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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतUP की बिगड़ी कानून व्यवस्था के लिए योगी आदित्यनाथ की इजाद की हुई व्यवस्था जिम्मेदार है

UP की बिगड़ी कानून व्यवस्था के लिए योगी आदित्यनाथ की इजाद की हुई व्यवस्था जिम्मेदार है

उत्तर प्रदेश की बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था पर जब भी बात होती है, तो उसे जिलों में तैनात डीएम और एसपी की जाति को देखकर समझने की कोशिश की जाती है. 40 से ज़्यादा जिलों के डीएम/एसपी मुख्यमंत्री के सजातीय हैं.

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हाथरस ज़िले में 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ हुए जघन्य अपराध को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जिस तरीके से हैंडल करने की कोशिश की है, वह देश के लिए शर्मिंदगी की बात है. इस मामले में यूपी पुलिस ने सबसे पहले ठीक से एफआइआर दर्ज करने में देरी की, एफआइआर दर्ज किया तो गैंगरेप की धारा नहीं लगाया, समय पर मेडिकल परीक्षण नहीं कराया और जब इस मामले में हाथरस-आगरा जिले के स्थानीय पत्रकारों ने ख़बर लिखना शुरू किया तो उन पर यह कहते हुए फ़र्ज़ी ख़बर फैलाने का मुक़दमा दर्ज करने की कोशिश की गई कि पुलिस की जानकारी में हाथरस जिले में गैंगरेप की कोई घटना घटी ही नहीं है.

यह मामला और आगे बढ़ा तो सरकार ने पीड़िता को दिल्ली के एम्स की बजाय सफदरगंज अस्पताल में भर्ती कराया, जहां उसकी मृत्यु हो गयी. मृत्यु के बाद जिला प्रशासन ने रात में ही बिना परिवार वालों की अनुमति के ही लड़की की लाश को जला दिया, और अब पूरे गांव को पुलिस से घेराकर जेल में तब्दील कर दिया है, ताकि विपक्ष का कोई नेता वहां जा न पाए.

प्रदेश की कानून व्यवस्था संभाल रहे एडीजी का कहना है कि लड़की साथ गैंगरेप हुआ ही नहीं, जबकि लड़की ने मृत्यु से पूर्व रेप होने का बयान दिया है. हाथरस की घटना के 24 घंटे के भीतर ही बलरामपुर, आजमगढ़ और भदोही जिले से भी दलित लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार करके हत्या की ख़बर आ गयी. यह सारी घटनाएं बताती हैं कि प्रदेश में दलित महिलाओं के साथ अत्याचार की घटना किस तरह बढ़ गयी है.

दलित महिलाओं के ऊपर बढ़े अत्याचार के साथ ही पिछले कई महीनों से प्रतिदिन किसी न किसी ब्राह्मण समाज के व्यक्ति के मारे जाने की भी ख़बर आती रही है. ब्राह्मणों की हत्या भी इस प्रदेश में ऐसे हो रही है मानों कोई गैंगवार चल रहा है. यह सारी घटनाएं साबित करती हैं कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का सत्यानाश हो चुका है. सवाल उठता है कि इसके पीछे प्रमुख कारण क्या है? इस लेख में इसी सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की गयी है.


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नौकरशाही का ठाकुरीकरण

उत्तर प्रदेश की बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था पर जब भी बात होती है, तो उसे जिलों में तैनात डीएम और एसपी की जाति को देखकर समझने की कोशिश की जाती है. अभी कुछ दिन पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने प्रदेश के 40 से ज़्यादा जिलों के डीएम/एसपी की जाति को सार्वजनिक किया जो कि मुख्यमंत्री के सजातीय हैं. ज़िलों के डीएम/एसएसपी की जाति पता करके कानून व्यवस्था की स्थिति का अंदाज़ा लगाने के पीछे की समझ यह होती है कि इन अधिकारियों का कुछ समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह ख़राब क़ानून व्यवस्था का कारण होता है. जिले के उच्चाधिकारियों का पूर्वाग्रह कानून व्यवस्था को समझने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण औज़ार है, हाथरस के मामले में ज़िले के डीएम/एसपी का पूर्वाग्रह प्रथम दृष्टया दिखाई दे भी रहा है. लेकिन उत्तर प्रदेश में सिर्फ इसकी बदौलत वर्तमान समय की खराब कानून व्यवस्था को ठीक से नहीं समझा जा सकता. इसे समझने के लिए हमें वर्तमान सरकार की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर भी गंभीरता से नज़र डालनी होगी, जिसके आधार पर योगी आदित्यनाथ सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं.

