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Thursday, 18 April, 2024
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बिहार में मासूम बच्चों के काम क्यों न आई आयुष्मान भारत योजना

बिहार जैसे गरीब राज्यों और इंश्योरेंस आधारित आयुष्मान भारत योजना के बीच कोई तालमेल ही नहीं है. ये योजना देश के विकसित इलाकों के लिए बनी है. बिहार के लिए सरकार को कुछ और सोचना होगा.

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बिहार में इंसेफेलाइटिस से बच्चों की मौत के बीच एक सवाल ये भी उठा कि जब बिहार सरकार ने केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना में हिस्सा बनना तय कर लिया है और इस योजना का पैसा आना शुरू हो चुका है, तो मुजफ्फरपुर के बच्चों का मुफ्त इलाज बिहार के प्राइवेट हॉस्पीटल्स में क्यो नहीं हुआ? आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल की थी. इस योजना के तहत देश के हर गरीब परिवार के सदस्यों का हर साल पांच लाख रुपए तक का इलाज सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों में कैशलेश होना है. इस योजना के तहत देश के 10.74 करोड़ परिवारों के 50 करोड़ लोगों का स्वास्थ्य बीमा कवरेज दिया जाना है. इसके लिए इस साल के अंतरिम बजट में 6,400 करोड़ रुपए का प्रावधान है.

ये योजना देश के गरीबों और वंचितों के लिए लाई गई है. देश में बीपीएल परिवारों की संख्या के लिहाज से बिहार दूसरे नंबर पर है. इस हिसाब से कोई सोच सकता है कि आयुष्मान भारत का केंद्र से आने वाला ढेर सारा पैसा बिहार के मरीजों के इलाज में खर्च हो रहा होगा. लेकिन आयुष्मान भारत के तहत राज्यों को पहुंच रही रकम पर अगर नजर डालें, तो और ही तस्वीर नजर आती है.

आयुष्मान भारत योजना की निर्मम हकीकत

संसद के मौजूदा सत्र के दौरान लोकसभा में एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने जो आंकड़े दिए हैं, उससे पता चलता है कि आयुष्मान भारत योजना के तहत 16 जून 2019 तक कुल 23.26 लाख क्लेम का निपटारा किया जा चुका है और कुल 3,077 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं. गुजरात को इसके तहत सबसे ज्यादा 641 करोड़ रुपए मिले हैं. इसके बाद छत्तीसगढ़ (379 करोड़ रु.), कर्नाटक (268 करोड़ रु.) और तमिलनाडु (349 करोड़ रु.) को इस योजना से सबसे ज्यादा पैसा मिला.

वहीं, जिस बिहार में बीपीएल परिवारों की विशाल संख्या है. इसके बावजूद, आयुष्मान भारत से वहां सिर्फ 39,943 क्लेम मंजूर हुए और कुल 35.58 करोड़ रुपए ही दिए गए. यूपी को इस योजना से सिर्फ 117 करोड़ रुपए मिले, जहां बीपीएल परिवारों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है. पश्चिम बंगाल एक और फिसड्डी राज्य है, जहां आयुष्मान भारत योजना के तहत सिर्फ 14 करोड़ रुपए पहुंचे.


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ये मामला ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी ने अपने शासन वाली सरकारों को ज्यादा रकम बांट दी. गुजरात और बिहार दोनों सरकारों में बीजेपी शामिल है. यूपी में भी बीजेपी की ही सरकार है. लेकिन, आयुष्मान भारत को लेकर इन सबके परफॉर्मेंस में फर्क है.

सवाल उठता है कि जिन राज्यों को आयुष्मान भारत योजना की सबसे ज्यादा जरूरत है. उन राज्यों में आयुष्मान भारत योजना का पैसा पहुंच क्यों नहीं रहा है.

