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Sunday, 12 May, 2024
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यूपी में लगातार हो रही हत्याओं और कम हुए वर्चस्व से ब्राह्मण गुस्से में, विकास दुबे एनकाउंटर ने आग में घी डालने का काम किया

यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से कायम माना जाता रह है. आबादी के लिहाज से लगभग 12% ब्राह्मण हैं. 2017 में बीजेपी को ब्राह्मणों का पूरा सपोर्ट मिला लेकिन सरकार में उतनी हनक नहीं दिखी.

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लखनऊ: यूपी के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से माना जाता रहा है. लेकिन योगी सरकार के 2017 में सूबे में सत्ता में आने के बाद कई ब्राह्मणों की हत्याओं के मामले सामने आए हैं.

उससे न सिर्फ ब्राह्मण संगठन आगबबूला हैं बल्कि विपक्षी दल भी योगी सरकार पर ब्राह्मणों की ‘उपेक्षा’ के आरोप लगा रहे हैं.

यूपी के गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के तरीके को लेकर उठ रहे सवालों ने यूपी में एक नई बहस को जन्म दे दिया है.

प्रदेश के तमाम ब्राह्मण संगठन इस मुद्दे पर मुखर हैं. वह विकास को ‘आरोपी और अपराधी तो मानते’ हैं लेकिन उसके एनकाउंटर के तरीके और पुलिस द्वारा उसके परिवार को प्रताड़ित करने के आरोपों पर आगबबूला हैं.

अखिल भारतीय ब्राह्मण संगठन महासंघ के अध्यक्ष असीम पांडे कहते हैं, ‘विकास दुबे को अपराधी सभी मानते हैं लेकिन उसको सजा देने का ये तरीका ठीक नहीं. पूरी फिल्मी स्क्रिप्ट के तहत उसे मारा गया.’

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असीम आरोप लगा रहे हैं कि जिस तरह उसके से उसके परिवार के साथ बर्ताव किया जा रहा है, वह गलत है. पांडेय आगे कहते हैं, ‘माना की विकास अपराधी था लेकिन उसकी पत्नी, बच्चों और मां-बाप को क्यों सताया जा रहा है. क्या ब्राह्मण की जगह कोई क्षत्रीय होता या कोई अन्य ऊंची जाति का होता तो ऐसा किया जाता? ब्राह्मणों पर अत्याचार इस सरकार में लगातार बढ़ा है.’

कुछ ऐसा ही मानते हैं अखिल भारतीय ब्राहम्ण महासभा (रा.) के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ त्रिपाठी. वह कहते हैं, ‘विकास दुबे का एनकाउंटर संवैधानिक मूल्यों की हत्या है. संविधान इजाज़त नहीं देता कि कोई व्यक्ति या संस्थान कानून अपने हाथ में ले. राजेंद्र के मुताबिक, अपराधी से किसी को लगाव नहीं लेकिन एनकाउंटर का तरीका गलत रहा.’


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‘लगातार हो रही ब्राह्मणों की हत्याएं’

असीम के मुताबिक, ‘पिछली सरकारों में भी ब्राह्मणों के साथ हिंसा हुई लेकिन इस सरकार में ऐसे मामले अधिक बढ़ गए हैं. असीम के मुताबिक, जून-जुलाई के पिछले 11 दिन में 23 ब्राह्मणों की हत्या हुई हैं. योगी सरकार बनते ही जून 2017 में ऊंचाहार में 5 ब्राह्मण जिंदा जलाए गए.’

वह आगे कहते हैं, ‘इस मामले में ठीक तरह से जांच हो इसके लिए ब्राह्मणों संगठनों की ओर से प्रेशर डाला गया तो योगी सरकार जागी. इसके बाद लगातार ब्राह्मणों की हत्याओं के मामले सामने आए चाहे वह कमलेश तिवारी हत्याकांड रहा या मैनपुरी के नवोदय स्कूल की छात्रा की संदिग्ध आत्महत्या का मामला रहा हो. अधिक चर्चित हत्याकांड या सुसाइड एक ही जाति के लोगों के हैं.’

जबकि इस मामले में राजेंद्र नाथ त्रिपाठी का दावा कि इस सरकार में बीते दो साल में 500 से अधिक ब्राह्मणों की हत्याएं हुई हैं.

उनके मुताबिक, ‘योगी सरकार ब्राह्मण विरोधी है ये कहने में कोई गुरेज नहीं है. जिस तरह से ब्राह्मणों का दमन किया जा रहा है उससे साबित है कि सरकार ब्राह्मण विरोधी है.’

राजनीति में कम हुआ वर्चस्व

यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से कायम माना जाता रह है. आबादी के लिहाज से लगभग 12% ब्राह्मण हैं. 2017 में बीजेपी को ब्राह्मणों का पूरा सपोर्ट मिला लेकिन सरकार में उतनी हनक नहीं दिखी.

2017 में बीजेपी के कुल 312 विधायकों में 58 ब्राह्मण चुने गए हैं इसके बावजूद सरकार में ब्राह्मणों की हनक कम हुई है.