सत्ता का केंद्रीकरण

योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक कार्यप्रणाली को देखा जाए तो वह यूपी में अपनी सरकार सत्ता को केंद्रित करके चलाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण बीजेपी में अनुभवी नेताओं की कमी होना है, जो कि आजकल नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के बारे में भी कहा जा रहा है. उत्तर प्रदेश में स्थिति और भी ख़राब है क्योंकि यहां बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए विपक्षी पार्टियों से कई बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कर लिया है. चुनावी मजबूरी में विपक्षी पार्टियों से आए नेताओं को योगी ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल तो कर लिया है, लेकिन यह भी सुनिश्चहित किया है उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय न दिए जाएं. शायद इस वजह से योगी ने गृह मंत्रालय समेत तमाम प्रमुख विभाग अपने पास ही रखे हैं.

वैसे यह एक अजीब विडम्बना है कि उत्तर प्रदेश जो कि यूरोप के ज़्यादातर देशों से जनसंख्या और भौगोलिक दृष्टि से बड़ा है, फिर भी इस राज्य में स्वतंत्र रूप से गृहमंत्री तक नहीं हैं. जो गृहमंत्री है, वह राज्यमंत्री हैं, जो कि कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हो सकते. अपने मंत्रियों से सत्ता शेयर न करनी पड़े, इसलिए योगी आदित्यनाथ अपनी कैबिनेट की बैठक भी बहुत ही कम बुलाते हैं, बल्कि उससे ज़्यादा वह सचिवों के साथ मीटिंग करते हैं. चूंकि मुख्यमंत्री बनने के पहले योगी के पास खुद का कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था, इसलिए सरकार चलाने के लिए सचिवों पर उनकी निर्भरता बढ़ती चली गयी है.

प्रभारी मंत्री से प्रभारी सचिव

प्रशासनिक अनुभवहीनता और सत्ता में दूसरों को हिस्सेदार न बनने देने की भावना ने योगी आदित्यनाथ की नौकरशाही पर निर्भरता बढ़ा दी है. इस वजह से वह प्रदेश को अपने मंत्रियों नहीं बल्कि विभिन्न विभागों के सचिवों की एक टीम बनाकर चला रहे हैं. इसको प्रदेश में चलन में आए ‘प्रभारी सचिव’ की अवधारणा से समझा जा सकता है. प्रभारी सचिव की नीति के तहत अलग-अलग विभाग के सचिवों को मुख्यमंत्री ने जिलों का प्रभार दे रखा है, जो कि दिन में कभी डीएम और एसपी को फ़ोन करके आदेश देते रहते हैं. पिछले कई महीनों से यूपी के जिला प्रशासन और पुलिस प्रसासन में काम कर रहे प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से बात करने पर पता चला है कि दरअसल इन दिनों जिलों को डीएम/एसपी चला ही नहीं रहे हैं, बल्कि लखनऊ में बैठे चंद प्रभारी सचिव चला रहे हैं. प्रभारी सचिव की इस नयी व्यवस्था में डीएम/एसपी का काम बस आंकड़े इकट्ठा करने तक शीमित रह गया है.

प्रभारी सचिव की व्यवस्था के पहले ‘प्रभारी मंत्री’ की व्यवस्था थी जिसके तहत एक मंत्री को एक जिला आवंटित कर दिया जाता था, और वह मंत्री महीने में एक बार जिले के अधिकारियों के साथ मीटिंग करके ज़रूरी दिशा-निर्देश दे देता था. वैसे तो यह व्यवस्था अभी भी लागू है, लेकिन प्रभारी सचिव की व्यवस्था के आगे इसका कोई ख़ास महत्व नहीं रह गया है, क्योंकि जिला चलाने वाला सचिव तो लखनऊ में बैठकर सीधे मुख्यमंत्री को रिपोर्ट कर रहा है.

इस नयी व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए अगर उत्तर प्रदेश की बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था को देखा जाए तो इसके लिए योगी आदित्यनाथ की इजाद की हुई यह व्यवस्था भी जिम्मेदार है.

(लेखक रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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