देश की राजधानी में पुलिस बल अपने प्रति लोगों की धारणा को बदलने की कोशिश में जुटा है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने पिछले हफ्ते प्रकाशित एक रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि दिल्ली के पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने ‘सार्वजनिक सुरक्षा की दिशा में उठाए जाने वाले अपने कदमों का सही ढंग से प्रचार’ सुनिश्चित करने के लिए एक अलग डिवीजन ही बना दिया है.
अस्थाना से पहले इस पद पर रहे एस.एन. श्रीवास्तव ने पिछले जून में इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में दिल्ली पुलिस की ‘छवि बदलने’ की जरूरत पर जोर दिया था.
महामारी के दौरान दिल्ली पुलिस ने निश्चित तौर पर उत्कृष्ट काम किया है. जब हम सभी अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर घरों के अंदर बंद थे, वे जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए चौबीसों घंटे सड़कों पर मौजूद रहते थे. दिल्ली पुलिस के करीब 13,500 कर्मियों को कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया और 77 ने इसके कारण दम तोड़ दिया (9 जून 2021 तक जब श्रीवास्तव ने लेख लिखा था). क्या उनके राजनीतिक आकाओं ने सिवाय जुमलेबाजी के अलावा उनके परिवारों के लिए कुछ किया? खैर, इस बारे में बात करना छोड़ ही देते हैं.
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जेएनयू मामला
श्रीवास्तव ने यह नहीं बताया, जैसा कि कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझसे बाद में कहा, कि कैसे उनके कनिष्ठ सहयोगियों को राष्ट्रीय राजधानी स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी परिसर पर सुनियोजित हमले के मामले में कार्रवाई के लिए उनसे अनुरोध करना पड़ा. धारणा बदलने की जिम्मेदारी संभाल रहे स्पेशल कमिश्नर संजय बनिवाल के लिए यह बेहद मुश्किल काम है. वह ऐसे पुलिस बल के सार्वजनिक सुरक्षा रिकॉर्ड को लोगों के सामने कैसे रखेंगे जो जेएनयू परिसर में दर्जनों नकाबपोश और हथियारबंद लोगों के घुसने और छात्रों पर हमला करके घंटों तांडव मचाने के 21 महीने बाद भी अब तक किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर पाया है? वह ऐसे में पुलिस बल को कैसे अच्छा दिखाएंगे जब दंगों के मामलों में लापरवाही से जांच को लेकर जज उनके खिलाफ सख्त तेवर अपना रहे हैं?
दिल्ली पुलिस के पास इन सवालों का जवाब देने के लिए पर्याप्त सक्षम अधिकारी हैं, बशर्ते उनके राजनीतिक आका उन्हें इसकी अनुमति दें. तब उन्हें किसी तरह छवि बदलने की कवायद करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. दिल्ली पुलिस तब तक अपनी छवि बदलने में कैसे सफल हो सकती है जब नॉर्थ ब्लॉक में बैठे उनके आका ही इस पर भारी पड़ रहे हों? जरा सोचिए क्या स्थिति होगी जब दिल्ली पुलिस के किसी ईमानदार, सत्यनिष्ठ अधिकारी को आदेश देने वाला कोई हत्या आरोपी हो जो मंत्रालय को चलाने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सहायता करता हो.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृह राज्य मंत्री शाह के डिप्टी के तौर पर नित्यानंद राय, निसिथ प्रामाणिक और अजय मिश्रा टेनी को चुना है. पिछले चुनाव के दौरान दाखिल नामांकनपत्रों के साथ इन नेताओं ने चुनाव आयोग को जो हलफनामे सौंपे थे जरा उस पर एक नजर डालें.
आपराधिक मामलों वाले मंत्री
याद कीजिए लखीमपुर खीरी घटना को लेकर कुख्यात अजय मिश्रा टेनी को पिछली जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी ने जब अपनी सरकार में मंत्री के तौर पर शामिल किया था तभी स्पष्ट महसूस हो रहा था कि वह मुसीबत का सबब बन सकते हैं, खासकर जब उन्हें गृह विभाग की जिम्मेदारी मिल रही है. हत्या के एक मामले में मिश्रा को बरी किए जाने के खिलाफ अपील पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर रखा था. वैसे अगर कोई यह भी मान लेता है कि प्रधानमंत्री को उनके हाई कोर्ट से बरी होने का पूरा भरोसा था और लखीमपुर खीरी के अपने ‘दबंग’ सांसद के गुण-दोषों के बारे में उन्हें ठीक से अंदाजा नहीं था, तो भी कौन-सी ऐसी बात थी जो मोदी की नजर में मिश्रा को गृह मंत्रालय के लिए इतना उपयुक्त बना रही थी?