56 मंत्रियों के मंत्रिमंडल में 9 ब्राह्मणों को जगह दी गई लेकिन दिनेश शर्मा व श्रीकांत शर्मा को छोड़ किसी को अहम विभाग नहीं दिए गए. श्रीकांत शर्मा के बारे में कहा जाता है कि उन्हें शीर्ष नेतृत्व की ओर से दिल्ली से यूपी भेजा गया है. जबकि 8 क्षत्रियों को मंत्री बनाया गया है और सभी को ब्राह्मणों से बेहतर विभाग दिए गए.

योगी को करीब से जानने वाले सूत्र बताते हैं कि क्षत्रियों में महेंद्र सिंह, स्वाती सिंह और चेतन चौहान को योगी का करीबी माना जाता है. ऑडियो प्रकरण के बाद भी स्वाती सिंह का विभाग नहीं बदला गया है जबकि ब्राहम्णों में कोई उनका करीबी नहीं है.

अगर सांसदों की बात करें तो बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में यूपी में 15 ब्राह्मणों को टिकट दिया जिसमें 13 सांसद बने.

दिप्रिंट से बातचीत में बीजेपी के एक ब्राह्मण विधायक ने बताया कि जब अटल विहारी वाजपेयी लखनऊ से सांसद हुआ करते थे तो बीजेपी संगठन में ब्राह्मणों का वर्चस्व था लेकिन फिर ये धीरे-धीरे कम हुआ. इसके बावजूद 2017 के चुनाव में पार्टी को ब्राह्मणों का जमकर समर्थन मिला क्योंकि वह सपा-बसपा से तंग आ गए थे लेकिन मौजूदा सरकार में उन्हें वैसी तवज्जो नहीं मिली जैसी हम लोग उम्मीद लगाए बैठे थे. इसके अलावा लगातार हो रही ब्राह्मणों की हत्याओं से रोष बढ़ा है. अगर इस रोष को कम नहीं किया गया तो इसका खामियाजा हमें 2022 में भुगतना पड़ सकता है.

ब्यूरोक्रेसी में बैलेंस करने की कोशिश

लगातार ब्राह्मणों की उपेक्षा के आरोपों के बीच ब्योरोक्रेसी में ब्राह्मणों को तवज्जो देकर बैलेंस करने की कोशिश जरूर की गई है. मुख्य सचिव आरके तिवारी व अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ब्राह्मण हैं तो वहीं डीजीपी भी एचसी अवस्वी ब्राह्मण बनाए गए हैं.

हालांकि ब्यूरोक्रेसी में दूसरे अहम पद दूसरी सर्वण जातियो में बंटे हैं. वहीं जिले के कप्तानों (एसएसपी/एसपी) की बात की जाए तो यहां पर भी ब्राह्मण व ठाकुरों को तवज्जो दी गई है लेकिन ब्राह्मणों का एकक्षत्र वर्चस्व बरकरार नहीं रह गया है.

बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता मनोज मिश्र कहते हैं, ‘योगी सरकार को ब्राह्मण विरोधी बताना एकदम गलत है. आज के दौर में सरकार के सबसे अहम पद चाहे चीफ सेक्रेट्री हो या होम सेक्रेट्री या डीजीपी सभी ब्राह्मण हैं. ऐसे में जो ये आरोप लगा रहे हैं वे झूठ बोल रहे हैं. बीजेपी सरकार में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है.’

पीड़ित परिवार अभी भी मांग रहे इंसाफ

मैनपुरी में 16 सितंबर 2019 को नवोदय विद्यालय की छात्रा के संदिग्ध सुसाइड के मामले में पीड़ित परिवार को आज भी इंसाफ का इंतजार है. पीड़िता के पिता सुभाष पांडे ने दिप्रिंट को बताया कि 8 महीने से अधिक का समय बीत गया है लेकिन उन्हें आज भी इंसाफ का इंतजार है. उन्हें जानकारी मिली है कि उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म हुआ जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली. पिता की ओर से स्कूल की प्रिंसिपल व कुछ अन्य आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्जा कराई गई थी लेकिन अभी भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है. सुभाष के मुताबिक, वह जब भी पुलिस अधिकारियों के पास जाते हैं तो ये कह के टाल दिया जाता है कि अभी लॉकडाउन चल रहा है और पुलिस कोरोना से बचाव की जंग में व्यस्त है.

बस्ती में 9 अक्टूबर 2019 में भाजपा के युवा कार्यकर्ता आदित्य नारायण तिवारी ऊर्फ कबीर तिवारी की हत्या हो गई थी और परिवार को आज भी इंसाफ का इंतजार है. कबीर की बहन रंजन तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस मामले में साजिशकर्ता की गिरफ्तारी की मांग के साथ आमरण अनशन पर बैठ गए थे और मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे थे तभी स्थानीय सांसद हरीश द्विवेदी और बस्ती के जिलाधिकारी ने इस बात का भरोसा दिलाते हुए अनशन खत्म कराया कि योगी सरकार मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करेगी लेकिन बाद में योगी सरकार ने धोखा करते हुए मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपने की सिफारिश कर दी.