गरीब राज्यों के लिए नहीं है आयुष्मान भारत

इसकी वजह दरअसल आयुष्मान भारत योजना में ही. इस योजना का प्रमुख दोष ये है कि इसमें राज्य सरकारों को कुल खर्च का 40 परसेंट हिस्सा उठाना पड़ता है. केंद्र से आने वाला 60 परसेंट मरीजों को तभी मिलेगा, जब राज्य सरकार अपने हिस्से की रकम देगी. इसका मतलब है कि जो राज्य आर्थिक रूप से सक्षम है. वही इस योजना का लाभ उठा सकते हैं. जबकि आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों के मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा. आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों को मिलने वाली रकम का राज्यवार आंकड़ा इस बात की पुष्टि करता है कि कहने को ये योजना बेशक गरीबों और वंचितों के लिए चलाई जा रही है. लेकिन जिन राज्यों में ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. वो इसका फायदा उठाने की स्थिति में ही नहीं हैं.

इस योजना का दूसरा दोष ये है कि इसमें प्राइवेट स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर भरोसा किया गया है और उम्मीद की गई है कि प्राइवेट अस्पताल मरीजों का ध्यान रख लेंगे. इस योजना की फिलॉसफी यह है कि इस योजना से जुड़ने के लिए देश में कई सारे निजी अस्पताल आगे आएंगे. लेकिन दुनिया भर का अनुभव है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी निवेश की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इस मामले को पूरी तरह निजी क्षेत्र के हवाले नहीं किया जाना चाहिए. सिर्फ लाभ के मकसद से चलने वाला तंत्र स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करने में कारगर नहीं होता.

बिहार जैसे राज्य में अभी निजी अस्पतालों का तंत्र बन नहीं पाया है. इसलिए बेशक राज्य में आयुष्मान भारत योजना लागू है, लेकिन जब बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ते हैं, तो उन्हें इलाज के लिए सरकारी अस्पताल ही नजर आते हैं. मुजफ्फरपुर में इनसेफेलाइटिस की महामारी फैलने पर ठीक यही हुआ. मुश्किल ये है कि लगातार लापरवाही के शिकार सरकार अस्पताल ऐसी स्थिति से निबटने के लिए तैयार नहीं थे.

इस योजना का तीसरा दोष ये है कि इसे लागू करने के लिए काम करने वाली यानी फंक्शनल ब्यूरोक्रेसी होनी चाहिए. जो परिवारों का इस योजना के लिए रजिस्ट्रेशन करे, उन्हें योजना से जोड़े, उन्हें योजना के लाभ से अवगत कराए. यह तंत्र इतना प्रभावी होना चाहिए कि इलाज करने वाले अस्पतालों को समय पर भुगतान मिल जाए. इसके बाद ही नए अस्पताल इस योजना से जुड़ना चाहेंगे. बिहार जैसे राज्य में जिस तरह की प्रशासनिक अराजकता है. उसमें कोई भी निजी अस्पताल आयुष्मान भारत योजना से जुड़ने में हिचकेगा, क्योंकि उसे आसानी से इस बात का यकीन नहीं हो पाएगा कि उसके पास सरकार से पैसा पहुंच जाएगा.


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बिहार दरअसल इस स्थिति में है ही नहीं कि इंश्योरेंस आधारित किसी जनस्वास्थ्य योजना का लाभ अपनी विशाल आबादी तक पहुंचा सके. बिहार और आयुष्मान भारत योजना के बीच कोई संगति ही नहीं है. ये योजना देश के विकसित इलाकों के लिए बनी है. अगर योजना बनाने वालों ने बिहार या यूपी जैसे इलाकों को भी ध्यान में रखा होता, तो वे इसके हिसाब से योजना में बदलाव करते या इन राज्यों के लिए कोई विशेष योजना लाते.

बिहार में आयुष्मान भारत योजना को फेल होना ही था. दुखद ये है कि इस बार इसकी कीमत मासूम बच्चों ने उठाई.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)

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