2021 में पश्चिम बंगाल के दिनहाटा से विधानसभा चुनाव जीतने के दौरान दाखिल किए गए हलफनामे के मुताबिक, मोदी की मंत्रिपरिषद में सबसे कम उम्र के मंत्री 36 वर्षीय निसिथ प्रामाणिक के खिलाफ 13 आपराधिक मामले लंबित हैं. अपने खिलाफ लंबित मामलों की जानकारी देते हुए कूचबिहार के सांसद ने बताया था कि उन पर हत्या, हत्या के प्रयास, गंभीर चोट पहुंचाने, डकैती की साजिश रचने और अवैध हथियार रखने जैसे आरोप हैं.
इसके अलावा धोखाधड़ी, आपराधिक धमकी, दंगा करना, महिला का शील भंग करना, गैरकानूनी जमावड़ा, लोक सेवक के कामकाज में बाधा डालना, लोक सेवक की तरफ से घोषित आदेश की अवज्ञा करना, एकतरफा ढंग से चोट पहुंचाना, लोक सेवक को आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करने से रोकना, चोरी, और चोरी की संपत्ति को यह जानते हुए भी हासिल करना कि यह चोरी की है.
ऐसे में एक बार फिर यह सवाल उठता है कि किस बात ने निसिथ प्रामाणिक को गृह मंत्रालय के योग्य बनाया? यही नहीं युवा मामलों और खेल राज्य मंत्री के रूप में प्रामाणिक से युवाओं को प्रेरित करने की उम्मीद भी है.
तीसरे, गृह राज्य मंत्री, नित्यानंद राय पर जबरन वसूली, धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमस्य फैलाने और घातक हथियारों से लैस गैरकानूनी जमावड़े में शामिल होने जैसे आरोप हैं.
मोदी-शाह के आलोचक इस तरफ भी इशारा कर सकते हैं कि खुद शाह के खिलाफ भी चार आपराधिक मामले दर्ज हैं—दो बंगाल में और दो बिहार में. ये मामले कथित तौर पर आपराधिक धमकी, शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान और धार्मिक आधार पर समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने से जुड़े हैं.
लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि ये आरोप आपराधिक से अधिक राजनीतिक प्रकृति के प्रतीत होते हैं. जब कोई चप्पल पहनकर झंडा फहराने के लिए शाह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराता है, और कोई यही काम शाह द्वारा राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव को ‘चारा चोर’ कहे जाने के लिए करता है, तो इन आरोपों के पीछे के राजनीतिक इरादे के बारे में ज्यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं होती है.
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मोदी-शाह के ऐसा करने की क्या है वजह
सबसे विचारणीय बिंदु यह है कि प्रधानमंत्री मोदी अमित शाह को ऐसे तीन डिप्टी क्यों देंगे जो आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं, इसके तीन संभावित कारण हो सकते हैं. पहला, यह कि मोदी ‘दोषी साबित होने तक’ निर्दोष रहने के कानूनी सिद्धांत पर चलते हों. दूसरा, उनकी नजर में भाजपा नेताओं के खिलाफ लगने वाले आरोप, चाहे हत्या के हों या हत्या के प्रयास के, सब झूठे ही होते हैं. और तीसरा, यह कि वह इस सबकी परवाह ही नहीं करते. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) का एक विश्लेषण बताता है कि केंद्र में भाजपा-नीत सरकार के 78 मंत्रियों में से लगभग 42 फीसदी यानी 33 मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. इन 33 में से 24 के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास और डकैती जैसे गंभीर मामले लंबित हैं.
ऐसे में जाहिर है जब मंत्रियों की कथित आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में उनकी धारणा की बात आती है, तो ऊपर बताए गए पहले, दूसरे या फिर तीनों ही कारण सही हो सकते हैं. एक चौथी वजह भी हो सकती है—एक सशक्त मजबूत और निर्णायक प्रधानमंत्री विपक्ष के सामने कभी झुकता नहीं है, न ही उनकी मांग के गुण-दोष वाले पहलुओं को देखता है. इसलिए, वह अजय मिश्रा को अपनी सरकार से नहीं हटाएंगे, इस स्पष्ट तथ्य के बावजूद कि उनके भड़काऊ भाषण ने किसानों को आक्रामक होने के लिए उकसाया और किसानों को कुचलने वाला वाहन उनका ही था. वह इस बारे में शायद सोचते भी, बशर्ते प्रियंका गांधी वाड्रा या राकेश टिकैत ने इसकी मांग नहीं की होती.
इसलिए पुलिस कमिश्नर अस्थाना को दिल्ली पुलिस की छवि को लेकर अपनी नींद नहीं खराब करनी चाहिए. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. यदि वह अब भी ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अपने एक बॉस—अजय मिश्रा टेनी से मिलने का समय ले लेना चाहिए.
लेखक ट्विटर हैंडल @dksingh73 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.
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