रक्षा करने की इच्छा से जुड़ा है. लेकिन यह भी अज्ञानता से निकलता है. हां, गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगाया था. लेकिन बाद में यह प्रतिबंध हटा लिया गया. और RSS के किसी महत्वपूर्ण आधिकारिक व्यक्ति ने यह नहीं कहा कि हत्या अच्छी बात थी. यह काम सोशल मीडिया पर गालियाँ देने वालों और साध्वी प्रज्ञा जैसे पागलों का है.
गांधीजी की हत्या के समय गोडसे और उसके गुरु सावरकर हिंदू महासभा के सदस्य थे, न कि RSS के. तो RSS की रक्षा करने के लिए गांधीजी को गाली देने की कोई ज़रूरत नहीं है. और अगर संगठन पर प्रतिबंध ही संघ और हत्या के बीच का दिखावटी संबंध बनाता है, तो हिंदुत्व वालों को सरदार पटेल पर हमला करना चाहिए. लेकिन अजीब बात यह है कि पटेल तो हिंदू राइट के लिए हीरो हैं.
मैं इन अजीब और विरोधाभासी स्थितियों के लिए स्पष्टीकरण ढूंढने की कोशिश छोड़ चुका हूं. मुझे लगता है कि कट्टरपंथ और नफरत पर तर्क और कारण थोपने की कोई भी कोशिश नाकाम होने वाली है. नफरत करने वालों का अपना रास्ता है, लेकिन सौभाग्य से भारत के पास अब भी गांधीजी का रास्ता है. और उनका रास्ता “मानव इतिहास की दिशा बदल गया.” उन्होंने यह दिखाया कि “कैसे साहस और सादगी बड़े बदलाव का साधन बन सकते हैं.”
यह किसने कहा? जी हां, नरेंद्र मोदी ने, इस साल गांधी जयंती पर. अब हिंदुत्व की स्थिति में विरोधाभास आप खुद ही समझ सकते हैं.
वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
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