रंजना के मुताबिक पिछले कुछ महीने में अधिकतर मौतें एक ही जाति (ब्राह्मण) के लोगों की हो रही हैं इससे साफ है कि सरकार की मंशा क्या है. मेरा भाई बीजेपी में था फिर भी हमें अभी तक इंसाफ नहीं मिल पाया.

ये हैं वो चर्चित ब्राह्मणों के हत्याकांड/ ग्राफिक्स-रमनदीप कौर/ दिप्रिंट
ये हैं वो चर्चित ब्राह्मणों के हत्याकांड/ ग्राफिक्स-रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

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ब्राह्मणों के मुद्दों पर मुखर विपक्षी दल

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद का कहना है कि वो दौर अब खत्म हो गया है यूपी में जब ब्राह्मण ‘प्रिव्लेज्ड क्लास’ में माना जता था. अब तो पीड़ित समाज हो गया है. जितिन के मुताबिक, ‘इस सरकार में जितना ब्राह्मणों का दमन हुआ है शायद ही कभी इतना हुआ हो. मंत्रिमंडल में जो ब्राह्मण हैं उन पर फैसले लेने की कोई ताकत नहीं. ये बात सब जानते हैं. पुलिस में ब्रह्मण होने के बावजूद पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिल रहा है. जाहिर है कोई तो ऐसा होने से रोक रहा है.’

जितिन ने अपने ट्विटर पर यूपी के नक्शे (मैप) पर ब्राह्मणों की हत्याओं के कई मामले साझा करते हुए कहा है कि इनमें से अधिकतर परिवारों को इंसाफ नहीं मिला है. इसको लेकर वह ‘ब्राह्मण चेतना संवाद’ की शुरुआत करने जा रहे हैं.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मिश्रा का कहना है कि कई बार ब्राह्मण समाज के लोगों का फोन आता है तो वह इस बात का जिक्र करते हैं हमारे समाज के लोग इस वक्त आइसोलेट फील कर रहे हैं.

वह आगे कहते हैं, ‘एक विशेष जाति के लोगों की जिस तरह से हत्याएं हो रही हैं उससे सवाल उठना लाजिमी हैं. हमारी सरकार के वक्त हम पर बीजेपी वाले जातिवादी होने का आरोप लगाते थे लेकिन इस वक्त कितना जातिवाद है ये किसी से छुपा नहीं रहा है.’

बहुजन समाज पार्टी की ओर से ब्राह्मणों की लगातार हो रही हत्याओं पर तो कोई बयान नहीं आया लेकिन उन्होंने विकास दुबे के एनकाउंटर की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की है.

ब्राह्मण वोटबैंक पर विपक्ष की नज़र

यूपी में लगभग 12 % ब्राह्मण वोट है. कई सीटों पर वे निर्णायक भूमिका में भी हैं. जिस तरह से ब्राह्मणों की नाराजगी सरकार से बढ़ रही है ऐसे में विपक्षी दलों की निगाहें इस बड़े वोटबैंक पर आ गई हैं. केवल कांग्रेस ही नहीं सपा-बसपा भी इस मुद्दे को कैश करना चाहती हैं. दोनों दलों के सूत्र बताते हैं कि बीजेपी में उपेक्षित ब्राह्मण विधायकों को दोनों दल अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं लगातार उपेक्षा के आरोप के बीच बीजेपी के अंदरखाने में भी इसकी चर्चा है.


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ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय का माहौल

सोशल मीडिया पर विकास दुबे के बहाने तमाम ब्राह्मण संगठन पिछले तीन साल में ब्राह्मणों की हत्याओं के डाटा साझा कर रहे हैं. पॉलिटिकल कॉमेंटेटर शरद प्रधान का मानना है कि प्रदेश की राजनीति व अफसरशाही में मौजूदा जो माहौल है और साथ ही जिस तरह से एक खास जाति के लोगों की हत्याओं के मामले सामने आ रहे हैं, इसमें कोई शक नहीं कि ब्राह्मण खुद को आइसोलेट महसूस कर रहा है. ब्यूरोक्रेसी में बेहतर पोस्टिंग की बात हो या मंत्रिमंडल में अच्छे पदों की ब्राह्मणों का जो वर्चस्व पहले कायम रहता था वो काफी कम हुआ है.

इसके अलावा सरकार पर क्षत्रियवाद के आरोप तो शुरुआत से लगते रहे हैं. हालांकि बीच में बैलेंस करने की कोशिश भी की गई लेकिन पिछले कुछ महीनों में जो हत्या के मामले सामने आए उसके बाद ये कहना गलत नहीं कि ये चुनावी मुद्दा बन सकता है. 2022 के चुनाव में ब्राह्मण बनाम ठाकुरों में वर्चस्व की जंग देखी जा सकती है.

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